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दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पर गंभीर आरोप, शिक्षक और छात्र कर रहे प्रदर्शन

गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पर कुछ प्रोफेसर और छात्रों ने आरोप लगाया है कि “कुलपति तानाशाही स्वभाव के हैं और मनमाने ढंग से फ़ैसले लेते हैं। आर्थिक अनियमितताओं के संदर्भ में भी उनकी जाँच होनी चाहिये।”
Deen Dayal Upadhyaya Gorakhpur University

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय इन दिनों चर्चा के केन्द्र में है। शोधार्थियों का अनिश्चितकालीन हड़ताल चल ही रहा था कि 21 दिसंबर को हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर कमलेश गुप्त भी अनिश्चितकालीन सत्याग्रह पर बैठ गये। उनके समर्थन में शिक्षक और छात्र भी प्रदर्शन करने लगे। विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें तत्काल निलंबित कर समर्थन कर रहे 7 शिक्षकों को भी नोटिस जारी कर दिया। मामला बढ़ता देख कुलाधिपति के विशेष कार्याधिकारी गोरखपुर आये। शिक्षकों, छात्रों, कर्मचारियों आदि से मुलाक़ात कर रिपोर्ट तैयार की और चले गये। अब सभी को राज्यपाल के फ़ैसले का इंतज़ार है।

सत्याग्रह पर बैठने से पहले प्रो. कमलेश ने सोशल मीडिया पर कुलपति प्रो. राजेश सिंह आरोप लगाया कि

1. स्नातक और स्नातकोत्तर प्रथम सेमेस्टर में पढ़ाई अभी शुरू ही हुई थी कि कुलपति ने मिड टर्म की परीक्षा तिथि घोषित करवा दी। मिड टर्म परीक्षा का यह प्रावधान विश्वविद्यालय के किसी निकाय से प्रस्तावित, संस्तुत और अनुमोदित नहीं है।

2. कुलपति ने अपनी अनुपस्थिति में कार्यभार वरिष्ठता सूची में 22वें स्थान पर आने वाले प्रो अजय सिंह को सौंपा। 

3. गोपनीय मुद्रण एवं परीक्षाफल निर्माण के बजट में अनावश्यक रूप से वृद्धि की। गोपनीय मुद्रण के मद में आवंटित धनराशि को 3 करोड़ से बढ़ाकर 8 करोड़ कर दिया गया। परीक्षाफल निर्माण के लिये आवंटित धनराशि के बजट को 4 करोड़ से बढ़ाकर 6.5 करोड़ रुपये कर दिया गया। 

4. कुलपति पाठ्यक्रम समिति, परीक्षा समिति, संकाय परिषद, विद्या परिषद, प्रवेश समिति, परीक्षा समिति और वित्त समिति जैसे वैधानिक निकायों को पंगु बना चुके हैं।

5. कुलपति ने विश्वविद्यालय की धारा 52 ( C ) का उल्लंघन कर बग़ैर राज्य सरकार की अनुमति के बीएससी एजी, एमएससी एजी और बीटेक जैसे नये वित्त पोषित पाठ्यक्रमों का संचालन आरंभ कर दिया। 

6. 18-09-2021 को वित्त समिति की बैठक में मनमाने तरीक़े से विज्ञापन मद में 25 लाख रुपये की बढ़ोत्तरी कर इसकी राशि 45 लाख रुपये कर दी गई।

7. कुलपति ने बिना ज़रूरत के 75,000 रुपये मासिक पर कई सलाहकारों की नियुक्ति की गई है।

प्रो. कमलेश के अनुसार शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं होने के कारण उन्होंने सत्याग्रह का रास्ता चुना। इन दिनों वह शहर में जनसंपर्क अभियान चलाकर लोगों से विश्वविद्यालय को बचाने की अपील कर रहे हैं। 26 से 28 दिसंबर तक विभिन्न इलाक़ों में जनसंपर्क के बाद अब वह व्यक्तिगत तौर पर लोगों से संपर्क कर रहे हैं।

प्रो. कमलेश को फ़िलहाल विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों से घरेलू कार्य करवाने, उत्पीड़न करने, परीक्षा में फेल करने की धमकी देने, प्रैक्टिकल के नाम पर धन उगाही करने, नियमित रूप से कक्षाओं में न जाने, छात्राओं के प्रति अनुचित मानसिक व्यवहार का आरोप लगाकर निलंबित किया हुआ है।

कुलसचिव विश्वेश्वर प्रसाद के आदेश पर प्रो. कमलेश पर लगे आरोपों की जाँच के लिये विश्वविद्यालय प्रशासन ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जिसमें दो पूर्व कुलपति और एक कार्य परिषद सदस्य शामिल हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से उन्हें 8 नोटिस जारी किया जा चुका है।

कुलपति प्रो. राजेश सिंह से उनका पक्ष जानने के लिये कई बार फ़ोन किया गया लेकिन उनका नंबर ऑफ आ रहा है। उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त होते ही ख़बर को अपडेट कर दिया जायेगा।

समर्थन करने वालों को भी जारी किया गया नोटिस

कार्यवाही केवल प्रोफ़ेसर कलमलेश पर ही नहीं की गई। उनका साथ देने के आरोप में प्रोफ़ेसर चंद्रभूषण अंकुर, प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी, प्रो. अजेय कुमार गुप्ता, प्रो. सुधीर कुमार श्रीवास्तव, प्रो. वीएस वर्मा, प्रो. विजय कुमार, प्रो. अरविंद त्रिपाठी को भी नोटिस जारी कर दिया गया। आरोप है कि सभी 7 शिक्षकों का एक दिन का वेतन भी काटने का आदेश जारी कर दिया गया।

इस कार्यवाही पर असंतोष ज़ाहिर करते हुए प्रो अजेय गुप्ता कहते हैं “23 दिसंबर को नोटिस जारी कर हमसे पूछा गया कि क्या आप धरना प्रदर्शन में शामिल हुए, आपने विश्वविद्यालय के अधिकारियों के ख़िलाफ़ नारे लगाये, क्यों न आपके ख़िलाफ़ एक्शन लिया जाये? क्यों न आप लोगों की उस दिन की तनख़्वाह काट लिया जाये? जबकि 21 दिसंबर को ही कुलपति ने यह आदेश पारित कर दिया था कि सात लोगों की उस दिन की सैलरी काट लिया जाये। कुलपति के इस फ़ैसले और प्रक्रिया से हम आश्चर्य में पड़ गये।”

प्रोफ़ेसर कमलेश ने 21 दिसंबर से लगातार चार दिनों तक प्रशासनिक भवन के सामने सत्याग्रह किया। 26 से 28 दिसंबर तक शहर के विभिन्न इलाक़ों में उन्होंने सत्याग्रह के समर्थन में जनसंपर्क कर लोगों को विश्वविद्यालय की वर्तमान परिस्थिति से अवगत कराया। 28 दिसंबर की शाम को जनसंपर्क का पहला चरण पूरा हुआ। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि 3 जनवरी 2021 तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हुई तो हम सत्याग्रह के अगले चरण की शुरुआत करेंगे। 

सत्याग्रह को छात्रों का भी समर्थन प्राप्त था। प्रोफ़ेसर कमलेश गुप्त के निलंबन और 7 शिक्षकों को नोटिस किये जाने के विरोध में बड़ी संख्या में छात्रों ने प्रदर्शन किया। 21 दिसंबर की रात 10 बजे ही छात्र छात्रावासों से बाहर निकलकर विश्वविद्यालय के बाहर धरना-प्रदर्शन करने लगे, जो देर रात तक चलता रहा। अगले दिन सुबह शिक्षक व छात्रों ने एक साथ धरना प्रदर्शन पर बैठे। बाद में छात्रों ने प्रोफ़ेसर कमलेश गुप्त के समर्थन में जनसंपर्क भी किया।

सोशल मीडिया पर लगातार कुलपति की आलोचना कर रहे थे प्रो. कमलेश

प्रो. कमलेश लगातार सोशल मीडिया पर कुलपति के कार्य पद्धति और विश्वविद्यालय प्रशासन के नीतियों की आलोचना करते हुए पोस्ट डालते थे। एक तरफ़ सोशल मीडिया पर वह लगातार लिख रहे थे, दूसरी तरफ़ विभिन्न स्तर पर लिखित शिकायत भी कर रहे थे।

विश्वविद्यालय के शिक्षकों और कर्मचारियों तक सीमित यह विवाद सतह पर तब आया जब 9 अप्रैल 2021 को कुलाधिपति को पत्र लिखकर प्रो. कमलेश ने गोरखपुर विश्वविद्यालय में होने वाले दीक्षांत समारोह को कोरोना संक्रमण के बढ़ते ख़तरे के कारण स्थगित करने की माँग की।

16 अगस्त 2021 को एक फ़ेसबुक पोस्ट के ज़रिए प्रो. कमलेश ने बताया कि 12 अप्रैल 2021 को विश्वविद्यालय परिसर में हुए दीक्षांत समारोह में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे। उन्होंने इसके लिये कुलपति को ज़िम्मेदार बताते हुए उन पर महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई करने की माँग की थी। यह शिकायत डीएम को तीन बार ईमेल के ज़रिये भेजी गई थी। 

कुलाधिपति से कुलपति को तत्काल हटाने को लेकर प्रो. कमलेश ने शिकायत की थी और दावा करते हैं कि जरूरी साक्ष्य भी उपलब्ध करवाये थे। उनका आरोप है कि कुलपति का कार्य-व्यवहार और आचरण कुलपति पद की गरिमा के सर्वथा प्रतिकूल है।

मुख्य आरोपों में एक यह भी है कि कुलपति जब बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति थे तब उन पर आर्थिक अनियमितता के आरोप लगे थे। उनके ख़िलाफ़ लोकायुक्त स्तर की जाँच चल रही थी। गोरखपुर विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के लिये यह तथ्य उन्होंने आवेदन के दौरान छिपा लिया था।

उक्त आरोप की पुष्टि के लिये प्रो. कमलेश ने 23 अगस्त को फ़ेसबुक पर पूर्णिया ज़िले के एक अख़बार की कटिंग शेयर की, जो पूर्णिया विश्वविद्यालय में अनियमितता से संबंधित थी। 

29 नवंबर को प्रो. कमलेश ने 28 नवंबर को प्रकाशित दो ख़बरों की कटिंग शेयर की जो पूर्णिया विश्वविद्यालय में हुई अनियमितताओं के जाँच से संबंधित थीं। पहली ख़बर का शीर्षक है “पूर्णिया विवि गोरखपुर विवि के वीसी प्रो. राजेश सिंह की मुश्किलें बढ़ीं, कैशबुक के साधारण में अंकेक्षक दल ने पायी ख़ामियाँ, जाँच शुरू।” दूसरी ख़बर का शीर्षक है “वित्तीय गड़बड़ी की जाँच के लिये विवि में दो कमेटियाँ गठित।” पोस्ट में उन्होंने कुलपति के गोरखपुर विश्वविद्यालय के कार्यकाल की भी जाँच करवाने की माँग की थी।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने दिये विवादित आदेश
 
5 अगस्त 2021 को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक आदेश जारी किया था। जिसमें सभी शिक्षकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों को आदेशित किया गया था कि विश्वविद्यालय से संबंधित कोई भी तथ्य या समाचार मीडिया अथवा सोशल मीडिया में भेजने से पहले विश्वविद्यालय के मीडिया प्रकोष्ठ के सामने उसे प्रस्तुत किया जाये। उल्लंघन करने वाले पर कड़ी कार्रवाई की जायेगी।

आदेश में किसी व्यक्ति का नाम तो नहीं था लेकिन परिसर में यह चर्चा आम थी कि प्रो. कमलेश की सोशल मीडिया पर सक्रियता के कारण यह आदेश जारी किया गया है।विश्वविद्यालय प्रशासन ने 27 नवंबर 2021 को कुलपति के आदेश से एक अन्य पत्र जारी कर शिक्षकों, अधिकारियों व कर्मचारियों को राजनीतिक कार्यक्रमों में भागीदारी नहीं करने को कहा। पत्र में तर्क दिया गया कि ऐसा करने से विश्वविद्यालय की छवि धूमिल होगी।

पत्र के अनुसार “उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव 2022 को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक, अधिकारी, नियमित कर्मचारी, संविदा/ मानदेय एवं आउट सोर्सिंग कर्मचारियों को सूचित किया जाता है कि आचार संहिता लागू होने वाली है इसलिये आप किसी भी प्रकार के राजनीतिक कार्यक्रम में सक्रिय प्रतिभाग न करें, जिससे किसी भी प्रकार से विश्वविद्यालय के छवि धूमिल न हो।”

प्रो. चंद्रभूषण अंकुर दोनों आदेशों पर असहमति जाहिर करते हुए कहा “ कुलपति के काम करने की शैली अलोकतांत्रिक है। विश्वविद्यालय लोकतंत्र की पाठशाला होते हैं। छात्रसंघ की अवधारणा का वैचारिक आधार भी यही कि विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हुए छात्र लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में समझें। जिन्हें देश की राजनीति की समझ नहीं या जो रूचि नहीं रखते ऐसे लोग एक जनतांत्रिक देश को आकार देने में अपनी भूमिका कैसे तय करेंगे? शिक्षित खुद को राजनीति के अलग कर लेंगे तो कम शिक्षित लोगों के हाथों में देश की बागडोर होगी। मैंने कार्य परिषद की बैठक में भी सोशल मीडिया पर लिखने पर रोक लगाने का विरोध किया था। यह अधिकार हमें देश का संविधान देता है।"

कुलपति को ख़ुद के ख़िलाफ़ सौंपी गई जाँच 

आईजीआरएस पोर्टल पर प्रो. कमलेश की शिकायत का निस्तारण करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके सभी आरोपों को ख़ारिज कर दिया। उन पर कई आरोप लगाते हुए कहा गया कि उनके ख़िलाफ़ जाँच चल रही है जिससे कुंठाग्रस्त होकर वह कुलपति पर आरोप लगा रहे हैं।

शिकायतों पर संज्ञान लेते हुए 22 नवंबर को कुलाधिपति के विशेष कार्याधिकारी डॉ. पंकज एल जानी की ओर से गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति को संबोधित एक पत्र जारी किया गया। जिसमें लिखा था “प्रश्नगत प्रकरण में जांचोपरांत विधि अनुसार कार्यवाही कर कृत कार्यवाही से प्रत्यावेदक को भी अवगत कराने का कष्ट करें।” जबकि पत्र का विषय था “विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह को हटाये जाने के संबंध में।” यानि कुलपति के ख़िलाफ़ शिकायत के जाँच की ज़िम्मेदारी उन्हीं को दे दी गई। 

8 दिसंबर को प्रो. कमलेश ने राज्यपाल सचिवालय से प्राप्त पत्र को संलग्न करते हुए फ़ेसबुक पर कुलाधिपति सचिवालय की भूमिका को भी संदिग्ध और बेहद आपत्तिजनक बताते हुए लिखा “ऐसे में न्याय मिल पाना लगभग असंभव है।” साथ ही न्याय पाने के लिये दूसरे रास्तों की तलाश करने की बात कही। उक्त पोस्ट में उन्होंने आगे लिखा “एक सप्ताह के भीतर यदि प्रोफ़ेसर राजेश सिंह जी को कुलपति पद से नहीं हटाया गया तो मैं प्रशासनिक भवन परिसर में अवस्थित दीनदयाल जी की प्रतिमा के समक्ष सत्याग्रह आरंभ करने के लिये बाध्य होऊँगा।”

बीती घटनाओं का ज़िक्र करते हुए प्रो. कमलेश ने 14 दिसंबर को 7 फ़ेसबुक पोस्टों में कुलाधिपति को संबोधित खुला शिकायती पत्र लिखा। 

प्रो. कमलेश ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव राजीव कुमार द्वारा 8 फरवरी 2018 को जारी शासनादेश का हवाला देकर कुलपति को जाँच सौंपे जाने की आलोचना की। शासनादेश के अनुसार “यदि शिकायत किसी अधिकारी/ कर्मचारी विशेष के कार्य प्रणाली से संबंधित है, तो उसकी जाँच एवं निस्तारण संबंधित अधिकारी/ कर्मचारी से कम से कम एक स्तर ऊपर के अधिकारी से ही करायी जाय एवं किसी भी दशा में शिकायत निस्तारण हेतु संबंधित अधिकारी/ कर्मचारी को प्रेषित न की जाये।”

18 दिसंबर को कुलाधिपति को संबोधित फ़ेसबुक पोस्ट में प्रो. कमलेश ने 21 दिसंबर से सत्याग्रह करने की जानकारी दी। उन्होंने लिखा “प्रोफ़ेसर राजेश सिंह को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद से तत्काल हटाने तथा उनके कार्यकाल में हुई विश्वविद्यालय की समस्त आय और व्यय की जाँच की अपनी माँग पूरी होने तक मैं प्रशासनिक भवन में अवस्थित दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा के समक्ष सत्याग्रह करता रहूँगा।”

कुलाधिपति के विशेष कार्याधिकारी ने गोरखपुर आकर की जाँच

छात्रों और शिक्षकों के प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री का गृह जनपद होने के कारण लखनऊ तक गोरखपुर विश्वविद्यालय की चर्चा होने लगी। शोध छात्रों का प्रदर्शन पहले से ही जारी था। उन्होंने मुख्यमंत्री से मुलाक़ात कर उन्हें अपनी समस्या और परिसर के बदले हालात से अवगत करवा दिया था। 

मामला को तुल पकड़ता देख कुलाधिपति के विशेष कार्याधिकारी डॉ. पंकज एल जानी 24 दिसंबर को गोरखपुर आ चुके थे। उन्होंने प्रो. कमलेश गुप्त, शिक्षकों, विभागाध्यक्षों, कर्मचारियों और छात्र नेताओं से मुलाक़ात कर उनका पक्ष जाना। डॉ. पंकज एल जानी के साथ बातचीत में विश्वविद्यालय के 17 विभागाध्यक्षों ने वर्तमान परिस्थितियों को तनावपूर्ण और दबाव वाला बताया था। विभागाध्यक्षों ने बार-बार नोटिस मिलने और जवाब देने पर सुनवाई नहीं होने की बात भी बताई।

कुलाधिपति के विशेष कार्याधिकारी डॉ. पंकज एल जानी ने सभी पक्षों से विस्तार से बातचीत की। लेकिन एक तथ्य यह भी है जिस पत्र के ज़रिये कुलपति के ख़िलाफ़ जाँच को उन्हीं को सौंपा गया था वह डॉ. पंकज एल जानी की ओर से ही जारी किया गया था। 

ऐसे में न्याय मिलने के किसी आशंका के सवाल पर प्रो अजेय गुप्ता ने कहा “राजभवन में हमारा अटूट विश्वास है। पंकज जानी जी से हो सकता है किन्ही विशेष परिस्थितियों में गलती हो गई हो। उन्होंने गोरखपुर आकर स्वयं जाँच की है हमें यक़ीन है वह तटस्थ होकर निर्णय लेंगे और सही नतीजे तक पहुँचने में कुलाधिपति महोदया की मदद करेंगे।” 

12 छात्रनेताओं ने भी उनसे मुलाक़ात की थी। नेतृत्व कर रहे शिवशंकर गौड़ ने बताया “कुलपति तानाशाही स्वभाव के हैं और मनमाने ढंग से फ़ैसले लेते हैं। आर्थिक अनियमितताओं के संदर्भ में भी उनकी जाँच होनी चाहिये।”

डॉ. पंकज एल जानी से सीबीसीएस प्रणाली के विरोध में प्रदर्शन कर रहे 7 शोधार्थियों ने भी मुलाक़ात की। मीटिंग में शामिल शोधार्थी कमलकांत ने बताया 50 मिनट तक हमारी मीटिंग चली थी। हमने स्पष्ट कहा कि “कुलपति हम पर सीबीसीएस प्रणाली थोप रहे हैं।” शोधार्थी प्रतिका सिंह ने बताया “हमारे 3 साल बर्बाद हो रहे हैं लेकिन कुलपति हमारी नहीं सुन रहे हैं।” 

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। )

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