बंबई उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा के खिलाफ कुछ नहीं पाया, गिरफ्तारी से संरक्षण बढ़ाया
बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा है कि नागरिक स्वतंत्रता के हिमायती कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ प्रथम दृष्टया उसने कुछ नहीं पाया है। अदालत ने गौतम नवलखा को गिरफ्तारी से मिले संरक्षण की अवधि सुनवाई की अगली तारीख तक के लिए बढ़ा दी।
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ गौतम नवलखा की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। गौतम नवलखा ने 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के बाद पुणे पुलिस द्वारा अपने खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की है। गौरतलब है कि इस सम्मेलन के अगले दिन पुणे के कोरेगांव-भीमा गांव में हिंसा हुई थी।
पुलिस ने नवलखा और चार अन्य कार्यकर्ताओं पर माओवादियों से संबंध रखने का आरोप लगाया है। पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
पीठ ने बुधवार को नवलखा के वकील युग चौधरी और अतिरिक्त सरकारी वकील अरूण कुमार पाई की संक्षिप्त दलीलें सुनीं तथा आरोपियों के खिलाफ अभियोजन द्वारा सौंपे गए दस्तावेजों पर भी गौर किया।
न्यायमूर्ति मोरे ने कहा, ‘‘उनके (नवलखा ) खिलाफ कुछ नहीं है। प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि हमारे समक्ष सौंपे गए दस्तावेजों के आधार पर उनके खिलाफ कुछ नहीं है।’’
पाई ने दलील दी कि इन दस्तावेजों के अलावा कई अन्य दस्तावेज भी नवलखा के लैपटॉप से बरामद हुए जो उनके खिलाफ आरोपों को मजबूत कर सकते हैं।
अभियोजक ने ये दस्तावेज अदालत को बंद लिफाफे में सौंपे हैं और कहा कि ये दस्तावेज याचिकाकर्ता नवलखा के साथ साझा नहीं किए जा सकते क्योंकि उनके खिलाफ जांच जारी है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि इन दस्तावेजों के बारे में कुछ भी गोपनीय नहीं है। ‘‘हमारा प्रथम दृष्टया यह मानना है कि ये दस्तावेज उन्हें (नवलखा को) सौंपे जा सकते हैं।
उच्च न्यायालय ने याचिका की अगली सुनवाई के लिए 18 जून की तारीख निर्धारित की है। नवलखा के अलावा वरवर राव,अरूण फेरेरिया, वर्णन गोंजाल्वेस और सुधा भारद्वाज सहित कुछ अन्य प्रख्यात कार्यकर्ता इस मामले में आरोपी हैं। और अभी तक इन आरोपों पर कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है।
(भाषा के इनपुट के साथ)
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