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ख़बरों के आगे-पीछे: बिहार की राजनीति में नया मोड़

बिहार में सारण सीट पर हुई हिंसा के बाद राज्य में जाति की राजनीति में अचानक नया मोड़ आ गया है। इसके अलावा भी चुनाव के दौरान देशभर में क्या कुछ घट रहा है बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन।
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देश का ड्रग कैपिटल बना गुजरात 

देश में वैसे तो कई शहर और राज्य समुद्र के किनारे बसे हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि समुद्र के रास्ते नशीली दवाओं के कारोबार का सबसे बड़ा अड्डा गुजरात बनता जा रहा है। कह सकते हैं कि देश का ड्रग कैपिटल गुजरात हो गया है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से अब तक देश मे जितनी ड्रग्स पकड़ी है, उसका एक तिहाई हिस्सा अकेले गुजरात में पकड़ा गया है। इससे पहले भी सैकड़ों क्विंटल ड्रग्स गुजरात के बंदरगाहों पर और समुद्र में पकड़ी गई हैं। 

चुनाव आयोग ने एक अप्रैल से लेकर अभी तक कुल 3,959 करोड़ रुपए की ड्रग्स पकड़ी है, जिसमें से 1,188 करोड़ रुपए की ड्रग गुजरात से पकड़ी गई है। लेकिन लगता नहीं कि सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। बहरहाल, चुनाव आयोग ने पिछले 50 दिन में कुल 8,889 करोड़ रुपए की वस्तुएं और नकदी पकड़ी है। लोकसभा चुनाव के अभी एक चरण और बाकी है, जबकि अभी तक 810 करोड़ रुपए की नकदी पकड़ी जा चुकी है। सवाल है कि जब नोटबंदी के बाद से देश में काला धन खत्म हो जाने का दावा किया जा रहा है तब सैकड़ों करोड़ की नकदी और हजारों करोड़ की नशीली दवाएं, शराब और दूसरी वस्तुएं कहां से आ रही हैं? सवाल यह भी है कि जब नौ हजार करोड़ रुपए की नकदी और वस्तुएं जब्त हुई हैं तो नहीं पकड़ी गई नकदी और वस्तुओं की मात्रा कितनी होगी? क्या ऐसे में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संभव है?

बिहार की राजनीति में नया मोड़

बिहार में सारण सीट पर हुई हिंसा के बाद राज्य में जाति की राजनीति में अचानक नया मोड़ आ गया है। मतदान के दिन हुई इस हिंसक झड़प में चंदन यादव नाम के एक युवक की मौत हो गई। इस सीट पर लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य और भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी चुनाव लड़े हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा समर्थक की गोली से चंदन यादव की मौत हुई। उसके बाद से यह मुद्दा जातीय रंग लेता जा रहा है और कई सीटों पर राजनीतिक समीकरण बदल गया है। माना जा रहा है कि सारण से सटे महाराजगंज में कांग्रेस उम्मीदवार आकाश प्रसाद सिंह को इसका फायदा होगा तो बक्सर में राजद के सुधाकर सिंह को नुकसान हो जाएगा। गौरतलब है कि महाराजगंज सीट पर भाजपा के जनार्दन सिंह सिगरीवाल के मुकाबले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के बेटे आकाश प्रसाद सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। सिगरीवाल राजपूत और आकाश भूमिहार जाति के हैं। बताया जा रहा है कि सारण की घटना के बाद यादव आक्रामक होकर पूरी तरह से कांग्रेस का साथ दे रहे हैं, लेकिन बक्सर सीट से चुनाव लड़ रहे राजद के राजपूत उम्मीदवार सुधाकर सिंह की मुश्किल बढ़ गई है। क्योंकि सारण के राजपूत और यादव के विवाद से वहां यादव सुधाकर सिंह की बजाय निर्दलीय चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक ददन यादव को समर्थन देते दिख रहे हैं। गौरतलब है कि इस घटना के बाद बिहार में छठे चरण में 8 सीटों पर मतदान हुआ और अभी सातवें चरण में भी 8 सीटों पर मतदान होना है।

जब जवाब नहीं दे सकीं वित्त मंत्री

यह वह दौर है जब पत्रकार केंद्रीय मंत्रियों से सवाल नहीं पूछ पाते हैं। लेकिन पिछले दिनों मुंबई में एक कार्यक्रम में एक आम कारोबारी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से ऐसा सवाल पूछा कि उनसे कोई जवाब देते नहीं बना। इसका एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है, जिसमें एक स्टॉक ब्रोकर ने सरकार की ओर से लगाए जाने वाले बेहिसाब टैक्स को लेकर सवाल किया है। सवाल पूछने वाले व्यक्ति का चेहरा वीडियो में नहीं दिखाया गया है। उसने कहा कि एक ब्रोकर अपनी पूंजी लगा कर, जोखिम लेकर निवेश करता है लेकिन उसे सीजीएसटी, आईजीएसटी, स्टैंप ड्यूटी सहित कई तरह के टैक्स देने पड़ते हैं। उसने पूछा कि सरकार उसकी स्लीपिंग पार्टनर है और सारा मुनाफा ले रही है, इस पर उनको क्या कहना है? दूसरा सवाल था कि सरकार ने संपत्ति खरीद में कैश कंपोनेंट खत्म कर दिया है। इसका मतलब है कि मुंबई में किसी को फ्लैट या जमीन खरीदनी है तो उसे पूरा पैसा अपने खाते से भुगतान करना है। खाते के पैसे पर सभी किस्म के टैक्स चुकाए हुए हैं, फिर भी उस पैसे से संपत्ति खरीदते समय 11 फीसदी के करीब जीएसटी और स्टैंप ड्यूटी देनी होती है, इसका क्या मतलब है? वित्त मंत्री के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। उन्होंने कहा कि स्लीपिंग पार्टनर के पास के पास इसका कोई जवाब नहीं है। दरअसल इस तरह के और भी कई सवाल हैं जो सरकार से पूछे जा सकते हैं। 

इस बार मंदिरों से दूर रहे विपक्षी नेता

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 486 सीटों पर मतदान हो चुका। अब सातवें और अंतिम चरण में 57 सीटों पर मतदान बाकी है लेकिन अभी तक राहुल गांधी या कोई भी दूसरा विपक्षी नेता मंदिर जाते नहीं दिखा है। पिछले चुनाव में ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस के नेता चुनाव प्रचार कम और तीर्थाटन ज्यादा कर रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा शहर रहा होगा जहां राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाडा किसी मंदिर में नहीं गए थे या दूसरे विपक्षी नेताओं के पूजा पाठ करने की तस्वीरें सामने नहीं आई थीं। राहुल गांधी ने तो अपनी पहली भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी रास्ते में पड़ने वाले हर प्रसिद्ध में पूजा अर्चना की। दूसरी यात्रा में इसमें थोड़ी कमी आई और अब चुनाव प्रचार में उन्होंने मंदिरों से दूरी बनाई है। फैजाबाद लोकसभा सीट पर मतदान हो गया। इसी लोकसभा क्षेत्र में अयोध्या भी है, जहां भाजपा का सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी से है। सपा के नेता प्रचार करने भी पहुंचे लेकिन कोई राममंदिर में नहीं गया। प्रधानमंत्री मोदी ने नामांकन से पहले वाराणसी के कई मंदिरों में पूजा अर्चना की। दूसरी ओर राहुल गांधी ने दो जगह से चुनाव लड़ा लेकिन किसी मंदिर में नहीं गए। ऐसा माना जा रहा है कि विपक्ष ने एक रणनीति के तहत मंदिरों से दूरी रखी ताकि किसी तरह से धर्म का मुद्दा चुनाव में नहीं उठे। 

राहुल, अखिलेश की रैलियों में भगदड़

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की रैलियों मे एक के बाद एक कई जगह भगदड़ मची। लोग घेरा तोड़ कर बिल्कुल मंच के पास पहुंच गए। यह भी हुआ कि लोगों की भीड़ हेलीकॉप्टर के पास पहुंच गई। एक हफ्ते में ऐसी तीन घटनाएं हुईं। चुनाव के बीच इस तरह की घटनाएं बेहद गंभीर हैं। सभी पार्टियों और रैलियों का बंदोबस्त करने वाले नेताओं के साथ-साथ बड़े नेताओं की सुरक्षा का ध्यान रखने वाली एजेंसियों को इस पर नजर रखनी चाहिए। तमिलनाडु में 33 साल पहले लोकसभा चुनाव की रैली के दौरान ही राजीव गांधी को निशाना बनाया गया था। बहरहाल, उत्तर प्रदेश में हाल की घटनाओं को गंभीरता से लेने की जरूरत है। प्रयागराज के फूलपुर में जिस तरह से राहुल और अखिलेश यादव की रैली के दौरान लोग घेरा तोड़ कर मंच के पास पहुंच गए और दोनों की अपील का उन पर कोई असर नहीं हुआ, यह चिंताजनक है। लोगों की बेकाबू भीड़ की वजह से राहुल और अखिलेश को रैली रद्द करनी पड़ी और दोनों बिना भाषण दिए हेलीकॉप्टर से वहां से रवाना हो गए। इसी तरह आजमगढ़ में अखिलेश यादव की सभा के दौरान लोगों की भीड़ बेकाबू हो गई और मंच के पास पहुंच गई। लोगों का उत्साह समझ में आता है लेकिन नेताओं की सुरक्षा और संवेदनशीलता को देखते हुए इस तरह की घटनाओं को रोकने के ठोस और कारगर उपाय होने चाहिए।

अपने ही सांसदों से परेशान हैं केजरीवाल

आम आदमी पार्टी अपने ज्यादातर राज्यसभा सांसदों की भूमिका को लेकर परेशान है। स्वाति मालीवाल का मामला तो खैर बहुत उलझ गया है। वे केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर लाख आरोप लगाएं लेकिन ऐसी नैतिकता नहीं दिखाने वाली हैं कि राज्यसभा सीट छोड़ दे। लेकिन ऐसा नहीं है कि वे इकलौती राज्यसभा सांसद हैं, जिनसे पार्टी को मुश्किल पेश आ रही है। दूसरे राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा हैं, जो वैसे तो लंदन से लौट आए हैं लेकिन चुनाव प्रचार में नहीं उतरे हैं। पंजाब में लोकसभा की 13 सीटों के लिए मतदान की घड़ी नजदीक आ रही है लेकिन आप के सात में से एक भी राज्यसभा सांसद प्रचार में नहीं उतरा है। गौरतलब है कि राघव चड्ढा पंजाब से ही राज्यसभा सांसद है। उनके अलावा क्रिकेटर हरभजन सिंह को केजरीवाल ने राज्यसभा भेजा है लेकिन शपथ लेने के बाद से ही वे लापता हैं। चुनाव रणनीतिकार संदीप पाठक भी पंजाब से राज्यसभा सांसद हैं लेकिन वे परदे के पीछे से ही काम कर सकते हैं और काम कर भी रहे हैं। बाकी पांच सांसद भी लापता हैं। एक सांसद यूनिवर्सिटी के मालिक हैं तो एक बड़े उद्योगपति हैं और एक धार्मिक गुरू किस्म के व्यक्ति हैं, जिन्हें केजरीवाल ने राज्यसभा सीट दी है। लेकिन कोई भी पार्टी के प्रचार में नहीं उतर रहा है। पंजाब का चुनाव लगभग पूरी तरह से मुख्यमंत्री भगवंत मान के हवाले है।

कन्हैया के खिलाफ दुष्प्रचार की बाढ़

उत्तर पूर्वी दिल्ली से कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैया कुमार के खिलाफ चुनाव के दौरान भी खूब दुष्प्रचार हुआ। देश की 543 सीटों में से शायद ही कोई दूसरी सीट होगी, जहां उम्मीदवार के खिलाफ इतना झूठा प्रचार किया गया हो। उनकी तस्वीरें वायरल करके कहा गया कि वे देशद्रोही हैं और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ का अध्यक्ष रहते उन्होंने भारत विरोधी नारे लगाए थे। उनकी डफली बजाते एक तस्वीर वायरल करके सोशल मीडिया में दावा किया गया कि छत्तीसगढ़ में जब नक्सलियों के हमले में सुरक्षा बलों के 50 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे तो कन्हैया ने जेएनयू में जश्न मनाया था। अब यह तो सबको पता है कि जेएनयू मे कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगाने के आरोप में कन्हैया कुमार गिरफ्तार भी हुए थे लेकिन कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी। कन्हैया अक्सर चुनौती देते हैं कि अमित शाह देश के गृह मंत्री है तो वे उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कराते हैं? 

पिछले दिनों लद्दाख के भाजपा सांसद की पत्नी ने 'इंडिया टुडे’ समूह को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वे जेएनयू में पढ़ी हैं और घटना के दिन मौके पर मौजूद थीं। वहां कन्हैया ने कोई देश विरोधी नारा नहीं लगाया था। उनके साथ ज्यादती हुई है। इस इंटरव्यू के कारण भाजपा के सांसद का टिकट कट गया। इस बीच चुनाव प्रचार के दौरान एक व्यक्ति ने कन्हैया को थप्पड़ मार दिया, जिस पर भाजपा ने कहा कि यह उनकी छवि और विचारधारा के कारण हुआ है। हकीकत यह है कि उनकी ऐसी छवि बनाने का काम भाजपा ने ही किया है।

महाराष्ट्र में दिलचस्प किस्सा कुर्सी का

महाराष्ट्र में लोकसभा की सभी सीटों पर मतदान की प्रक्रिया संपन्न होने से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जबरदस्त किस्सेबाजी हुई। शिव सेना के सांसद संजय राउत, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और एनसीपी के अजित पवार गुट में चले गए छगन भुजबल ने दिलचस्प किस्से सुनाए। ये सारी किस्सेबाजी पांचवें चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले हुई। संजय राउत ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को निशाना बनाया और कहा कि आज वे जिन लोगों के साथ सरकार में हैं, उनमें से ज्यादातर ने 2019 में उनके नाम का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि जब 2019 में एकीकृत शिव सेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार बनाने का फैसला किया तो उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लिए पहला नाम एकनाथ शिंदे का ही दिया था, लेकिन उस समय एकीकृत एनसीपी के नेता अजित पवार, दिलीप वल्से पाटिल और सुनील तटकरे ने विरोध किया था, जिसके बाद उद्धव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री बने। अब ये तीनों नेता शिंदे की सरकार में मंत्री हैं। उधर शरद पवार और छगन भुजबल ने भी मुख्यमंत्री पद को लेकर किस्सा सुनाया। भुजबल ने कहा कि 2004 में एनसीपी का मुख्यमंत्री बन सकता था क्योंकि एनसीपी के दो विधायक कांग्रेस से ज्यादा थे। यह बात कुछ समय पहले खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते हुए अजित पवार ने भी कही थी। बहरहाल अब भुजबल के बयान पर शरद पवार का कहना है कि अगर वे 2004 में छगन भुजबल को मुख्यमंत्री बनाते तो पार्टी उसी समय टूट जाती।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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