भारतीय रेलवेः ट्रैक पर मौत का ज़िम्मेदार कौन है?
भारतीय रेलवे के लिए यह सबसे अच्छा समय है और साथ ही सबसे ख़राब समय भी है क्योंकि सोमवार को चेन्नई से बहुप्रतिक्षित बिना इंजन वाली ट्रेन ट्रायल रन को तैयार है। हाल में लगातार हुए दो बड़े हादसे देश के सबसे बड़े ट्रांस्पोर्टर की सुरक्षा की तैयारियों और रेल ट्रैक की अनदेखी को उजागर करता है।
क़रीब 160 किमी प्रति घंटे की अधिकतम रफ़्तार से चलने की उम्मीद है। 16 डिब्बे वाले इस नेक्स्ट जेनेरेशन की ट्रेन पर लगभग 100 करोड़ रुपए से ज़्यादा की लागत आई है। माना जाता है कि भारतीय रेल नेटवर्क में अब तक की सबसे महंगी ट्रेन है। दिल्ली और भोपाल के बीच इसके वाणिज्यिक संचालन से पहले अगले तीन महीने तक इसका ट्रायल रन किया जाएगा।
हालांकि दशहरा (19 अक्टूबर) के दिन अमृतसर स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर क़रीब 61 लोगों की मौत और साथ ही 10 अक्टूबर को रायबरेली के पास न्यू फरक्का एक्सप्रेस का दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से सात यात्रियों की मौत रेलवे के लिए चिंता का विषय है चूंकि ज़्यादातर यात्री किराया कम होने के चलते हवाई सफर की तुलना में रेल से सफर करना पसंद करते हैं।
जलांधर-अमृतसर डीएमयू ट्रेन ट्रैक पर खड़ी भीड़ को कुचलती चली गई। रावण दहन के कार्यक्रम को देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इस घटना में कम से कम 61 लोगों की मौत हो गई वहीं लगभग 100 घायल हो गए।
हालांकि, रेलवे ने अब तक सार्वजनिक रूप से कहा है कि यह "रेल दुर्घटना नहीं थी बल्कि उसके ट्रैक पर अवैध तरीके से आना है" और इसके बदले में इस हादसे के लिए नागरिक प्रशासन को दोषी ठहराया गया।
भारतीय रेलवे द्वारा अपने बयान पर दृढ़ता से क़ायम रहने के बावजूद यह संभावना है कि इस बड़े हादसे से बचा जा सकता था यदि रेलवे अधिकारियों ने इस व्यस्त ट्रैक के पास वार्षिक दशहरा समारोह का ध्यान रखा होता और इसके मुताबिक लोको पायलट को ट्रेन धीमी रफ़्तार में चलाने की चेतावनी दी होती।
रेलवे ने ये बयान देकर पल्ला झाड़ लिया है कि "कार्यक्रम के आयोजन की जानकारी रेलवे अधिकारियों को नागरिक प्रशासन द्वारा नहीं दी गई थी। इसके अलावा, उक्त भूमि रेलवे की नहीं थी, इसलिए उक्त स्थान का इस्तेमाल करने की कोई अनुमति नहीं ली गई थी।"लेकिन सवाल उठता है कि चाहे फिरोजपुर डिवीजनल रेलवे मैनेजर अपने क्षेत्र में सुचारु ट्रेन संचालन के लिए ज़िम्मेदार हैं या अमृतसर स्टेशन के अधिकारी और पास के रेलवे क्रॉसिंग के गेटमैन को इस जगह पर दशहरा आयोजन को लेकर अज्ञान थे जो उक्त स्थान पर वर्षों सो हो रहा था और अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ पीछे खींच सकते हैं।
उक्त रेलवे क्रॉसिंग पर दो गेटमैन ड्यूटी पर थे, पटरियों का निरीक्षण करने वाले गैंगमेन, गुजरने वाली ट्रेनों के चालक सभी ने देखा होगा कि पिछले कई दिनों से रावण की प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं।
यद्यपि राज्य प्रशासन की विफलता स्पष्ट है, लेकिन रेलवे अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकता है भले ही उसने आधिकारिक तौर पर कहा है कि यह उल्लंघन का मामला था।
रायबरेली दुर्घटना, जहां 10 अक्टूबर को मालदा टाउन-दिल्ली न्यू फरक्का एक्सप्रेस के नौ कोच के हादसे के बाद सात यात्रियों की मौत हो गई थी,ने विशेष रूप से एलएचबी (लिंके होफमन बुश) डिजाइन कोच की धीमी रफ्तार से भारतीय रेलवे द्वारा शामिल किए जाने को लेकर प्रश्न खड़ा किया है।
रायबरेली में पटरी से उतरे नौ कोच में से दो पलट गया जिसके नतीजे में सात यात्रियों ने अपनी जान गंवा दी।
चाहे यह हादसा ट्रैक की ख़राबी या सिग्नल विफलता के कारण हुआ हो इसका कारण जांच के बाद ही स्पष्ट तौर पर सामने आएगा। हालांकि,सुरक्षा में शामिल वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक़ न्यू फरक्का एक्सप्रेस को दुर्घटना होने से बचाया जा सकता था, यदि यह एलएचबी-डिज़ाइन कोच से लैस होता। पारंपरिक कोच के विपरीत ये आधुनिक एलएचबी कोच मजबूत कप्लर्स से लैस होते हैं जो कोच को पलटने से रोकता है।
भले ही भारतीय रेलवे ने पारंपरिक कोचों का निर्माण बंद करने और एलएचबी की मजबूत सुरक्षा सुविधाओं के कारण सभी मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के पूरे बेड़े को बदलने का फैसला किया है ऐसे में लगभग 580 एलएचबी कोच काफी कम हैं।
समस्या यह है कि नए एलएचबी कोच पावर कार के बिना परिचालित नहीं किए जा सकते हैं। हाल ही में रेलवे बोर्ड की एक समीक्षा बैठक में पावर कार के बिना एलएचबी कोच की संख्या को लेकर जानकारी स्पष्ट हुई।
ट्रेनों के रूप में इन एलएचबी कोचों को कार्यान्वित करने के लिए लगभग 78 पावर कार की आवश्यकता है। ऐसे में पावर कार की ग़ैर मौजूदगी में ये एलएचबी कोच निष्क्रिय हैं।
कई ट्रेनों की दुर्घटना में पारंपरिक कोचों के पलटने के चलते इस वर्ष की शुरुआत में रेलवे ने चेन्नई के इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) में पुराने डिजाइन किए गए कोचों के निर्माण को पूरी तरह रोकने का फैसला किया था और आधुनिक एलएचबी वाले कोचों के निर्माण का फैसला किया था जो सुरक्षा के लिहाज से काफी बेहतर है।
दिलचस्प बात यह है कि रेलवे द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2017-18 में पहली बार एक वर्ष में दर्ज घटनाएं 100 से कम थीं।
भारतीय रेलवे ने यह भी दावा किया है कि पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि की तुलना में इस वर्ष में 'संगत रेल दुर्घटनाओं' (consequential train accidents) की संख्या में 5.1% की कमी आई है।
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