तीन महीने से नहीं मिला बिहार के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के शिक्षकों-कर्मियों का वेतन व पेंशन
बिहार के सभी परंपरागत विश्वविद्यालयों तथा अंगीभूत महाविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों व कर्मचारियों का जहां पिछले तीन महीने से वेतन नहीं मिला है वहीं सेवानिवृत्त शिक्षकों व कर्मचारियों को भी पिछले तीन माह से पेंशन नहीं मिली है। इसके चलते शिक्षकों व कर्मियों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गत मार्च, अप्रैल और मई महीनों का विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के शिक्षकों व कर्मियों का वेतन व पेंशन नहीं मिली है। शिक्षक-कर्मियों की यह बेहाली विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों की सुस्ती के चलते है क्योंकि इन संस्थानों की ओर से विभाग को पिछली राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं सौंपा गया है।
हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के परंपरागत विश्वविद्यालयों ने शिक्षा विभाग को पहले राशि के खर्च का हिसाब नहीं दिया है। करीब 4000 करोड़ का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित था। हालांकि उच्च शिक्षा निदेशालय इसको लेकर अभियान चला रहा है और करीब 1000 करोड़ सहायक अनुदान का यूसी आ गया है। बावजूद इसके अब भी 3000 करोड़ का हिसाब लंबित है। वित्त विभाग के नियम के मुताबिक 18 माह पहले तक मिली राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा होने के बाद ही ट्रेजरी द्वारा कोई अगली राशि जारी की जा सकती है। ऐसे में फिलहाल वेतन की राशि रिलीज करने को लेकर गतिरोध कायम है।
शिक्षा विभाग ने वित्त विभाग को तीन-चार महीने के लिए उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा करने और इस दौरान वेतन की राशि जारी करने की छूट को लेकर प्रस्ताव भेजा है। वित्त विभाग जब हरी झंडी दिखाएगी तभी शिक्षकों व कर्मियों को वेतन मिलने की उम्मीद पूरी होगी।
एसएफआई बिहार के अध्यक्ष शैलेंद्र यादव ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि, "होली, ईद जैसे त्योहार के मौके पर भी किसी को भुगतान नहीं हुआ था। राज्य के विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों के शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारी वेतन न मिलने से वे आर्थिक बदहाली का सामना कर रहे हैं। इन शिक्षकों और कर्मियों के वेतन पर उनका परिवार आश्रित है। जो रिटायर्ड शिक्षक या कर्मचारी हैं उन्हें पेंशन नहीं मिला है जिससे उनके परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को अविलंब वेतन और पेंशन जारी करना चाहिए। दूसरी बात ये है कि विश्वविद्यालयों में बकाया भुगतान का भी बड़ा मसला है। जो प्रोफेसर रिटायर हो जाते हैं वे बकाया भुगतान के लिए विश्वविद्यालयों के चक्कर लगाते रहते हैं और विश्वविद्यालयों में सुनने वाला कोई नहीं है।"
ध्यान रहे पहले भी कई बार इस तरह का मामला सामने आया है जब बिहार में विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों के शिक्षकों व कर्मियों के वेतन के भुगतान में देरी हुई थी।
बता दें कि बीते साल सितंबर से लेकर दिसंबर महीने तक बिहार के विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के करीब 25 हजार से अधिक कर्मचारियों को समय पर वेतन और पेंशन नहीं मिला था। दुर्गा पूजा, दीपावली एवं छठ जैसे पर्व पर शिक्षकों एवं कर्मचारियों के भुगतान नहीं होने के कारण कर्मचारियों, शिक्षकों एवं पेंशनभेगियों में काफी नाराजगी थी।
वर्ष 2019 में मार्च, अप्रैल और मई का वेतन व पेंशन विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों को समय पर नहीं मिला था जिससे ये लोग बेहद नाराज थे।
ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में भी राज्य के विश्वविद्यालय और कॉलेज के कर्मचारियों को कई महीनों का समय पर वेतन नहीं मिला था जिससे कर्मचारी काफी नाराज थें। उक्त वर्ष भागलपुर विवि और जेपी विश्वविद्यालय में पांच-छह माह का वेतन समय पर नहीं मिला था जिससे कर्मचारी परेशान थे। वेतन नहीं मिलने से सबसे ज्यादा परेशान चतुर्थ और तृतीय वर्गीय कर्मचारी हुए थें। इनकी रोजमर्रा की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई थी। कर्मचारी संघ की माने तो मोकामा के एक कॉलेज में इलाज के अभाव में एक चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी की भी मौत हो गई थी।
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