हरियाणा चुनाव : रोडवेज के निजीकरण से नाराज़ कर्मचारी कर सकते हैं बीजेपी का खेल ख़राब!
रोहतक/हरियाणा : पिछले साल 16 अक्टूबर को 20 हज़ार रोडवेज़ कर्मचारियों ने इतिहास की सबसे बड़ी 18 दिनों की हड़ताल की थी। यह हड़ताल खट्टर के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार के ख़िलाफ़ थी, जो रोडवेज़ का निजीकरण करने का प्रयास कर रही थी। कर्मचारियों के इस संघर्ष को आम नागरिकों के साथ अन्य विभाग के कर्मचारियों का भी पूर्ण सहयोग मिला था। सरकार ने आवश्यक सेवाओं के रखरखाव अधिनियम (एस्मा) को लागू करते हुए सैंकड़ों कर्मचारियों को गिरफ़्तार किया और क़रीब 500 से अधिक कर्मचारियों को निलंबित कर दिया था। इसके बाद एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए इस हड़ताल को ख़त्म करा दिया था लेकिन मामला अभी भी लंबित है।
चुनाव के मौसम में पिछले 12 महीने से, रोडवेज़ कर्मचारी राज्य भर में जनसभाएं कर रहे हैं। बीजेपी को चुनाव में हराने की अपील कर रहे है। राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव में, रोडवेज़ कर्मचारियों ने “भाजपा को सबक़ सिखाने” की क़सम खाई है।
आंदोलन को मिला था भारी जनसमर्थन
आमतौर पर जब भी कर्मचारी किसी हड़ताल पर जाते हैं तो ज़्यादातर आम जनता उनके ख़िलाफ़ होती है क्योंकि हड़ताल से आम लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, लेकिन यह एक ऐसी हड़ताल थी जिसे अन्य विभागों के कर्मचारी व यूनियन के साथ ही ग्रामीण लोगों का समर्थन भी मिल और हरियाणा की अधिकतर पंचायतें कर्मचारियों की मांगों के समर्थन में थीं।
रोडवेज़ कर्मचारी यूनियन के नेताओं ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया, "हड़ताल को जनसर्मथन इसलिए मिल था क्योंकि लोग भी समझ रहे हैं कि ये रोडवेज़ कर्मचारी अपने वेतन या फिर बोनस के लिए हड़ताल पर नहीं हैं बल्कि उनके व उनके बच्चों के भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हरियाणा रोडवेज़ कर्मचारी मांग कर रहे हैं कि रोडवेज़ को 14,000 नई बसें ख़रीदनी चाहिए, ताकि 84000 नई नौकरियां पैदा की जा सकें।"
प्रदेश के 2 लाख कर्मचारियों के 150 से ज़्यादा संगठनों ने भी इनके समर्थन में हड़ताल की थी। हरियाणा सरकार इस सबके बावजूद हठधर्मी रवैया अपना हुए है। अभी सरकार इससे पीछे हटने को तैयार नहीं है, और किसी न किसी तरीक़े से निजीकरण का प्रयास कर रही है।
हरियाणा रोडवेज़ वर्कर्स यूनियन के राज्य उपाध्यक्ष 50 वर्षीय सुमेर श्रीवास्तव, हड़ताल के समय गिरफ़्तार किए गए लोगों में से थे। उन्होंने कहा, "राज्य में सभी राजनीतिक दलों ने, हरियाणा रोडवेज़ का निजीकरण करने के लिए काम किया है। लेकिन खट्टर सरकार ने इसे अधिक तेज़ी के साथ किया है। इस हड़ताल ने लोगों को खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करने में मदद की थी, और अब इस पर कार्रवाई करने का समय है यानी इस सरकार को सत्ता से बाहर करने का।"
हरियाणा रोडवेज़ को हरियाणा का जहाज़ भी कहा जाता है। यह राज्य के विकास के पीछे एक बड़ी ताक़त है। रोज लगभग 13 लाख लोग इससे सफ़र करते हैं, रोडवेज़ ने पिछले वर्षों में कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं। इसमें सबसे सस्ती और सुरक्षित सेवा का भी अवॉर्ड शामिल है।
हरियाणा रोडवेज़ के एक कर्मचारी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि इस सरकारी बस सेवा को ख़त्म करने के इरादे से सरकार निजी बस परमिट देना चाहती हैं।
निजीकरण की प्रक्रिया की बात करें तो 1992-93 में, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भजनलाल की अगुवाई में पहली बार निजी ऑपरेटरों को राज्य गाड़ी परमिट जारी किए गए थे।
रोडवेज़ के एक मैकेनिक और यूनियन के नेता जयकुमार दहिया को भी हड़ताल के दौरान जेल हुई थी। उन्होंने कहा, "निजीकरण के पीछे का शुरुआती उद्देश्य हरियाणा के ग्रामीण हिस्सों को जोड़ना था।"
उनके अनुसार, ज़्यादातर सहकारी बसों को बेड़े में जोड़ा गया था। हालांकि, बाद में राज्य सरकारों ने इन बसों को व्यावसायिक प्रयोग की मंज़ूरी दे दी थी।
उन्होंने आगे कहा, "इन बसों का काम गांवों को ज़िले के साथ जोड़ने का था लेकिन वे अब ज़िलों के बीच चल रही हैं और निजी व्यापारी इसका फ़ायदा ले रहे हैं।"
2014 में भाजपा पहली बार राज्य में सत्ता में आई और जो वादा किया गया था, उसके विपरीत, राज्य सरकार ने बड़ी तेज़ी से सार्वजनिक बस सेवा और उसके कर्मचारियों पर हमला शुरू कर दिया। सबसे पहले सरकार ने निजी ऑपरेटरों को 720 बस परमिट देने के उद्देश्य से एक ऑनलाइन निविदा जारी की। सरकार ने कहा कि बसों की संख्या कम है और हरियाणा रोडवेज़ फ़िलहाल घाटे में है।
जिन निजी ऑपरेटरों को परमिट दिया गया, उन्होंने बसों को चलाने की अत्यधिक लागत का हवाला दिया जिसके परिणामस्वरूप टिकट की क़ीमतों में भी वृद्धि हुई। दहिया ने कहा कि जब यह मामला 2018 की हड़ताल के बाद हाई कोर्ट में गया, तो लगभग 900 करोड़ के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ।
यह निर्णय नौकरियों के मोर्चे पर भी एक संकट था। भाजपा सरकार द्वारा तय नियमों और शर्तों के अनुसार, निजी बसों में कंडक्टर के पद को छोड़कर, दूसरे सभी काम को आउटसोर्स किया गया। नौकरी की आउटसोर्सिंग के साथ, अंततः कर्मचारियों को कोई सामाजिक भत्ता या नौकरी की कोई सुरक्षा प्राप्त नहीं होगी।
दहिया ने 2014 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के 'समान कार्य, समान वेतन' के वादे को "मज़ाक़" कहा।
न्यूज़क्लिक ने उन यात्रियों से भी बात की जो आवागमन के लिए बस सेवा का उपयोग करते हैं। बीएससी प्रथम वर्ष के छात्र जगबीर ने कहा, "निजी बसें केवल निजी व्यापारियों के लिए ही अच्छी होती हैं, जनता के लिए नहीं। निजी बसें छात्र पास को नहीं मानती हैं।"
दूसरी ओर, हरियाणा रोडवेज को गर्व है कि वो छात्रों, विकलांग व्यक्तियों, और वरिष्ठ नागरिकों सहित समाज के कई वर्गों को हर साल 662 करोड़ की सब्सिडी देती है। एक रोचक तथ्य यह है कि सरकार ने कोर्ट में 600 करोड़ का घाटा बताया है जबकि रोडवेज़ लोगों को कुल 662 करोड़ की सब्सिडी दे रहा है।
इन सब मसलों को लेकर, हरियाणा रोडवेज़ के कार्यकर्ता लोगों से संपर्क कर रहे हैं और 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए पर्चे बाँट रहे हैं। वे मतदाताओं के बीच जागरुकता पैदा करने के प्रयास में केवल उस पार्टी को वोट देने के लिए कह रहे हैं, जो हरियाणा के नागरिकों की आवश्यकताओं की बात करता है। कर्मचारियों को जनता की तरफ़ से सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिल रही है, हालांकि आगे का रास्ता आसान नहीं है।
सुमेर ने स्वीकार किया कि "बातचीत रोज़गार, सुरक्षा या शिक्षा के आसपास के सवालों के साथ शुरू होती है, लेकिन यह जल्द ही अनुच्छेद 370 या राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर बढ़ जाती है।"
जहां तक हरियाणा रोडवेज़ का सवाल है, इस मुद्दे पर विपक्ष भी कमोबेश चुप ही रहा है। कांग्रेस ने अपने 2019 के घोषणापत्र में हरियाणा रोडवेज़ पर महिलाओं के लिए मुफ़्त सवारी की घोषणा तो की है, लेकिन यह कैसे होगा यह स्पष्ट नहीं है। केवल जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने सार्वजनिक परिवहन का निजीकरण नहीं करने का वादा किया है।
सुमेर ने कहा, "हरियाणा के लोग ग़ुस्से में हैं और वे खट्टर सरकार को सबक़ सिखाना चाहते हैं लेकिन उन्हें किसे वोट देना चाहिए, इसका जवाब उन्हें अभी भी नहीं मिला है।"
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