हिमाचल प्रदेश विधानसभा में महिलाओं को प्रतिनिधित्व क्यों नहीं मिलता?
यह भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा विरोधाभास है। हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान होना है, जिसमें लैंगिक समानता की चिंताओं को लेकर बड़ा शोर-शराबे वाला चुनावी अभियान देखा जा सकता है। कांग्रेस पार्टी ने हर वयस्क महिला को 1500 रुपये मासिक वजीफा देने का वादा किया है, और आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति माह वजीफा देने का वादा किया है। जबकि भारतीय जनता पार्टी महिलाओं को सरकारी नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण और राज्य परिवहन बसों पर भारी छूट का आश्वासन दे रही है।
इन वादों के बावजूद, पार्टियां राज्य विधानसभा में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने से इनकार करती नज़र आती हैं। भाजपा ने 68 सदस्यों वाली विधानसभा में जहां छह महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस ने केवल तीन महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है। भाजपा की महत्वपूर्ण महिला दावेदारों में शाहपुर की सरवीन चौधरी, पालनपुर की बुटीक चलाने वाली रीता धीमन और सेब उद्योग के केंद्र में रोहड़ू की शशि बाला शामिल हैं। अन्य उम्मीदवार कसुम्पटी से विजय ज्योति और भोरंज से कमलेश कुमारी हैं। कांग्रेस के दावेदारों में डलहौजी से अनुभवी आशा कुमारी और मंडी से वंशवादी चंपा ठाकुर शामिल हैं, जिनके पिता कौल सिंह ठाकुर आठ बार विधायक रह चुके हैं।
हिमाचल प्रदेश, ऊंची साक्षरता दर के मामले में दूसरा राज्य है। 2017 के चुनाव में, महिला मतदाता 79 प्रतिशत था, जबकि पुरुषों का मतदान 70 प्रतिशत रहा था। 16 प्रमुख विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है, फिर भी वे शायद ही किसी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर पाती हैं। औसतन 5 प्रतिशत महिला विधायकों के साथ, हिमाचल राष्ट्रीय औसत 6 से 7 प्रतिशत, से नीचे है।
हिमाचल प्रदेश में राजनीति और राजनीतिक दल पितृसत्तात्मक मूल्यों के प्रतीक हैं। वर्तमान चुनाव में खड़ी अधिकतर महिला दावेदारों में अधिकांश महिला रूढ़िवादी राजपूत या ब्राह्मण समुदायों से हैं। टिकट से वंचित कई महिला दावेदारों के मूड के बारे में, भाजपा नेता वंदना गुलेरिया, जो सात बार विधायक और मंत्री रहे महेंद्र सिंह ठाकुर की बेटी है ने बताया। गुलेरिया जिला परिषद की सक्रिय सदस्य रही हैं। जब उनके पिता ने उन्हे बताया कि उनके भाई रजत को आगामी चुनाव लड़ने के लिए नामित किया गया है, तो उन्होंने कहा, "दिल्ली से टिकट मिल सकती है, वोट नहीं - भाई-भतीजावाद आपको वोट नहीं बल्कि टिकट दिला सकता है।"
गुलेरिया ने यह भी सवाल उठाया कि महिलाओं बलि के बकरों की तरह क्यों व्यवहार किया जाता है, शायद वे खुद के द्वारा जमीन पर किए गए काम की तरफ इशारा कर रही थीं, जिनके काम से अब एक पुरुष उम्मीदवार को फायदा हो रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व प्रियंका गांधी ने किया था, जिनकी सहायता हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने की थी, जिनके पति दिवंगत कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह थे। प्रतिभा सिंह संसद सदस्य हैं और विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रही हैं, लेकिन उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह शिमला (ग्रामीण) निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।
यह देखते हुए कि कांग्रेस, संसाधनों के मामले में भाजपा की बराबरी नहीं कर सकती है। और न ही यह राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ दल को पछाड़ सकती है। इस बात को ऐसे समझा सकता है कि प्रियंका गांधी ने मजबूत राष्ट्रीय मुद्दों से किनारा कर लिया है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में युवाओं को रोजगार देने, राज्य में पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने, 63,000 खाली सरकारी नौकरियों को भरने, नशीली दवाओं के खतरे से लड़ने और हर विधानसभा क्षेत्र में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की स्थापना का अभियान चलाया है।
इसके विपरीत, भाजपा ने पहाड़ी राज्य में कई रैलियों को संबोधित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित नेतृत्व में से कई नेताओं को मैदान में उतारा है। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने एक रैली से दूसरी रैली में जाने के लिए, हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गर्व से घोषणा की कि "एंटी-इनकंबेंसी" अतीत की बात है, जबकि मोदी ने अपने पालतू कथन "डबल-इंजन" के बारे में विस्तार से बताया। अभियान में राजमार्ग, जलविद्युत और सब कुछ के बारे में कहा गया, लेकिन महिला मतदाता इस बारे में बहुत कुछ सुन चुकी हैं। हिमाचल प्रदेश में, वे भाजपा के आश्वासनों पर अब विश्वास अनहीन करना चाहती हैं।
सोलन की एक गृहिणी शालिनी सिंह कहती हैं, ''पांच साल तक इस 'डबल इंजन वाली सरकार' ने सिर्फ टैक्स बढ़ाया है। अब हम मुख्य भोजन, यहां तक कि रोटियों, और बुनियादी जरूरतों जैसे स्टेशनरी और नोटबुक पर जीएसटी का भुगतान करते हैं। मेरी बेटी एक फार्मेसी की छात्रा है, जिसका कॉलेज हर छह महीने में 3,00,00 रुपये की फीस लेता है। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि स्नातक होने के बाद उसे नौकरी मिल जाएगी। जिन इंजीनियरों के परिवारों ने फीस के रूप में 5,00,00 रुपये का भुगतान किया, वे केवल 5,000 रुपये प्रति माह कमा रहे हैं। भाजपा ने जिन नौकरियों का वादा किया था, वे कहां हैं?
सोलन वार्ड से पार्षद सुषमा शर्मा भी कहती हैं, ''हिमाचल प्रदेश में महिलाएं राजनीतिक रूप से सक्रिय और जागरूक हो गई हैं। उनके लिए आधी नगरपालिका और पंचायत सीटें आरक्षित की गई हैं, लेकिन लोगों ने इस बार इनमें से 65 फीसदी पदों पर महिलाओं को चुना है। और महिला मेयर भी इस बार कई हैं।"
शर्मा कहती हैं, कि दूसरे शब्दों में कहे तो वास्तविक राजनीतिक शक्ति वाली विधायकों की सीटों पर महिलाओं को चुनाव लड़ने के अवसरों से वंचित किया जाता है। "हम समान रूप से समर्पित और मेहनती हैं [पुरुषों के मुक़ाबले]। मुख्य कारक महिलाओं को स्वीकार करने से है।”
1967 के बाद से, हिमाचल प्रदेश में केवल 88 महिलाओं ने चुनाव लड़ा है, जिनमें से 38 जीतीं, वे मुख्य रूप से कांग्रेस और भाजपा के टिकट पर लड़ी थीं।
निर्मल चंदेल कसौली में एकल नारी शक्ति संगठन की प्रमुख हैं, जो अकेली और बेसहारा महिलाओं की मदद करती है। वे मांग कर रही हैं कि राजनीतिक दल ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को चुनाव लड़ने का मौका दें। उनका मानना है कि भेदभावपूर्ण नीतियों के कारण महिलाओं को महिलाओं की ओर उन्मुख योजनाओं और कार्यक्रमों तक पहुंच से वंचित रखा जाता है। उनके बहिष्कार और उपेक्षा के बावजूद, महिलाएं पशुपालन, बागवानी और कृषि उद्योगों की रीढ़ हैं।
छोटे से इस पहाड़ी राज्य में महिलाएं, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की प्रशंसा करती हैं, जिन्होंने पंजाब से राज्य को अलग करने में मदद की थी। वे यह भी याद करती हैं कि कैसे पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पंचायती राज और स्थानीय संस्थानों में 50 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की थी। उनके कार्यकाल के दौरान, 55 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों ने स्थानीय निकाय चुनावों में जीत हासिल की थी। लेकिन भाजपा ने धूमल को दरकिनार कर दिया, हालांकि वे कथित तौर पर हमीरपुर से चुनाव लड़ने के इच्छुक थे। एक स्थानीय भाजपा महिला राजनेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वे ऐसा क्यों सोचती हैं: "न केवल वे [भाजपा नेता] महिला विरोधी हैं, वे उन नेताओं को भी दरकिनार करने में कभी नहीं हिचकिचाती जिन्होंने राज्य के विकास में योगदान दिया है।"
इस चुनाव के आखिरी चरण में बीजेपी और कांग्रेस नेताओं की मंदिरों में माथा टेकने की होड लग गई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी रैलियों को संबोधित करने के लिए आए थे। कांगड़ा में एक रैली में उन्होंने दावा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वह माफिया का समर्थन करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस इस जगह की पवित्रता और धार्मिकता को नष्ट कर देगी। जमा भीड़ को यह कुछ अच्छा नहीं लगा।
कई लोग रैली छोड़ जल्दी निकल गए, और वहाँ उपस्थित लोगों में से एक महिला ने मुझसे कहा कि: हिमाचली लोग शांतिप्रिय हैं। बेरोजगारी और महंगाई और सीधे तौर पर हमें चिंतित करने वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, ये [भाजपा] नेता मुद्दों को सांप्रदायिक मोड़ दे रहे हैं। उन्हें हमारी समस्याओं की समझ नहीं है और इन चुनावों में इनका हारना लाज़िमी है।”
लेखिका एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित साक्षात्कार को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
Why Don’t Women Find Representation in Himachal Pradesh Assembly?
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