Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

यूपी: भर्तियों में लचर प्रक्रिया अपना रही सरकार, इंतज़ार में परेशान युवा !

"जरा सोचिये एक युवा 25 की उम्र में कोई भर्ती परीक्षा देता है और एक लंबी प्रक्रिया के बाद कहीं जाकर उसे 35 की उम्र हो जाने पर नौकरी मिल पाती है तो उसकी कार्यक्षमता आख़िर कितनी रहेगी?"
protest
शिक्षक भर्ती अभ्यार्थियों का आंदोलन 

अन्‍य देशों की आबादी के बारे में बात हो तो भारत को युवा आबादी वाला देश माना जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक देश की जनसंख्या 2021 तक 136 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया था जिसमें 27.3 प्रतिशत यानी 37.14 करोड़ आबादी युवाओं की है।

और अब बात देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की। क्योंकि बात युवाओं की हो और जिक्र उत्तर प्रदेश का न हो तो चर्चा अधूरी है। भारत को युवा देश बनाने में उत्तर प्रदेश की सबसे अहम भूमिका है। हाल ही में अपनी ताजा रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) ने आंकड़े जारी करते हुए उत्तर प्रदेश को एक "यंग स्टेट" के तौर पर शीर्ष पर रखा। यानी यूपी में युवाओं की आबादी अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। तो ज़ाहिरा तौर पर प्रदेश का भविष्य काफी हद तक युवाओं के हाथ मेंं है। लेकिन युवाओं के भविष्य की बात करने से पहले उनके वर्तमान की बात की जानी चाहिए।

वर्तमान की बात करते करते हम आपको एक बार फिर लखनऊ के सबसे बड़े धरना स्थल, इको गार्डन की ओर ले चलते हैं जहां हम प्रदेश के युवाओं के बदहाल और बेबस वर्तमान की तस्वीर साफ देख सकते हैं। और वो इसलिए कि साल के 365 दिन यहां अक्सर प्रदेश के युवा अपना घर, गांव छोड़ कर, सर्दी, गर्मी बरसात किसी भी विपरीत मौसम में खुले आसमान के नीचे धरना देते मिल जायेंगे। कभी कम, कभी ज्यादा तो कभी सैलाब के रूप में यहां प्रदेश और देश का भविष्य धरना प्रदर्शन करता मिल जायेगा। इन धरने प्रदर्शनों के पीछे वही एकमात्र कारण बेरोजगारी। पर यहां सबसे प्रमुख बात तो यह है कि धरने पर बैठे ये वो युवा होते हैं जिन्होंने सरकारी नौकरी के लिए होने वाली परीक्षाओं तक को पास कर लिया होता है यानी खुद को इस स्तर पर साबित कर लिया होता है कि वो इस पद के काबिल हैं फिर भी एक लंबा समय उनका धरना प्रदर्शन में ही बीत जाता है। क्यों बीत जाता है ये खुद उनकी जबानी जान लेते हैं।

चार साल से अटका पड़ा है अंतिम परिणाम

एकबार फिर हमारे कदम इको गार्डन की ओर बढ़ चले। और जैसी उम्मीद थी वही हुआ। वहां पहुंचे तो देखा दूर पेड़ के नीचे कुछ युवा हाथ में बैनर पकड़े बैठे हैं। बैनर में, UPSSSC, सहायक सांख्यिकी/ शोध अधिकारी (A.S.O) परीक्षा 2019 का अंतिम परिणाम जारी करो, लिखा था। मामला जानने के लिए हम उनके पास पहुंचे। फिलहाल संख्या कम होने का उन्होंने त्यौहारों का कारण बताया और कुछ समय के बाद एक बड़ी संख्या में अभ्यार्थीियों के पुनः जुटान की बात कही।

फोटो : नवंबर को आरक्षण घोटाले के पीड़ित अभ्यर्थियों का आंदोलन
धरने पर बैठे सुल्तानपुर जिले से आये अनूप कुमार पांडे ने बताया कि अधीनस्थ सेवा चयन (UPSSSC) ने साल 2019 के सितंबर में सहायक सांख्यिकी अधिकारी ( assistant Statistical officer) और शोध अधिकारी (research officer) के 896 पदों के लिए भर्ती विज्ञापन निकाला था। विज्ञापन निकलने के करीब ढाई साल बाद, 22 मई 2022 को परीक्षा हुई। उसके बाद उत्तर कुंजी भी जारी हो गई और परीक्षा का अंतिम चरण यानी अभ्यार्थीियों के प्रमाणपत्रों का सत्यापन भी हो गया (doccument verification) लेकिन जब अंतिम परिणाम जारी करने की बात आती है तो केवल आश्वासन के और कुछ नहीं मिलता।

अनूप कहते हैं हर चरण को करवाने के लिए भी अभ्यार्थियों को काफी जद्दोजेहद करनी पड़ी। धरने प्रदर्शन करने पड़े। कई बार आयोग के चक्कर लगाने पड़े तब कहीं जाकर परीक्षा होती है, अंतिम उत्तर कुंजी जारी होती है और DV होता है। वे मायूस भाव से कहते हैं आयोग जाने पर कभी सचिव जी कहते हैं शासन स्तर का दबाव हैं तो कभी बताया जाता है कि कार्य विभाग को रिमाइंडर भेज दिया गया है। इन्हीं बातों के साथ अभ्यार्थियों को वापस भेज दिया जाता है। वे बताते हैं, अखबार में निकल चुका है कि ASO और RO के 896 पदों पर अक्टूबर में भर्ती हो जायेगी लेकिन नवंबर तक बीतने को और अभी अंतिम परिणाम का कुछ पता नहीं।

अनूप कहते हैं संघर्ष करते करते चार साल से ज्यादा हो गया। इस बार दिवाली भी धरना स्थल पर ही मनाई गई। पिछले साल भी दिवाली मायूस बीती और इस साल भी। अभी भी कोई भरोसा नहीं कि नौकरी कब मिलेगी। ऐसे में हम युवाओं के भीतर फ्रस्ट्रेशन आना स्वाभाविक है। घर, परिवार और समाज का दबाव झेलना पड़ता है सो अलग।

आरक्षण घोटाले के पीड़ित अभ्यर्थियों का आंदोलन.

डेढ़ साल से अभ्यार्थी कर रहे धरना

इको गार्डन की एक तरफ़ एक और बैनर बंधा मिला। उस तरफ़ जाना ही हो रहा था कि देखा कुछ छात्र वहां से उठकर धरना स्थल के मुख्य द्वार की ओर जा रहे हैं। उनसे बात करने पर पता चला कि वे 69000 शिक्षक भर्ती घोटाले के पीड़ित अभ्यार्थी हैं। ये घोटाला पिछले दो साल से प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। अपने उस हक़ को पाने के लिए शिक्षक भर्ती परीक्षा पास कर चुके आरक्षण वर्ग के अभ्यार्थी करीब डेढ़ साल से लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। कभी बेसिक शिक्षा विभाग के सामने तो कभी शिक्षा मंत्री के आवास के सामने तो कभी इको गार्डन में, इनका धरना प्रदर्शन जारी है।

छात्रों ने बताया कि सुबह से उन्होंने कुछ नहीं खाया तो कुछ खाने की व्यवस्था के लिए बाहर जा रहे हैं। हमसे बात करने के लिए वे रुक गए। जौनपुर से आये शशि कुमार यादव बताते हैं आंदोलनकर्ताओं ने दिवाली इको गार्डन में ही मनाई बिना रुके, बिना झुके उनका आंदोलन तब तक चलेगा जब तक कि उन्हें न्याय न मिल जाए।

धरना स्थल पर ही दीपावली मनाते आरक्षण घोटाले के पीड़ित अभ्यार्थी सभार enewsindia

किस न्याय की बात ये युवा कर रहे थे। इनका बैनर यह साफ बता रहा था कि यहां तो चयन होने के बावजूद भी सरकार नियुक्ति नहीं दे रही। दरअसल यह मसला 6800 अभ्यार्थियों के शिक्षक भर्ती का है। शशि बताते हैं उत्तर प्रदेश सरकार ने 2018-19में प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 69000 सहायक शिक्षक भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। प्रदेश सरकार ने इस भर्ती प्रक्रिया को पूरा तो किया लेकिन आरक्षित वर्ग (पिछड़ा, दलित) के अभ्यार्थियों की तरफ से आपत्ति दर्ज कराई गई। अभ्यार्थियों का आरोप है कि आरक्षण लागू करने में धांधली की गई है। इस भर्ती के लिए अनारक्षित की कटऑफ 67.11 फीसदी और ओबीसी की कटऑफ 66.73 फीसदी थी। इसको लेकर चयनित अभ्यार्थी धरने पर बैठे हैं। उन्होंने कहा कि इस नियमावली में साफ है कि कोई ओबीसी वर्ग का अभ्यार्थी अगर अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से अधिक नंबर पाता है तो उसे ओबीसी कोटे से नहीं बल्कि अनारक्षित श्रेणी में नौकरी मिलेगी। यानी वह आरक्षण के दायरे में नहीं गिना जाएगा।

बनारस से आये राजकुमार ने बताया कि अभ्यार्थियों द्वारा विरोध दर्ज कराने के बाद राज्य सरकार ने माना कि उससे आरक्षण लागू करने में गड़बड़ी हुई। और इसी गड़बड़ी को मानते हुए राज्य सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 5 जनवरी 2022 को 6800 अभ्यार्थीियों की लिस्ट जारी की लेकिन दो साल होने को आये तब से वह लिस्ट कोर्ट में ही फंसी है। वे कहते हैं मुख्यमंत्री चाहते तो उनका यह मसला बिना देरी किये हल हो सकता है लेकिन ऐसी मंशा नजर नहीं आती। वे कहते है उनकी सुनवाई इसलिए नहीं हो रही क्योंकि ये मामला दलित, पिछड़े समाज के बच्चों का है।

शिक्षक भर्ती के इन अभ्यार्थियों का आरोप है कि यह आरक्षण घोटाला गलती से नहीं बल्कि प्रदेश सरकार द्वारा पूरे सुनियोजित तरीके से किया गया है।

लेकिन वे भी हार मनाने वाले नहीं। संविधान के दायरे में रहते हुए उनका यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक 6800 अभ्यार्थियों की नियुक्ति नहीं हो जाती।

बढ़ती उम्र घटती कार्यक्षमता

"जरा सोचिये एक युवा 25 की उम्र में कोई भर्ती परीक्षा देता है और एक लंबी प्रक्रिया के बाद कहीं जाकर उसे 35 की उम्र हो जाने पर नौकरी मिल पाती है तो उसकी कार्यक्षमता आख़िर कितनी रहेगी?" गाजीपुर से आये RO के अभ्यार्थी सर्वजीत का यह सवाल एकदम वाजिब था। वे कहते हैं संघर्ष, आंदोलन, धरना प्रदर्शन करते करते हम युवा तो अपने जीवन का वह अमूल्य समय गँवा देते हैं जब किसी कार्य को करने के प्रति एक जोश रहता है। फिर उम्र के उस पड़ाव में जाकर नौकरी मिलती है जहां ये विचार घर कर जाता है कि बस किसी तरह काम करना है और घर परिवार पालना है। वे कहते हैं कार्यक्षमता घटने से शासन, प्रशासन, देश सबका ही नुकसान है।

प्रयागराज के आदित्य कुमार ने बताया कि जब उन्होंने ASO/ RO भर्ती परीक्षा का फॉर्म भरा था तो उनकी आयु 25 साल थी और आज 30 पार होने जा रही लेकिन नौकरी कब मिलेगी कुछ निश्चित नहीं, 30 की उम्र में या 35 की उम्र में, तो कार्यक्षमता घटना स्वभाविक है। वे कहते हैं उम्र के इस पड़ाव में कई जिम्मेवारियों का बोझ सिर पर होता तो युवा वाला उत्साह मर जाता है और फिर इतने लंबे पीरियड में इतना आर्थिक, मानसिक, सामाजिक दबाव हम झेल चुके होते हैं कि अगर नौकरी मिल भी जाए तो नौकरी पाने वाला कितना अपना बेहतर output दे पायेगा कहना मुश्किल है।

धरने में इटावा से आये पंकज वर्मा कहते हैं वे 36 साल के हो गए हैं। उनकी शादी भी हो चुकी है और एक बच्ची भी है। इस नौकरी (A S O/ R O) पर उनकी बहुत उम्मीदें टिकी हैं। वे बताते हैं नौकरी के अभाव में वे अभी ट्यूशन पढ़ा रहे हैं लेकिन उससे गुजारा मुश्किल होता जा रहा है। रुआंसे भाव से वे कहते हैं संघर्ष इतना लंबा होता जा रहा है कि उम्मीदें टूटती जा रही हैं।
शिक्षक भर्ती मामले के अभ्यार्थी औरेया से आये अनूप सवाल उठाते हुए कहते हैं अगर एक शिक्षक अपना अधिकार पाने के लिए इतने लंबे संघर्ष में ही उलझा रहेगा तो आख़िर उसकी शिक्षण क्षमता कितनी रहेगी और वे किस मनोभाव से पढ़ाएंगे।

वे कहते हैं जो उम्र कमाने की है वो उम्र सड़कों पर धरना प्रदर्शनों में बीत रही है तो आख़िर इसकी जवाबदेही किसकी है। इस बेरोजगारी के लिए वे जिम्मेदार नहीं फिर भी हर रोज परिवार, समाज की प्रताडना झेलनी पड़ती है।

हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि ''ये युवा पूरी निष्ठा और ऊर्जा के साथ मिलकर कार्य करेंगे तो उत्तर प्रदेश को कोई ‘बीमारू’ नहीं रख सकता है।” उन्होंने कहा, ''हम सब मिलकर उत्तर प्रदेश को एक समर्थ और समृद्ध राज्य बनाएंगे।”

बेशक उनकी सोच को हम एक बेहतर सोच कह सकते हैं लेकिन हमारे समक्ष सवाल यह है कि क्या प्रदेश के युवाओं में निष्ठा और ऊर्जा की कमी है? एक छात्र 25 की उम्र में भर्ती परीक्षा का फॉर्म भरता है और उस नौकरी को पाने के लिए वे संघर्ष करते करते 35 में पहुंच जाता है तो ऊर्जा कहां बचेगी।

जरा याद कीजिए इसी प्रदेश में 2016 में कनिष्ठ सहायक भर्ती का फॉर्म निकला था और एक लंबी जद्दोजहद के बाद तब कहीं जाकर 2023 में चयनित उम्मीदवारों की बहाली हो पाती है। जबकि हद तो यह है कि यह मामला कोर्ट में भी नहीं फंसा था तब भी आठ साल लग गए। और हम 12460 शिक्षक भर्ती मामले को भी कैसे भूल जाए जो 2016 की भर्ती थी। इस भर्ती में करीब 6000 सफल उम्मीदवार नौकरी से वंचित रह गए। एक सरकार के जाने दूसरी के आने, उठापटक, राजनैतिक खींचतान, कोर्ट की तारीखों पर तारीख और चयनितों के रात दिन आंदोलन, संघर्ष के बाद तब कहीं जाकर अभी कुछ दिन पहले ही सफल शिक्षकों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो पाया। हालांकि नियुक्ति पत्र तो अब भी नहीं मिल पाया है।

प्रदेश में ऐसे नौकरी भर्ती के कई उदाहरण है जहां युवाओं के जीवन का एक बेहतरीन और अमूल्य समय धरना प्रदर्शन में ही बीत जा रहा है। तो उनके इतने लंबे संघर्ष के बाद, क्या हम यह उम्मीद रख सकते हैं कि उनका उत्साह और ऊर्जा बना रहे। सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, दबाव झेल रहे इन युवाओं के लिए तसल्ली के दो शब्द भी भारी लगने लगे हैं। इसमें दो राय नहीं कि एक स्वस्थ्य और सशक्त देश, प्रदेश एवं समाज की नींव युवाओं के मजबूत कंधों पर ही टिकी है। लेकिन हमारी यह परिकल्पना तभी साकार होगी जब हम अपने देश के युवाओं को खुद बीमार होने से बचा लें।

(लेखिका लखनऊ स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest