पंजाब के बजट में 'पंजाबी यूनिवर्सिटी' के लिए फंड की कमी एक भद्दा मज़ाक : वीसी
पंजाबी यूनिवर्सिटी कैंपस, पटियाला
पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रों, शिक्षकों और वाइस चांसलर ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 164 करोड़ रुपये के कम बजटीय आवंटन की आलोचना की और इसे उस संस्था के साथ क्रूर मज़ाक करार दिया जो अपने टीचिंग और नॉन-टीचिंग कर्मचारियों को वेतन देने के लिए संघर्ष कर रही है। पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने अपने बजट भाषण में ऐलान किया कि पंजाब की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी का बजट 200 करोड़ रुपए से घटाकर 164 करोड़ रुपए कर दिया गया है। कम किए गए इस बजट पर शिक्षकों और छात्रों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, ये सभी इस कदम की निंदा करने के लिए शुक्रवार को पुस्तकालय के बाहर एकत्र हुए थे।
शैक्षणिक समुदाय और लोगों को एक वीडियो संबोधन में, वाइस चांसलर अरविंद ने कहा कि पंजाबी यूनिवर्सिटी, पंजाब के मालवा क्षेत्र में छात्रों, विशेष रूप से गरीब परिवारों की छात्राओं को सस्ती शिक्षा प्रदान कर रही है। परिसर में छात्रावासों द्वारा प्रदान की जाने वाली राहत के कारण अन्य जिलों के छात्रों के लिए यहां रहना संभव हो पाता है। उन्होंने कहा, "मुख्य परिसर और अन्य घटक कॉलेज व सेंटर दो लाख से अधिक छात्रों की सेवा करते हैं। विश्वविद्यालय कुछ वर्षों से वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। हम इस वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं क्योंकि हमने देश में नवउदारवादी रास्ते का पालन करने से इनकार कर दिया है, जो वर्षों से लगातार शुल्क वृद्धि की वकालत करता रहा है। हमने लोगों की सेवा उसी प्रकार से की जिस प्रकार से करनी चाहिए थी। इस सेवा का नेट रिज़ल्ट, टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्टाफ को भुगतान करने के लिए 468 करोड़ रुपये का वेतन बिल है। हम बिजली, पानी और अन्य खर्चों पर करीब 100 करोड़ रुपये खर्च करते हैं। इसलिए, हमारे पास विश्वविद्यालय को चलाने के लिए सालाना 575 करोड़ रुपये का बजट है।
उन्होंने कहा कि इस 575 करोड़ रुपये के बजट में से विश्वविद्यालय को घटक कॉलेजों से फीस और एफिलियेशन के रूप में 200 करोड़ रुपये प्राप्त होते हैं। “हम सभी जानते हैं कि राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। अगर हम सब गरीब हैं तो आपस में रोटी बांटकर कम खा सकते हैं। अगर अनुदान आनुपातिक होता तो हम समझ जाते कि सरकार सहानुभूति रखती है, लेकिन उसकी कुछ मजबूरियां भी हैं। राज्य में स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर सरकार और उसके प्रतिनिधियों ने बड़े बयान दिए थे। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पिछले साल 29 मार्च को विश्वविद्यालय का दौरा किया था और उन्होंने घोषणा की थी कि शिक्षा को कर्ज के जाल में नहीं फंसाया जाएगा। इस अनुदान से ऋण के माध्यम से ही शिक्षा प्रदान की जा सकती है। 150 करोड़ रुपये का कर्ज बढ़ेगा ही और हमें वेतन देने के लिए अभी और कर्ज लेना होगा।”
पंजाबी यूनिवर्सिटी में नई पहल के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "हमने शैक्षणिक माहौल में सुधार के लिए नए कदम उठाए हैं जो सफल साबित हो रहे हैं। हमने पांच वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम और राज्य की ज़ूलोजिकल विविधता को समर्पित एक केंद्र शुरू किया है। हमने किसानों और व्यापारियों के लिए कौशल विकास केंद्र भी शुरू किया है। वारिस शाह की 300वीं जयंती और भाई वीर सिंह की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में नए शैक्षणिक कार्यक्रम हैं। इसलिए, हम सरकार से अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए कह रहे हैं।"
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय का अस्तित्व, राज्य और उसकी भाषा के भाग्य के साथ बेहद करीब से जुड़ा हुआ है। “हम विश्वविद्यालय के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने और इस ऐतिहासिक संस्थान को बचाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए सब कुछ करेंगे। इस विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर होने के नाते मैं सरकार से अनुदान को 164 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 360 करोड़ रुपये करने की अपील करता हूं। बिना इस अनुदान के विश्वविद्यालय को बचाया नहीं जा सकता। अगर यह विश्वविद्यालय मर जाता है तो यह पंजाब और पंजाबी की मौत के बराबर होगा।"
विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र के रिटायर्ड प्रोफेसर बलविंदर सिंह तिवाना ने कहा कि अगले वर्ष के लिए उच्च शिक्षा का बजट 990 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है जो पूरे बजट 1.96 लाख करोड़ रुपये का 0.5% है। ऐसे में यह पूरे प्रदेश में उच्च शिक्षा के लिए बुरी खबर है। न्यूज़क्लिक से फोन पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि पंजाबी विश्वविद्यालय 1962 में अस्तित्व में आया और चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय के बाद राज्य का दूसरा सबसे पुराना विश्वविद्यालय बना हुआ है। यह किसी भी भाषा को समर्पित दुनिया का दूसरा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है।
उन्होंने कहा, "यह राज्य के 10 जिलों की ज़रूरतों को पूरा करता है और दो लाख से अधिक छात्रों के साथ, यह पंजाब में सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बना हुआ है। इसलिए, राज्य सरकार द्वारा इस विश्वविद्यालय की अनदेखी का मतलब है-राज्य के लोगों की उपेक्षा। दूसरे शब्दों में, यह निजी विश्वविद्यालयों को प्राथमिकता दे रहा है। विश्वविद्यालय अब अकैडमिक्स में भारी नुकसान उठा रहा है। हमारे पास कई विभाग हैं जहां पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए प्रोफेसर नहीं हैं। यहीं पर गुरदयाल सिंह, दिलीप कौर तिवाना आदि नामी विद्वानों ने अपनी सेवाएं दी थीं। इसी विश्वविद्यालय में हमने पंजाबी-हिंदी, पंजाबी-फारसी के क्लासिक शब्दकोशों और सामाजिक विज्ञान की किताबों के अनगिनत अभूतपूर्व अनुवाद तैयार किए हैं। धन के अभाव में हम ज़्यादा कुछ नहीं कर सके। यूनिवर्सिटी मास्टर्स के छात्रों को पढ़ाने के लिए पीएचडी छात्रों की सेवाएं ले रही है। यह एक विकट स्थिति है।"
स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF), PSU ललकार, PRSU और PSU वाले संयुक्त छात्र मोर्चा के एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि छात्रों के समूह कम आवंटन के विरोध में जल्द ही एक राज्यव्यापी अभियान शुरू करेंगे। बयान में कहा गया है, "पंजाब के सीएम विश्वविद्यालय परिसर में आए और उन्हें इस तथ्य से अवगत कराया गया कि विश्वविद्यालय 150 करोड़ रुपये के भारी कर्ज में डूबा हुआ है और उन्होंने वादा किया कि वे ऋण वापस लेंगे। फिर भी, उनकी सरकार ने बजट को कम करने का विकल्प चुना। नए वेतनमान की घोषणा के बाद विश्वविद्यालय का खर्च 100 करोड़ रुपये बढ़ गया है और इस बजट से यह केवल तीन महीने ही चल सकता है इसलिए हम पंजाब सरकार को चेतावनी देते हैं कि वह इस पर फिर से विचार करे या नए आंदोलन के लिए तैयार हो जाए।"
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
Punjab Budget a Cruel Joke for Punjabi University, Funding Meagre, Says VC
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