महिला आरक्षण विधेयक I.N.D.I.A. गठबंधन के लिए एक छिपा हुआ अवसर है
INDIA गठबंधन के नेता शुक्रवार, 1 सितंबर, 2023 को मुंबई में अपनी बैठक से पहले एक समूह तस्वीर के लिए पोज़ देते हुए। छवि सौजन्य: पीटीआई
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल के भीतर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की महिलाओं के लिए आरक्षण के बहिष्कार को उज़ागर करके, लगता है कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश और बिहार में ओबीसी-आधारित समाजवादी पार्टियों के साथ सामाजिक न्याय की राजनीति को लेकर आम सहमति पर पहुंच गई है। जब कांग्रेस केंद्र में सत्ता में थी, तो ये लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली मंडल-युग की पार्टियाँ थीं, जिन्होंने महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में कानून लाने में कांग्रेस पार्टी की कोशिशों में बाधा डाली थी, जिसका आधार मुख्यत यह था कि आरक्षण गैर-प्रमुख जाति समुदायों यानि पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व को पूरा नहीं करता था।
मोदी सरकार द्वारा पेश किया गया संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023-नारी शक्ति वंदन अधिनियम- बुधवार को लोकसभा में लगभग सर्वसम्मति से पारित हो गया। एआईएमआईएम के पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सहित दो सांसदों को छोड़कर, अन्य सभी पार्टियों के सभी सांसदों ने विधेयक का समर्थन किया - 454 वोट पक्ष में और दो मत विपक्ष में पड़े। ओवैसी ने तर्क दिया कि उनकी पार्टी ने विधेयक के खिलाफ मतदान इसलिए किया क्योंकि इसमें ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं के लिए कोटा के प्रावधान शामिल नहीं था।
महिलाओं के लिए आरक्षित 33 प्रतिशत कोटा के भीतर, एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। हालाँकि, ओबीसी महिलाओं के लिए कोई परिभाषित कोटा नहीं होगा। ऐसा करके, भाजपा सरकार लोकसभा और विधानसभाओं में एससी और एसटी को कोटा प्रदान करने और बाकी सीटें सभी के लिए खुली रखने के मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों पर अड़ी हुई है। शायद, भाजपा ने हिंदू राजनीतिक एकता के अपने हिंदुत्व एजेंडे को बरकरार रखने के लिए, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों में ओबीसी आरक्षण की कोई नई श्रेणी शुरू नहीं करने का फैसला किया है।
सत्तारूढ़ दल को पहले से ही देश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के उप-वर्गीकरण को लागू करने और कई प्रमुख समुदायों द्वारा ओबीसी दर्जे की बढ़ती मांगों को संभालने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, मराठा आरक्षण को लेकर सबसे ताज़ा और जोरदार बहस महाराष्ट्र में शुरू हो गई है।
महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने में वक़्त की अनिश्चितता और ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा के भीतर परिभाषित कोटा के बहिष्कार ने कांग्रेस पार्टी और उसके मंडल राजनीतिक सहयोगियों को पिछड़े समुदायों के हितों को एक साझा चिंता व्यक्त करने का मौका दे दिया है। विधेयक को लागू करना नई जनगणना के प्रकाशन और उसके बाद चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर निर्भर करता है। यह जल्द से जल्द 2029 के लोकसभा चुनाव में ही संभव हो सकेगा।
महिला आरक्षण के भीतर ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं के लिए एक अलग कोटा शामिल करने की आवाज उठाने से कांग्रेस और उसके INDIA ब्लॉक के सहयोगियों को आगामी चुनाव में सामाजिक न्याय की कहानी को आगे बढ़ाने और उसे विस्तार करने के लिए एक नई प्रेरणा मिली है।
सोनिया गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस ने महिला आरक्षण के मुद्दे पर अपने दृष्टिकोण में एक नाटकीय बदलाव दिखाया है। बुधवार को लोकसभा में इस विषय पर बहस शुरू करने वाली श्रीमति गांधी ने मांग की कि विधेयक को तुरंत लागू किया जाए, लेकिन इसके साथ ही सरकार को जाति जनगणना भी करानी चाहिए और एससी, एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए।
उनके बेटे और केरल से पार्टी सांसद राहुल गांधी ने ओबीसी महिलाओं के लिए एक परिभाषित कोटा की जरूरत पर उनके विचारों को दोहराया। “मुझे लगता है कि भारत की महिलाओं के एक बड़े हिस्से को इस आरक्षण तक पहुंच मिलनी चाहिए, राहुल ने देश में ओबीसी समुदाय के संख्यात्मक महत्व को पहचानते हुए कहा कि वे इस विधेयक से गायब है।''
विपक्षी दलों ने जनगणना और परिसीमन खंडों का भी लाभ उठाया, जिसने विधेयक को जाति जनगणना के प्रश्न की ओर ले जाकर इसकी वास्तविक कार्यान्वयन तिथि पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। यदि महिला आरक्षण अगली जनगणना के नतीजों के बाद ही लागू किया जाएगा, तो इसके साथ जाति जनगणना क्यों नहीं की जाएगी और ओबीसी समुदाय के लिए कोटा के भीतर कोटा निर्धारित क्यों नहीं जाएगा, उन्होंने इस पर जोरदार तर्क दिया।
राहुल गांधी ने मांग की कि सरकार जल्द से जल्द जाति जनगणना कराए, क्योंकि ओबीसी, एससी और आदिवासियों की वास्तविक आबादी का पता लगाने का यही एकमात्र तरीका है। उन्होंने भाजपा पर जाति जनगणना पर चर्चा से बचने का भी आरोप लगाया। राहुल गांधी ने कहा कि, "जब भी विपक्ष जाति जनगणना का मुद्दा उठाता है, भाजपा एक नई बौखलाहट के साथ, कोई एक नई अचानक घटना पैदा करने की कोशिश करती है ताकि ओबीसी समुदाय और भारत के लोग दूसरी तरफ देखें।"
उल्लेखनीय बात यह है कि महज 13 साल पहले, कांग्रेस मंडल-युग के शीर्ष समाजवादी नेताओं मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और लालू प्रसाद यादव द्वारा दिए गए इसी तरह के तर्कों के खिलाफ थी। तीन यादवों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए द्वारा पेश किए गए महिला आरक्षण विधेयक के मसौदे का विरोध किया था, यह तर्क देते हुए कि पिछड़ी जाति की महिलाओं और मुस्लिम महिलाओं के लिए महिला आरक्षण के भीतर परिभाषित कोटा के बिना, कानून मुख्य रूप से शहरी इलाकों की विशेषाधिकार प्राप्त महिलाओं को लाभान्वित करेगा क्योंकि वे पहले से ही सांस्कृतिक राजधानी का आनंद उठा रही हैं। यह हाशिये पर पड़ी महिलाओं, जिनके पास साक्षरता और सामाजिक पूंजी की कमी है, को विशेषाधिकार प्राप्त और तथाकथित 'उच्च जाति' की महिलाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने का अधिक अवसर प्रदान नहीं करेगा।
उस समय शरद यादव ने अपनी कुख्यात टिप्पणी में कहा था कि यह विधेयक 'पर-कटी महिलाएँ' (काटे हुए बालों वाली महिलाएँ) जो विशेषाधिकार प्राप्त, शहरी, मध्यम वर्ग और उच्च जाति की महिलाएं हैं उन ही की एक व्यंजना है। उन्होंने पूछा था कि ये महिलाएं ग्रामीण, पिछड़ी जाति की महिलाओं के हितों का प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी। मुलायम सिंह ने भी मुस्लिम और ओबीसी महिलाओं के लिए उप-कोटा आवंटित किए बिना महिला आरक्षण के विधेयक का विरोध करने के लिए संसद के अंदर और बाहर कई कड़े बयान दिए थे।
2010 में, महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन यह रद्द हो गया क्योंकि लोकसभा ने मुख्य रूप से समाजवादी दलों द्वारा गरमागरम बहस के बीच इस पर मतदान नहीं किया, जिन्होंने इसमें पिछड़ी जातियों की महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी का विरोध किया था।
2012 में बाराबंकी में एक रैली में, मुलायम ने अपने दर्शकों से कहा था कि अगर महिला आरक्षण विधेयक पारित हो गया, तो हमारी गरीब बहनों को अवसर नहीं मिलेगा, ग्रामीण इलाकों की हमारी बहनों को अवसर नहीं मिलेगा। केवल संपन्न परिवारों की महिलाओं को ही जगह मिलेगी।''
विधेयक का समर्थन करके, विपक्षी दलों ने मोदी से उन्हें महिला विरोधी करार देने का मौका छीन लिया है, यह टैग तीन यादव नेताओं पर महिला आरक्षण विधेयक के मसौदे पर उनकी आपत्तियों के लिए वर्षों से लगाया जा रहा था। दिलचस्प बात यह है कि लोकसभा में विधेयक पर बहस की शुरुआत करते हुए भाजपा के निशिकांत दुबे ने समाजवादी पार्टियों पर सवाल उठाने के लिए 'पर-कटी महिला' टिप्पणी का जिक्र किया।
संसद के विशेष सत्र में पिछले तीन दिनों की घटनाएँ कांग्रेस द्वारा विकसित नए लचीलेपन और व्यावहारिकता का प्रमाण थीं। एक ओर, इसने विधेयक का समर्थन किया, जबकि दूसरी ओर, इसने कोटा के भीतर कोटा के सवाल पर ओबीसी-आधारित समाजवादी सहयोगियों के साथ ऐतिहासिक रूप से जुड़ी चिंताओं को प्रतिबिंबित किया और जाति जनगणना की उनकी मांग का भी समर्थन किया।
उत्तर प्रदेश और बिहार में विपक्षी INDIA गुट के प्रमुख घटक समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) हैं, महिला आरक्षण विधेयक के उद्दंड, जोरदार विरोध के दिन अब चले गए हैं। पिछले तीन दिनों में, पार्टियों ने ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं के लिए उचित प्रतिनिधित्व की वैचारिक मांग के साथ सभी वर्गों की महिलाओं को दिए गए योग्य अधिकारों को संतुलित करने के लिए अधिक व्यावहारिक, विकसित और गैर-टकराव वाला दृष्टिकोण प्रदर्शित किया। यदि मोदी सरकार की रणनीति कांग्रेस और उसके समाजवादी सहयोगियों को इस आरक्षण और अंतर्संबंध पर विभाजित करने की थी, तो संसद के विशेष सत्र ने अब तक दिखा दिया है कि यह काम नहीं करेगा।
मुलायम सिंह यादव की बहू और यादव परिवार के गढ़ मैनपुरी से समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने इस मुद्दे पर पार्टी की स्थिति के बारे में बोलते हुए मांग की कि ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं को भी एससी और एसटी महिलाओं की तरह परिभाषित कोटा प्रदान किया जाए। “क्रांति के बिना विकास संभव नहीं है। और इस देश में विकास हो, इसके लिए बहुत जरूरी है कि ओबीसी महिलाओं, एससी-एसटी महिलाओं और अल्पसंख्यक महिलाओं को आरक्षण मिले। हमारी पिछड़े वर्ग की महिलाएं वास्तव में पिछड़ी हुई हैं। डिंपल यादव ने कहा, कोई कल्पना नहीं कर सकता कि उन्हें कितने पिछड़ेपन का सामना करना पड़ता है।
संसद के बाहर, उनके पति और सपा के अध्यक्ष, अखिलेश यादव, जो पिछड़े वर्गों, दलितों और मुसलमानों (पीडीए-पिछड़ा, दलित, अल्पसंखायक) का गठबंधन तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, ने कहा कि महिला आरक्षण में लैंगिक न्याय और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओबीसी, दलित, अल्पसंख्यक और आदिवासी समूहों की महिलाओं का आरक्षण परिभाषित प्रतिशत के साथ स्पष्ट होना चाहिए।
बिहार में भी, जहां कांग्रेस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद की राजद के साथ गठबंधन में है, इंडिया ब्लॉक ने इसी तरह की मांग की है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए आरक्षण का स्वागत किया लेकिन तर्क दिया कि आरक्षण को ओबीसी और अत्यंत पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी बढ़ाया जाना चाहिए। नीतीश ने कहा कि चूंकि विधेयक के प्रावधान अगली जनगणना और उसके बाद चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद ही लागू किए जाएंगे, इसलिए इसके साथ जाति जनगणना भी की जानी चाहिए। “अगर जाति जनगणना पहले की गई होती तो पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण तुरंत लागू किया जा सकता था। तभी सही मायनों में महिलाओं को फायदा होगा।''
लोकसभा में जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह ने भी इसी तरह का विचार व्यक्त किया और भाजपा को जाति जनगणना कराने की चुनौती दी। राजद के पास एक भी लोकसभा सांसद नहीं है और उसने लालू प्रसाद के भाषण कौशल से काम चलाया, जिन्होंने अपने सुनहरे दिनों में महिला सशक्तीकरण के सवाल को अंतर-प्रतिनिधित्व से जोड़ा था।
राजद सांसद मनोज झा ने गुरुवार को राज्यसभा में बोलते हुए कहा कि महिलाओं के लिए निर्धारित कोटे से ओबीसी महिलाओं को बाहर करना उनके साथ अन्याय है। झा ने मांग की कि ओबीसी महिलाओं को शामिल करने के लिए विधेयक को संसद की प्रवर समिति के पास भेजा जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यह "अन्याय" है कि एससी और एसटी महिलाओं के लिए अलग आरक्षण बनाने के बजाय इन समुदायों के लिए मौजूदा संवैधानिक कोटा के भीतर से कोटा प्रदान किया जा रहा है। लोकसभा में 412 सीटें सामान्य हैं और सभी के लिए खुली हैं, जबकि 84 सीटें एससी के लिए और 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। “अब, हम इन 84 और 47 [सीटों] में से एक-तिहाई सीटें बना रहे हैं। झा ने सवाल उठाया कि क्या यह अन्याय नहीं है।”
चूंकि महिला आरक्षण को जमीनी हकीकत बनने में अभी कुछ साल और लगेंगे, इसलिए कांग्रेस और उसके सहयोगियों के लिए संसद के बाहर इसका राजनीतिकरण करने की काफी गुंजाइश है। सवाल यह है कि क्या वे ऐसा कर पाएंगे? जबकि ये दल पहले से ही यूपी और बिहार में जाति जनगणना पर छोटी बैठकें कर रहे हैं, नीतीश कुमार द्वारा शासित राज्य में राज्य स्तर पर जाति जनगणना की जा रही है, ऐसा लगता है कि वे ओबीसी महिलाओं को महिला आरक्षण में शामिल करने को अपने चुनावी घोषणापत्र में जगह दे सकते हैं।
ऐसे देश में जहां पुरुष अभी भी गांव और पार्षद स्तर पर सीधे या प्रधान के पति और पार्षद के पति होने के नाते राजनीतिक सीट पर शासन करते हैं, महिला आरक्षण से ओबीसी महिलाओं को बाहर करने का सवाल, सामान्य महिला जनसंख्या को वंचित करने के एक और कदम के रूप में देखा जा सकता है। 2014 के बाद से, खुद प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मोदी सरकार ने खुद को ओबीसी और दलितों के मसीहा के रूप में घोषित किया था। सरकार ने हाल ही में पारंपरिक शिल्प और श्रम से जुड़ी जातियों तक पहुंचने बनाने के लिए एक नई योजना शुरू की है। लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में भाजपा द्वारा दिए गए ओबीसी के प्रतिनिधित्व पर भी विस्तार से बात की है।
लोकसभा में बोलते हुए, राहुल गांधी ने ओबीसी प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाया और बताया कि भारत सरकार में 90 शीर्ष सचिवों में से केवल तीन ओबीसी हैं। इसके जवाब में शाह ने कहा कि बीजेपी के 29 प्रतिशत सांसद ओबीसी हैं, जबकि सरकार में 29 ओबीसी मंत्री भी हैं। देश भर में इसके सत्ताईस फीसदी विधायक और 40 फीसदी एमएलसी भी ओबीसी जातियों से आते हैं।
विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस, मतदाताओं के सामने ओबीसी प्रश्न को कैसे पेश करती हैं, इसका चुनावों के नेरेटिव को स्थापित करने में बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। यह अवसर उनके सामने है।
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।
मूल अंग्रेजी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
Women’s Reservation Bill a Hidden Opportunity for INDIA Alliance
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