राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के पेंशन सुधार प्रस्ताव के ख़िलाफ़ फ़्रांस में आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा
फ़्रांस हालिया समय में भयावह आंदोलन का सामना कर रहा है। यहां आंदोलन की तीव्रता दिन-प्रतिदिन बढ़ती दिख रही है। बीते सोमवार को प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव में विपक्षी पार्टियों को संसद में मिले समर्थन के बाद प्रदर्शन और भी तेज होता हुआ दिख रहा है। मजदूर वर्ग से लेकर, छात्र व शिक्षक वर्ग समेत ब्लू कॉलर वर्ग के लोग सरकार के हालिया मसौदे के खिलाफ सड़कों पर हैं। आंदोलन ने देश की लगभग हर व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है। बस से लेकर ट्रेन सेवा, उड़ान और औद्योगिक उत्पादन पर इस प्रदर्शन का असर बुरी तरह दिख रहा है। देश की राजधानी पेरिस व और भी कई बड़े शहरों में सफाई कर्मचारियों के विरोधों के कारण हर ओर कचड़ों का अंबार लग गया है।
संसद में पेंशन सुधार प्रस्ताव को बिना वोटिंग प्रक्रिया के पारित कराने और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर सांसदों के अप्रत्याशित समर्थन मिलने के कारण विरोध प्रदर्शन करने वालों को हालिया दिनों में और मजबूती मिली है।
आखिरकार क्या है मैक्रों की नई पेंशन सुधार नीति और क्यों दो तिहाई से भी अधिक फ्रांसीसी इस मसौदे के खिलाफ विरोध कर रहे हैं? और इस सुधार के कारण कैसे इमैनुएल मैक्रों अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन समय का सामना कर रहे हैं? इस मसले पर प्रकाश डालने से पहले आइए जानते हैं कि पिछले दो महीने से चल रहा आंदोलन हाल के दिनों में क्यों जोर पकड़ रहा है।
आंदोलन की हालिया स्थिति और इसके तेज़ होने की वजह
16 मार्च को हालिया सरकार द्वारा प्रस्तावित अध्यादेश को बिना वोटिंग प्रक्रिया का पालन कर पारित कराने के कारण प्रदर्शन की तीव्रता तेजी से बढ़ने लगी है। दरअसल पेंशन संशोधन बिल को पारित कराने के लिए प्रधानमंत्री एलिज़ाबेथ बोर्न ने संसद के विशेषाधिकार नियमों का प्रयोग करते हुए अनुच्छेद 49.3 की सहायता से प्रस्तावित विधेयक को पारित कर दिया। जिस कारण पहले से ही विरोध झेल रहे प्रस्तावित कानून के खिलाफ प्रदर्शन और लामबंद हो गया और दो तिहाई से भी अधिक फ़्रांसीसी नागरिकों की नाराज़गी और भी बढ़ गई। आंदोलनकारी फ्रांसीसी नागरिकों ने आरोप लगाया कि कानून पारित करने के लिए विशेषाधिकार पद्धति को अपनाने के कारण सरकार लोगों की उपेक्षा कर रही है और जनता की भावनाओं के खिलाफ इस कानून को ला रही है।
इसके अलावा, हाल के दिनों में आंदोलन के बढ़ने के पीछे दूसरा कारण सरकार के खिलाफ दायर अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में मिला अप्रत्याशित समर्थन है। दरअसल बिना वोटिंग प्रक्रिया का पालन कर कानून पारित होने के बाद एलिज़ाबेथ बोर्न सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव संसद में दाखिल किया गया था। 20 मार्च सोमवार को जब अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तब हालिया सरकार गिरने से बाल-बाल बची। अविश्वास प्रस्ताव के पारित होने के लिए 287 वोटों की ज़रूरत थी और इस प्रस्ताव के समर्थन में 278 सांसदों ने मतदान किया। प्रस्ताव के पारित होने के पक्ष में केवल नौ वोट की कमी रह गई। अविश्वास प्रस्ताव को अप्रत्याशित रूप से समर्थन मिलने के बाद विपक्षी पार्टियों और आंदोलनकर्ताओं को और बल मिल गया जिस कारण फ़्रांस की राजधानी पेरिस से लेकर देश के लगभग तमाम बड़े और छोटे शहरों में भयावह रूप में विरोध-प्रदर्शन देखने को मिल रहा है।
विरोध प्रदर्शनों के तेज होने के कारण शनिवार को देश की संसद के बाहर आंदोलन करने पर रोक लगा दी गई थी, वह रोक आज तक जारी है। आंदोलनकर्ताओं और विपक्षी दलों का कहना है कि मैक्रों सरकार द्वारा इस सुधार को वापस नहीं लेने तक यह आंदोलन और गति पकड़ता रहेगा।
क्या है इमैनुएल मैक्रों की पेंशन सुधार योजना?
दरअसल इमैनुएल मैक्रों की सरकार पेंशन में जो सबसे बड़ा सुधार लाने की कोशिश कर रही है, वह सेवानिवृत्ति की आयु में दो साल की बढ़ोतरी से संबंधित है। आसान शब्दों में कहें तो जो लोग 62 साल की उम्र में रिटायर हो जाते थे, अब अगर यह नए सुधार लागू हो जाते हैं तो उनके काम करने की समय सीमा 64 साल हो जाएगी। ज्ञात हो कि औद्योगिक दुनिया में सबसे कम आयु में सेवानिवृत्ति देने वाला देश फ़्रांस है। इसके बावजूद भी पेंशन सुधार योजना के विरुद्ध लाखों लोग सड़कों पर हैं।
दूसरा सुधार पेंशन के लिए योग्य होने से संबंधित है। दरअसल, हाल तक फ्रांस में पेंशन पाने के लिए पूरी तरह पात्र होने के लिए कम से कम 42 साल की सेवा देना आवश्यक था, लेकिन नए प्रस्ताव के तहत अब कम से कम 43 साल काम करना आवश्यक होगा। 2027 से, पूर्ण पेंशन प्राप्त करने के लिए श्रमिकों को 42 वर्षों के बजाय 43 वर्षों तक सामाजिक सुरक्षा योगदान देना होगा। आंदोलनकारियों का आरोप है कि पेंशन सुधार की इस शर्त के कारण पूर्ण रूप से पेंशन के लिए पात्र होने के लिए लोगों को कई सेवाओं में 67 सालों तक काम करना पड़ सकता है। और इस कारण कई लोगों को आने वाले समय में इस सुधार की वजह से पेंशन के लिए पात्र हो पाना मुश्किल हो सकता है।
इन सुधारों का विरोध वहां के नौकरी पेशा वर्गों, मजदूरों समेत देश की दो तिहाई से भी अधिक आबादी कर रही है। प्रस्तावित सुधारों के खिलाफ लाखों लोग सड़कों पर हैं और विभिन्न तरीकों से इस संशोधन के खिलाफ अपनी असहमति दिखा रहे हैं।
लाखों लोग कर रहे है विरोध प्रदर्शन
फ़्रांस में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को हालिया समय के इतिहास के सबसे बड़े आंदोलनों में से एक बताया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रस्तावित सुधार के चर्चा में आने के बाद से ही जनवरी माह से आंदोलन होना शुरू हो गया था। बीते दो महीनों में सप्ताह के अंत और विभिन्न मौकों पर प्रदर्शन होना आम बात हो गई है। देश के लगभग हर बड़े छोटे शहरों में इस विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
फ्रेंच जनरल कॉन्फेडरेशन ऑफ लेबर (सीजीटी) के आंकड़ों के मुताबिक, देश की लगभग 70 फीसदी आबादी और 94 फीसदी कर्मचारी हाल के पेंशन सुधारों के खिलाफ हैं। 15 मार्च को हुए आंदोलन में सीजीटी के अनुसार 2 मिलियन से भी अधिक फ्रांसीसी नागरिकों ने भाग लिया था।
ट्रेड यूनियनों और मजदूर-समर्थक राजनीतिक दलों ने सुधारों को सिरे से खारिज कर मजदूरी और पेंशन बढ़ाने और सेवानिवृत्ति की आयु को घटाकर 60 करने की मांग की है। पीपल्स डिस्पैच की रिपोर्ट के मुताबिक सीजीटी ने 20 मार्च को कहा कि यह पेंशन सुधार "जनता की राय के खिलाफ, यूनियनों के खिलाफ, और बिना वोटिंग प्रक्रिया का पालन किए पारित किया गया है.... अनुच्छेद 49.3 की मदद से प्रस्तावित कानून के पारित होने के कारण 65% नागरिक चाहते हैं कि आंदोलन जारी रहना चाहिए”।
फ्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी (पीसीएफ) के नेता और सांसद फैबियन रसेल ने 20 मार्च को कहा, “राष्ट्रपति और उनकी सरकार द्वारा की गई अराजकता के सामने हमें अपनी एकता के साथ जवाब देना चाहिए। और देश के लोकतंत्र के सम्मान में इस सुधार को वापस लेने का हमारा दृढ़ संकल्प कमजोर नहीं होना चाहिए”।
आपको बता दें कि इस देश में पेंशन सुधार का मुद्दा हमेशा से पेचीदा मसला रहा है। साइंस पीओ यूनिवर्सिटी के राजनीतिक वैज्ञानिक पास्कल पेरिन्यू ने शुक्रवार को सीएनएन से बात करते हुए कहा कि “किसी भी पेंशन सुधार योजना ने फ़्रांस के लोगों को सतुष्ट नहीं किया है”।
फ़्रांस में पेंशन सुधार हमेशा से पेचीदा मसला
इससे पहले 2010 में भी पेंशन में सुधार हुए थे। उस समय सेवानिवृत्ति की आयु दो वर्ष बढ़ाकर 62 वर्ष की गई थी और उस समय भी लाखों लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। और इतने कम समय में एक बार फिर इस तरह का सुधार हो रहा है जिस कारण भी लोगों के अंदर इस तरह की सुधार के प्रति गुस्सा है।
खुद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों 2017 से ही पेंशन में सुधार लाने की कोशिश में लगे हुए थे, लेकिन सुधार का विरोध और उसके बाद कोरोना महामारी के आ जाने के बाद इसमें कुछ समय के लिए अस्थाई तौर पर रोक लग गई थी। दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद मैक्रों अपनी इस नीति को किसी भी हाल में लागू करना चाह रहे हैं।
परंतु यहां सवाल यह उठता है कि मैक्रों जिस मुद्दे को चुनाव में भुनाने के बाद सत्ता में आए हैं उनकी उसी नीति के खिलाफ देश में इतना बड़ा आंदोलन क्यों हो रहा है? आखिरकार उनकी प्रस्तावित सुधार नीति जनता को क्यों रास नहीं आ रही है?
पेंशन सुधार नीति जनता को क्यों रास नहीं आ रही?
आंदोलनकारियों की पेंशन सुधार नीति की एक प्रमुख आलोचना यह है कि सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि का सबसे बड़ा असर शारीरिक रूप से मेहनत करने वाले यानी मजदूर वर्ग पर पड़ेगा। उनका कहना है कि ऐसे कार्य जिसमें मेहनत ज़्यादा लगती है उसे करने वाले व्यक्तियों की आय भी कम होती है और साथ ही उसकी आयु-संभाव्यता (Life-Expectancy) भी कम होती है।
इसका मतलब यह है कि यदि कोई ब्लू-कॉलर कर्मचारी 64 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होता है, तो उसके पास अच्छे स्वास्थ्य में अपनी सेवानिवृत्ति का आनंद लेने के लिए संभावित रूप से कम वर्ष होंगे। फ़्रांस के एक शहर ल्योन में पेशे से ड्राइवर एक आंदोलनकारी ने यूरो न्यूज से बात करते हुए कहा कि हालिया समय में हम जिस गति से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं उस गति से हमारा शरीर साथ नहीं दे रहा है। इसी कारण उनका यह मानना है कि 60 या उससे अधिक उम्र तक मौजूद दौर में कार्य करना कठिन है। और इसी वजह से वह सरकार के इस सुधार का विरोध कर रहे हैं।
इसके अलावा आंदोलनकारी इस नए सुधार को लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण बता रहे हैं। दरअसल, पेंशन के लिए पूरी तरह से पात्र होने की उम्र बढ़ने से महिलाओं के लिए पेंशन पाने में पहले के मुकाबले अब और मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। आंदोलनकारियों का मानना है कि महिलाएं विभिन्न कारणों से अपने कार्यकाल के दौरान नौकरी में ब्रेक ले लेती हैं जिस कारण उन्हें यह नई शर्त पूरी कर पाना मुश्किल होगा। हालिया समय में जो नियम फ़्रांस में लागू है उसके अनुसार पहले से ही महिलाओं की आय पुरुषों की तुलना में 40% कम है और यह कानून इसमें और समस्या उत्पन्न करेगा। हालांकि इमैनुएल मैक्रों की सरकार का दावा इसके विपरीत है उनका मानना है कि हालिया सुधार न्यूनतम पेंशन दर बढ़ाकर मौजूदा असमानताओं को कम करेगा।
राष्ट्रपति मैक्रों और उनकी पार्टी का मानना है कि अगर हमने समय रहते पेंशन प्रक्रिया में सुधार नहीं किया तो यह आने वाले समय में फ्रांस के खजाने के लिए काफी दिक्कतें पैदा कर देगा। मैक्रों की सरकार द्वारा जनता के सामने पेश किए गए एक अनुमान के अनुसार, पेंशन सुधार में असफल होने पर वित्तीय खजाने को 2030 के बाद से प्रत्येक वर्ष €13.5 बिलियन (1.2 लाख करोड़ रुपये) का वार्षिक घाटा सहना पड़ेगा।
सरकार का मानना है कि पेंशन सुधार आज की ज़रूरत है और इसमें हमें आज नहीं तो कल पर सुधार करने ही होंगे। ब्रॉडकास्टर फ्रांस इंटर के साथ बात करते हुए बजट मंत्री गेब्रियल अटाल ने कहा कि “अगर हम आज [सुधार] नहीं करते हैं, तो हमें भविष्य में और अधिक सख्त उपाय करने होंगे”।
वहीं आंदोलनकारियों का मानना है कि पेंशन से देश के वित्तीय खजाने पर पड़ने वाले बोझ को लेकर सरकार वाकई चिंतित है तो वह इसके लिए कोई नया विकल्प क्यों नहीं तलाश रही है? सरकार को नए विकल्प तलाश करने चाहिए न कि इस तरह से देश की जनता के ऊपर बोझ डालना चाहिए। आंदोलनकर्ताओं का यह भी आरोप है कि इमैनुएल मैक्रों अमीरों की गोद में बैठे हुए हैं, उन्हें अमीरों के ऊपर टैक्स बढ़ाने के बजाए पेंशन में सुधार कर गरीबों के ऊपर क्रूरता कर रहे हैं।
इसके अलावा आंदोलनकारियों का यह भी मानना है कि नया सुधार बेमतलब है। सरकार का वित्तीय बोझ का तर्क गलत है। पेंशन प्रणाली वर्तमान में दिवालिएपन के कगार पर नहीं है, जिस कारण पेंशन में सुधार करना अनावश्यक है। इसके अलावा उनका मानना है कि हालिया सुधार फ्रांसीसी मॉडल की धड़कन ‘सामाजिक एकजुटता’ पर हमला करता है और साथ ही अमीरों द्वारा फ्रांस को पूंजीवाद के करीब ले जाने की ओर धकेलता है।
इन तमाम कारणों के कारण राष्ट्रपति मैक्रों की पेंशन में सुधार लाने की नीति फ्रांसीसी नागरिकों को रास नहीं आ रही है। लेकिन सवाल यहां यह उठता है कि जिस कानून का विरोध देश की दो-तिहाई आबादी कर रही हो, जिस बिल का लेफ्ट से लेकर राइट तक लगभग सभी विचारधारा से संबंध रखने वाले लोग विरोध कर रहे हों और जिस कानून के खिलाफ देश के लगभग तमाम कामगार और तमाम यूनियन संगठित होकर आवाज बुलंद कर रहे हों उस संशोधन को राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों लाने के लिए इतने उत्सुक क्यों हैं?
फोटो साभार : रॉयटर्स
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