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उप्र चुनाव: भारत के सबसे पिछड़े  जिले के जीवन में एक दिन

भारत के सबसे बड़े इस राज्य में विधानसभा चुनाव तेजी से नजदीक सरकते आ रहे हैं। यहां विकास हर पार्टी के लिए एक महत्त्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बना हुआ है। इसके बावजूद राज्य के कुछ जिले विकास के संकेतकों पर भारत के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार हैं। इस पत्रकार ने इसकी थाह लेने के लिए भारत के सबसे पिछड़े जिले श्रावस्ती में अपना एक पूरा दिन बिताया।
poor district

श्रावस्ती: शुक्रवार, 14 जनवरी, 2022 सुबह के लगभग 9 बजे थे, जब मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से एक घंटे की ड्राइव के बाद श्रावस्ती जिले में इस क्षेत्र को खंगालने की गरज से वहां पहुंचा था।

राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्रावस्ती जिला गौतम बुद्ध के जीवनकाल में भारत के छह सबसे बड़े नगरों में से एक था। इसके बावजूद यह विकास के सभी संकेतकों पर आज भी बुरी तरह पिछड़ा हुआ है।

जैसे ही मैंने जिला मुख्यालय भिंगा बाजार में कदम रखा, मुझे लगा जैसे मैं किसी गाँव में आ गया हूँ, जहाँ सभी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। यह एक छोटा और भीड़भाड़ वाला अविकसित बाजार था, जहां लोग बिना मास्क लगाए बेफिक्र घूम रहे थे, मानो COVID-19 कभी मौजूद ही नहीं रहा था।

स्थानीय लोगों से श्रावस्ती के बारे में और जानकारी लेने पर मुझे पता चला कि जिले की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। यहां रोजगार के अवसरों की भारी कमी है, जिसके कारण अधिकतर लोग दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं।

इसलिए मैं गैर-सरकारी संगठनों के अधिक से अधिक लोगों, शिक्षकों, पुलिसकर्मियों और अन्य बड़े शहरों से जिले में तैनात लोगों से मिलकर जिले की सारी कहानी जानने की कोशिश कर रहा था। तब तक दोपहर हो चुकी थी, और मुझे किसी ने बताया कि मैं इसकी असल थाह लेने के लिए यहां से लगभग 26 किलोमीटर दूर एक गाँव में जाऊँ। मैंने अपने कैब ड्राइवर से नक्शे पर गाँव का पता लगाने के लिए कहा। आप मेरा विश्वास कीजिए कि गाँव की ओर जाने वाली सड़कों की दयनीय स्थिति के कारण गाँव तक पहुँचने में हमें दो घंटे से अधिक का समय लग गया। खैर, गाँव पहुँचने पर,भी मुझे वह अपेक्षित कहानी नहीं मिली, जिसकी तलाश में मैं यहां आया था। निराश मन से मैं भिंगा जिला मुख्यालय लौटने लगा। रास्ते में, हमें एहसास हुआ कि उस दिन हमने कुछ खाया नहीं था और हमें भूख लगी थी। मैंने अपने ड्राइवर से एक साफ-सुथरी जगह खोजने के लिए कहा, जहां हम बैठ सकें और कुछ नाश्ता कर सकें, लेकिन हम इसमें फेल हो गए क्योंकि वहां ऐसी कोई दुकान नहीं थी और मैं आगे बढ़ते हुए COVID-19 मामलों के कारण भीड़-भाड़ वाले भोजनालयों में जाने और वहां बैठने से डर रहा था।

आखिरकार मैं किसी तरह भिंगा में अपने खाने के लिए एक साफ जगह खोजने में एक हद तक कामयाब हो गया। यह आमिर बिरयानी का एक कोना था जो चार टेबल वाला एक छोटा मांसाहारी रेस्तरां था। नाश्ते के दौरान, मैंने एक रेस्तरां मालिक मोहम्मद आमिर के साथ उनके निजी एवं कारोबारों के बारे में हल्की-फुल्की चर्चा की। आमिर श्रावस्ती के एक 26 वर्षीय युवक थे, जिन्होंने नौकरी न मिलने के बाद यह व्यवसाय शुरू किया था।

आमिर फैजाबाद विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातक थे, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली थी। सदस्यों की तादाद के लिहाज से एक बड़े परिवार से आने वाले आमिर इसके आगे पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे। इसी वजह से भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने का उनका सपना कभी पूरा नहीं हो सका। जब आमिर को यह लग गया कि उनका परिवार उन्हें दूसरे शहर में रहने-सहने का खर्च नहीं उठा सकता और य़ूपीएससी की तैयारी के लिए ट्यूशन फीस का भुगतान नहीं कर सकता, तो उन्होंने प्रोबेशनरी ऑफिसर के पद के लिए बैंकिंग परीक्षा पास करने का इरादा किया। इसकी तैयारी के लिए उन्हें बहराइच या लखनऊ भी जाना पड़ता था, और वे इसका खर्च भी वहन नहीं कर सकते थे।

आमिर ने बताया कि उन्होंने 12,000 रुपये प्रति माह किराए पर एक रेस्तरां खोल लिया। इसमें दो रसोइयों को 8,000 रुपये और एक हेल्पर को 5,000 रुपये महीने की पगार देते हैं। इनके अलावा, अपने रेस्तरां के लिए रसद का इंतजाम करते हैं। फिलहाल, आमिर का रेस्तरां घाटे में चल रहा है, लेकिन उनका मकसद जल्द ही किसी दिन भिंगा में एक बड़ा प्रीमियम रेस्तरां खोलना है।

दिलचस्प बात यह है कि श्रावस्ती भी यूपी के सात 'आकांक्षी जिलों' में से एक है। अभी-अभी 22 जनवरी को ही नौकरशाहों को दिए अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस जिले का भी जिक्र किया था।

अपने इस दौरे में मैंने एस श्रीवास्तव से बात की, जो मध्य उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले से आ कर श्रावस्ती में रह रही हैं। यह बताते हुए कि इस जिले में पहुंचने पर उन्हें कैसा महसूस हुआ, उन्होंने कहा, "जैसे ही मैंने अपनी टैक्सी से बाहर कदम रखा तो मुझे लगा जैसे मैं अठारहवीं शताब्दी में पहुंच गई हूं।"

"मैं सारी ज़िंदगी, यह शिकायत करती रही थी कि कानपुर कितना पिछड़ा जिला है, लेकिन यहाँ शिफ्ट होने के बाद मुझे पता चला कि वास्तव में पिछड़ेपन का क्या मतलब है। यहां कोई जिम नहीं, विशेषज्ञ अस्पताल नहीं, रेलवे स्टेशन-बस स्टेशन नहीं और यहां तक कि खाने के लिए कोई अच्छी जगह भी नहीं है। भोजन वितरण की तो बात ही भूल जाएं; यहां तक कि कूरियर या डाक मेल भी यहां तक पहुंचने में पूरी जिंदगी लगा देते हैं। हर चीज चाहे वह फल हो या सब्जियां, उचित परिवहन व्यवस्था की कमी के कारण अधिक महंगी हैं। मैंने सोचा कि अगर जिम नहीं तो मैं पार्कों में वर्कआउट करने जा सकती हूं। लेकिन यहां तो एक भी पार्क नहीं है," उन्होंने कहा, "इंटरनेट आज हर किसी के लिए एक बुनियादी जरूरत बन गया है, लेकिन यहां एक थर्ड पार्टी सर्वर सिर्फ 1.5 एमबीपीएस की गति के साथ इंटरनेट नेटवर्क देता है और हमसे हर महीने 3,500 रुपये चार्ज करता है। ऐसी है इस जिले की स्थिति।"

श्रीवास्तव ने कहा कि यहां सीएचसी, पीएचसी और एक जिला अस्पताल है लेकिन कोई स्पेशलिटी क्लिनिक नहीं है और एक महिला होने के नाते, यहां जिंदा रहना चैलेजिंग है, लेकिन यह नौकरी है, जिसके कारण उन्हें यहां रहना पड़ रहा है। “मैंने शुरू में अपने बच्चों को यहाँ लाने के बारे में भी सोचा था, लेकिन यहां कोई ढंग का अच्छा शिक्षण संस्थान नहीं है, इसलिए मैंने यह ख्याल छोड़ दिया। इस जिले का अविकसित होना लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी भारी पड़ता है।”

2011 की जनगणना के अनुसार श्रावस्ती की साक्षरता दर देश में सबसे कम, छठी स्थान पर आता है। और यूपी के लिए मानव विकास रिपोर्ट 2008 के अनुसार, इसका राज्य में सबसे कम मानव विकास सूचकांक है, वंचितों के सूचकांक में यह सबसे ऊपर है। जिले में दो विधानसभा सीटें हैं, जिनमें एक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और एक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास है।

जिले में कोई राजमार्ग नहीं है, कोई रेलवे नेटवर्क नहीं है, कोई औद्योगिक सेट-अप नहीं है। यहां कि अधिकांश आबादी खेती-काश्तकारी पर निर्भर है। यह क्षेत्र भी सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर है। सरकारी सहायता प्राप्त और निजी स्कूल खुल गए हैं। तीन डिग्री कॉलेज हैं, जिनमें केवल बीए ही पढ़ाई होती है। इन हालातों के बावजूद कोई भी इस जिले के विकास के बारे में बात नहीं करता है, जहां हर साल दुनिया भर से हजारों बुद्ध तीर्थयात्री आते हैं।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

UP Elections: A Day in the Life of India’s Most Backward District

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