चुनाव विशेष : हरियाणा में किसानों के जीवन में कितनी 'हरियाली' है?
हरियाणा में मतदान का समय निकट आ गया है। सोमवार को यहां वोट डाले जाएंगे। लेकिन सत्ता के लिए शुरू हुए घमासान में किसान व उनके मुद्दे पिछड़ गए हैं। कई पार्टियों के घोषणा पत्र भी आए हैं, लेकिन उनमें किसान से जुड़ी बुनियादी समस्याओं को दूर करने का जिक्र तक नहीं है। इन घोषणा पत्रों में सिर्फ कर्जमाफी जैसी लोकप्रिय अवधारणा को जगह दी गई है। दरअसल हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से आधी से ज्यादा ग्रामीण हैं। यहां राज्य की जीडीपी में कृषि का हिस्सा 17 फीसद है।
किसानों को होने वाली परेशानियों पर बात करते हुए हिसार के पावड़ा गांव के किसान मास्टर रामपाल कहते हैं, 'किसानों की सबसे बड़ी परेशानी फसलों के दाम और उसकी खरीद को लेकर है। यहां कपास, गेहूं और सरसो की खेती प्रमुख रूप से होती है। लेकिन न तो फसलों का सही दाम मिलता है और न ही सही खरीद होती है। अब कपास की सरकारी खरीद ही नहीं होती है। उसे निजी व्यापारी को ही बेचना होता है। सरसो की खरीद होती है तो उस पर 25 क्विंटल का कैप लगा हुआ है कि इससे ज्यादा किसान बेच नहीं सकता है। सिर्फ गेहूं की सरकारी खरीद सरकार कर रही है लेकिन अब भी किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के हिसाब से फसलों का दाम नहीं मिल पा रहा है।'
वो आगे कहते हैं,'किसानों को छुट्टे जानवरों से भी परेशानी हो रही है। इसके अलावा खेती के लिए बिजली की सप्लाई मात्र छह से सात घंटे है। इन सबसे अलग फसल बीमा योजना का भी फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है। इस योजना में भ्रष्टाचार ज्यादा है। ग्राउंड पर सही किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिनकी फसल बर्बाद नहीं हुई उन्हें मुआवजा मिल जा रहा है और जो बर्बाद हुआ, उसे फूटी कौड़ी भी नहीं मिल पा रही है।'
कुछ ऐसी ही समस्या इसी गांव के युवा किसान अमित की भी है। वे कहते हैं,'सरकार के पास किसानी को लेकर कोई मकैनिज्म ही नहीं है। हम सबसे पहले से शुरू करते हैं। किसान को हर जगह समस्या का सामना करना पड़ रहा है। सबसे पहले खाद और बीज की समस्या आती है। ज्यादातर किसान खाद और बीज निजी व्यापारियों से खरीद रहे हैं। इसमें नकली और असली का निर्धारण करने वाली कोई संस्था काम नहीं कर रही है। अब आपका बीज ही नकली निकल गया तो आपकी साल भर की मेहनत बर्बाद हो जाएगी। फिर मान लीजिए आपका बीज सही निकल गया और आपने बुबाई कर दी तो पानी की समस्या हो जाएगी। सरकार बिजली इतनी कम दे रही है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाएं भी आती हैं। फसल बीमा योजना के तहत उसका लाभ किसानों को मिलना चाहिए पर इतनी सारी तकनीक के बावजूद उसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है।'
अमित आगे कहते हैं, 'अगर सब कुछ सही रहा और फसल की बंपर पैदावार हो भी गई तो सबसे बड़ी समस्या फसल बेचने और उसके सही दाम मिलने को लेकर आती है। सीजन में फसलों का दाम इतना कम हो जाता है कि लागत नहीं निकल पाती है। यानी किसान पूरी तरह से बर्बाद होने की स्थिति में है। इसमें सबसे ज्यादा तकलीफ हम जैसे युवाओं को हो रही है। एक तरफ राज्य की बेरोजगारी दर 28.7 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो आज देश में सबसे ज्यादा है। तो दूसरी तरफ हमारा पुराना पेशा किसानी भी लाभ देने वाला नहीं है।'
आपको बता दें कि देश के बाकी हिस्सों की तरह हरियाणा की अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा तेजी से घट रहा है और औद्योगिक हिस्सेदारी बढ़ रही है। पिछले दस सालों में यह बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार आने के बाद इसमें और तेजी आई है।
जानकार बताते हैं कि इसका कारण प्रदेश में जातीय राजनीति भी है। हरियाणा में ज्यादातर खेत जाटों के पास है जिन्हें बीजेपी का समर्थक नहीं माना जाता है। इसलिए खट्टर सरकार खेती पर ध्यान देने के बजाय औद्योगिकीकरण पर ज्यादा ध्यान दे रही है। हालांकि आटो सेक्टर में मंदी आने के बाद सरकार को उस मोर्चे पर भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि आटो इंडस्ट्री हरियाणा के औद्योगिक उत्पादन में बड़ी हिस्सेदारी रखती है।
फिलहाल किसानी को लेकर होने वाली समस्याओं के बारे में बात करते हुए कैथल के सूरजमल कहते हैं,'हरियाणा के किसानों के जीवन में अब हरियाली नहीं बची है। ज्यादातर किसान अब ये सोचने लगे हैं कि उनकी जमीन किसी औद्योगिक एरिया या सड़क बनने वाले इलाके में आ जाए जिससे उन्हें अच्छा मुआवजा मिल जाए और उन्हें खेती न करनी पड़ी, क्योंकि ये घाटे का सौदा बन गई है। नेता वोट के टाइम पर तो खूब किसानी की बात करते हैं लेकिन एक बार कुर्सी मिल जाने के बाद वह इसे भूल जाते हैं।'
गौरतलब है कि हरियाणा की सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने घोषणापत्र में किसानों के मुद्दे को प्रमुखता से जगह दी है।
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में 24 घंटे के अंदर किसानों के कर्ज को माफ करने का भी ऐलान किया है साथ ही दो एकड़ तक की जमीन वाले किसानों को मुफ्त बिजली और फसल बीमा की एकमुश्त किस्त देने का वायदा किया है। कांग्रेस ने प्राकृतिक आपदाओं सूखा, बाढ़ आदि से फसल खराब होने पर 12000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देने की बात कही है। कांग्रेस ने हर विधानसभा क्षेत्र में गौशाला और गौशालाओं को सालाना बजट देने का वायदा किया है। गौमूत्र और गोबर का प्रसंस्करण कर उससे आयुर्वेदिक दवाएं, जैविक खाद और जैविक कीटनाशक तैयार करने का भी वायदा किया है।
बीजेपी ने संकल्प पत्र में किसानों को हर फसल की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का वायदा किया है। साथ ही किसान कल्याण प्राधिकरण को एक हजार करोड़ रुपये का बजट देने का भी वायदा किया है। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में किसानों के सभी दुधारू पशुओं की नियमित जांच कराने की बात कही है। सभी पशुओं को बीमा के दायरे में लाने का वायदा किया है। डेयरी में महिलाओं को खास मदद दिए जाने की बात कही है।
इसी तरह जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया है कि फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 10 प्रतिशत या 100 रुपये बोनस दिया जाएगा। इसके अलावा किसानों, छोटे दुकानदारों का सहकारी बैंकों का कर्ज माफ होगा और जमीन की नीलामी बंद होगी। किसानों को स्वरोजगार के लिए जमीन का सीएलयू निशुल्क दिया जाएगा। नवोदय विद्यालय की तर्ज पर किसान मॉडल स्कूल खोले जाएंगे।
हालांकि हरियाणा के ज्यादातर किसान नेता राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों को झूठ का पुलिंदा बता रहे हैं।
अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के नेता भुल्लड़ राम आर्या कहते हैं, 'पहली बात राजनीतिक दल किसानों के साथ झूठा वादा कर रहे हैं। अभी तक के जितने घोषणा पत्र जारी हुए हैं अगर उसमें जितनी बातें किसानों के लिए कही गई हैं वो पूरी हो जाती तो किसानों को प्रदर्शन नहीं करना पड़ता। दूसरी बात ज्यादातर घोषणा पत्रों में किसानों को लेकर हवा हवाई बातें कही गई हैं। किसानों की समस्याओं को जड़ से खत्म करने का सच्चा प्रयास किसी भी दल ने नहीं किया है। किसी भी राजनीतिक दल ने इन समस्याओं को निपटाने को लेकर कोई ब्लूप्रिंट या रोडमैप पेश नहीं किया है। इसके अलावा चुनाव बाद जब किसान इन्हीं की घोषणा पत्र में किए गए वादों को लेकर प्रदर्शन करेंगे तो उनपर मुकदमा दायर किया जाएगा। उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा।'
कुछ ऐसा ही मानना भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता रतन मान का भी है। वे कहते हैं, 'हरियाणा में किसानों की बुरी स्थिति को देखते हुए कर्जमाफी जैसी फौरी राहत वाली घोषणाओं की बहुत जरूरत है। लेकिन कई राज्यों में किसानों को इसके नाम पर भी ठगा गया है। चुनाव में किसानों को वोट लेने के बाद पार्टियां अपने वादे से पलट गई हैं। दूसरी बात कर्जमाफी फौरी राहत है। राजनीतिक दलों को अपनी सोच सिर्फ वोट लेने तक ही नहीं सीमित करनी चाहिए। उन्हें किसानों के जीवन में बदलाव के लिए काम करना चाहिए। इस हिसाब से नीतियां बनाए जाने की जरूरत है जिससे किसानों को जीवन खुशहाल हो सके और उन्हें कर्ज लेने की जरूरत ही न पड़े।'
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