पेपरबैक हिंदुत्व : मोदी की नकल करते अरविंद केजरीवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सावधान हो जाना चाहिए। क्योंकि आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बीजेपी को किनारे लगाने वाले हैं। वे भाजपा की सभी जांची हुई चुनावी रणनीतियों की क्लोनिंग कर रहे हैं। चूंकि 2024 के आम चुनाव से पहले कई भारतीय राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जो तय करेगा कि मोदी को तीसरा कार्यकाल मिलता है या नहीं, लेकिन फिर भी यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में केजरीवाल का क्लोनिंग ऑपरेशन कितना प्रभावी होगा।
जब मैं दशकों पहले स्कूल में था, तो अक्सर चर्चा में एक सवाल उठता था: कि नेहरू के बाद कौन? इस सवाल की प्रतिक्रिया जो सुनने वाली बात आम थी कि उनके उत्तराधिकारी सबसे संभावित लाल बहादुर शास्त्री होंगे। जब अखबारों ने बताया कि नेहरू ने अपनी महत्वपूर्ण नेपाल यात्राओं में से एक के दौरान शास्त्री जी को अपना ओवरकोट दिया था, तो इसे बहुत जल्दी हवा में लौकिक पुआल के रूप में व्याख्यायित किया जाने लगा। हालाँकि, मेरी किशोर रूपी जिज्ञासा एक अलग ही दिशा को तरफ निर्देशित थी। मैंने सोचा, क्या छोटे क़द के शास्त्री जी के लिए ओवरकोट बहुत बड़ा नहीं था? बड़े आकार के कोट के बावजूद, शास्त्री ने वास्तव में नेहरू का स्थान लिया।
आज इस तरह का अंदाज़ा लगाने का अंजाम निंदात्मक होगा। हालांकि, हमें इस बारे में चुपचाप जरूर फुसफुसाना चाहिए, कि मोदी के बाद कौन? हालांकि कुछ सर्वेक्षण उनके लुप्त होते करिश्मे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बढ़ती लोकप्रियता के बारे में बात करते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मोदी की स्थिति उनकी पार्टी और पूरे भारत में अजेय है।
आदमी नहीं तो पार्टी का क्या? क्या कोई अन्य राजनीतिक दल या पार्टियों का गठबंधन है, जो 2024 में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सकता है? भारत की सबसे पुरानी पार्टी, अपनी मौजूदा कमजोरियों के बावजूद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अपने सहयोगियों के साथ, यकीनन ऐसा करने के लिए सबसे अधिक बेहतर स्थिति में है। हो सकता है कि 2024 में 2004 की पुनरावृत्ति हो जाए। जिस तरह अटल बिहारी वाजपेयी का 'इंडिया शाइनिंग' नारा बुरी तरह विफल हो गया था, उसी तरह मोदी का 'न्यू इंडिया' का नारा भी अब से तीन साल बाद फ्लॉप हो सकता है।
कांग्रेस के अलावा, कुछ मुट्ठी भर क्षेत्रीय दिग्गज पार्टियां भी हैं- पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) - जो इस अवसर पर उभर सकते हैं। समय-समय पर, कई लोगों ने एक संयुक्त भाजपा विरोधी तीसरा मोर्चा बनाने पर बातचीत की है। उनके प्रयास सफल होंगे या नहीं यह तो समय ही बताएगा।
हालाँकि, जिस पार्टी पर शायद हमारा सबसे अधिक ध्यान जाता है, वह न तो राष्ट्रीय स्तर पर और न ही क्षेत्रीय स्तर पर शासन करती है। असहाय मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की तरह, केजरीवाल के नेतृत्व वाली ‘आप’ पार्टी का शासन केवल पालम (दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उपनगरीय इलाके) तक ही फैला हुआ है। हालांकि दिल्ली देश की राजधानी है और यहां बीस मिलियन से अधिक नागरिक रहते हैं, यह भारत के संघीय ढांचे के भीतर एक आधी शक्ति वाला राज्य है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि ‘आप’ पार्टी का राजनीतिक आधार अभी भी बहुत छोटा है। अन्य राज्यों में विस्तार करने के इसके प्रयास में सबसे प्रमुख रूप से उत्तराखंड, गोवा और पंजाब हैं जहां इसे अब तक मिश्रित सफलता मिली हैं और किसी भी मामले में, यह लंबी दौड़ की परियोजनाएं हैं। तो फिर, उनके बारे में हमारा ध्यान क्यों जाता है? सीधे शब्दों में कहें तो; यह ‘आप’ की नई राजनीतिक रणनीति है जिस पर अनायस ही ध्यान चला जाता है। उनके हाल के कार्यों की जांच करें तो उससे स्पष्ट हो जाएगा कि ‘आप’ पार्टी भी राष्ट्रवाद, हिंदू इतिहास, सेना के महिमामंडन और सबसे महत्वपूर्ण किसी खास व्यक्ति की उपासना (यानी, जैसे मोदी) पर जोर देकर हिंदुत्व का इस्तेमाल कर रही है। यह भाजपा के जाँचे गए फॉर्मूले में सेंध लगाने की कोशिश है। केजरीवाल बिल्कुल उसी रणनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
यह परिवर्तन कम से कम तीन साल पहले शुरू हुआ था। नवंबर 2018 में, केजरीवाल ने दिल्ली के हिंदू तीर्थयात्रियों को यात्रा कराने के लिए श्री रामायण एक्सप्रेस को सीतामढ़ी, जनकपुर (नेपाल), वाराणसी, प्रयाग, चित्रकूट, हम्पी, नासिक और रामेश्वरम जैसे कई राम-संबंधित तीर्थ स्थलों तक पहुंचाने के लिए हरी झंडी दिखाई थी। इसलिए अपनी धर्मनिरपेक्ष साख को बचाते हुए, जो (शुक्र है) भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण है, केजरीवाल ने श्री रामायण एक्सप्रेस के चालू करने के एक महीने के भीतर मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा (एमटीवाई) नामक एक योजना भी शुरू की थी। विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के लिए, एमटीवाई के जरिए हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों को उनके महत्वपूर्ण स्थलों की यात्रा का अवसर प्रदान करना था। इनमें अमृतसर में स्वर्ण मंदिर, वाघा में भारत-पाकिस्तान सीमा, आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा, वैष्णोदेवी, मथुरा, वृंदावन, हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकंठ, पुष्कर और अजमेर शरीफ शामिल हैं। (यहां तक कि मोदी भी एक समावेशी नेता की अपनी छवि को पेश करने के मूल्य को समझते हैं। याद कीजिए कि 2019 के चुनाव में अपनी जीत के बाद, उन्होंने सबका साथ, सबका विकास, और सबके विश्वास के साथ प्रगति की प्रतिज्ञा की थी।
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से तीन दिन पहले, जब मोदी सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट की घोषणा की, तो केजरीवाल ने उस वक़्त निम्न टिप्पणी की थी: "अच्छे काम के लिए कोई सही समय नहीं होता है।" राम मंदिर परियोजना के साथ अपने को जोड़ते हुए, उन्होंने अपने किसी भी संभावित विरोधियों को निष्प्रभावी कर दिया था। अब मंदिर पर उनके रुख को देखते हुए उन्हे हिंदू विरोधी साबित नहीं किया जा सकता था, जो आज के भारत में किसी को देशद्रोही कहने के समान है।
गुजरात में अपने चुनावी मैदान का विस्तार करने के लिए, केजरीवाल ने अहमदाबाद के एक मंदिर में भगवान कृष्ण का आशीर्वाद लेने की चतुराई दिखाई और राज्य में ‘आप’ के प्रवेश की नीति चुनी। भगवान कृष्ण राज्य में सबसे लोकप्रिय देवता हैं। कुछ ही समय बाद, अगस्त के अंत में, उन्होंने अपनी हिंदुत्व किटी में से देशभक्ति (देशभक्ति/राष्ट्रवाद) को तब जोड़ दिया, जब उन्होंने सेवानिवृत्त कर्नल अजय कोठियाल को उत्तराखंड में अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में चुना। कर्नल के "शरीर के अंदर दो गोलियां हैं" की प्रशंसा करते हुए उन्हे "बहादुर" बताया, और केजरीवाल ने राज्य के लोगों से वादा किया कि यह 'भोलेनाथ का फौजी है' और 'देशभक्त फौजी' हैं, ये अकेले ही "उत्तराखंड में बदलाव लाएँगे"। केजरीवाल ने गरज कर कहा कि “जब राजनेता उत्तराखंड के लोगों को लूटने में व्यस्त थे, तब सेवानिवृत्त कर्नल अजय कोठियाल को उत्तराखंड के लोगों की रक्षा के लिए सीमा पर गोलियों का सामना करना पड़ रहा था।“
उत्तराखंड के लोगों की देशभक्ति और हिंदू धार्मिकता के बीच के संबंध को स्पष्ट करने के बाद, केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश में उसी देशभक्ति से भरी कहानी को बेचने की शुरुआत की। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह के नेतृत्व में, ‘आप’ पार्टी ने फिर से, देशभक्ति पर ध्यान आकर्षित करने के लिए तिरंगा यात्रा शुरू की। ध्यान दें कि इस यात्रा का समापन अयोध्या के राम मंदिर में होना है, हालांकि यह निर्णय फिलहाल के लिए टाल दिया गया है। धर्म और राजनीति को एक अप्रतिरोध्य शराब बनाने की अपनी शैली के अनुसार, धर्मनिरपेक्षता को पूरी तरह से न छोड़ते हुए, केजरीवाल ने कहा, “लेकिन काम की राजनीति को राष्ट्रवाद और धार्मिकता की हमारी परिभाषा के साथ जोड़ना होगा जिसमें दूसरों से नफरत या चोट करना शामिल नहीं है।" 85 करोड़ रुपये (लगभग 11.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की लागत से दिल्ली भर में 500 हाई-मास्ट तिरंगे लगाने के आप सरकार के फैसले इस बात के गवाह हैं।
केजरीवाल-शैली के हिंदुत्व के प्रचार के लिए दिल्ली में सरकारी वित्तपोषित स्कूलों में 'देशभक्ति पाठ्यक्रम' लाया गया है। 28 सितंबर को, शहीद भगत सिंह की जयंती पर, दिल्ली सरकार ने तत्काल प्रभाव से पाठ्यक्रम की घोषणा करने के लिए सभी प्रमुख अंग्रेजी और हिंदी दैनिकों के दिल्ली संस्करणों में एक पूरे पृष्ठ का विज्ञापन जारी किया था। विज्ञापन में, केजरीवाल की एक मुस्कराती हुई तस्वीर घोषणा करती है कि: 'अब हर बच्चा देशभक्ति सीखेगा। अब हर बच्चा सच्चा देशभक्त बनेगा।'
करीब से जांच करने से पता चलता है कि पाठ्यक्रम में कुछ भी प्रभावशाली बात नहीं है। इसमें वह है जो हमने बचपन से "नागरिक विज्ञान" की कक्षाओं में पढ़ा है - हमारा संविधान हमारे नागरिक मूल्यों का स्रोत है। क्या हमें यह नहीं बताया गया कि राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने से समाप्त नहीं होता है बल्कि यह आजीवन की प्रतिबद्धता है? क्या इसके लिए एक विशेष पाठ्यक्रम की जरूरत है, वह भी एक अनौपचारिक और खुद के मुल्यांकन वाला पाठ्यक्रम, सभी को सिर्फ यह बताने के लिए कि उन्हें समाज में अच्छा व्यवहार करना चाहिए? यदि हम एक समाज के मसले में इतना नीचे गिर गए हैं कि जीवन की इन बुनियादी बातों को अब एक संरचित पाठ्यक्रम के माध्यम से पढ़ाने की जरूरत है, तो, शायद - एक हिंदू ढांचे के तहत - विष्णु के अवतार लेने का समय है ताकि हम सभी को बचाया जा सके।
इस मामले में निंदक साहित्यिक चोरी के माध्यम से ‘आप’ थोड़े समय के लिए भाजपा को चुनौती दे सकती है। लेकिन अगर मानवीय ज्ञान कोई मार्गदर्शक है, तो नकली सोने का बाजार शायद ही कभी टिकाऊ होता है। जब असली धातु उपलब्ध है, तो कोई नकली के पीछे क्यों भागेगा? भाजपा को हराने के लिए मतदाताओं के सामने स्पष्ट विकल्प पेश करना होगा। तभी वे अपनी निष्ठा बदलने को तैयार होंगे, जैसा कि उन्होंने अतीत में कई बार किया है। केजरीवाल की हरकतों से अब तक एक व्यावहारिक विकल्प पेश करने की क्षमता से परे एक कल्पना का प्रदर्शन होता रहा है। अगर उनके नेतृत्व वाली ‘आप’ इस रास्ते पर चलती रही, तो वह भाजपा की बी-टीम बन जाएंगी।
लेखक, सामाजिक विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में सीनियर फ़ेलो हैं और पूर्व में आईसीएसएसआर नेशनल फेलो भी रहे हैं और जेएनयू में साउथ एसियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
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