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काल बनती नदियां: पूर्वांचल में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन-सरकार या नाकाम सिस्टम?

"नदियों और तालाबों में डूबकर मरने वालों के आंकड़े चिंता के विषय हैं। हमें अपने पड़ोसी मुल्क बंगलादेश के मॉडल से सीख लेनी चाहिए, जहां सभी बच्चों को 12 दिन की तैराकी की ट्रेनिंग अनिवार्य रूप से दी जाती है।"
river accident

"हम गंगा को दोष क्यों दें? हमसे तो हमारी किस्मत ही रूठ गई। हमने किसी बच्चे को नदी में डूबते नहीं देखा था। गंगा में नहाते समय मेरा बेटा अभिजीत डूब गया और हम कुछ नहीं कर पाए। मेरा बेटा और मां दोनों चले गए और मैं ये सब देखने के लिए ज़िंदा बच गया हूं।"

मां मुनराजी देवी की मौत के बाद बेटे अभिजीत के नदी में डूबने से गमजदा और बेचैन मूलचंद प्रयागराज के छतनाग घाट पर बदहवास हालत में यही शब्द दोहरा रहे थे। उनकी आंखें डबडबाई हुई थीं। 14 वर्षीय किशोर अभिजीत कुमार 16 जून 2023 की शाम अपनी दादी मुनराजी (75) के अंतिम संस्कार के लिए झूसी इलाके के छतनाग घाट पर पहुंचा था। दादी के अंतिम संस्कार के बाद वह अपने कुछ दोस्तों के साथ गंगा में नहा रहा था। उसे नदी की गहराई का अंदाज नहीं था। वह अचानक गहरे पानी में उतरा और डूबने लगा।

मूलचंद की आंखों के सामने जब उनका बेटा अभिजीत कुमार गंगा में समाने लगा तो वह बेसुध होकर गिर पड़े। परिजनों और रिश्तेदारों ने उन्हें किसी तरह संभाला। जब तक लोगों की नजर पड़ी वह डूब गया। जल पुलिस ने गोताखोरों को बुलाया। खोजबीन शुरू हुई, लेकिन अंधेरा होने के कारण शव बरामद नहीं हो सका। मां और बेटे की मौत से गमजदा मूलचंद की पत्नी छतनाग घाट पर सीना पीट-पीटकर चीखती रहीं, "मैं बर्बाद हो गई। मेरा बेटा और सास दोनों चले गए। अब हम किसके भरोसे जिंदा रहेंगे?"

यह हादसा इस बात का अलार्म है कि अगर आप नदी-पोखरों में नहाने जा रहे हैं, तो सतर्क रहिए। इन दिनों नदी-पोखरों में नहाना बेहद खरनाक है। आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि नहाने के दौरान हुई मौतों की तादाद में भारी इजाफा हुआ है। भीषण गर्मी के बीच नदी-पोखरों में डूबने की घटनाएं फिलहाल सबसे बड़ी आपदा हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की नदियों में अबकी बार पिछले साल के मुकाबले चार गुना लोगों की डूबने से जानें गईं।  

गंगा में डूबने वालों के रोते-बिलखते परिजन

मोक्ष नहीं, मिल रही मौत

देश-दुनिया के तमाम इलाकों से बहुत से लोग इस आस्था के साथ बनारस और प्रयागराज (इलाहाबाद) जाते हैं कि गंगा में डुबकी लगाने से उन्हें मोक्ष मिलेगा। दोनों जगहों पर कई ऐसे घाट हैं कि आस्था की डुबकी लगाने वालों को मौत मिल रही है। बनारस में पिछले साल गंगा में डूबने से मरने वालों की संख्या करीब 120 थी, वहीं इस साल सिर्फ दो महीनों में 28 लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ी है। बनारस के दरभंगा घाट पर तीन, दशाश्वमेध पर दो, अस्सी घाट पर तीन, ललिता घाट पर छह, शिवाला घाट पर दो और चेत सिंह घाट पर दो लोगों की मौतें नहाने के दौरान हुई। शिवाला घाट, रैपुरिया घाट और कैथी घाट पर एक-एक मौतें हुईं। बनारस के तुलसी घाट को अब मौत वाले घाट के नाम से पुकारा जाने लगा है। यहां दो महीनों में आठ लोगों की जानें जा चुकी हैं। यह ऐसा घाट है जहां पानी की गहराई का अंदाजा नहीं होने के कारण लोग डूब जाते हैं।

बनारस की गंगा नदी इतनी डेंजर हो गई है कि उसमें तमाम जिंदगियों मिटती जा रही हैं। आकड़ों पर गौर करें तो हालात बेहद चिंताजनक हैं। इसी साल 10 जून 2023 को मीरघाट और मार्कंडेय महादेव घाट में दो श्रद्धालुओं की मौत हुई। इससे पहले छह जून को शिवाला घाट पर गंगा स्नान के दौरान एक पर्यटक डूब गया। चार जून को रैपुरिया घाट पर स्नान के दौरान दो युवकों डूब गए थे और तीन अन्य को बचा लिया गया था। दो जून को कैथी घाट पर स्नान के दौरान एक युवक की डूबने से जान चली गई।

28 मई 2023 को दरभंगा घाट पर एक युवक डूब गया तो एनडीआरएफ के जवानों ने काफी मेहनत के बाद उसके शव को बाहर निकाला। 27 मई को चौबेपुर बर्थारा घाट पर नहाने गए चार दोस्त गंगा की तेज धारा में बह गए, जिनमें से सिर्फ एक को ही बचाया जा सका। तीन युवकों की मौत हो गई। 26 मई को तुलसी घाट पर रील बनाने के फेर में आजमगढ़ के दो युवक डूब गए। ऐसे ही आठ अप्रैल को शिवाला घाट पर बिहार के युवकों की डूबकर मौत हो गई थी।

बनारस का तुलसी घाट सबसे डेंजर जोन है। यहां बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने खतरे का बोर्ड भी लगा रखा है, लेकिन मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। इसी घाट पर 13 अप्रैल 2023 को मुगलसराय स्थित केंद्रीय विद्यालय के दो छात्रों की डूबने से मौत हो गई थी। एक मई को भी एक अन्य छात्र डूब गया था। 26 मई को गंगा नहाने आए तीन दोस्तों में से दो डूब गए थे। 31 मई को प्रयागराज  का एक युवक नहाते समय डूब गया था। गंगा घाटों पर सुरक्षा बढ़ाए जाने के निर्देश के बावजूद नहाने के दौरान लोगों के डूबने के हादसे थमते नजर नहीं आ रहे हैं।

बनारस के शीतला घाट पर परंपराओं का निभाना। किसी के पास लाइफ जैकेट तक नहीं 

आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में 110 और 2022 में करीब 120 लोगों की जिंदगी गंगा की जलधारा में समा गई थी। हैरानी की बात यह है कि जल पुलिस रोजनामचे में डूबने वालों की संख्या एक दर्जन से ज्यादा नहीं है। इस साल के अंत तक इन मौतों की संख्या कहां तक पहुंचेगी, यह अनुमान लगाना कठिन है। बनारस के गंगा घाटों पर जल पुलिस भी तैनात है और एनडीआरएफ के जवान भी चक्रमण करते हैं, लेकिन मौतों का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। नागरिकों की जान बचाने के लिए जिन महकमों पर जिम्मेदारी डाली गई है वो कोई ठोस प्रयास करते नजर नहीं आ रह हैं, जिसके चलते उन पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं?

गंगा में डूबी महिला को बचाने की कोशिश

चार गुना ज़्यादा मौतें

बनारस की तरह प्रयागराज में भी गंगा में डूबने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। यहां पिछले ढाई महीनों में 41 लोगों की मौत नहाते समय डूबने से हुई है। प्रयागराज की नदियां औसतन हर महीने 16 से 17 लोगों की जान ले रही हैं। 14 जून 2023 को भी यहां गंगा नदी में नहाते समय चार लोग डूब गए थे और इस हादसे में रैपिड एक्शन फोर्स के जवान उमेश कुमार और उनके दो बच्चों के साथ ही पड़ोस में रहने वाले एक बच्चे की डूबने से जान चली गई थी। घटना के दिन कुल छह लोग गंगा तट पर नहाने गए थे, जिनमें से चार लोग हादसे के शिकार हो गए। 5 जून 2023 को संगम तट पर तेज आंधी के चलते नाव पलट गई थी और इस हादसे में पांच युवकों की डूबने से मौत हो गई थी।

मई महीने में बलिया जिले में गंगा नदी में नाव पलटने से चार लोगों की मौत हो गई थी।

पिछले साल मेरठ जिले के हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र के भीमकुंड गंगा घाट पर एक नाव पलट जाने से गंगा नदी में 15 लोग डूब गए थे, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।

प्रयागराज में पिछले एक महीने में गंगा में नहाते समय करीब 26 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 14 जून 2023 को शिवकुटी में आरएएफ जवान समेत चार बच्चे गंगा में डूब गए। इससे पहले 4 जून को संगम पर स्नान के दौरान सात छात्र गंगा में समा गए थे। इसी दिन करछना में दो चचेरे भाइयों की गंगा में डूबने से मौत हो गई थी। 30 मई को अरैल घाट पर नहाते समय एक लड़का डूब गया था। इससे पहले 22 मई को सतना के रहने वाले दो बच्चों की नहाते समय संगम तट पर मौत हो गई थी। क्रमश 5, 18 व 20 मई को शिवकुटी और फाफामऊ में पांच स्टूडेंट्स डूब गए थे। प्रयागराज में पांच अप्रैल और 18 मार्च और तीन मार्च को भी तीन लोगों की मौतें हुई थीं।

प्राकृतिक आपदाओं में मौत होने पर सरकार चार लाख रुपये मुआवजा देती है। प्रयागराज में पिछले वित्तीय वर्ष में 50 लोगों की मौत होने पर करीब दो करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया था। नए वित्तीय वर्ष में सिर्फ 75 दिनों में ही 41 मौतें हुई, जिसके एवज में 1.6 करोड़ रुपये का मुआवजा बांटा जा चुका है।

गंगा घाट पर चेतावनी के लिए लगा बैनर

थम नहीं रहीं मौतें

उत्तर प्रदेश के सिर्फ बनारस और इलाहाबाद में ही नहीं, समूचे पूर्वांचल में नदी-पोखरे लोगों को जान ले रहे हैं। 14 जून 2023 को देवरिया जिले के पचरुखिया गांव में गंडक नदी में नहाने गए पांच लोगों की डूबने से मृत्यु हो गई। नहाते समय डूब रहे एक बच्चे को बचाने के प्रयास में सात लोग डूब गए, जिनमें से पांच लोगों की मृत्यु हुई, जबकि दो अन्य को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। 12 जून 2023 को गोरखपुर में राप्ती नदी में नहाने गए आठ साल के एक बच्चे की डूबने से मौत हो गई और उन्हें बचाने गए दो युवक लापता हो गए। दोनों के शव काफी देर बाद नदी से बरामद हुए।

कौशांबी में 17 जून को यमुना में स्नान के दौरान चार युवक डूबे। यह हादसा पिपरी थाना क्षेत्र के सेवढ़ा यमुना घाट पर हुआ। इसमें 3 युवकों की डूबकर मौत हो गई जबकि एक युवक को स्थानीय लोगों ने बचा लिया। ग्रामीणों की सूचना पर पुलिस पहुंची और शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा।

सिद्धार्थनगर जिले में 30 मई 2023 को दो अलग-अलग घटनाओं में डूबने से सात बच्चों की मौत हो गई। पहली घटना कठहा गांव के पास हुई, जहां चार बच्चे की कूड़ा नदी में नहाते हुए डूब गए। दूसरी खरचौला नानकार में हुई, जहां नहाने गए दो बच्चों की राप्ति नदी डूबने से मौत हो गई। इसी साल बदायूं में गंगा नदी में पांच मेडिकल स्टूडेंट्स नहाते समय डूब गए थे, जिनमें तीन की मौत हो गई थी। 

कुछ प्रगतिशील नाविक यात्रियों को पहनाते हैं लाइफ जैकेट

काशी में डीप वॉटर बैरिकेडिंग

बनारस की गंगा में डूबकर मरने वाले हादसों से रंगे अखबारों की ज्यादा कतरनें जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दफ्तर में पहुंचने लगीं तब बनारस की सरकार की नींद टूटी। शिकायतों के मद्देनजर प्रशासन ने कुछ प्रमुख घाटों पर डीप वॉटर बैरिकेडिंग की व्यवस्था की है। साथ ही, चेतावनी बोर्ड भी लगाया गया है कि इस बैरिकेडिंग के आगे स्नान करने पर आपको खतरा हो सकता है। प्रशासन को ऐसा करना पड़ रहा है, क्योंकि पिछले पांच सालों में गंगा में स्नान करते हुए सैकड़ों लोग डूब गए। मौत के आंकड़ों को कम करने के लिए, प्रशासन ने फिलहाल तुलसी घाट पर डीप वॉटर बैरिकेडिंग की व्यवस्था की है। कुछ और घाटों पर भी डीप वॉटर बैरिकेडिंग लगाने की तैयारी है।

काशी जोन के एसीपी आरएस गौतम कहते हैं, "तुलसी घाट पर डीप वॉटर बैरिकेडिंग की व्यवस्था होने से मौत के आंकड़े कम होंगे। अब वहां आराम से स्नान किया जा सकता है। स्नानार्थियों से उम्मीद की जा रही है कि लोग बैरिकेडिंग पार करके गंगा में स्नान नहीं करेंगे। गंगा घाटों पर बोर्ड लगाकर लोगों को अलर्ट किया जा रहा है। जल पुलिस को गंगा में गश्त करने का सख्त निर्देश दिए गए हैं। सिविल पुलिस भी नियमित रूप से घाटों पर गश्त करती रहती है। वाराणसी के घाटों पर नजर रख पाना संभव नहीं है। स्नान करने आने वाले लोगों को चाहिए कि वो चेतावनी बोर्ड को पढ़ें और उसके बाद गंगा में उतरें।"

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, "बनारस में गंगा स्नान और पूजन के लिए हर महीने करीब 30 से 50 लाख से ज्यादा देशी-विदेशी लोग पहुंचते हैं, जिनमें बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और तमाम सैलानी नौकायन भी करते हैं। गंगा घाटों पर सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। डीप वॉटर बैरिकेडिंग अथवा जंजीर आदि की व्यवस्था कुछ ही घाटों तक सीमित है। पुलिस और एनडीआरएफ जवान हादसे के बाद सिर्फ पंचनामा कराने पहुंचते हैं। बाकी समय वो क्या करते हैं, किसी को नहीं मालूम।

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य गंगा में डूबने से होने वाली मौतों के लिए सीधे तौर पर लचर सिस्टम को जिम्मेदार बताते हैं। वह कहते हैं, " बनारस आखिर कैसी स्मार्ट सिटी है जहां डूबकर मरने वालों का ग्राफ आसमान छू रहा है और सरकार कुछ भी नहीं कर पा रही है। गंगा के घाटों पर जल पुलिस और एनडीआरएफ के जवान तैनात रहते हैं, फिर भी मौत का सिलसिला बंद क्यों नहीं हो रहा है? स्मार्ट सिटी के नाम पर यहां अरबों रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन कोई सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं है। नौकायन का लाइसेंस नगर निगम देता है, लेकिन वह टैक्स वसूलकर अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर लेता है। नगर निगम के अफसर यह तक नहीं देखते कि नौकाओं पर लाइफ जैकेट और बचाव के दूसरे उपकरण हैं अथवा नहीं? यह आरोप आम है कि नाविकों से चौथ वसूली की रवायत के चलते कायदा-कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

गंगा में डूबे व्यक्ति को ऑक्सीजन देकर नई ज़िंदगी देने की कोशिश

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन और नदी विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं— 

"बनारस की गंगा की फिजियोग्राफी और बहाव में काफी बदलाव आ गया है। घाटों के किनारे गंगा में भंवर के चेंबर बन गए हैं, जो नौकायन करने वालों और मल्लाहों के लिए खतरनाक हैं। घाट किनारे गंगा में कहीं सिल्ट है तो कहीं 15 फीट से अधिक गहरा पानी। जो लोग तैरना नहीं जानते वो तो सतर्क रहते हैं, लेकिन जिन्हें तैरना आता है वो गफलत में डूब जाते हैं। तैराकों को भी पता नहीं होता कि घाट किनारे गंगा में रेत के गड्ढे और पानी के भंवर धोखे से जान लेते हैं। बनारस में घाटों को सजाया जा रहा है, लेकिन अंदर से पोपला हो चुके घाटों की मरम्मत की दिशा में कोई ठोस पहल शुरू नहीं हो सकी है।"

वाराणसी में गंगा बचाओ अभियान से जुड़े एक्टिविस्ट डॉ. अवधेश दीक्षित कहते हैं—

"बनारस में गंगा दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। घाट पक्के होने की वजह से पानी देर तक घाटों से टकराकर दोबारा धारा में मिलता है। इससे जल तरंगे उठती हैं और खतरनाक भंवरों को जन्म देती है। इन भंवरों का दायरा करीब 22 फीट में होता है। कम पानी के धोखे में यदि कोई भंवर में फंस गया तो बच पाना मुश्किल होता है। गंगा में डूबने से होने वाली मौतों के लिए सिर्फ घाट ही जिम्मेदार नहीं हैं। तमाम बालू माफिया और अफसर भी जिम्मेदार हैं जो मनमाने तरीके से अवैध खनन में लिप्त हैं। पिछले साल बालू माफियाओं ने बनारस में गंगा पार बड़े पैमाने पर रेत की निकासी की, जिसका विपरीत असर अब देखने को मिल रहा है। चिंता की बात यह है कि अवैध खनन के खेल में जुटे माफिया गिरोहों के सिर पर बड़े-बड़े अफसरों के हाथ हैं और वो हाथ इतने लंबे हैं उन्हें किसी के जीने-मरने की कोई चिंता ही नहीं है। गंगा में डूबने वाले लोगों के परिजनों को दुर्घटना बीमा के अलावा सरकार न कोई राहत देती है और न ही सुरक्षा का कोई पुख्ता बंदोबस्त कर रही है।"

बनारस के घाटों पर डूबने के हादसों का जिक्र करते हुए बनारस के चर्चित गोताखोर दुर्गा माझी न्यूज़क्लिक से कहते हैं—

"दो साल पहले बालू-रेत पर नहर खोदी गई थी, जिसके चलते गंगा ने घाटों को काफी अंदर तक पोपला कर दिया है। यही वजह है कि आए दिन नहाने वालों की मौतें हो रही हैं और इसकी चिंता सरकारी नुमाइंदों को कतई नहीं है। बनारस के  घाट पोपले हो गए हैं। नहाते समय पोपले घाटों के अंदर घुस जाने की वजह से हो रही हैं। ऐसी लाशें न पुलिस निकाल पाती है और न ही एनडीआरएफ के जवान उन्हें बचा पाते हैं। जब ये मृतकों को गंगा से नहीं निकाल पाते हैं तब पुलिस हमारे दरवाजों पर दस्तक देती है। मानवता के चलते हमें गंगा की भंवर में उतरना पड़ता है।"

दुर्गा यह भी कहते हैं, "बनारस भले ही स्मार्ट हो रहा है, लेकिन घाटों की अंदरूनी स्थिति चिंताजनक है। अवैध खनन और गंगा की रेत में टेंट सिटी का असर घाटों पर पड़ रहा है। हम दशकों से गोताखोरी करते आ रहे हैं। गंगा में डूबने की इतनी घटनाएं पहले नहीं होती थीं। अब तो रोज ही कहीं न कहीं लोगों के डूबने और मरने की खबरें आ रही हैं। बनारस में भीड़-भड़क्का बढ़ गया है, लेकिन स्नानार्थियों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं है। लोगों को सुरक्षित स्नान कराने की व्यवस्था की जिम्मेदारी जल पुलिस की है। एनडीआरएफ के जवान नदी में गश्त करते जरूर दिखते हैं, लेकिन जल पुलिस वाले कहीं नजर नहीं आते। गंगा में डूबने से मरने के हादसों को देखते हुए लगता है कि स्थिति काफी गंभीर और चिंताजनक है। सरकार को चाहिए कि वह सभी घाटों के किनारे डीप वॉटर बैरिकेडिंग कराए।"

क्या हैं बचाव के उपाय?

नदियों में डूबने की घटनाएं उन इलाकों में अधिक होती हैं जहां बड़ी नदियों को पार करने के लिए नावों का इस्तेमाल होता है। वैसे नदियों, झीलों और समुद्र तटों पर लोगों को यात्रा, रोज़गार और पढ़ाई-लिखाई यानी स्कूल जाने के लिए पानी से होकर आना-जाना पड़ता है। इस दौरान कई बार बड़े हादसे हो जाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में आपदा प्रबंधन और शहरी इलाकों में क्लाइमेट से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही गोरखपुर की संस्था इन्वायरेंमेंटल एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष शिराज़ वजीह कहते हैं, "मैंने डूबने से हुई मौतों के पीछे वजह के तौर पर क्लाइमेट चेंज के असर का अध्ययन नहीं किया, लेकिन यह स्वाभाविक बात है कि अगर कम वक्त में बहुत अधिक बारिश होगी और अचानक पानी बढ़ेगा तो डूबने का ख़तरा तो बढ़ेगा ही। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये ग्रामीण इलाकों में जागरूकता, मूलभूत ढांचा और लोगों को बेहतर उपकरण या ट्रेनिंग देनी होगी, क्योंकि लोगों की दिनचर्या में बाढ़ और पानी शामिल है। यूपी के तराई वाले इलाकों में कोसी, गंडक या राप्ती बेसिन जैसे इलाकों में जलागम क्षेत्र में काफी गड्ढे हैं, क्योंकि ये नदियां रास्ता बदलती रहती हैं भोजन या रोज़गार के लिए लोग मछली पकड़ने नदियों में उतरतें हैं तो हादसे भी होते हैं।"  

शिराज यह भी कहते हैं, "भारत में 70 फीसदी आबादी और छोटे शहरों में रहती है, जहां तालाबों, झीलों, नदियों और जलाशयों जैसे जल निकाय हैं, जिनमें से अधिकांश बेपरवाह और असुरक्षित हैं। वहां लोगों के डूबने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। लोगों को डूबने से बचाने के लिए जरूरी है जीवन रक्षक कौशल। जीवन रक्षा एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, लेकिन हमारे देश को इसे समझने में काफी समय लगा है। हमारे पास डूबने की रोकथाम और सुरक्षा पर नीति बनाने के लिए कोई केंद्रीय नीति या प्राधिकरण नहीं है।"

राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक, "डूबने से मरने वालों में महाराष्ट्र पहले नंबर है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश, तीसरे पर बिहार और चौथे स्थान पर यूपी है।"

वाराणसी में ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष सीबी तिवारी ‘राजकुमार’ वॉटर सेफ्टी नियमों पर जोर देते हुए कहते हैं, "देश में एक राष्ट्रीय जल सुरक्षा योजना बनाने और उसे लागू करने की जरूरत है। पानी से जुड़े रोज़गार को सुरक्षित नहीं किया गया तो हर साल हजारों जिंदगियां डूबती रहेंगी। तैराकी को सिर्फ एक खेल तक सीमित न रखकर अधिक आगे ले जाने की ज़रूरत है। यह महत्वपूर्ण जीवन रक्षण का कौशल है और हर किसी को इसे सीखना चाहिए। बच्चों को स्कूल में ही तैराकी सिखाने और वॉटर सेफ्टी की तकनीक सिखाने की नीति होनी चाहिए। बच्चों के लिए सुरक्षा की प्राथमिक ज़िम्मेदारी स्वयंसेवक, टीचर और अभिभावक के रूप में महिलाओं के हाथों में होनी चाहिए।"

'समाज तैरना भूल गया'

एक्टिविस्ट श्रुति नागवशी कहती हैं, "डूबना दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी 'अनइंटेन्शनल इंज्युरी डेथ' है और इसमें बच्चों की तादाद सबसे ज़्यादा है। पूर्वांचल में नदियों और तालाबों में डूबकर मरने वालों के बढ़ते आंकड़े चिंता के विषय हैं। इस इलाके में निर्माण कार्यों में जब से लाल बालू का चलन बढ़ा है तब से नदियों में अवैध खनन का सिलसिला तेज हुआ है। डूबने के बढ़ते हादसों के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है कि अवैध खनन के चलते नदियां गहरी होती जा रही हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में हाल के दिनों में नदी-पोखरों में लोगों के डूबने के हादसे बढ़े हैं। यूपी सरकार को चाहिए कि वह 'सुरक्षित तैराकी कार्यक्रम' चलाए। खासतौर पर उन जिलों में जहां से बड़ी नदियां गुजरती हैं और डूबने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। हमें अपने पड़ोसी मुल्क बंगलादेश के मॉडल से सीख लेनी चाहिए, जहां सभी बच्चों को 12 दिन की तैराकी की ट्रेनिंग अनिवार्य रूप से दी जाती है। वैसे भी तैरना अब एक ज़रूरी और जीवन रक्षक हुनर है, जिसे हर किसी को जरूर सीखना चाहिए।"

प्राकृतिक आपदाओं के समय आपात स्थितियों में सामरिक, आर्थिक और तकनीकी के लिए गठित नेशनल डिसास्टर रिस्पांस फंड (एनडीआरएफ) के डिप्टी कमांडेट अभिषेक कुमार राय कहते हैं, "बनारस के नदियों में होने वाले हादसों का दोष सिर्फ सरकार के माथे पर नहीं मढ़ा जा सकता। कई स्थानों पर नदियों के किनारे चित्रांकन और सुरक्षा बोर्ड लगाए गए हैं। हमें इन चित्रांकनों को समझना और पालन करना चाहिए। सुरक्षा के लिए, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम नदी-पोखरों में नहाने से पहले उपयुक्त सुरक्षा की व्यवस्था करें। अगर हम नदी-पोखरों में नहाने की सोच रहे हैं, तो साथ में कोई दूसरा व्यक्ति भी होना चाहिए। इसके अलावा, हमें नहाने से पहले मौसम की जानकारी लेनी चाहिए और कठिनाइयों की संभावना पर ध्यान देना चाहिए। विशेष रूप से बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए उचित पर्याप्त नदी घाटों पर नजर रखना चाहिए। उन्हें नदी-पोखरों में डूबने के खतरे के बारे में समझाया जाना चाहिए और उन्हें उपयुक्त सुरक्षा संरचनाओं और सुरक्षा सावधानियों के बारे में लोगों को जागरूक होना चाहिए।

"हमने एक हीट मैप बना रखा है, जिसमें बनारस और प्रयागराज शामिल हैं। बनारस के अस्सी, दशाश्वमेध और राजघाट पर हम लगातार जागरूकता अभियान चला रहे हैं। नाविकों, गोताखोरों को ट्रेनिंग दी जा रही है, जिसमें सीपीआर देकर जिंदगियों को बचाने की तकनीक भी सिखाई जा रही है। हमारी टीमें लगातार पेट्रोलिंग करती रहती हैं। कुछ सालों में एनडीआरएफ ने यहां तमाम लोगों को डूबने से बयाया है। नदी-पोखरों में नहाना हमारे लिए एक सुखद अनुभव हो सकता है, लेकिन हमें सुरक्षित रहने की जरूरत है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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