चिंता: योगी सरकार की तरफ़ से पिछले 15 सालों में गेहूं की सबसे कम सरकारी ख़रीद
उत्तर प्रदेश में इस साल MSP पर सरकारी खरीद 1 जुलाई तक 3.35 लाख मीट्रिक टन रही हैं, जो कि लक्ष्य का 5.59 फ़ीसदी है। जबकि यूपी राज्य सरकार ने इस साल 60 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य तय किया था। राज्य में 40 जिलों में खरीद 5 फ़ीसदी से कम रही है और 21 जिले तो ऐसे हैं जिनमे लक्ष्य के सापेक्ष एक प्रतिशत भी गेहूं नहीं खरीदा गया है।
उत्तर प्रदेश में इस साल सरकारी खरीद पिछले 15 सालों में सबसे न्यूनतम रही है, इससे पहले वर्ष वर्ष 2006-07 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 49 हजार टन गेहूं खरीदा गया था। यूपी में गेहूं खरीद 1 अप्रैल से 15 जून निर्धारित कि गयी थी। खरीद कम होने पर अंतिम तिथि को 30 जून तक भी बढ़ाया गया परन्तु इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
पिछले वर्षों में भाजपा सरकार के शासन में आने पर जब सरकारी खरीद ज्यादा रही तब राज्य सरकार ने इसका खूब क्रेडिट लिया और अपनी पीठ खूब थपथपाई परन्तु अब खरीद में रिकॉर्ड गिरावट हुई है तो अंतर्राष्टीय परिस्थियों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लिया हैं।
गेहूं कि ग्लोबल सियासत
रूस- यूक्रेन युद्ध के चलते गेहूं की ग्लोबल सियासत का सिलसिला शुरू हो गया था। रूस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश है, वहीं रूस और यूक्रेन दोनों मिलकर दुनिया का करीब 25 प्रतिशत गेहूं निर्यात करते हैं, परन्तु युद्ध और आर्थिक प्रतिबंधों के चलते गेहूं की आपूर्ति दुनियाभर में बाधित हुई और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में करीब 40 फ़ीसदी तक का इजाफा हुआ, जिसके चलते दुनिया के तमाम देशों में खाद्य संकट की स्थिति बन गयी, वही इस बीच दुनिया की नजर दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश भारत पर टिक गयी। वहीं भारत में अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कीमतों के बढ़ने और देश में पैदावार का अनुमान घटने से सरकार के घरेलू स्तर पर खाद्य सुरक्षा की चिंता के चलते, गेहूं और आटे की कीमते घरेलू बाजार में बढ़ने लगी तो महंगाई को कंट्रोल करने के लिए 14 मई को भारत सरकार ने गेहूं के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया।
हालाँकि केंद्र सरकार ने बैन से पहले हुई डील को पूरा करने और साथ ही साथ पडोसी देशों और अन्य विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करवाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई और खासकर उन देशों को गेहूं निर्यात करने की बात कही जहाँ ग्लोबल मार्किट में गेहूं की बढ़ती कीमतों का विपरीत असर हुआ।
गेहूं की सरकारी ख़रीद
परन्तु सरकार के निर्यात पर रोक लगाने के बावजूद सरकारी खरीद में बढ़ोतरी नहीं हुईं, भारतीय खाद्य निगम के द्वारा उपलब्ध करवाए आंकड़ों के मुताबिक इस साल सभी राज्यों से 188 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई जबकि पिछले साल सरकारी खरीद 433 लाख मीट्रिक टन रही। गेहूं खरीद की यही स्थिति देश के सभी राज्यों में हैं बल्कि उत्तर प्रदेश में सरकारी गेहूं खरीद में भारी गिरावट हुई है, उत्तर प्रदेश महज़ 3.35 लाख मीट्रिक खरीद टन हुई जोकि पिछले साल 56 लाख मेट्रिक टन थी। उत्तर प्रदेश में इस साल सरकारी खरीद पिछले 15 सालों में सबसे न्यूनतम रही है, इससे पहले वर्ष वर्ष 2006-07 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 49 हजार टन गेहूं खरीदा गया था।
स्रोत- भारतीय खाद्य निगम
यूपी में 40 जिले ऐसे हैं जिनमे गेहूं खरीद लक्ष्य के सापेक्ष 5 प्रतिशत से भी कम खरीद हुई है और 21 ऐसे जिले है जिनमे लक्ष्य के सापेक्ष 1 फ़ीसदी भी खरीद नहीं हुईं है, जबकि इन जिलों में पिछले वर्ष रिकॉर्ड खरीद हुई थी। इसमें आगरा, मथुरा, बदायूं, मुरादाबाद, एटा, रामपुर, इटावा, जालौन, फ़िरोज़ाबाद, ललितपुर, बुलंदशहर, खीरी, संभल, कन्नौज, पीलीभीत, अमरोहा, हाथरस, मैनपुरी, कानपूर, कासगंज शामिल हैं, और साल सबसे अधिक खरीद वाराणसी, मऊ, मिर्जापुर सोनभद्र जिले में में हुई परन्तु इन जिलों में भी खरीद पिछले वर्ष से काफी कम है। सभी जिलों में खरीद स्थिति आप यहां इस लिंक पर देख हैं - यूपी में गेहूं जिलेवार स्थिति
यूपी सरकार ने खरीद बढ़ाने के लिए मोबाइल क्रय केंद्रों के जरिये जाकर किसानों से गेहूं खरीदने की कोशिश की, उधर केंद्र सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी गई, राज्य सरकार द्वारा खरीद की अंतिम तिथि 15 जून से बढाकर 30 जून कर दी गई। परन्तु राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से उठाये गए इन कदमों का प्रभाव प्रदेश की गेहूं खरीद पर नहीं पड़ा।
जबकि मुख्य कारक, सही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा ध्यान ही नहीं दिया गया, पिछले वर्ष जब बाजार भाव नीचे था तो किसानों ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद (जटिल रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया, ऑनलाइन टोकन इत्यादि) सरकारी क्रय केंद्रों का रुख किया था। करीब 13 लाख किसानों ने सरकारी क्रय केंद्रों पर 56 लाख मीट्रिक टन गेहूं बेचा था वही इस बार 1 जुलाई तक केवल 87 हजार किसान ही क्रय केंद्रों तक पहुंचे हैं।
फोटो क्रेडिट - NDTV
आपको यहां बता दे कि खाद्य एवं रसद विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 29 जून तक मंडी परिषद के मुताबिक पूरे उत्तर प्रदेश में क्रय केंद्रों की खरीद को छोड़कर 20.50 लाख मेट्रिक टन गेहूं की आवक हुई। यह आवक पिछले साल इसी तिथि तक 2.28 लाख मीट्रिक टन थी, जो यह दिखाता है कि किसान ने अपना गेहूं बड़े स्तर पर व्यापारियों, निजी कंपनियों और आढ़तियों को बेचा है | इसके साथ ही कुछ मिडिया रिपोर्ट यह दावा करती है कि कंपनियों के एजेंट द्वारा किसानों से सीधे जाकर गेहूं की खरीद की है और बड़ा मुनाफा कमाया है
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
गेहूं खरीद की इस पूरी प्रक्रिया में जो सबसे महत्वपूर्ण कड़ी, जिसको नजरअंदाज किया जा रहा हैं, वो है सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), जो कि सरकारी खरीद में हुई भारी गिरावट का मुख्य कारण है।
केंद्र सरकार द्वारा इस साल गेहूं की खरीद के लिए 2,015 रुपये MSP निर्धारित किया गया था जो कि पिछले साल से महज़ 40 रुपये ही अधिक था, जबकि दूसरी ओर किसान की लागत में खासी बढ़ोतरी हुई, जिसके चलते गेहूं के MSP के लिए किसान 2,500 से 2,700 रुपयों की मांग कर रहे थे, जिसको सरकार द्वारा पूरी तरह नजरअंदाज किया गया।
यदि केंद्र सरकार द्वारा गेहूं के MSP के निर्धारण में किसान की सही लागत को शामिल किया जाता तो किसान ख़ुशी-ख़ुशी सरकारी क्रय केंद्रों का रुख करता क्योंकि खुले बाजार में भी किसान बहुत अधिक मूल्य पर अपनी फसल को नहीं बेच रहा हैं बल्कि खुले बाजार में अधिकतम मूल्य 2,200 रुपये प्रति क्विंटल ही है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण में लागत पर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की विपणन मौसम 2022-23 की “रबी फसलों की मूल्य नीति” रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि MSP 2735 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए। जबकि निर्धारित MSP, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के सुझाव से 720 रुपये कम हैं।
इस विषय पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान नेता धर्मेंद्र मालिक कहते हैं कि सही MSP ना मिलने के कारण किसान ने खुले बाजार का रुख किया है क्योंकि किसान खुले बाजार में भी 2,200 रुपये प्रति कुंतल में ही गेहूं को बेच रहा हैं, MSP कम होने का सबसे अधिक फायदा निजी कंपनियों, निर्यातकों, आढ़तियों और व्यापारियों द्वारा उठाया गया है।
वो आगे कहते हैं कि किसान अकेला देश कि खाद्य सुरक्षा कि चिंता नहीं कर सकता, बल्कि सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा की किसान को उसकी लागत के अनुसार सही मूल्य मिले और देश की खाद्य सुरक्षा भी बेहतर रहे, इसलिए जरुरी है कि देश में MSP कानून लागू हो, इसके साथ ही वो निजी कंपनियों के बड़े स्तर पर खरीद को लेकर कहते हैं कि ऐसा तंत्र भी होना चाहिए जो यह देख सके कि कही कंपनियां स्टॉक होल्डिंग तो नहीं कर रही है।
1,170 क्रय केंद्रों से ख़रीद नहीं हुई
उत्तर प्रदेश गेहूं खरीद की प्रक्रिया के लिए 10 एजेंसियों के 6,000 क्रय केंद्र से गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया था, जिसके सापेक्ष 4,830 क्रय केंद्रों से ही खरीद हुई यानी 1,170 क्रय केंद्रों से खरीद नहीं हुईं, सरकार द्वारा निर्धारित किसी भी एजेंसी द्वारा लक्ष्य के मुताबिक खरीद नहीं की हैं, कोई भी एजेंसी अपने लक्ष्य के सापेक्ष 10 फ़ीसदी भी खरीद नहीं कर पायी |
इस बारे में उत्तर प्रदेश सरकार का खाद्य रसद विभाग क्या कहना है?
गेहूं खरीद में आयी गिरावट को लेकर हमने उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य एवं रसद विभाग में अपर खाद्य आयुक्त (विपणन) अरुण कुमार सिंह से बात की। जिसमें उन्होंने बताया कि बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकारी MSP से अधिक रहा है, जिसके कारण किसानों द्वारा गेहूं, सरकारी क्रय केंद्रों पर ना बेचकर खुले बाजार में बेचा गया। और ऊँचे बाजार भाव को लेकर उन्होंने कहा कि यूक्रेन और रूस में चल रहे युद्ध के कारण उत्पन्न हुई स्थितियों के कारण गेहूं की मांग में बढ़ोत्तरी हुई जिसके चलते बाजार का भाव ऊपर रहा है।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस वर्ष उत्तर प्रदेश में अनुमानित उत्पादन 15 से 20 प्रतिशत कम रहा है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा MSP निर्धारण किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, और MSP का फायदा किसानों को मिल रहा है और सरकार अपने उद्देश्य में सफल रही है।
इस वर्ष सरकारी खरीद कम होने के कारण खाद्य सुरक्षा पर पड़ने वाले सवाल पर अरुण सिंह ने कहा कि सरकार के पास पुराना स्टॉक हैं और इस वर्ष जो खरीद हुई हैं वह उसके लिए काफी हैं, इसलिए कम खरीद का प्रभाव खाद्य सुरक्षा पर नहीं पड़ेगा।
गेहूं खरीद पर अखिल भारतीय किसान सभा से जुड़े सुरेंद्र सिंह बताते है कि किसान आंदोलन के दौरान सभी किसान संगठन लगातार मांग कर रहे थे कि MSP स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर तय होना चाहिए, जिसमे एमएसपी लागत का डेढ़ गुना होता, परन्तु सरकार ने उसको नहीं करके, केंद्र सरकार ने एमएसपी 2,015 रुपये घोषित किया। साथ ही वो आगे बताते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण गेहूं की मांग-आपूर्ति का प्रभाव यूपी में भी देखने को मिला। सरकार ने एक और तो कम एमएसपी निर्धारित किया, वहीं दूसरी और निजी कंपनियों को गेहूं खरीद में खुली छूट दे दी। सरकार को चाहिए था कि सरकारी खरीद बढ़ाने के लिए प्रति क्विंटल 500 रुपये अतिरिक्त बोनस के रूप में दे, जिससे एमएसपी 2,500 रुपये से ऊपर चला जाये और गेहूं सरकारी क्रय केंद्रों पर पहुंचे।
परन्तु सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया क्योकि सरकार का लक्ष्य हैं कि अपने एमएसपी से निजी कंपनियों को लाभ देना। निजी कंपनियों ने महज 2,100 से 2,200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सब गेहूं खरीद लिया है।
वो आगे कहते हैं कि खरीद की इस प्रक्रिया में एकतरफ तो किसानों से कम कीमत पर खरीदा, वहीं दूसरी और निजी कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बड़ा मुनाफा कमाया है। जिसके चलते उपभोक्ता को गेहूं और आटा महंगा खरीदना पड़ रहा है, जो आटा सामान्य उपभोक्ता 25 से 26 रुपये में खरीदता था वो अब 35 से 40 रुपये पहुंच गया है।
इसमें सबसे ज्यादा नुकसान उस उपभोक्ता का है जो रोजाना खरीदता है और रोजाना खाता है।आपको बता दें कि विभाग के अनुसार हर साल अमूमन उत्तर प्रदेश में 350 लाख मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन होता है, जिसमें से घरेलू खपत को निकाल कर करीब 100 लाख मीट्रिक टन सरप्लस होता है जो कि बाजार में बिकने के लिए आता है।
पिछले सालों में ऐसा होता था कि एक हिस्सा सरकारी खरीद में जाता था और दूसरा खुले बाजार में। परन्तु इस बार सरकारी खरीद में जो भारी गिरावट हुई, उसमें खाद्य सुरक्षा का मसला जुड़ा है और दूसरा की बड़ी कंपनियों द्वारा स्टॉक होल्डिंग की समस्या से जुड़ा हैं। दोनों ही बातों का सीधा प्रभाव आमजन पर पड़ सकता हैं इसलिए केंद्र एवं राज्य सरकार को इसको गंभीरता से लेना चाहिए और एमएसपी निर्धारण एवं खरीद प्रक्रिया जुड़ी बातों में किसान हित और आम उपभोक्ता के हितों रखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
(लेखक दून यूनिवर्सिटी में शोधार्थी हैं।)
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