कश्मीर में एक आर्मी-संचालित स्कूल की ओर से कर्मचारियों को हिजाब न पहनने के निर्देश
श्रीनगर: कश्मीर के बारामूला में दिव्यांग बच्चों के लिए एक सेना द्वारा संचालित एक स्कूल ने अपने कर्मचारियों को स्कूल में कामकाज के घंटों के दौरान हिजाब न पहनने के निर्देश दिए हैं, जिसको लेकर केंद्र शासित प्रदेश में तीखी आलोचना हो रही है।
सोमवार को जारी एक सर्कुलर में, डागर परिवार स्कूल की संयुक्त प्रबंधन समिति ने कहा है: “परिवार स्कूल बच्चों को भावनात्मक एवं नैतिक रूप से सीखने और विकसित करने का स्थान है। स्कूल के कर्मचारी के रूप में, हमारा मुख्य मकसद प्रत्येक विद्यार्थी के पूर्ण संभव विकास को प्रदान करना है। इसके लिए, छात्रों के साथ भरोसे को स्थापित करना नितांत आवश्यक है ताकि वे खुद को स्वागत योग्य, सुरक्षित और ख़ुश महसूस कर सकें।”
कर्मचारियों को हिजाब पहनने से बचने का निर्देश देते हुए, सर्कुलर में आगे कहा गया है: “कर्मचारियों को निर्देशित किया जाता है कि वे स्कूल के कामकाज के घंटों के दौरान हिजाब धारण करने से बचें ताकि छात्र सहज महसूस कर सकें और शिक्षकों और कर्मचारियों के साथ सहज रूप से बातचीत कर सकें।”
समाचार पत्र कश्मीर आब्जर्वर के मुताबिक, सेना और पुणे-स्थित इंद्राणी बालान फाउंडेशन नामक एक गैर-सरकारी संगठन स्कूल के द्वारा स्कूल को संचालित किया जाता है, जहाँ करीब 70 छात्र नामांकित हैं।
स्थानीय लोगों ने सर्कुलर को, जिसे सोशल मीडिया में व्यापक पैमाने पर प्रसारित किया गया था, को “प्रतिगामी” करार दिया है, और उनमें से कई लोगों का आरोप है कि यह देश में इस्लामी प्रतीकों के प्रति दुर्भावना और देश में मुसलामानों के प्रति नफरत को फैलाने की व्यापक योजना के एक हिस्से के तौर पर है।
श्रीनगर के एक निवासी ने नाम गुप्त रखने का अनुरोध करते हुए कहा, “कश्मीर में धार्मिक स्वतंत्रता पर पहले से ही काफी प्रतिबंध लागू हैं। हम खुलकर जामिया में नमाज नहीं पढ़ सकते हैं और इस्लामी प्रथाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये जाते हैं। यह इस दिशा में एक और कदम के रूप में है।”
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा और पूर्व मुख्यमंत्री (सीएम) मेहबूबा मुफ़्ती ने भी सर्कुलर की आलोचना की और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उपर महिलाओं की आजादी पर अंकुश लगाने का आरोप लगाया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “हिजाब पर फरमान जारी करने वाले इस पत्र की मैं निंदा करती हूँ। भले ही जम्मू-कश्मीर में भाजपा का शासन चल रहा हो, लेकिन यह राज्य निश्चित रूप से किसी अन्य राज्य की तरह नहीं हैं जहाँ वे अल्पसंख्यकों के घरों को जमींदोज (बुलडोज) कर रहे हैं, और उन्हें अपने मन-मुताबिक कपड़े पहनने की आजादी से मरहूम रख रहे हैं। हमारी लड़कियां अपने चुनने की आजादी का अधिकार नहीं छोड़ने जा रही हैं।”
I condemn this letter issuing diktats on hijab. J&K may be ruled by BJP but its certainly not like any other state where they bulldoze the houses of minorities & not allow them the freedom to dress as they want. Our girls will not give up their right to choose. pic.twitter.com/GpqX8UWv5k
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) April 27, 2022
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने, जिन्होंने आदेश को “गैर-संवैधानिक” करार दिया है, ने कहा कि “कश्मीर में कर्नाटक को लाने” की कोशिशों को बंद किया जाना चाहिए। “कर्नाटक वाली घटना (हिजाब विवाद) होने से पहले शिक्षा क्यों प्रभावित नहीं हो रही थी? या क्या कर्नाटक में विवाद के बाद ही सरकार को इसका अहसास हो रहा है?”
“नफरत फैलाने के उद्येश्य से धर्म के बेजा राजनीतिकरण” की निंदा करते हुए, अब्दुल्ला ने कहा, “यह सिर्फ हिजाब के बारे में नहीं है। अज़ान के दौरान लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल और हलाल मीट के खिलाफ भी बयानबाजियों को जारी किया जा रहा है। हम अपने धर्म को किसी और के उपर नहीं थोपते, फिर हमारे उपर इसे क्यों थोपा जा रहा है?”
अब्दुल्ला ने कहा कि वे समकालीन भारत को उसी देश के रूप में मान्यता नहीं दे पा रहे हैं, जिसे जम्मू-कश्मीर ने 1947 में स्वीकार किया था। उन्होंने कहा, “हमने उस भारतीय संघ में शामिल हुए थे, जहाँ पर प्रत्येक धर्म के साथ समान रूप से व्यवहार किये जाने को परिकल्पित किया गया था। हमें यह नहीं बताया गया था कि भविष्य में एक धर्म का दूसरे धर्मों के उपर प्रभुत्व हो जायेगा। यदि हमें किसी एक धर्म के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैये के बारे में बताया गया होता तो हम शायद किसी भी सूरत में इसे स्वीकार करने के लिए राजी हुए होते।”
सर्कुलर का समर्थन करने वालों का कहना है कि चूँकि यह स्कूल दिव्यांग बच्चों के लिए है, जिन्हें “चेहरे के हाव-भाव” सहित महत्वपूर्ण रूप से शारीरिक तौर पर पारस्परिक विचार-विनिमय की जरूरत पड़ती है, ऐसे में चेहरे को ढकने के खिलाफ जारी दिशा-निर्देश को हिजाब पर प्रतिबंध के रूप में “गलत मतलब” निकाला जा रहा है।
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