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ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

"चंदौली के किसान डबल इंजन की सरकार के "वोकल फॉर लोकल" के नारे में फंसकर बर्बाद हो गए। अब तो यही लगता है कि हमारे पीएम सिर्फ झूठ बोलते हैं। हम बर्बाद हो चुके हैं और वो दुनिया भर में हमारी खुशहाली का झूठा डंका पीट रहे हैं।"
black rice
ब्लैक राइस की फसल

20 मार्च 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के दौरान चंदौली के ब्लैक राइस (Black Rice) की प्रशंसा की और इसकी खेती को "वोकल फॉर लोकल" का सटीक उदाहरण बताया था। दावा किया, "यहां एक हजार किसानों ने 500 हेक्टेयर में लीक से हटकर ब्लैक राइस की खेती की है। चंदौली का ब्लैक राइस देश ही नहीं, विदेश में भी सुर्खियां बटोर रहा है। किसानों को लागत की तुलना में लगभग चार गुना अधिक यानी 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है। यह चावल चंदौली के किसानों के घरों में समृद्धि लेकर आ रहा है।"

ब्लैक राइस पर पुरस्कार

21 अप्रैल 2022 को चंदौली के तत्कालीन कलेक्टर नवनीत सिंह चहल (मथुरा के मजूदा डीएम) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात के लिए सम्मानित किया है कि उन्होंने ब्लैक राइस की खेती से चंदौली में पहचान दिलाई। चहल की पहल पर किसानों ने एंटी-ऑक्सीडेंट युक्त काले चावल की बड़े पैमाने पर खेती की। दावा किया जा रहा है कि इनके प्रयास से चंदौली के किसान मालामाल हो गए। नवनीत सिंह चहल की उत्कृष्ट सोच, जवाबदेह कार्यशैली, फैसले लेने की त्वरित क्षमता, शानदार गवर्नेंस, दूरदर्शिता, गंभीरता और व्यवहार कुशलता के लिए इन्हें फेम इंडिया और एशिया पोस्ट का सम्मान बहुत पहले मिल चुका है।

यह तो तबाही का रास्ता है?

हकीकतः चंदौली के किसानों का करीब दो करोड़ रुपये का करीब एक हजार कुंतल ब्लैक राइस 18 महीने से कृषि उत्पादन मंडी के गोदाम में पड़ा है। इससे कई गुना ज्यादा ब्लैक राइस किसानों के घर में है, जिसे चूहे, गिलहरी और चिड़िया निवाला बना रहे हैं। किसानों को सपना दिखाया गया था कि ब्लैक राइस की खेती से वो मालामाल हो जाएंगे। लेकिन चंदौली के किसानों को ऐसे रास्ते पर डाल दिया गया जो तबाही की ओर लेकर जाता है। तत्कालीन कलेक्टर नवनीत चहल ने ब्लैक राइस बेचने के लिए बाजार खोजा नहीं, लेकिन वाहवाही लूटने के लिए खेती शुरू करा दी। किसानों ने अपनी सारी पूंजी लगाई, कड़ी मेहनत भी की और बंपर उत्पादन भी कर लिया। नौकरशाही की दोषपूर्ण नीतियों के चलते चंदौली के किसान बर्बाद हो गए। कोई बैंक के कर्ज में डूब गया तो कोई साहूकारों के मकड़जाल में फंसकर रह गया। पिछले दो सालों से यहां का एक छंटाक चावल विदेश नहीं जा सका। भारत में ब्लैक राइस का न कोई बाजार है और न ही कोई खरीदार। चंदौली में साल 2020 में जो ब्लैक राइस पहली मर्तबा 85 रुपये प्रति किलो के भाव से बिका था उसी चावल की कीमत मुर्गी पालन करने वाले फार्मर पांच-छह रुपये किलो लगा रहे हैं।

लूट गई पूंजी, मेहनत भी बर्बाद

धान की फसल का बंपर उत्पादन किसी भी इलाके की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत माना जाता है। धान के कटोरा का रुतबा हासिल करने वाले चंदौली जिले में ब्लैक राइस की खेती तमाम किसानों के लिए जी का जंजाल बन गई है। चार साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी का "वोकल फॉर लोकल" का लच्छेदार नारा चंदौली के किसानों को इतना भाया कि उन्होंने ब्लैक राइस की खेती पर अपनी सारी पूंजी लगा दी। किसानों ने कभी बैंकों से कर्ज लिया तो कभी साहूकारों से। अफसरों की मीठी बातों में आकर ब्लैक राइस की खूब पैदावार की। उत्पाद बेचने की बात आई तो सभी ने हाथ खड़े कर दिए। ब्लैक राइस के नाम पर तमाम पुरस्कार ले चुके यूपी कैडर के आईएएस नवनीत सिंह चहल (तत्कालीन डीएम-चंदौली) यह बताने के लिए तैयार नहीं कि किसान अपनी उपज कहां और किसे बेचें? ब्लैक राइस की खेती के लिए डूब चुकी आमदनी कैसे निकालें? बैंक और साहूकारों का कर्ज कैसे उतारें और किसान अपनी बेटियों के हाथ कैसे पीले करें?

ब्लैक राइस की खेती से बर्बाद हो चुके किसानों के जख्म पर सिर्फ नौकरशाही ही नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी भी बार-बार नमक छिड़क रहे हैं। कई मर्तबा, कई मंचों पर ब्लैक राइस से चंदौली के किसानों के मालामाल होने का रिकॉर्ड बजा चुके हैं। खुला सच यह है कि किसान खून के आंसू रो रहे हैं। उन्हें यह नहीं सूझ रहा है कि ब्लैक राइस की खेती के चलते अफसरों और नेताओं ने उन्हें जिस तरह से तबाही के रास्ते पर ढकेला है उससे वो कैसे उबर सकें?

ब्लैक राइस न बिकने पर दुखड़ा सुनाता किसान

चंदौली में शहाबगंज प्रखंड के भुड़कुड़ा गांव के प्रगतिशील किसान हैं विनोद सिंह। ब्लैक राइस का नाम आते ही इनका दर्द टीस मारने लगता है। ‘न्यूजक्लिक’ से बातचीत में कहते हैं, "डबल इंजन की सरकार ने हमें उस अंधेरी सुरंग में ढकेल दिया है जहां खुशहाली नहीं, सिर्फ तबाही का मंजर ही दिखता है। ब्लैक राइस की खेती से मालामाल होने के सुनहरे सपनों ने हमारे हौसलों को बुरी तरह तोड़कर रख दिया है। पूंजी फंसाई, कड़ी मेहनत की और बंपर पैदावार हुई तो उपज बिकने के लाले पड़ गए। चंदौली के किसान डबल इंजन की सरकार के "वोकल फॉर लोकल" के नारे में फंसकर बर्बाद हो गए। अब तो यही लगता है कि हमारे पीएम सिर्फ झूठ बोलते हैं। हम बर्बाद हो चुके हैं और वो दुनिया भर में हमारी खुशहाली का झूठा डंका पीट रहे हैं। बनारस में दो साल पहले देव-दीपावली के मौके पर भी उन्होंने ब्लैक राइस से हमारे मालामाल होने का जुमला उछाला था और इस साल मन की बात में भी। चुनाव के समय चंदौली आए तब भी हमारी खुशहाली का रिकॉर्ड बजा गए। आखिर नौकरशाही उन्हें हमारी तबाही की कहानी क्यों नहीं बताती? चंदौली से लेकर दिल्ली तक ब्लैक राइस से हमारे मालामाल होने का झूठा बितंडा क्यों खड़ा किया जा रहा है?"

विनोद सवाल करते हैं, "हमें कोई यह तो बताए कि पिछले दो सालों में कितने किसानों का कितना काला चावल बिका? "वोकल फॉर लोकल" के नारे की जितनी तगड़ी मार चंदौली के किसानों पर पड़ी है वैसी शायद ही कहीं पड़ी होगी। हम डबल इंजन की सरकार की लच्छेदार बातों में आ गए। हमारे ब्लैक राइस का कोई खरीददार नहीं है। अब हमने इसकी खेती बंद कर दी है। अगले खरीफ सीजन में हम और हमारे जैसे तमाम किसान इसे नहीं उगाएंगे। हम तो बैंक और साहूकारों के मकड़जाल में फंसकर परेशान हैं और उससे बाहर निकने का रास्ता तलाश रहे हैं। ऐसे में आखिर हम कैसे कह दें कि मोदी के "वोकल फॉर लोकल" के नारे में दम है? हमारा पांच कुंतल धान गोदाम में सड़ रहा है और उसे खरीदने वाला कोई नहीं मिल रहा है। ब्लैक राइस से आमदनी दोगुनी करने की हमने जो उम्मीद पाली थी, वो टूटकर बिखर गई है। पिछले साल जिन किसानों ने नर्सरी भी डाली, उनमें से कुछ ने ब्लैक राइस का बेहन नष्ट कर दिया था। जैविक विधि से उगाए जाने वाले इस धान की खेती के लिए अच्छी जमीन चाहिए। श्रम और समय दोनों ज्यादा लगता है। साल 2021 से चंदौली के किसान अपनी उपज बिकने के इंतजार में बैठे हैं।"

प्रगतिशील किसान विनोद यह भी कहते हैं, "डबल इंजन की सरकार के साथ मिलकर नोएडा की आरकेबीएल कंपनी ने भी चंदौली के किसानों के साथ बड़ा धोखा किया। साल 2020 में इस कंपनी ने चंदौली के किसानों से बड़े पैमाने पर ब्लैक राइस की खेती कराई। पौधों का सर्वे कराया और उपज होने पर सैंपल भी मंगा लिया। उपज खरीदने की बात आई तो आरकेबीएल कंपनी वाले गायब हो गए। एग्रीकल्चर महकमे के नुमाइंदों ने भी किसानों का दिल तोड़ दिया। अब हमने ब्लैक राइस की व्यावसायिक खेती पूरी तरह बंद कर दी है। बस बीज बचा रहे हैं। ब्लैक राइस की जगह सोनाचूर, राजेंद्र कस्तूरी, नाटी मंसूरी की खेती कर रहे हैं।"

चंदौली के बरहनी ब्लॉक के सिकठां गांव के रतन सिंह भी इस बात को तस्दीक करते हैं कि पिछले दो सालों से किसानों का रत्ती भर ब्लैक राइस विदेश नहीं जा सका है। वह कहते हैं, "अपने देश में इसका कहीं कोई बाजार है ही नहीं। ब्लैक राइस खरीदने के लिए हम कंपनियों से एप्रोच कर रहे हैं। उनके प्रतिनिधि आते हैं और हमारे उत्पाद का लैब टेस्टिंग कराते हैं। सैंपल लेकर जाते हैं तो फिर लौटते ही नहीं हैं। हमारा तीन-चार कुंतल काला चावल सिर्फ सैंपल में चला गया और कमाई धेला भर भी हाथ नहीं आई। चंदौली के कृषि उत्पादन मंडी के एक गोदाम में किसानों का करीब 1000 कुंतल ब्लैक राइस दो साल से रखा है। पिछले साल की पैदावार (करीब 1100 कुंतल) किसानों के घरों में पड़ी है, जिसे चूहे और गिलहरी अपना निवाला बना रहे हैं।"

प्रगतिशील किसान रतन सिंह बताते हैं, "साल 2019-20 में गाजीपुर की सुखबीर एग्रो एनर्जी ने 850 कुंतल और एक अन्य खरीददार ने 150 कुंतल ब्लैक राइस क्रमशः 8500 और 6000 रुपये प्रति कुंतल की दर से खरीदा था। काफी जद्दोजहद के बाद साल 2020 में करीब 600 कुंतल ब्लैक राइस न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कतर आईटीसी, चौपाल सागर, जैविक हाट, आर्गेनिक बाजार मुंबई में बिक सका। इसके बाद ब्लैक राइस की लाट विदेश गई ही नहीं। हमारे उत्पाद को अब किसी भाव में कोई भी लेने के लिए तैयार नहीं है। 20-30 रुपये भी मिल जाता तो किसान बेचकर अपना कुछ कर्ज उतार लेते। चंदौली काला चावल उत्पादक समिति ने अबकी बार किसानों का ब्लैक राइस एकत्र नहीं किया, क्योंकि पिछले साल का माल डंप पड़ा हुआ है। ये महज खोखली बातें हैं कि ब्लैक राइस ने चंदौली के किसानों का जीवन खुशहाल बनाया है। हम कई सालों से अपनी उपज लेकर सरकार के भरोसे बैठे हुए हैं। आखिर झूठे सब्जबाग में फंसे किसान कब तक बैंकों और साहूकारों के कर्ज की दलदल में फंसे रहेंगे?"

छले गए चंदौली के किसान

नौकरशाही और नेताओं के झांसे में आकर चंदौली के किसानों ने चंदौली काला चावल कृषक समिति की गठन किया, जो बाद में चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी लिमिटेड बन गई। लेकिन नतीजा वही- ढाक के तीन पात। बरहनी ब्लाक में तीन सितंबर 2021 को रजिस्टर्ड हुई इस कंपनी में करीब पौने चार सौ किसानों के शेयर हैं। हर शेयर की कीमत दो हजार है। यह कंपनी अब तक 7.50 लाख रुपये ही जुटा सकी है। राइस प्रोसेसिंग प्लांट और अन्य संसाधनों के बगैर चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी कुछ नहीं कर सकती। बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए कंपनी को कम से कम 50 लाख रुपये चाहिए, जो उसके पास नहीं है।

चंदौली के प्रगतिशील किसानों को यकीन नहीं हो रहा है कि उनका ब्लैक राइस कभी बिक पाएगा? उनके पास फंड नहीं, व्यापारी नहीं और एक्सपोर्ट का कोई जरिया नहीं है। सरकार और कृषि महकमे के अफसरों के झांसे में आकर जिन किसानों ने पिछले साल ब्लैक राइस की खेती की, वो अपना माथा पीट रहे हैं। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के चंदौली के अध्यक्ष एवं प्रगतिशील किसान आनंद सिंह कहते हैं, "धान के कटोरे में किसानों को समझ में नहीं आ रहा है कि अपनी उपज आखिर कहां बेचें?  ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों के आंखों में सिर्फ आंसुओं की धुंध है। खेती का ये रास्ता तो इन्हें हताशा की ओर ले जा रहा है।"

क्या कहा था मोदी ने...?

साल 2020 में देव दीपावली के मौके पर वाराणसी के दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्लैक राइस की खेती करने वाले चंदौली के किसानों की कामयाबी का खूब बखान किया था। ब्लैक राइस को किसानों के आर्थिक मजबूती का आधार बताया था। मोदी ने इसी तरह का दावा मन की बात में भी किया था। यहां तक कहा कि, "ब्लैक राइस यूपी के चंदौली का पहचान बन चुका है। चंदौली से पहली बार ऑस्ट्रेलिया को काला चावल निर्यात हुआ है। वह भी करीब साढ़े आठ सौ रुपये किलो के हिसाब से। चंदौली के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए ब्लैक राइस की एक वरायटी का प्रयोग यहां किया गया था। किसानों के लिए बाजार तलाश लिया गया। सरकार के प्रयासों और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर से किसानों को कितना लाभ हो रहा है, इसका एक बेहतरीन उदाहरण है चंदौली का काला चावल-ब्लैक राइस। ये चावल चंदौली के किसानों के घरों में समृद्धि लेकर आ रहा है।"

पीएम मोदी के साथ चंदौली के पूर्व डीएम चहल

चंदौली के जलालपुर गांव के किसान चंद्रशेखर कुमार मौर्य चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी से जुड़े हैं। वह कहते हैं, "प्रधानमंत्री के मुंह से चंदौली तारीफ के शब्द सुनकर पूर्वांचल के किसान गदगद हो जाते हैं, लेकिन उनके झूठे सपने लेकर हम क्या करें? हमारी खुशी तो न जाने कब से रूदन में बदल गई है। ब्लैक राइस की खेती करने वाले सभी किसान रो रहे हैं। शुरुआती दिनों में ब्लैक राइस की खेती का अनुभव अच्छा रहा, लेकिन सरकार ने कोई बाजार नहीं खोजा। नतीजा, कर्ज के दलदल में फंसे तो फंसते ही चले गए।"

चंद्रशेखर यह भी कहते हैं, "जब सपना तोड़ना ही था तो दिखाया ही क्यों? हम तो मोटे अनाज से ही अपना पेट भर लेते थे। ब्लैक राइस लेकर हम कहां जाएं? ब्लैक राइस की खेती के लिए हमने बैंक से लोन लेकर खेती की थी, लेकिन उपज बिक नहीं पाई। खाद, बीज और कीटनाशक खरीदने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। कर्ज में डूबे होने के कारण बच्चों की पढ़ाई और बेटियों की शादियां रुक गई हैं। हमारे ऊपर बैंक का कर्ज लदा हुआ है। हमारा ब्लैक राइस सड़ रहा है और बैंक का ब्याज बढ़ रहा है। हम तो सरकार की बातों में फंसकर ठग लिए गए। हमने काले धान की खेती करने का इरादा अब हमेशा के लिए छोड़ दिया है।"

चंदौली के कांटा जलालपुर के ही किसान जय सिंह कहते हैं, "ब्लैक राइस की खेती से सुनहरे भविष्य का जो सपना देखा था वो टूटकर बिखर गया। सारी उपज घर में पड़ी है। बहुत मेहनत की, पर मिला कुछ भी नहीं। हम भी चाहते हैं कि ब्लैक धान की खेती से अपनी तरक्की की पटकथा लिखें, लेकिन चाहने से होता क्या है? ब्लैक राइस की अच्छी फसल उगती है तो वो औने-पौने दाम पर भी नहीं बिक पाती।"

अन्नदाता के उम्मीदों की मौत

कांटा जलालपुर के ही धनंजय सिंह रूंधे गले से बताते हैं, "पिछले दो सालों तक ब्लैक राइस की खेती की और हम तबाह हो गए। लाचारी में हमें अपने खेत का एक बड़ा हिस्सा रेहन रखना पड़ा। कुछ रकम बैंक से लोन लेनी पड़ी। ब्लैक राइस की उपज अच्छी हुई, लेकिन आज तक खरीदार ही नहीं आए। सालों से उनके इंतजार में बैठे हैं। सारी उपज बोरों में भरकर घर में रखी है। उम्मीद थी कि उपज बाजार में बेच करके रेहन का खेत छुड़ा लेंगे और बैंक का लोन भी भर देंगे। सरकार के बड़बोलेपन और प्रशासन के निकम्मेपन के चलते हम तबाही की कगार पर खड़े हैं। अब हमने ब्लैक राइस की खेती से तौबा कर लिया है।"

चंदौली के शहाबगंज प्रखंड के खिचलीं के प्रगतिशील किसान राम अवध सिंह कहते हैं, "चंदौली में वोकल फॉर लोकल का नारा मजाक बन गया है। हमारे ब्लैक राइस को कोई नहीं पूछ रहा है। मुर्गी पालने वाले आ रहे हैं और हमारे धान का भाव लगा रहे हैं चार से छह रुपये किलो। सोचिए कि हमारे ब्लैक राइस की कितनी तौहीन हो रही है? हम चाह कर भी मुर्गी वालों को अपनी उपज बेच नहीं पा रहे हैं। सच यह है कि इस धान की खेती किसानों के लिए जी का जंजाल बन गई है। हमें जब तक सरकार संरक्षण नहीं देगी तब तक निजी कंपनियों के भरोसे बेड़ा पार नहीं होने वाला। हमारे उत्पाद को बेचने और खरीदने की जिम्मेदारी खुद सरकार उठाए। हमें सपना दिखाकर फिर भगवान भरोसे छोड़ देना ठीक नहीं है। पिछली मर्तबा ब्लैक राइस का रकबा घटा दिया था और अब अगले सीजन में इसकी खेती नहीं करेंगे।"

राम अवध यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं, "डबल इंजन की सरकार हमें झूठा सब्जबाग न दिखाए। किसानों के समझ में आ गया है कि हमारी आंखों में धूल झोकी जा रही है। कोई बताए कि ब्लैक राइस से कौन मालामाल हुआ? हमें तो कोई भगीरथ नहीं दिख रहा जो हमारे ब्लैक राइस को बिकवा सके। चंदौली के किसानों को पता चल गया है कि इसकी खेती से कोई लाभ नहीं होने वाला है। ब्लैक राइस की डिमांड इसलिए भी नहीं है कि खाने में बेस्वाद है। तत्कालीन डीएम नवनीत सिंह चहल ने न जाने क्यों ब्लैक राइस से होने वाली कमाई को तिल का ताड़ बना दिया। उनके जाते ही झूठे सब्जबाग उजड़ गए और सरकार की भी कलई खुल गई। सारा का सारा शो फ्लॉप हो गया। हमें तो यही लगता है कि सरकार भी नौटंकी करती है। हमें तो यह फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी का खेल लगता है।"

विपणन का इंतजाम नहीं

चंदौली के ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था का जटिल गणित ही किसानों की जान का दुश्मन है। ब्लैक राइस की खरीद की कोई पुख्ता नीति न होने से इनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। ब्लैक राइस तो बिचौलिए भी नहीं खरीद रहे हैं। चंदौली ही नहीं, समूचे पूर्वांचल में पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज नहीं हैं, जहां काला चावल रखा जा सके। किसान को पूरे साल की मेहनत के बाद अपनी फसल बेचकर मुनाफ़ा नहीं मिले तो वह परिवार का पेट कैसे भर पाएगा और कर्ज़ कहां से चुकाएगा? किसानों का काला चावल बिका नहीं, लेकिन बैंक वाले आंख तरेर रहे हैं। महाजनों से कर्ज़ लेना किसानों की मजबूरी है। इस पर इन्हें ब्याज़ दर 120 प्रतिशत सालाना तक चुकानी पड़ रही है, यानी एक लाख के कर्ज़ पर उनको फसल कटने के बाद 2.20 लाख तक चुकाना पड़ रहा है। ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों के इर्द-गिर्द महाजनों का मकड़जाल ऐसा है कि वो चाहकर भी मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। सालों की कोशिशों के बावजूद जब कर्ज़ की रकम लगातार बढ़ती जाती है, तब उसे हताशा में अपनी जान देने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं सूझता।

चंदौली के जिला कृषि अधिकारी बसंत दुबे ब्लैक राइस की खेती से तबाह हो चुके किसानों की आहों-कराहों के बीच अपने महकमे की उपलब्धियां गिनाते हैं। वह कहते हैं, "चंदौली में साल 2019 में करीब 400 हेक्टेयर में ब्लैक राइस की खेती की गई, जिससे 1400 कुंतल धान का उत्पादन हुआ। करीब 8500 रुपये प्रति कुंतल की दर से करीब 975 कुंतल धान दो कंपनियों ने खरीद लिया। साल 2020 में चंदौली में 500 हेक्टेयर में ब्लैक राइस की खेती हुई और 1400 कुंतल धान का संग्रह किया गया। सौ-सौ कुंतल धान की खरीद नोएडा की दो कंपनियों ने और 25-25 कुंतल सोनीपत की दो कंपनियों ने और 25 कुंतल मिर्जापुर की एक कंपनी ने खरीदा। अभी 1000 कुंतल धान की बिक्री होनी बाकी है। प्रयागराज और सोनभद्र में भी किसानों का ब्लैक राइस बिक्री के लिए रखा हुआ है। साल 2021 में करीब 400 हेक्टेयर में काला चावल की खेती की गई, लेकिन बिक्री की स्थिति उत्साहवर्धक नहीं है। 35 रुपये प्रति किलो की दर से 1000 कुंतल ब्लैक राइस बेचने के लिए एक कंपनी से बात चल रही है, लेकिन अभी तक उसका उठान नहीं हो सका है।"

चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी लिमिटेड (मोदी की महत्वाकांक्षी योजना एफपीओ) के डायरेक्टर कृष्णकांत राय कहते हैं, "ब्लैक राइस उगाने में बहुत कठिनाइयां हैं क्योंकि ये पूरी तरह से ऑर्गेनिक है जिसके लिए बहुत अधिक श्रम की जरूरत पड़ती है। इसकी खेती पर ज्यादा रिटर्न तभी मिल सकता है जब हमारा ब्लैक राइस विदेशी बाजार में जाएगा। आमतौर पर काले चावल की उत्पादकता 25 क्विंटल/हेक्टेयर होती है। यह करीब पांच फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। चंदौली के किसानों को काले चावल की मार्केटिंग में तमाम समस्याएं आ रही हैं। चंदौली से शुरू हुई ब्लैक राइस की खेती गाजीपुर, सोनभद्र, मीरजापुर, बलिया, मऊ और आजमगढ़ तक पहुंच गई है, लेकिन बाजार नहीं है। चंदौली के तमाम गांवों में किसानों के घरों में ब्लैक राइस के बोरे पड़े हैं और लोग उन्हें देखते हैं तो आंखें नम हो जाती हैं।"

चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी लिमिटेड के एक अन्य निदेशक रतन सिंह कहते हैं, "ब्लैक राइस मेडिसनल उत्पाद है। देश के डॉक्टर जब तक इसे खाने के लिए रिकमेंड नहीं करेंगे तब तक यह न पॉपुलर होगा और न ही ब्रांड बनेगा। अगर कोई खरीद भी ले तो ब्लैक राइस खा नहीं पाएगा, क्योंकि इसमें कोई सुगंध भी नहीं है। इसे खाने के बाद आलस्य का तनिक भी भान नहीं होता है। मुधमेह और हृदय रोग के लिए ब्लैक राइस रामबाण है, लेकिन वो हमारे उत्पाद को जब तक रिकमेंड नहीं करेंगे, वो अपने देश में बिकेगा नहीं। सरकार सचमुच ब्लैक राइस की ब्रांडिंग करना चाहती है तो वो देश भर के नामी-गिरामी डॉक्टरों को जुटाए और उसके गुणों के बारे में जानकारी दे। हमें सरकार से सहयोग की जरूरत है। योगी-मोदी और कृषि मंत्री शाही को हम कई बार ब्लैक राइस का चावल और चूड़ा दे चुके हैं। इसे जब तक डॉक्टर प्रोमोट नहीं करेंगे, तब तक ये सफल नहीं होगा। खासतौर पर भारत के बाजार में।"

रतन सिंह कहते हैं, "दो साल पहले चंदौली के किसानों का काला चावल कतर और ऑस्ट्रेलिया गया था। उसके बाद हमारा चावल विदेश नहीं जा सका। अभी हम बिचौलिए की राह देख रहे हैं। किसानों के ऊंची उड़ान पर बिचौलियों की गिद्ध दृष्टि हमारे हितों का शोषण कर रही है। जब कंपनी को खड़ा होने और संसाधन जुटाने में दो से तीन साल का समय लगेगा, तब तक उत्पादन करने वाले किसान हताश और निराश हो जाएंगे।"

मेनका ने दिखाया था सपना

चंदौली में ब्लैक राइस की खेती की शुरुआत साल 2018 में भाजपा नेत्री मेनका गांधी के सुझाव पर प्रायोगिक तौर पर चंदौली जिले में की गई थी। उन्होंने मणिपुर की चाकहाउ (काले चावल) का बीज चंदौली के किसानों को मुहैया कराया था। किसानों की मेहनत रंग लाई और सेहत के लिए फायदेमंद समझे जाने वाले ब्लैक राइस की डिमांड विदेशों तक पहुंच गई। चंदौली के तत्कालीन डीएम नवनीत सिंह चहल और तत्कालीन उपकृषि निदेशक आरके सिंह की पहल पर मणिपुर से 12 सौ रुपये प्रति किलो की दर से 12 किलो चाकहाउ के बीज लाकर यहां के किसानों को खेती के लिए वितरित किया गया। किसानों ने झूमकर ब्लैक राइस की खेती की। इस उम्मीद के साथ कि उनकी आय दो-तीन गुना बढ़ जाएगी। किसानों का प्रयोग सफल रहा। धान की खेती में महारत हासिल करने वाले चंदौली के किसानों ने ब्लैक राइस से अपना घर तो भर लिया, लेकिन उसके खरीदार आज तक नहीं मिले।

मोदी-योगी सरकार और कृषि महकमे के अफसर इस बात से मगन है कि ब्लैक राइस को कलेक्टिव मार्क यानी विशेष उत्पाद की मान्यता मिल गई है। चंदौली कृषि उत्पाद में यह मार्क दिलाने वाला प्रदेश का इकलौता जिला है। इस चावल की तारीफ संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था यूएनडीपी ने भी की है। इस चावल की महत्ता तो बढ़ी है, लेकिन किसानों की मुश्किलें तनिक भी कम नहीं हुई हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक ब्लैक राइस सेहत के लिहाज से काफी फायदेमंद है और तमाम बीमारियों से बचाव करता है। दरअसल, विशेष प्रकार के तत्व एथेसायनिन की वजह से ब्लैक राइस का रंग काला होता है। विशेषज्ञों की मानें तो ये चावल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। एंटीऑक्सीडेंट्रस से भरपूर ब्लैक राइस में विटामिन ई, फाइबर और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है और साथ ही चर्बी कम करके वजन घटाने में मददगार है और पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है। राइस शरीर के बुरे कोलेस्ट्रॉल को भी घटाता है जो दिल के लिए अच्छा माना जाता है। इससे हर्ट अटैक आने की आशंका घटती है। एंटीऑक्सीडेंट्रस से भरपूर होने की वजह से ये हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। साथ ही शरीर के विषैले तत्वों को भी बाहर निकालता है, त्वचा को चमकदार बनाता है और आंखों के लिए भी फायदेमंद है। काले चावल को डाइबिटीज और अर्थराइटिस के मरीजों के स्वास्थ्य के लिहाज से भी अच्छा माना जाता है।

इसे भी पढ़ें- चंदौली से ग्राउंड रिपोर्ट: ब्लैक राइस की खेती का यह रास्ता तो हताशा की ओर ले जा रहा है!

इसे भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वांचल में 'धान का कटोरा' कहलाने वाले इलाके में MSP से नीचे अपनी उपज बेचने को मजबूर किसान

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