बघेल के आश्वासन पर भी विधवाओं की नहीं हुई नियुक्ति, प्रदर्शन को मजबूर
छत्तीसगढ़ में अनुकंपा नियुक्ति की मांग को लेकर एक बार फिर दिवंगत शिक्षाकर्मियों की विधवाएं सड़क पर प्रदर्शन करने को मजबूर हो गई हैं। बीते सोमवार 25 सितंबर से ये महिलाएं राजधानी रायपुर के धरना स्थल तूता में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। इनका कहना है कि आश्वासन के बावजूद सरकार द्वारा इनकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसके चलते इन्हें मजबूरन धरने पर दोबारा लौटना पड़ा है।
बता दें कि इससे पहले ये महिलाएं करीब नौ महीने तक धरने पर बैठी थीं, जिसे बीते महीने 8 अगस्त को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आश्वासन के बाद समाप्त कर दिया गया था। लेकिन अब लगभग 50 दिन पूरे होने को हैं और इस मामले में सरकार की कोई पहल सामने नहीं आई है, इसलिए ये महिलाएं एक बार फिर अपने घरों को छोड़कर प्रदर्शन स्थल पर एक नई लड़ाई लड़ने को तैयार हैं।
क्या है पूरा मामला?
अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ छत्तीसगढ़ के बैनर तले जारी इस आंदोलन में बीते कई सालों से संघर्ष कर रही सैकड़ों महिलाएं एकत्रित हुई हैं। ये सभी पंचायत स्तर के उन शिक्षाकर्मियों की पत्नियां हैं जिनकी हादसे या बीमारी की वजह से मौत हो गई है। इनका कहना है कि घर में कमाने वाले व्यक्ति की मौत के बाद नियमों के मुताबिक परिवार में किसी एक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति मिलती है। सरकार ने इस बात का इन्हें कई बार आश्वासन भी दिया है, लेकिन बीते 5 सालों से इन्हें कोई नियुक्ति नहीं, कोई सहायता राशि नहीं मिली। जिसके चलते इनका परिवार आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहा है।
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ में साल 2018 से पहले स्कूलों में दो तरह के शिक्षक काम कर रहे थे। पहले स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्त नियमित शिक्षक। दूसरे पंचायत और नगरीय निकायों की ओर से नियुक्त शिक्षाकर्मी। शिक्षाकर्मी नियुक्ति नियमित नहीं थी और ये पैरा शिक्षक का पद था। इनका वेतन भी कम था और इन्हें राज्यकर्मी भी नहीं माना जाता था। 2019-20 में इनको स्कूल शिक्षा विभाग में नियमित कर दिया गया।
सरकार केवल मौखिक आश्वासन देती है, करती कुछ नहीं
संगठन की उपाध्यक्ष अश्विनी सोनवानी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मुख्यमंत्री से उनकी मुलाकात सफल रही थी और उन्हें उम्मीद भी थी कि इस बार सरकार उनकी मांगों को जरूर मान लेगी। लेकिन लगभग 50 दिन पूरे होने को हैं और इस संबंध में कोई कदम सरकार ने नहीं उठाया है। इसलिए महिलाओं ने एक बार फिर संघर्ष का रास्ता चुना है।
अश्विनी कहती हैं कि हर बार सरकार उन्हें मौखिक आश्वासन देकर टरका देती है। प्रदेश की 1200 महिलाओं को अनुकंपा नियुक्ति कैसे और किन विभागों में दी जाएगी, इस पर कभी कोई चर्चा नहीं होती जिसका इंतजार इन सभी महिलाओं को वर्षों से है। और यही कारण है कि सरकार की मंशा पर शक बढ़ने लगता है। क्योंकि इन सभी महिलाओं को रोज़गार की बहुत जरूरत है। इनके घर के हालात ठीक नहीं हैं, पैसों की तंगी है और परिवार में न तो कमाने वाला कोई है और न ही खाने के पर्याप्त साधन हैं।
बीते पांच सालों से जारी है संघर्ष
मालूम हो कि राज्य में शिक्षाकर्मियों की विधवाएं अनुकंपा नियुक्ति के लिए संघर्ष बीते पांच साल से कर रही हैं। इसमें ज्यादातर महिलाएं 12वीं पास हैं, किसी ने बीएड भी किया है। पहले इन्हें टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट, D.ED के बिना अनुकंपा नियुक्ति नहीं दिए जाने का नियम बताया जा रहा था। जिसका इन महिलाओं ने ये कहते हुए विरोध किया था कि जिनके पास घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं है वो पढ़ाई और डिग्री कहां से हासिल करेंगी।
अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ सालों से ये मांग कर रहा है कि सभी प्रदर्शनकारी महिलाओं को उनकी योग्यता अनुसार नौकरी मिले और यदि फिर भी कोई कमी है, तो सरकार नौकरी देकर उन्हें प्रशिक्षण या डिग्री हासिल के लिए समय दे। क्योंकि सरकार ने खुद पिछले 50 दिनों के प्रदर्शन पर कमेटी बनाकर इन महिलाओं को नियुक्ति का आश्वासन दिया था।
गौरतलब है कि अपना पिछला प्रदर्शन खत्म करने से पहले इन महिलाओं ने करीब नौ महीने ठंड, धूप, बारिश और अन्य परेशानियां बर्दाश्त की थीं। इनके साथ-साथ इनके परिवार ने भी कई दिक्कतों का सामना किया। अब एक बार फिर ये महिलाएं अपनी हिम्मत को जोड़ते हुए प्रदर्शन की राह पर निकल पड़ी हैं।
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