चाइल्ड पॉर्न का मामला भारत के लिए भी चुनौती बना
कुछ दिन पूर्व एक चौंकाने वाली खबर सामने आई कि भारत से 5 महीनों में चाइल्ड पॉर्न से जुड़ा 25,000 कंटेंट तमाम सोशल मीडिया साइटों पर अपलोड हुआ है। इसमें सबसे अधिक वॉट्सऐप से साझा किया गया है और इसके बाद ट्विटर और फेसबुक पर। यह जानकारी अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग ऐण्ड एक्सप्लॉयटेड चिल्ड्रेन ने भारत के एनसीआरबी के साथ साझा की है। इन दोनों संस्थाओं के बीच एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) हुआ है, जिसके तहत भारत को इस समस्या से मुकाबला करने में मदद मिलेगी।
भारत में चाइल्ड पॉर्न अपलोड करने वाले शहरों में सबसे ऊपर दिल्ली का नाम है, फिर महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिल नाडु लिस्ट में आते हैं।
आखिर चाइल्ड पॉर्न या बाल पॉर्न को हम कैसे परिभाषित करेंगे? पहली बात तो यह कि इसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों-लड़कियों या लड़कों की छवियों या उनसे मिलती-जुलती कृतिम डिजिटल या अन्य चित्रों का प्रयोग होता है। इनमें किसी प्रकार की नग्नता प्रदर्शित करते हुए या यौन क्रिया करते हुए दिखाया जाता है। दूसरे, किसी बच्चे को कोई व्यक्ति, कामोत्तेजना के मकसद से सेक्स संबंधी तस्वीरें या वीडियो दिखाता हो।
लोग विश्वास करें या न करें, पॉर्न देखने-दिखाने का मामला कई बार इतने तक ही सीमित नहीं रहता। ऐसे लोग बच्चों के साथ बलात्कार करने से लेकर सेक्स टूरिज़्म और बाल देह व्यापार से भी जुड़ जाते हैं; इस अंतरसंबन्ध के बारे में आगे चर्चा होगी। पर भारत ने पॉक्सो कानून में संशोधन के माध्यम से बाल पॉर्न में लिप्त होने को एक गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा है, जिसके लिए पहली बार 5 वर्ष तक की सज़ा के साथ जुर्माना, दूसरी बार होने पर 7 साल तक की सज़ा और जुर्माना, तथा बलात्कार करने पर 20 साल से लेकर आजीवन कारावास, व किन्हीं स्थितियों में, फांसी तक की सज़ा हो सकती है।
पर बच्चों के साथ यौन अत्याचार भारत में किस हद तक बढ़ा है, यह जानकर हैरानी होती है। आज एनसीआरबी के आंकड़े बता रहे हैं कि 24 घंटों में 109 बाल यौन उत्पीड़न के मामले सामने आते हैं। ये तो वे मामले हैं, जिनकी रिपोर्ट हुई। बाकी, जिनपर बच्चा या परिवार वाले लोकलाज के कारण चुप लगा जाते हैं कहीं अधिक होंगें। बच्चों के साथ यह अपराध होना आज चुटकी बजाने जैसा आसान हो गया है। बच्चे अपनी देह और सेक्स के बारे में अनभिज्ञ रहते हैं क्योंकि हमारे स्कूलों में सेक्स शिक्षा दी नहीं जाती। पूंजीवादी प्रभाव के समाज में बढ़ने से आज एकल परिवार ही आम हैं, जहां अक्सर माता-पिता दोनों काम करने जाते हैं या अपनी दुनिया में मशगूल रहते हैं और बच्चे घरों में अकेले रहते हैं। बच्चों को ऐसे माता-पिता कई बार नौकरों के हवाले करके जाते हैं या किसी पड़ोसी के घर खेलने भेज देते हैं। डॉन्स या संगीत मास्टर अथवा ट्यूटर भी बच्चों के साथ एकान्त में बैठते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे ‘सॉफ्ट टार्गेट’ बन जाते हैं। गरीब बच्चे या बाल मज़दूरों को भी आसानी से इसमें फंसाया जा सकता है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चे इन मामलों के बारे में चुप रहते हैं क्योंकि उन्हें अपराधी धमका-डराकर बताते हैं कि वे इस बारे में किसी से बात करेंगे तो उनके साथ बहुत बुरा सुलूक किया जाएगा। ‘सत्यमेव जयते’ के एक एपिसोड में कई वयस्कों ने 20-30 साल बाद अपने साथ हुई यौन हरकतों के बारे में रोते हुए जब बताया था, तो पहली बार लोगों को इसकी गंभीरता का पता लगा और यह समझ में आया कि लड़के भी ‘चाइल्ड एब्यूज़’ से अछूते नहीं रहते हैं। यदि ‘‘मी टू’’ जैसा आन्दोलन हो तो बहुत लोगों की आपबीती सामने आएगी।
भारत में ही नहीं, आज इंटरनेट टेक्नॉलॉजी के विस्तार के साथ बड़े-बड़े पॉर्न समुदायों और वेबसाइटों का उदय विश्वभर में हो गया है। ये इतनी गोपनीयता से काम करते हैं कि ‘एनक्रिप्शन’ का प्रयोग कर या ‘द डार्क इंटरनेट’ का इस्तेमाल कर नए-नए सदस्यों को लगातार जोड़ते हैं। जिन बच्चों को अश्लील वीडियो या फोटो या फिल्म बनाने के लिए लाया जाता है, अक्सर उनका शोषण एक बार की घटना नहीं होती, उन्हें बहला-फुसलाकर या डराकर महीनों और सालों तक पॉर्न कंटेंट तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
यूके (ब्रिटेन) में बहुत बड़ा खुलासा हुआ, जिसमें पाया गया कि बहुत सारे ‘सिलिब्रिटीज़’ यानी ख्याति-प्राप्त लोग ‘चाइल्ड पॉर्न’ में संलिप्त पाए गए। इनमें नामचीन राजनेता, गायक, संगीतकार, आदि के नाम थे। करीब 250 बड़े लोग अपराधी घोषित हो गए। सिंगापुर और थाइलैंड भी बाल सेक्स उत्पीड़न के लिए बदनाम हैं। थाइलैंड में आने वाले सैलानियों के मनोरंजन के लिए कई ऐसे रैकेट काम करते हैं; इसे सेक्स टूरिज़्म कहा जाता है और इन टूरिस्टों को बाल पॉर्न साइट्स के माध्यम से लुभाया जाता है।
भारत अब बाल पॉर्न में संलिप्त लोगों के विरुद्ध ‘ऑपरेशन ब्लैकफेस’ चला रहा है, जो महाराष्ट्र में लॉन्च हो चुका है। इसका काम है बाल सेक्स अपराधियों को सोशल मीडिया व अन्य मंचों पर इंटरनेट तकनीक के जरिये ट्रैक करना। इनके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद जो डेटाबेस तैयार किया जाएगा, उसकी मदद से जांच एजेंसियां मामलों को दर्ज कर कार्रवाई की ओर बढ़ेंगी। एनसीएमईसी ने ‘साइबर टिपलाइन’ के नाम से एक तरकीब तैयार की है, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति या बच्चा अथवा सर्विस प्रोवाइडर चाइल्ड पॉर्न के मामलों की ऑनलाइन रिपार्ट कर सकता है। ये रिपोर्ट पुलिस को कार्रवाई के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे।
पर साइबर अपराध, खासकर चाइल्ड पॉर्न से जुड़े अपराधों को केवल गिरफ्तारी और सज़ा के जरिये हल नहीं किया जा सकता। इसका कारण है कि ये मामले ज्यादातर गुप्त तरीके से चलते हैं या इनकी रिपोर्ट बहुत कम लोग करते हैं। आखिर ऐसा क्यों है? दरअसल बाल पॉर्न रैकेट अपने सदस्यों को समझा ले जाते हैं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि बच्चे को छुआ तक नहीं जाता। कई बार तो बच्चा इसको समझता ही नहीं या फिर खुद भी आनन्द लेने लगता है। कुछ इसी तरह का मामले विश्व के सबसे बड़े पॉप स्टार माइकेल जैक्सन के बारे में सामने आए थे, जबकि कोई अश्लील वीडियो जब्त नहीं किये गए और कई बच्चों के माता-पिता ने स्वयं अपने बच्चों को जैक्सन के बाल-एम्पायर, नेवरलैंड में भेजा था।
पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने 2016 में कहा था कि बच्चों के साथ साइबर अपराधों की रिपोर्टिंग बहुत कम होती है। 2017 में ही एनसीआरबी ने अपराध की इस श्रेणी के आंकड़ों को अलग से दर्शाने का फैसला लिया है; अब तक आई टी ऐक्ट के खण्ड 67बी के तहत अपराधों की कोई अलग श्रेणी नहीं थी। पिछले वर्ष राज्य सभा अध्यक्ष ने 10 दलों के प्रतिनिधित्व वाली 14-सदस्यीय ऐड-हॉक कमेटी का गठन तब किया जब एआईडीएमके के सांसद विजिला सत्यनाथन ने राज्य सभा में मामले को उठाया। एक माह में कमेटी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। वह ट्राई, एनसीपीसीआर और सोशल मीडिया कंपनियों सहित मनोवैज्ञानिकों, अभिभावकों, सिविल सोसाइटी और अध्यापकों व कम्यूटर इमर्जेंसी रिस्पॉन्स टीम से बात करेगी। सरकार के अनुसार 377 पॉर्न वेबसाइटों को हटवाया गया और 50 एफआईआर दर्ज की गई। सीबीआई ने भी स्पेशल क्राइम ज़ोन के अंतर्गत ऑनलाइन यौन उत्पीड़न रोकने के लिए एक यूनिट खोली है।
भारत को बाल पॉर्न और बाल उत्पीड़न व बलात्कार के मामलों के अंतरसंबन्धों को भी समझना होगा। नॉर्थ कैरोलिना के मनोवैज्ञानिक माइकेल बुर्के और आंन्द्रेज़ हरनैंडेज़ ने 155 बाल पॉर्न अपराधियों के मनोवैज्ञानिक इलाज करते समय जब उनसे बातचीत की तो पता लगा कि उनमें से अधिकतर बाल उत्पीड़न भी करते थे, जो इलाज शुरू होने से पूर्व उन्होंने स्वीकारा नहीं था। औसतन 13 से अधिक बच्चे का उत्पीड़न हरेक ने किया था। भारत में भी कई अपराधियों को मनोवैज्ञानिक चिकित्सा की ज़रूरत होगी, वरना जेल से छूटकर वे ऐसे कृत्यों को जारी रख सकते हैं। दूसरे, हमारे देश के बच्चों को कैसे सोशल साइट्स के प्रयोग पर शिक्षित किया जाए और सेक्स शिक्षा दी जाए, यह भी मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के साथ साइबर विशेषज्ञों को सोचना होगा।
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