कौन परिपक्व हुआ– आकाश आनंद या मायावती!
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने एक बार फिर अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। उन्हें दोबारा बहुजन समाज पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक भी बना दिया गया है। एक दिन पहले ही आकाश को उत्तराखंड उपचुनाव के लिए पार्टी का स्टार प्रचारक बनाया गया।
23-06-2024-BSP PRESS NOTE--ALL INDIA MEETING pic.twitter.com/jdEcuzqfRH
— Mayawati (@Mayawati) June 23, 2024
क्या यह मुमकिन है कि कोई ‘बच्चा’ डेढ़ महीने में ही ‘बड़ा’ हो जाए। अपरिक्व से परिपक्व हो जाए। immature से mature हो जाए। लेकिन यह कमाल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में हुआ है।
लगभग 47 दिन पहले बीच लोकसभा चुनाव के दौरान जिन आकाश आनंद को राजनीतिक तौर पर अपरिपक्व बताते हुए बसपा की राजनीति और चुनाव प्रचार से दूर कर दिया गया था, उन्हीं आकाश आनंद को अब चुनाव में ऐतिहासिक हार के बाद एक बार फिर बसपा की राजनीति के केंद्र में लाया जा रहा है।
तो राजनीतिक तौर पर समझ किसे आई। मायावती को या आकाश आनंद को!
आपको याद होगा कि लोकसभा चुनाव-2024 के तीसरे चरण यानी 7 मई के तुरंत बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और स्टार प्रचारक आकाश आनंद को यह कहते हुए पार्टी की ज़िम्मेदारियों से हटा दिया था कि वे अभी परिपक्व नहीं हैं।
X हैंडल पर अपने ट्विट में मायावती ने लिखा था कि–
"विदित है कि बीएसपी एक पार्टी के साथ ही बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान तथा सामाजिक परिवर्तन का भी मूवमेन्ट है जिसके लिए मान्य. श्री कांशीराम जी व मैंने ख़ुद भी अपनी पूरी ज़िन्दगी समर्पित की है और इसे गति देने के लिए नई पीढ़ी को भी तैयार किया जा रहा है.’’
इसी क्रम में पार्टी में, अन्य लोगों को आगे बढ़ाने के साथ ही, श्री आकाश आनन्द को नेशनल कोऑर्डिनेटर व अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, किन्तु पार्टी व मूवमेन्ट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता (maturity) आने तक अभी उन्हें इन दोनों अहम ज़िम्मेदारियों से अलग किया जा रहा है. जबकि इनके पिता श्री आनन्द कुमार पार्टी व मूवमेन्ट में अपनी ज़िम्मेदारी पहले की तरह ही निभाते रहेंगे.''
2. इसी क्रम में पार्टी में, अन्य लोगों को आगे बढ़ाने के साथ ही, श्री आकाश आनन्द को नेशनल कोओर्डिनेटर व अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, किन्तु पार्टी व मूवमेन्ट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता (maturity) आने तक अभी उन्हें इन दोनों अहम जिम्मेदारियों से अलग किया जा रहा है।
— Mayawati (@Mayawati) May 7, 2024
दरअसल आकाश आनंद ने लोकसभा चुनाव के दौरान काफी आक्रमक तेवर अपनाएं थे। ख़ासतौर से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के ख़िलाफ़।
ऐसे ही एक चुनावी भाषण में उन्होंने भाजपा को आतंकवादी पार्टी तक बता दिया था, जिसे लेकर उनके ऊपर एफआईआर भी दर्ज हो गई थी।
28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में सीतापुर की रैली में आकाश आनंद ने योगी आदित्यनाथ की सरकार की 'तालिबान से तुलना' करते हुए उसे ‘आतंकवादियों’ की सरकार कहा था। इसके अलावा उन्होंने लोगों से कहा था कि वो ऐसी सरकार को जूतों से जवाब दे।
इन रैलियों में आक्रामक भाषणों की वजह से उनके ख़िलाफ़ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में दो केस दर्ज किए गए थे। इसके बाद उनकी रैलियों को रद्द कर दिया गया।
हालांकि राजनीति के जानकारों का कहना था कि आकाश आनंद के तेवरों की वजह से बसपा में एक नई जान आ गई है।
लेकिन मायावती को ऐसा नहीं लगा। बेहद बेबाक और शानदार राजनीति करने वालीं मायावती लंबे समय से चुप्पी या समझौते की राजनीति कर रहीं थी। इसे डर या अवसरवाद की राजनीति भी कहा जा रहा था। लंबे समय से साफ़ दिख रहा था कि मायावती ने बीजेपी से अघोषित समझौता कर लिया है। वे हर मुद्दे पर मोदी सरकार से ज़्यादा विपक्ष पर ही हमलावर नज़र आ रहीं थी। और ऐसा माहौल बना कि उन्हें बीजेपी की बी टीम कहा जाने लगा।
शायद उन्हें विश्वास था कि कुछ भी हो उनका कोर दलित वोट उनसे जुड़ा है और जुड़ा रहेगा। और बड़ी संख्या में वे मुसलमानों को टिकट देकर इस गठजोड़ के जरिये कुछ सीटें हासिल कर अपनी राजनीति और बारगेन करती रहेंगी। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बसपा और मायावती को तगड़ा झटका दिया।
बसपा जो 2019 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके उत्तर प्रदेश (यूपी) में 10 सीटें जीतने में कामयाब हुई। इस बार उसे कोई सीट नहीं मिली। यही नहीं ज़ीरो सीट के साथ उसका वोट शेयर भी कम हो गया। इन चुनावों में उत्तर प्रदेश में बसपा का वोट शेयर 19 प्रतिशत से गिरकर 10 प्रतिशत के आसपास रह गया।
मायावती नहीं समझ पाईं कि लोकतंत्र और संविधान बचाने के कोर मुद्दे के साथ जिस तरह का चुनाव था उसमें विपक्षी गठबंधन से अलग रहने का उनका फ़ैसला भी उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ। यही वजह थी कि राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि लोकतंत्र और संविधान के सवाल पर इस बार मुसलमानों के साथ बड़ी संख्या में दलित वोटर भी इंडिया गठबंधन की ओर गया।
लोकसभा चुनाव में मिली बुरी हार से मायावती को शायद समझ आया हो कि अब यह बीच के रास्ते वाली राजनीति नहीं चलेगी। अब यह दुश्मन भी लगते रहें और दोस्त भी बने रहें कि राजनीति नहीं चलेगी। लेकिन अभी भी इसमें शक है कि मायावती इस जनादेश का पूरा मतलब समझ पा रही हैं। क्योंकि उन्होंने अपनी हार का ठीकरा अपनी राजनीति और रणनीति की बजाय फिर मुसलमानों के सर फोड़ दिया है।
यूपी की नगीना लोकसभा सीट का चुनाव परिणाम भी अपने आप में काफी कुछ कहता है। यह केवल एक सीट का मामला नहीं था बल्कि उसके आगे की बात थी। नगीना में जिस तरह युवा दलित नेता और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर आज़ाद को जीत मिली और बसपा जीती हुई सीट न केवल हारी बल्कि पहले नंबर से खिसक कर चौथे नंबर पर पहुंच गई, उसका सबक़ भी साफ़ था कि अब बसपा को नये तेवर के साथ अपनी राजनीति करनी होगी। और युवाओं को आगे लाना ही होगा।
कुल मिलाकर यह साफ़ हो गया कि आपको एक क्लियर स्टैंड लेना होगा। यानी बल्ली सिंह चीमा के शब्दों में “तय करो किस ओर हो तुम…”
फ़िलहाल देखना होगा कि मायावती के इन कुछ नये कदमों से बसपा की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है। हालांकि मोदी या एनडीए सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है और बसपा का एक भी सांसद संसद में नहीं है। यानी राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा में बसपा की तरफ़ से आवाज़ उठाने वाला, सवाल पूछने वाला एक भी सांसद नहीं है।
ख़ैर राजनीति में संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं। अब एक बार फिर देश के कई राज्यों और ख़ासकर यूपी में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में बसपा क्या कुछ कर पाती है यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)
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