अलीपुर हादसा: लापरवाही की आग ने निगल लीं 11 ज़िंदगियां!
देश की राजधानी दिल्ली में एक और फैक्ट्री हादसा हुआ जिसमें 11 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। मामला उत्तरी दिल्ली के अलीपुर का है, जहां एक रिहायशी इलाके में अवैध रूप से पेंट की फैक्ट्री चल रही थी। फैक्ट्री में कथित तौर पर वेल्डिंग की चिंगारी से गुरुवार, 15 फरवरी को आग लग गई, कुछ ही समय में आग ने इतना विकराल रूप ले लिया कि आस-पास की दुकानें और मकान भी इसकी चपेट में आ गए।
दिल्ली में ये इस तरह का कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी ऐसे कई जानलेवा हादसे हो चुके हैं लेकिन बावजूद इसके, नियमों और सुरक्षा मानकों को ताक पर रख कर, रिहायशी इलाक़ों में, संकरी गलियों में इस तरह से अवैध फैक्ट्रियां चलती हैं, जिसका नतीजा ये होता है कि लापरवाहियों की ये आग कई ज़िंदगियां लील जाती है।
इलाक़े में प्रभावित मकान
अलीपुर पेंट फैक्ट्री हादसे में मरने वाले ज़्यादातर ग़रीब मज़दूर ही थे। हालांकि इन 11 मृतकों में एक फैक्ट्री मालिक अशोक जैन का भी नाम है, बाक़ी 10 यहां काम करने वाले मज़दूर थे। इन 10 मज़दूरों में भी 7 ऐसे थे जो इस फैक्ट्री में नियमित नौकरी करते थे जबकि 3 मज़दूर ऐसे थे जो फैक्ट्री में दिहाड़ी पर 'रैक फिटिंग' का काम करने आए थे और इस हादसे का शिकार हो गए।
फैक्ट्री हादसे में जान गंवाने वालों में अब तक 9 लोगों की पहचान हो चुकी है - राम सूरत(44), पंकज(40), विशाल (18), अनिल ठाकुर(46), अशोक जैन(62), शुभम(19), राम प्रवेश(19), बृज किशोर(19)और मीरा(44)
फैक्ट्री मालिक अशोक जैन का परिवार भी उनका पार्थिव शरीर लेने अस्पताल पहुंचा था। परिवार ने इस पूरी घटना पर कोई प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया।
"मेरा भाई मुझे छोड़ गया, अब मैं अकेला हूं"
फैक्ट्री हादसे में जान गंवाने वाले राम प्रवेश के बड़े भाई राजेश बेहद हताश-परेशान अपने भाई का शव मिलने का इंतज़ार कर रहे थे। 19 साल के राम प्रवेश बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले थे और काम की तलाश में दिल्ली आए थे। राम प्रवेश के बड़े भाई राजेश ख़ुद 26 साल के हैं और वो भी बवाना में एक फैक्ट्री में मज़दूरी करते हैं जहां उन्हें महज़ 12 हज़ार रूपये मिलते हैं। वे अपने भाई को याद करते हुए कहते हैं कि उसने दुनिया में देखा ही क्या था? हम उसकी शादी की बात कर ही रहे थे। उन्होंने बताया कि डेढ़-दो साल पहले ही उनके भाई ने यहां 6500 रूपये में नौकरी शुरू की थी और अभी उसे 8 हज़ार रूपये वेतन मिल रहा था। राजेश कहते हैं, "हम दोनों भाई मज़दूरी कर के किसी तरह अपना परिवार चला रहे थे। हमारे पिता का पहले ही निधन हो चुका है, माता जी बीमार रहती हैं। हम दोनों भाई किसी तरह से इस महंगाई में अपने परिवार का गुज़ारा कर रहे थे, मेरा भाई मुझे छोड़ गया, अब मैं अकेला हूं।" ये बोलते हुए उनका गला रुंध गया, भाई को खोने का सदमा और परिवार की चिंता उनके चेहरे पर साफ़ पढ़ी जा सकती थी।
राम प्रवेश
“फैक्ट्री में सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं, न ग्लब्स न मास्क”
46 वर्षीय अनिल ठाकुर का शव लेने अस्पताल पहुंचे उनके बड़े भाई मदन ठाकुर ने कहा, “मेरा भाई इस फैक्ट्री में कई सालों से काम कर रहा था और इस हादसे में हमारी पूरी दुनिया ही उजड़ गई। उसके परिवार और बच्चों को अब कौन देखेगा?” उन्होंने बताया कि अनिल के परिवार में तीन बच्चे और उनकी पत्नी है और किराड़ी में रहते हैं। सभी बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं। मदन कहते हैं, "हम लोग रोज़ कमाने-खाने वाले हैं। हम लोग बिहार के मुजफ्फरपुर से कई दशक पहले दिल्ली में रोज़गार के लिए आए क्योंकि हमारे पास इतनी खेती नहीं थी कि उससे कुछ कर सकें। दिल्ली में मज़दूरी कर हम किसी तरह अपने परिवारों का भरण-पोषण कर रहे थे।"
अनिल ठाकुर
अनिल के परिवार के एक सदस्य अमित ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "फैक्ट्री में सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं था। यहां तक कि फैक्ट्री में काम के दौरान उन्हें ग्लब्स और मास्क भी नहीं दिया जाता था जिससे फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूरों को आंख और सांस से संबंधित बीमारी भी हो रही थी।”
20 हज़ार रूपये उधार लेकर शव को पहुंचाया गांव!
फैक्ट्री में रैक फिटिंग का काम करने गए महज़ 18 साल के विशाल भी इस आग का शिकार हो गए। विशाल का तो कोई सगा रिश्तेदार भी दिल्ली में नहीं था, वो अकेले ही यहां काम करने आया था। उसके एक जीजा यहां थे, उन्होंने फोन पर विशाल की तस्वीर दिखाई और कहा कि अभी डेढ़ महीने पहले ही यह 18 साल का हुआ है। विशाल यूपी के आज़मगढ़ से हैं और इनका परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर है। यही कारण है कि 16 साल की नाज़ुक उम्र में विशाल को दिहाड़ी मज़दूरी करने के लिए दिल्ली आना पड़ा।
विशाल
विशाल के जीजा का कहना है कि ये लोग पारंपरिक रूप से गांव में भुजा भूंजने का काम करते थे। दिनभर की उठापटक के बाद विशाल का शव मिला सका। विशाल के परिवार वालों ने बताया कि पुलिस ने बॉडी को घर भेजने के लिए भी कोई मदद नहीं की जिसके बाद उसके जीजा किसी से 20 हज़ार रूपये उधार लेकर शव को यूपी के आज़मगढ़ लेकर निकले।
पंकज
इसी तरह से एक और रैक फिटर पंकज का परिवार भी बेहद ग़रीब है। वे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर से दिल्ली आकर मज़दूरी कर रहे थे और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सोनिया विहार में अपनी पत्नी के साथ एक किराये के कमरे में रहते थे। उनकी पत्नी आरती देवी का अस्पताल में रो-रोकर बुरा हाल था, वो बात करने की स्थति में नहीं थी। उनके जीजा जो ख़ुद एक दिहाड़ी मज़दूर हैं, उन्होंने बताया कि इनके बच्चे अभी छोटे हैं, पूरा जीवन कैसे कटेगा समझ नहीं आ रहा है। पंकज के दो बच्चे हैं, एक 15 साल का लड़का और 12 साल की लड़की। पंकज के शव को भी उनके गृह जिला लखीमपुर ले जाया गया।
पंकज की पत्नी आरती देवी
सोनिया विहार इलाक़े में ही रहने वाले एक और रैक फिटर राम सूरत की भी इस हादसे में मौत हो गई। इनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी, अभी दोनों नाबालिग हैं और पढ़ाई कर रहे हैं। रामसूरत अपने घर में अकेले कमाने वाले थे। शव लेने अस्पताल पहुंचे उनके भाई दिनेश सिंह ने बताया कि उनका भाई अलग-अलग जगह जाकर दिहाड़ी पर रैक फिटिंग का काम कई सालों से कर रहा था। इस काम में जिस दिन काम करते हैं उस दिन की दिहाड़ी मिलती है, नहीं तो बिना पैसे के ही घर लौटना पड़ता है।
राम सूरत
दिल्ली सरकार से नौकरी की मांग
रामसूरत के परिजनों ने दिल्ली सरकार के दस लाख के मुआवज़े पर कहा कि उससे क्या होगा? सरकार को चाहिए कि परिवार के किसी सदस्य को नौकरी दे जिससे परिवार अपना गुज़ारा चला सके।
दिनेश ही नहीं बल्कि अस्पताल पहुंचे लगभग सभी परिजन इस मुआवज़े ने नाख़ुश थे। परिजन सवाल उठाते हुए कहते हैं कि "परिवार को कोई स्थाई समाधान देना चाहिए, जैसे दिल्ली सरकार किसी अफसर की मौत पर एक करोड़ रूपये और साथ ही एक नौकरी भी देती है, तो मज़दूरों को एक करोड़ क्यों नहीं देती है? क्या मज़दूर की जान का कोई मोल नहीं है?”
प्रशासन के रवैये से परिजन परेशान
मदन प्रशासन के रवैये से भी बेहद परेशान थे। उन्होंने कहा कि कोई उन्हें सही जानकारी नहीं दे रहा था और वो सुबह (16 फरवरी) आठ बजे से बाबू जगजीवन राम अस्पताल के शव गृह के बाहर अपने भाई अनिल के शव की शिनाख्त करने के लिए भटक रहे थे, लेकिन अस्पताल उन्हें पुलिस के पास भेज रही थी और पुलिस कोई स्पष्ट जबाव नहीं दे रही थी।
ये सिर्फ़ एक अनिल के परिवार का दर्द नहीं बल्कि अस्पताल में मौजूद ज़्यादातर परिजन इसी तकलीफ़ से गुज़र रहे थे। इससे परेशान होकर परिजनों ने इकठ्ठा होकर अस्पताल में MS (मेडिकल सुप्रींटेंडेंट) के कार्यालय का घेराव किया जिसके बाद अस्पताल प्रशासन ने पहले से अपने परिजनों की मौत से दुखी लोगों के साथ 'दुर्व्यवहार' किया और पहले अस्पताल के निजी सुरक्षा गार्डों ने परिजनों को वहां से हटाने का प्रयास किया, उसके बाद उन्होंने पुलिस को बुला लिया। थोड़ी बहस के बाद परिजन MS ऑफिस के आगे से हटे।
इन सबके बीच MS ने परिजनों को बताया कि मृतकों की पहचान और पोस्ट मार्टम में देरी पुलिस की वजह से हो रही है। जब तक वो आ नहीं जाएंगे तब तक ये प्रक्रिया शुरू नहीं होगी इसलिए बेहतर है कि वे जांच अधिकारी को बुलाएं। इसके कई घंटे बाद थाना अध्यक्ष और जांच अधिकारी दलबल के साथ अस्पताल पहुंचे और काग़ज़ी कार्रवाई शुरू की और शवों की पहचान कर परिजनों को सौंपना शुरू किया।
घटनास्थल पहुंचे मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिया आश्वासन
हादसे के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल घटनास्थल पर पहुंचे और कहा, “अलीपुर में पेंट की फैक्ट्री में रात को आग लगी, बड़े दुख की बात है। 11 लोगों की मृत्यु हुई है, 4 लोग घायल बताए जा रहे हैं। मृतकों के परिवार वालों को हम 10-10 लाख रूपये की सहायता राशि दे रहे हैं। किसी की जान की क़ीमत नहीं लगाई जा सकती लेकिन अपनी तरफ़ से हम जो मदद कर सकते हैं वो करेंगे। सरकार गंभीर रूप से घायल व्यक्तियों को 2-2 लाख रूपये, और साधारण रूप से घायलों को 20-20 हज़ार रूपये का मुआवज़ा देगी। दुकान, मकान में जो नुक़सान हुआ है, आंकलन के बाद उन लोगों को भी भरपाई की जाएगी।”
केजरीवाल ने कहा, "आरोप है कि फायर ब्रिगेड देरी से आई थी, मैं इसकी जांच के आदेश दूंगा और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसे छोड़ेंगे नहीं। जल्द ही कार्रवाई होगी।"
घटना को लेकर हमने इस मामले के जांच अधिकारी अनिल और SHO शैलेन्द्र कुमार से बात की। दोनों ने ही माना कि फैक्ट्री पूरी तरह से अवैध थी। अनिल ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, "प्राप्त जानकारी के अनुसार वेल्डिंग की चिंगारी से फैक्ट्री में आग लगी क्योंकि पूरी फैक्ट्री में कैमिकल था। आग बड़ी तेज़ी से फैली और किसी को भागने का कोई मौका नहीं मिला। हमने FIR दर्ज कर ली है और जांच कर रहे हैं कि कौन दोषी है?”
कुछ इसी तरह की बात SHO शैलेन्द्र कुमार भी बोलते दिखे, उन्होंने कहा, "ये 100-150 गज का एक हॉल था जो पूरी तरह से रिहायशी इलाक़े के बीचो-बीच था। हॉल की लंबाई अधिक थी और चौड़ाई कम और ये तीन तरफ से बंद था जिससे आग लगने के बाद अंदर फंसे लोग निकल नहीं पाए।" FIR में कंपनी या किसी व्यक्ति का नाम दर्ज करने को लेकर सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "अभी किसी के नाम से FIR नहीं हुई है, अभी हम जांच कर रहे हैं।" फैक्ट्री को लेकर उन्होंने कहा कि फैक्ट्री पूरी तरह से गलत थी। रिहायशी इलाक़े में इस तरह काम करना गलत है।
यहां सवाल उठता है कि अवैध रूप से इतने सालों से ये फैक्ट्री चल कैसे रही थी? इस तरह के सवाल दिल्ली में हर अग्निकांड के बाद उठते हैं लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता। 24 घंटे में दिल्ली में तीन जगह इस तरह की घटना हुई है। दिल्ली ही नहीं देशभर में फैक्ट्रियां मज़दूरों के लिए ख़तरनाक हो रही है। एक रिपोर्ट से पता चलता है कि देशभर में फैक्ट्रियों में हर महीने 90 मज़दूर और हर साल क़रीब 1100 मज़दूरों की मौत हो जाती है जबकि 4000 मज़दूर घायल होते हैं। ये आंकड़े बताने के लिए काफ़ी हैं कि देश में किन हालात में मज़दूर काम कर रहे हैं।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस(सीटू) के सचिव सिद्धेश्वर शुक्ला ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "राष्ट्रीय राजधानी में हज़ारों ऐसी इमारतें हैं, जहां वर्तमान में कई कर्मचारी कार्यरत हैं, वे बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। दिल्ली सरकार कब जागेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि शहर में श्रम कानूनों के तहत सुरक्षा मानदंडों को ठीक से लागू किया जाए?"
शुक्ला ने मांग की कि लापरवाही के लिए क्षेत्र के कारखाना निरीक्षक (फैक्ट्री इंसपेक्टर) को तुरंत निलंबित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली सरकार से मुआवज़ा बढ़ाने की भी मांग की और कहा कि इस तरह की जो अन्य फैक्ट्रियां पूरी राजधानी में चल रही हैं उनकी जांच होनी चाहिए, क्योंकि इस तरह के हादसे लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन सरकार की नींद नहीं खुल रही है।
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