एसएयू विदेशी विश्विद्यालयों के लिए ख़तरनाक मिसाल क़ायम कर रहा है : निष्कासित छात्र
नई दिल्ली: दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय के छात्र, जिन्हे गुरुवार को परिसर के भीतर प्रदर्शन करने के लिए निष्कासित कर दिया गया था, प्रशासन अब बातचीत के लिए तैयार नहीं है और बुनियादी सुविधाओं की मांग उठाने वाले छात्रों की आवाज को दबाने के लिए दंडात्मक कार्रवाई का सहारा ले रहा है। विश्वविद्यालय ने दो छात्रों को निकाल दिया था, दो को रस्टीकेट किया था और एक छात्र को जांच समिति के नामांकन के खिलाफ सलाह देने के बाद निलंबित कर दिया था। छात्रों ने पिछले साल नवंबर में बढ़ती महंगाई के कारण फ्रीशिप और स्कॉलरशिप में बढ़ोतरी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया था।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, छात्रों ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी अंतर-सरकारी प्रकृति का हवाला देकर छात्रों के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ सकता है और छात्रों को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करना जारी नहीं रख सकता है। निष्कासित एलएलएम की छात्रा अपूर्वा यारबल्ली ने कहा कि वह मैदान गढ़ी परिसर के सामने अमानवीय हालत को झेलते हुए अनिश्चितकालीन धरने पर जाने पर मजबूर हुई हैं क्योंकि शौच के लिए उसे पास के जंगल में जाना पड़ता है।
उन्होंने कहा, “हमारी मांगों पर गौर करने के लिए प्रशासन ने जिस उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है उसने कभी भी छात्रों का पक्ष सुनने के लिए आमंत्रित नहीं किया और उल्टे निष्कासन नोटिस जड़ दिया। हमने विरोध शुरू किया था क्योंकि कई छात्रों ने शिकायत की थी कि राष्ट्रीय राजधानी में चाणक्य पुरी जैसे इलाके में रहने के लिए फ्रीशिप और फ़ेलोशिप बहुत कम है। हमने मांग की थी कि पीएचडी स्कॉलरशिप को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दी जाने वाली जूनियर रिसर्च फेलोशिप के बराबर किया जाए। इसी तरह, परास्नातक छात्रों के लिए भी वजीफे में वृद्धि होनी चाहिए।”
यारबल्ली ने संवाददाताओं को सूचित किया कि एक मनोरोग छात्र अम्मार अहमद, जो विरोध में शामिल हुआ था, ने निलंबन रद्द करने के लिए प्रशासन को खत लिखा था। “इस बीच, प्रशासन के सामने इस तथ्य को भी लाया गया कि उन्हें पैनिक अटैक आ रहे थे। पिछले साल 22 नवंबर को बेहोश होने के बाद उन्हें प्राइमस अस्पताल ले जाया गया था। बाद में उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ। प्रशासन ने शुरुआत में परिजनों को इलाज का खर्च वहन करने का आश्वासन दिया लेकिन बाद के पत्र में इनकार कर दिया। वह आज लकवाग्रस्त है और डॉक्टरों की निगरानी में है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन यह कहकर जिम्मेदारी से बच रहा है कि यह भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर का एक अंतर-सरकारी निकाय है। “प्रोफेसरों को खुद के अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार की रक्षा करने और उन पर पुलिसिंग रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा पर सम्मेलन के नियमों के अनुसार उन्हे प्रतिरक्षा प्रदान की गई थी। जबकि, हम देखते हैं कि उन शक्तियों का स्पष्ट दुरुपयोग हो रहा है। छात्रों के अलावा, शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। हमारे प्रोफेसरों ने परिसर में भारतीय पुलिस के प्रवेश की निंदा करते हुए बयान जारी किए थे, विरोध प्रदर्शनों की जांच की उचित प्रक्रिया की मांग की थी और विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 का प्रयोग किया था।
याराबल्ली ने यह भी दावा किया कि भारत-पाकिस्तान तनाव और अफ़गानिस्तान पर अनिश्चितता के कारण विश्वविद्यालय के एक गवर्न बॉडी का गठन नहीं किया जा सका। नतीजतन "कार्यवाहक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और रजिस्ट्रार सहित प्रोफेसरों का एक समूह पूरे शो को चला रहा है!"
अम्मार अहमद के भाई एहसान अहमद ने दावा किया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके भाई का करियर खराब करने के बहाने परिवार को परेशान किया है। उन्होंने कहा कि एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में युवा अम्मार के प्रवेश को गरीबी से जूझ रहे परिवार के दुखों का अंत माना जाता है।
उन्होने बताया कि, “हम बिहार के मुजफ्फरपुर से हैं। भले ही अम्मार गरीबी में पले-बढ़े, लेकिन वे असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्हें दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था। हम बहुत खुश थे। पिछले साल नवंबर में जब विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ तो समाजशास्त्र के छात्र के तौर पर उन्होंने भी इसमें हिस्सा लिया। बाद में उन्हें कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया। जब हमें इसके बारे में पता चला, तो हमने पाया कि वह इससे स्पष्ट रूप से व्यथित था। हमने उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा।”
एहसान ने बताया कि, छात्रों ने जब प्रशासन से निलंबन का नोटिस वापस लेने की अपील की तो उनकी माँ को माफीनामा लिखने को कहा गया। हालांकि, 22 नवंबर को वे बेहोश हो गए और उन्हें प्राइमस अस्पताल में दाखिल कार्या गया। अस्पताल ने एमआरआई जांच की और कहा कि वह ठीक है। बाद में रात में, उन्हें कथित तौर पर कार्डियक अरेस्ट हुआ। “इस बीच, हम प्रशासन के संपर्क में थे; उन्होंने हमें हर मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे अस्पताल में इलाज का खर्च वहन करेंगे। हमने उनके स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार देखा। उसने अपने दोस्त को भी बुलाया और क्रैनबेरी जूस पीने की इच्छा जताई। 28 नवंबर को प्रशासन के अधिकारी, जिन्होंने उन्हें निलंबन नोटिस दिया था, अम्मार के आईसीयू में गए थे। इस समय उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया, और उन्हें लकवा मार गया था।”
उन्होंने आगे बताया कि, एहसान ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रोफेसर मोहम्मद अबुलैश ने परिवार को उन्हें एम्स जैसे सरकारी अस्पताल में दाखिल कराने के लिए राजी किया क्योंकि इस मामले में "पुलिस के शामिल होने का संदेह था और अम्मार का करियर भी खराब हो सकता है"। “अब यह स्पष्ट हो रहा है कि वे पूरे मामले में अपनी खाल बचाने के एकोशिश कर रहे थे। संस्थान से वित्तीय सहायता न मिलने पर, खुद छात्रों ने 2 लाख रुपये जमा किए और उन्हें अस्पताल से छुट्टी करा ली।”
निष्कासित छात्रों के प्रति एकजुटता दिखाने वाली जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा कि विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की है जबकि संसद के कुछ सदस्यों ने बार-बार संबंधित मंत्री को मौजूदा स्थिति के बारे में लिखा है। आइशी ने कहा कि, “हमें पता चला कि एस जयशंकर ने संसद में अपने जवाब में कहा था कि वह जानते हैं कि विश्वविद्यालय में कोई अकादमिक स्वतंत्रता नहीं है और फिर भी वह इसके बारे में बहुत कुछ नहीं कर सकते क्योंकि यह विदेश मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। एसएयू एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है, लेकिन यह भारतीय धरती पर काम कर रहा है। क्या हम इसे भारतीय छात्रों को प्रताड़ित करने की अनुमति दे सकते हैं? मुझे लगता है कि सरकार के पास उन छात्रों को राहत देने का पूरा अधिकार है जिनके बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है। क्या यह अपराध है कि छात्रों ने स्टाइपेंड और स्कॉलरशिप में वृद्धि की मांग की? क्या यह अपराध है कि छात्रों ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने वाले निकायों में प्रतिनिधित्व की मांग की, क्या यह भी अपराध है?”
घोष, जो स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया दिल्ली यूनिट के उपाध्यक्ष भी हैं, ने कहा कि यह मामला छात्रों की आवाज के अपराधीकरण को दर्शाता है और आगामी विदेशी विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों के अधिकारों के बारे में एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। “नई शिक्षा नीति बताती है कि विदेशी विश्वविद्यालय भारत में आकर अपने परिसर स्थापित कर सकते हैं। क्या वे भी हमें हमारे मूल अधिकारों से वंचित करेंगे? मैं दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय के छात्रों को न्याय दिलाने में हर संभव मदद का आश्वासन देती हूं। हम फिर से दोहराना चाहते हैं कि विदेश मंत्रालय को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और इस मुद्दे को सुलझाना चाहिए।
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन की नेहा ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि विश्वविद्यालय ने न केवल छात्रों को निष्कासित किया बल्कि हर तरह के विरोध प्रदर्शन पर कार्रवाई भी की। “पहले, मैदान गढ़ी का एक पुलिसकर्मी अपूर्वा को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देता है। फिर, उसका तम्बू जबरदस्ती हटा दिया जाता है। जिस जगह पर अपूर्वा विरोध कर रही है वहां स्ट्रीट लाइट नहीं है जहां खुले में जंगली जानवर घूमते हैं। कोई सुरक्षा नहीं है। और उस पर छात्रों को वाई-फाई जैसी सुविधाओं की मांग पर कारण बताओ नोटिस दिया जाता है, इस साफ पता चलता है कि यह विश्वविद्यालय कैसे चलाया जा रहा है। छात्रों को धमकाया जा रहा है और निष्कासित किया जा रहा है; उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य नष्ट हो जा रहा है। एनईपी को छात्रों की चिंताओं की अवहेलना करते हुए यह कहकर लागू किया गया है कि भारत शिक्षा में एक "महाशक्ति" होगा और यहां विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। जबकि यह हमारे लिए कयामत ढा रहा है। अगर इस उत्पीड़न का विरोध नहीं किया गया तो यह हर विश्वविद्यालय में होगा।”
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
SAU Setting Dangerous Precedent for Upcoming Foreign Universities, Say Expelled Students
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