‘हमें मारना बंद करो’: सफाई कर्मचारी आंदोलन का दिल्ली के जंतर-मंतर पर हल्ला बोल
देश के कई राज्यों से आईं सफाई कर्मचारी महिलाओं ने सोमवार को दिल्ली के जंतर मंतर से सरकार को ललकारा और कहा कि सीवर-सेप्टिक टैंकों में मौतों को लेकर संसद में झूठ बोलना बंद करो। उनका एक ही नारा था, एक ही मांग थी कि #हमें_मारना_बंद_करो… #STOP_KILLING_US
इसी नारे (#STOP_KILLING_US) के साथ सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) ने पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से एक देशव्यापी अभियान छेड़ा हुआ है। इसी कड़ी में सोमवार, 28 अगस्त को दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया गया।
इस धरना-प्रदर्शन में जुटी सैकड़ों महिलाओं ने आक्रोश के साथ कहा कि दलित जिंदगियां और दलित मौतें, दोनों ही देश के लिए अदृश्य हो गईं हैं। सीवर व सेप्टिक टैंकों में हो रही मौतें वास्तव में जातिगत उत्पीड़न हैं, लेकिन जातिगत मानसिकता वाली सरकारों के लिए ये कोई मायने नहीं रखता।
इस प्रदर्शन में करीब 10 राज्यों दिल्ली, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान से पीड़ित महिलाओं व अन्य सफाई कर्मचारियों ने भागीदारी की।
इस धरना-प्रदर्शन में बताया गया कि इस साल अब तक 59 भारतीय नागरिकों की मौत सीवर-सेप्टिक टैंकों में हुई है लेकिन सरकार ने संसद के भीतर सफेद झूठ बोलते हुए कहा कि इस साल केवल 9 लोगों की मौत हुई है। कई पीडि़त महिलाएं जिनके पति सीवर-सेप्टिक टैंको की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके थे, अपने मासूम बच्चों को भी साथ लेकर आई थीं। सरकार के इस बयान पर बेहद गुस्से में थीं।
इन मौतों की वास्तविक संख्या को सरकार द्वारा लगातार नकारने से क्षुब्ध होकर ही सफाई कर्मचारी आंदोलन ने इस अभियान का आह्वान किया था। सीवर-सेप्टिक टैंकों में मौतों पर सरकारी उदासीनता के खिलाफ Stop Killing Us अभियान 11 मई 2022 से शुरू किया गया था। तब से रोजाना सफाई कर्मचारी समुदाय से जुड़े युवा, महिलाएं, पुरुष व बच्चे देश के अलग-अलग जगहों पर सड़कों पर निरन्तर प्रदर्शन कर रहे हैं। आज, 28 अगस्त 2023 को इस अभियान का 475वां दिन था।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेता बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि सरकार द्वारा सफाई कर्मचारियों की मौतों को नकारना उनकी जातिवादी मानसिकता को दर्शाता है। 'हमें मारना बंद करो' अभियान को चलाते हुए आज 475 दिन हो गए लेकिन सरकार हमें गंभीरता से नहीं ले रही है। इन सीवर-सेप्टिक टैंको में मौतें नहीं हुईं हैं बल्कि हत्याएं हुईं हैं और हम इसके लिए हम सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। और जब तक सरकार सफाई कर्मचारियों की मौतों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएगी तब तक हमारा Stop Killing Us अभियान जारी रहेगा।
जिन महिलाओं ने सीवर या सेप्टिक टैंकों में अपने परिजनों को खोया है, वे उनकी मौतों से जुड़े साक्ष्य और उनकी तस्वीर लेकर जंतर-मंतर पर मौजूद थीं जो सरकारी आंकड़ों के झूठ का पर्दाफाश करते थे। उनका कहना था कि सरकार के झूठ व उदासीनता ने उनकी पीड़ा को कई गुना बढ़ा दिया है। इस देश में अठारह से पच्चीस साल के उम्र के कई युवा सीवर या सेप्टिक टैंकों में जान गंवा देने को मजबूर कर दिए जाते हैं। ऐसे कई मृतकों की मासूम संताने और यहां तक दुधमुंहे बच्चे भी अपनी मांओं के साथ जंतर-मंतर पर मौजूद थे। और मानो सवाल कर रहे थे कि ''मेरे पिता कहां हैं? उन्हें किसने मारा?'' और भी गहरे अफसोस की बात यह है कि एक भी मामले में सरकार ने रोजगार, पेंशन, मकान या बच्चों की शिक्षा के रूप में इन मौतों पर न्याय करने की कोशिश तक नहीं की।
इस अवसर पर कई राज्य से आईं सफाई कर्मचारी महिलाएं और पुरुषों ने भी जंतर-मंतर पर अपनी बात रखी। उनकी बातों का निष्कर्ष यही था कि सरकार के पास चांद पर चंद्रयान भेजन की हाई टेक्नोलोजी है तो क्या सीवर-सेप्टिक टैंको की सफाई करने की मशीन बनाने की टेक्नोलोजी नहीं है?
उनका कहना था कि सरकार किसी किसी मामले में 10 लाख रुपये का मुआवजा देकर अपने कर्तव्य की औपचारिकता पूरी कर देती है। सभी को मुआवजा भी नहीं मिलता और इससे भी बड़ी बात यह कि कोई भी मुआवजा हमारे इंसान की जान की कीमत से बढ़कर नहीं हो सकता। हम चाहते हैं कि सरकार सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई का मशीनीकरण करे ताकि किसी भी इंसान की जान सीवर-सफाई के दौरान न जाए।
मांग की गई कि जिनके पति/पिता या अन्य परिवार के जन अब तक सीवर-सेप्टिक टैंकों में सफाई के दौरान जान गंवा चुके हैं। सरकार उनके लिए 10 लाख के मुआवजे के अलावा उनके लिए स्थायी नौकरी की व्यवस्था करे जिससे कि मृतक के परिवार का पालन-पोषण हो सके। बच्चों की शिक्षा पूरी हो सके।
सरकार की जातिवादी मानसिकता के प्रति भी सफाई कर्मचारिायों में काफी रोष देखने को मिला। उनका कहना था कि सरकार की नजर में हम दलितों की जिंदगी और मौत कोई मायने नहीं रखती। अगर सीमा पर हमारे जवान शहीद हो जाते हैं तब सरकार उनके प्रति चिंता व्यक्त करती है। उनके मुद्दे को गंभीरता से लेती है। पर जब दलित सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए जहरीली गैसों की चपेट में आकर अपनी जान गंवाते हैं तब सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। ऐसा क्यों? क्या ये सफाई कर्मचारी इस देश के नागरिक नहीं हैं? क्या इनको गरिमा से जीने का हक नहीं है?
सरकार विदेशों में भारत की बहुत प्रगतिशील छवि दर्शाती है। जी-20 सम्मेलन के लिए साफ-सफाई और सौंदयीकरण के लिए पानी की तरह पैसा बहाती है। पर सफाई कर्मचारियों का गैर सफाई गरिमापूर्ण पेशे में पुनर्वास क्यों नहीं करती? क्या कानून सिर्फ कागजों पर रहने के लिए बने हैं?
अब तक मैला प्रथा पर सरकार 1993 और 2013 में दो-दो कानून बना चुकी है। यदि इन कानूनों का सही से कार्यान्वयन किया जाए तो देश से मैला प्रथा सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई सबका उन्मूलन हो जाए। सफाई कर्मचारी भी इज्जत से अपनी जिंदगी जिए जिसका उसे संवैधानिक हक है।
कानून के अनुसार मैला ढोना, सीवर-सेप्टिक टैंको की सफाई आदि निषिद्ध व दण्डनीय अपराध है। इसके लिए जेल और जुर्माने का प्रावधान है। यदि कोई किसी सफाई कर्मचारी को मैला ढोने या सीवर-सेप्टिक टैंको की सफाई के लिए बाध्य करता है, तो यह कानूनन जुर्म है। ऐसे व्यक्ति पर दो लाख रुपये तक का जुर्माना और दो साल तक की जेल या दोनो हो सकते हैं। लेकिन आज तक ऐसे मामले के किसी भी अपराधी को सजा नहीं मिली। क्यों?
गौरतलब है कि सफाई कर्मचारी आंदोलन लंबे समय से यह मुद्दा उठाता रहा है कि सीवेज सफाई कर्मचारियों की मौत के आंकड़े बार-बार और जानबूझकर गलत पेश किए जाते हैं, उनसे छेडछाड़ की जाती है। आखिर क्यों सरकार इस तरह के झूठे व भ्रामक बयान इन मौतों के बारे में जारी करती है। जिस सरकार के पास हमारी जिंदगियों को बचाने की जिम्मेदारी है। वहीं अगर सिर्फ इन मौतों के दोषियों को ही बचाने में लगी रहेगी तो भला सीवर-सेप्टिक की मौतों के रूप में हो रहे इस जातिगत उत्पीड़न को कैसे रोका जा सकेगा?
प्रदर्शन में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े बैनर व पोस्टर प्रदर्शित किए गए। साथ ही सफाई कर्मचारियों ने सरकार के समक्ष अपनी मांगे रखीं जिन में प्रमुख हैं:-
1. गरिमा के साथ जीने के अधिकार (अनुच्छेद 21) को सुनिश्चित करना।
2. सफाई के काम में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए बजट आंवटन करना।
3. सामाजिक व आर्थिक समानता सुनिश्चित करना।
4. सफाई कर्मचारियों का गरिमा के साथ पुनर्वास करना।
5. सीवर या सेप्टिक टैंक में मौतों को बिल्कुल बर्दाश्त न करना आदि।
प्रदर्शन के अंत में यह संकल्प भी लिया गया कि सरकार के इस मसले पर कोई सही, ठोस व संतोषजनक कदम उठाने तक Stop Killing Us अभियान इसी तरह से रोजाना जारी रहेगा।
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