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बाइडेन यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की अपनी मुहिम से पीछे हटे

अमेरिकी राष्ट्रपति को लगता है कि अमेरिका 'प्रॉक्सी वॉर' हार गया है लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करना चाहते हैं।
BIDEN

यदि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के पास वह टाईम मशीन होती, जो एच.जी. वेल्स के काल्पनिक विज्ञान आधारित उपन्यास में सर्वनाश के बाद थी, तो उन्हें उस वाहन या उपकरण का इस्तेमाल जानबूझकर और चुनिंदा रूप से पहले के वक़्त में यानि वर्ष 1999 की यात्रा करनी चाहिए थी जब अमेरिका ने यूरोपीय सुरक्षा और यूरोप के साथ आपसी सुरक्षा पर रूस की बारहमासी खोज के मामले में की गई साजिश का प्लॉट खो दिया था।

24 साल पहले शीत युद्ध के बाद के युग के उस निर्णायक पल में, जॉर्ज केनन ने बिल क्लिंटन प्रशासन को चेतावनी देते हुए भविष्यवाणी की थी कि यदि पश्चिमी गठबंधन का विस्तार पूर्व वारसॉ संधि वाले देशों को शामिल करने के लिए किया गया तो अमेरिका-रूस संबंध अपूरणीय रूप से क्षतिग्रस्त हो जाएंगे। उनकी सलाह को अनसुना कर दिया गया। यह आम तौर पर आज स्वीकार किया जा रहा है कि यूक्रेन में युद्ध रूस की सीमाओं पर नाटो की दस्तक के कारण हुआ है।

रूसी संघ और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन के सदस्य देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों पर समझौते पर रूस के 2021 के मसौदे में यह जरूरी था तथ्य था कि नाटो सदस्य गठबंधन के आगे कोई विस्तार नहीं करने के लिए प्रतिबद्ध हों, जिसमें विशेष रूप से यूक्रेन और संबंधित मुद्दे शामिल थे और नाटो गठबंधन की तैनाती, जिसने रूस से संबंधित प्रमुख सुरक्षा मुद्दों को प्रभावित किया है।

वाशिंगटन को संबोधित एक दूसरे मसौदे का शीर्षक संयुक्त राज्य अमेरिका और रूसी संघ के बीच सुरक्षा गारंटी पर संधि थी। ये दोनों मसौदे मास्को की तरफ से गंभीर वार्ता के लिए थे, लेकिन इस पर कोई वार्ता नहीं हुई क्योंकि बाइडेन प्रशासन ने कहा कि अमेरिका और रूस यूरोपीय और यूक्रेनियन के ऊपर कोई समझौता नहीं कर सकते हैं!

जैसा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा था, "आपके [यूक्रेन] बिना आपके बारे में कोई वार्ता नहीं होगी।" यह एक तंग बहाना था, क्योंकि अमरीका की मदद से 2014 में यूक्रेन में अमेरिका समर्थित असंवैधानिक, सशस्त्र और खूनी तख्तापलट हुआ था और कीव में शासन स्थापित किया था जो वाशिंगटन का एक मात्र हथियार था।

बाइडेन प्रशासन ने सोचा कि यह मॉस्को को किनारे लगा रहा है और रूस को नियंत्रण करने का जाल बिछा रहा है क्योंकि रूस को तो हर तरफ से अभिशप्त किया होना - चाहे वह अपने दरवाजे पर नाटो की उपस्थिति की वास्तविकता को निष्क्रिय रूप से स्वीकार कर लेता, या इसका मजबूत विरोध करने का विकल्प चुनता। जब फरवरी 2022 में रूस का विशेष सैन्य अभियान शुरू हुआ, तो स्ट्रोब टैलबोट, जो बिल क्लिंटन प्रशासन के मास्टरमाइंड थे, जिन्होने  नाटो के पूर्ववर्ती विस्तार के सिद्धांत को पूर्व वारसॉ संधि इलाकों में आगे बढ़ाया था, उन्होने  ट्वीट कर रूसियों को किनारे लगाने के लिए बाइडेन टीम को बधाई दी थी!

कई अमेरिकी विश्लेषकों ने विजयी भाव से लिखा कि रूस देश में शासन और खुद के अस्तित्व के प्रति गंभीर परिणामों की एक दलदल में फंसने जा रहा है। पश्चिमी नेरेटिव ने कुछ समय तक प्रभुत्व जमाया लेकिन यह सब इतिहास बन कर रह गया। 

हालाँकि, आधुनिक समय में इतिहास के महान बदलावों में से एक में, मास्को अंततः निर्णायक और अपरिवर्तनीय रूप से युद्ध के मैदान में जीत गया है।

इस तरह की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में, शनिवार को बाइडेन की आई टिप्पणी, कि यूक्रेन का  किसी अन्य देश की तरह नाटो में शामिल होने को अमेरिका "आसान नहीं बनने देगा", को केवल अतीत में एक प्रतिगामी यात्रा के रूप में देखा जा सकता है। बाइडेन ने रेखांकित किया कि यूक्रेन को ब्लॉक का सदस्य बनने के लिए "समान मानकों" को पूरा करने की जरूरत होगी, जिसका अर्थ है कि यूक्रेन को तथाकथित सदस्यता कार्य योजना के अनुरूप होना होगा, जिसके लिए सैन्य और लोकतांत्रिक सुधार किसी भी उम्मीदवार राष्ट्र की जरूरत होती है जो  सदस्यता के निर्धारण से पहले नाटो की सलाह और सहायता से होना चाहिए।

एमएपी प्रक्रिया में वर्षों लग सकते हैं। मैसेडोनिया को 21 साल लगे। बाइडेन की टिप्पणी न केवल कीव के लिए एक संकेत है, बल्कि यह ऐसे समय में आई है जब गठबंधन के भीतर आम राय है कि यूरोप और अमेरिका को यूक्रेन को स्पष्ट नाटो सुरक्षा गारंटी प्रदान करनी चाहिए, जो यूरोपीय सुरक्षा के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।

वास्तव में, पिछले मंगलवार को व्हाइट हाउस में जेन्स स्टोलटेनबर्ग, नाटो महासचिव के साथ बैठक के 4 दिन बाद ही बाइडेन ने यह बात कही, कथित तौर पर, बाद वाले ने यूक्रेन के लिए नाटो सादस्यता को सरल बनाने की मांग की थी क्योंकि कीव पहले ही इस ओर महत्वपूर्ण प्रगति कर चुका है। 

ऐसी कौनसी बात है जिसने बाइडेन को सख्त रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया? पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा ने 12 जून को पेरिस में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज़ के साथ वेइमर त्रिभुज प्रारूप में अपनी वार्ता के क्रम में घोषणा की थी कि यूक्रेन को नाटो में "बहुत ही ठोस स्थिति... में शामिल किया जाना चाहिए।" डूडा ने आशा व्यक्त की कि विलनियस में नाटो शिखर सम्मेलन "कीव को एक सकारात्मक संदेश देगा, ... कि नाटो में यूक्रेन की भविष्य की सदस्यता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।"

जाहिर है, वीमर त्रिभुज के सदस्यों के बीच भी आम सहमति थी कि यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी मिलनी चाहिए। शोल्ज़ ने घोषणा की कि: "यह स्पष्ट है कि हमें इस तरह की किसी चीज़ की जरूरत है, और हमें इसकी बहुत ठोस रूप में जरूरत है।" मैक्रॉन ने "ठोस और विश्वसनीय सुरक्षा गारंटी" पर तेजी से समझौते का समर्थन किया।

वास्तव में, धमकी भरी आवाजें भी आ रही हैं कि अगर विलनियस में यूक्रेन की सदस्यता पर कोई ठोस समझौता नहीं हुआ, तो कुछ "कट्टर" सहयोगी देश चीजों को अपने हाथों में ले सकते हैं, और पाखण्ड के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर - यूक्रेन में नाटो सदस्यों के सैनिकों की संख्या को तैनात किया जा सकता है।

अब, बाइडेन प्रशासन ने पुराने और नए यूरोपियों की इन मांगों को नज़रअंदाज़ कर दिया है। उन्हें भरोसा है कि वे गोल पोस्ट को शिफ्ट कर सकते हैं। हो सकता है, मैक्रॉन और स्कोल्ज़ केवल गैलरी में खेल रहे हों? इस बात को हम कभी नहीं जान सकते हैं।

मुख्य मुद्दा यह है कि बाइडेन को पता चल गया है कि यूक्रेनी हमले किसी ट्रेन दुर्घटना और कीव की शेष सेना के पतन की ओर बढ़ रहा है। यह अनिश्चित है कि कब तक कीव पर्याप्त सैनिकों की भर्ती कर पाएगा। दो व्यक्ति जिन्हें वाशिंगटन ने कीव में ठीक उसी तरह के प्लान बी के लिए तैयार किया था जिसकी उसे अब जरूरत है - सशस्त्र बलों के कमांडर जनरल वैलेरी ज़ालुज़नी और जासूस प्रमुख मेजर जनरल किरिलो बुडानोव – इस गणना से बाहर हैं, उन्हें हाल ही में हुए रूसी मिसाइल हमलों के कारण बाहर कर दिया गया है। 

अगर युद्ध में होने वाली मौतें समाज को अस्थिर कर देती हैं तो यूक्रेन में विद्रोह से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

बाइडेन यह भी देख पा रहे हैं कि अमेरिका में उनकी युद्ध नीति को समर्थन लगातार सिकुड़ता जा रहा है, जो संभवत: उनके दोबारा चुने जाने को खतरे में डाल सकती है। बाइडेन ने यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की को अपनी पिछली कीव यात्रा के दौरान बताया था कि वाशिंगटन जो धन प्रदान कर सकता है वह सीमित है। और सीआईए प्रमुख विलियम बर्न्स ने अलग से ज़ेलेंस्की को एक संदेश दिया कि जुलाई के बाद अमेरिकी सैन्य सहायता जारी रखना समस्याग्रस्त हो सकता है।

यह कहना काफी होगा, यदि पुतिन की पिछले हफ्ते (मंगलवार और शुक्रवार को) की कठोर टिप्पणी को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि क्रेमलिन नेतृत्व बाइडेन या उसके यूरोपीय सहयोगियों पर कोई भरोसा नहीं करता है। इस बीच, स्पष्ट सच्चाई यह है कि यूक्रेन के 90 प्रतिशत संसाधन वाले इलाके रूसी नियंत्रण में हैं। जिसका मतलब है कि आमेरिकी संसाधनों पर इसका बड़ा असर पड़ने जा रहा है, जबकि रूस थकने का नाम नहीं ले रहा है।

बाइडेन ने कोई नई बात नहीं कही है। बाइडेन को होश आ गया है कि अमेरिका छद्म युद्ध हार गया है लेकिन वह इसे स्वीकार नहीं करना चाहता है और न ही कर सकता है। इसलिए, एक टाइम मशीन की अनुपस्थिति में, जो उसे 1999 में वापस ले जा सकती थी जब नाटो का विस्तार शुरू हुआ था, जबकि बाइडेन उल्टे बुखारेस्ट में 2008 के उस नाटो शिखर सम्मेलन की डिफ़ॉल्ट स्थिति में चले गए जब गठबंधन में यूक्रेन का स्वागत किया गया था। एमएपी मार्ग - जैसे कि पंद्रह साल पहले का वह पल अब अतीत हो गया है और उसे वर्तमान में वापस नहीं लाया जा सकता है। रूस इसे मानने वाला नहीं है।

एमके भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Biden Walks Back on Ukraine’s Nato Accession

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