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कटाक्ष: सनातनी घूस, घूस न भवति!

राष्ट्र सेठ सेफ तो राष्ट्र से लेकर प्रथम सेवक तक सब सेफ
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तस्वीर प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार 

कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं, मोदी जी के एक रहोगे तो सेफ रहोगे के सूत्र में, बंटवारा खोजने वाले। अब तो महाराष्ट्र में जनता ने भी मोदी जी के सूत्र को फॉलो कर के दिखा दिया है। देखा नहीं कैसे सेफ रहने के लिए ही करीब-करीब सारी सीटें मोदी जी की पार्टी की झोली में डाल दी हैं। सीटें बंट जातीं, तो योगी जी का सूत्र लागू नहीं हो जाता--बंटोगे तो कटोगे। अब भैया बंटने का इतना शौक तो किसी को नहीं है कि उसके चक्कर में कटने को तैयार हो जाए। बस एक जगह आ गया सारा वोट। क्या फर्क पड़ता है कि सारा वोट एक जगह कैसे आया। छल से आया, बल से आया या दिल बदल से आया। मुराद तो एक रहने से है। कटने से बचने से है। सेफ होने से है। हो गए सेठ सेफ। हो गयी उनकी धारावी सेफ। राष्ट्र सेठ सेफ तो राष्ट्र से लेकर प्रथम सेवक तक सब सेफ।

पर हिंदुस्तान बल्कि भारत में तो मोदी जी के सूत्र पर चलकर, राष्ट्र और राष्ट्र सेठ, सब सेफ हैं, मगर बाकी दुनिया में नहीं। बाकी दुनिया अब भी मोदी जी के सूत्र को पूरी तरह से फॉलो करने को तैयार नहीं है। सच पूछिए तो मोदी जी इसीलिए तो भारत को एक बार फिर विश्व गुरु के आसन पर आरूढ़ करने में जुटे रहते हैं। एक बार अगर बाकी दुनिया ने विश्व गुरु मान लिया, फिर विश्व गुरु के सूत्रों को भी फॉलो करने लगेगी। लेकिन, लगता है वह मंजिल अभी दूर है, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की तरह। बल्कि अमरीका में तो उल्टी ही गंगा बह रही है। अपने राष्ट्र सेठ चले थे विश्व सेठ बनने, रह गए भ्रष्टाचार के मुकद्दमे के आरोपी बनकर। विडंबना यह है कि भ्रष्टाचार का अरोपी बनकर भी अगले ने मोदी जी से याराना निभा दिया और उनके सूत्र के पक्ष में, एक और साक्ष्य जुटा दिया।

पता है, हमारे राष्ट्र सेठ के खिलाफ अमरीकियों को साक्ष्य कहां से मिले? जाहिर है कि मोदी जी के राज ने तो नहीं दिए। वो तो हमेशा से उसके बचाव में एक रहे, तभी तो  राष्ट्र सेठ अब तक सब से सेफ रहे। देश में सारे अरोपों, जांचों से सेफ रहे। सेबी-वेबी से भी सेफ रहे। हिंडनबर्ग के हमलों से भी सेफ रहे। विपक्ष के हल्ले-गुल्ले से भी सेफ रहे। कोर्ट-वोर्ट के शिकंजे से भी सेफ रहे। जब तक मोदी जी के पीछे एक रहे, पक्की तरह से सेफ रहे। पर परदेस में एकता में जरा सी दरार पड़ी और सेठजी की गर्दन पर रस्सी कसी।

हुआ यह कि अगले ने देश में सोलर बिजली की बिक्री का पचासों हजार करोड़ रुपये का धंधा जमाया। और इस धंधे के लिए अमरीकी बाजारों से दसियों हजार करोड़ रुपये का कर्जा उठाया। पर बीच में एक दिक्कत आ गयी। अगले की बिजली ज्यादा ही महंगी पड़ रही थी। मोदी जी ने अपनी पार्टी की सरकारों से तो एक कर के सेफ करा दिया, पर दूसरी पार्टियों की सरकारों ने धंधे को अनसेफ कर दिया। बेचारे सेठ जी को इस हिचक को मिटाने के लिए 2,212 करोड़ रुपये का मक्खन लगाना पड़ा। यहां सब सेफ था, पर अमरीकियों को किसी तरह इसकी खबर लग गयी। बस अगलों ने धंधे के लिए घूसखोरी का शोर मचा दिया और अपने यहां निवेशकों के साथ धोखाधड़ी का मामला बना दिया।

बात सिर्फ मामले-आरोप-वारोप तक ही रहती तो फिर भी गनीमत थी, वहां की जांच एजेंसियां कूद पड़ीं। सेठ जी के भतीजे और कंपनी के मंझले अफसरों से वहां की जांच एजेंसियों ने पूछताछ कर डाली। फोन-वोन जब्त कर लिए, तरह-तरह की जानकारियां निकलवा लीं। सेठ जी के अपने ही एक नहीं रह पाए। जब एक ही नहीं रहे, तो सेफ कैसे रहते! यह दूसरी बात है कि सेठ जी भले ही अनसेफ हो गए, पर मोदी जी का सूत्र सही साबित हो गया। अमरीका में सेठ जी के अपने एक रहते, तो सेठ जी कैसे अनसेफ होते। देखा नहीं देश में कैसे मोदी जी का राज उसके पीछे पूरी तरह से एक है, राष्ट्र सेठ हर तरह से सेफ है।

वैसे विडंबनाएं इस मामले में और भी कई हैं। सबसे बड़ी विडंबना तो यही कि अमरीकी इस मामले में खामखां में फूफा बन रहे हैं। यानी तेली का तेल जले और मशालची की छाती फटे वाला मामला है। सेठ हमारा। सेठ का धंधा हमारे यहां का। बिजली बेचने वाला हमारा। बिजली खरीदने वाला हमारा। पैसा खिलाने वाला हमारा। पैसा खाने वाला भी हमारा। पैसा खिलाया भी गया हमारे यहां। यहां तक कि रिश्वत समेत, महंगी बिजली का बोझ उठाने वाली पब्लिक भी हमारी। फिर भी हमारे राष्ट्र सेठ पर मामला बना दिया अमरीकियों ने और वह भी अमरीकियों के साथ धोखा-धड़ी के इल्जाम में। सुना है वारंट तक निकाल दिए हैं। और कुछ हो न हो पूंछ जरूर कट जाएगी।

वैसे एक बात हमारी समझ में नहीं आयी। राष्ट्र सेठ की अमरीका में हिफाजत के लिए मोदी जी  कुछ कर क्यों नहीं रहे हैं? यानी देश में जो एक होकर  राष्ट्र सेठ को सेफ कर रहे हैं, वह तो खैर कर ही रहे हैं, पर अमरीका में सेफ करने के लिए क्या कर रहे हैं? मोदी जी क्या देश की तरफ से संसद से एक सिंपल सा संकल्प पारित नहीं करा सकते हैं-- राष्ट्र  सेठ की दी घूस को घूस, राष्ट्र  सेठ के घूस देने को घूस देना और जाहिर है कि राष्ट्र सेठ से घूस खाने को घूस खाना, नहीं कहते हैं। सनातनी घूस, घूस ना भवित। या सिंपली इतना कि सौर बिजली खपाने के लिए खिलायी रिश्वत, रिश्वत नहीं होती है, वह तो पर्यावरण रक्षा की तपस्या है। 

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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