इज़राइल के गज़ा में जारी नरसंहार भयावह है: संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट
फ़िलिस्तीनी चित्रकार इस्माइल शमौत द्वारा बनाई गई पेंटिंग गार्डियन ऑफ़ द फ़ायर (1988) की एक झलक। छवि सौजन्य: ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल रिसर्च
14 नवंबर को, संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष समिति ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें अक्टूबर 2023 से विश्व के मीडिया चैनलों द्वारा प्रसारित और लाइवस्ट्रीम की गई भयावहता का सारांश पेश किया गया है। जब से इजराइल ने, एक अलग-थलग और गरीब गज़ा पट्टी पर अपना सबसे भयावह हमला शुरू किया है, तब से ऐसा पहली बार नहीं है – बल्कि पहले भी इसके बाशिंदों को कई बार विस्थापित किया जा चुका है, और इसलिए संयुक्त राष्ट्र के एक आधिकारिक निकाय ने इजराइल को "नरसंहार की विशेषताओं के अनुरूप" युद्ध चलाने के तरीकों का दोषी ठहराया है। विशेष समिति ने फैसला सुनाया कि इजराइल की कार्रवाई, अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के मूल सिद्धांतों का घोर उल्लंघन करती है: जो "भेदभाव, आनुपातिकता और हमले में सावधानी" में निहित है।
1967 के युद्ध में कब्जे किए गए क्षेत्रों में इजराइल के व्यवहार/आचरण की निगरानी करने के लिए 1968 में बनी विशेष समिति ने "गज़ा में नागरिक बुनियादी ढांचे के अभूतपूर्व विनाश और उच्च मृत्यु दर" पर उसकी भयावहता पर चिंता जताई है। हमले के शुरुआती हफ्तों में जो मीडिया रिपोर्टें सामने आईं थीं उसमें लक्ष्यों की पहचान करने के लिए इजराइल ने बड़े पैमाने पर निगरानी और बड़े डेटा प्रोसेसिंग की सुविधा अपनाने की बात कही गई थी। ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम अक्सर हमला करने के लिए ऐसे क्षण चुनते हैं जब नागरिक नुकसान सबसे गंभीर होने की संभावना होती है। सैन्य उद्देश्यों के संबंध में, इजराइली रक्षा बल (IDF) ने सभी मानदंडों का उल्लंघन करते हुए मारे गए निर्दोष लोगों के स्वीकार्य अनुपात को बढ़ा दिया था।
गज़ा में रह रहे 20 लाख से अधिक लोग कई बार विस्थापित हुए, उन्हें संकीर्ण इलाकों में घेर लिया गया और उन्हें निकासी क्षेत्र घोषित किए जाने के बावजूद भी उनपर भारी बमबारी की गई है। यह “जीवन, सम्मान, स्वतंत्रता और सुरक्षा के उनके अधिकारों की परवाह किए बिना” हुआ था। तबाही की हद ने “उनके विस्थापन के किसी भी स्थायी समाधान की कल्पना को असंभव बना दिया, क्योंकि इजराइल ने नागरिक बुनियादी ढांचे का व्यवस्थित ढंग से विनाश कर दिया था और संघर्ष ने गज़ा के लोगों पर भारी मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला है”।
मानवीय आपूर्ति को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया था और इजराइल ने गज़ा के लोगों को जरूरी खाद्य सामग्री से वंचित कर अपने इरादे को छिपाया नहीं था। लगातार गंभीर होती स्थिति में, इजराइल ने मदद पहुंचाने वाले काफिलों पर बार-बार हमला किया, तब भी जब उन्हें पहले से सूचित किया गया था और हर स्तर पर सुरक्षित मार्ग के लिए मंजूरी दी गई थी। मानवीय कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को बिना किसी लाग-लपेट के मार दिया गया था।
वर्तमान नरसंहारी हमले से पहले, गज़ा में खाद्य सुरक्षा अनिश्चित थी, जिसमें काफी संख्या में लोग 2005 में लगाए गए इजराइली घेराबंदी के कारण दीर्घकालिक पोषण संबंधी बीमारियों का सामना कर रहे थे। 2023 के अंत तक, "गज़ा की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी को तबाह कर देने वाली तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है", 40 फीसदी "आपातकालीन स्तर" पर और 15 फीसदी से अधिक "आपदा स्तर" का सामना करना पड सकता है। ये रिपोर्ट टनों की मात्रा में गोला-बारूद के साथ कृषि भूमि को निशाना बनाना, उनकी स्थायी संभावित विषाक्तता, और गज़ा के मछली पकड़ने के बेड़े के 70 फीसदी का विनाश, युद्ध के साधन के रूप में भोजन की कमी को जानबूझकर इस्तेमाल करने की बात करती है।
गज़ा में नरसंहारी हमले के समानांतर, पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में जीवन और भी भयानक हो गया था। जहां अवैध यहूदी बस्तियों का विस्तार हुआ था, साथ ही "बड़े पैमाने पर हिरासत, गिरफ्तारी, यातना और दुर्व्यवहार" देखा गया। मनमाने ढंग से लगाए गए कर्फ्यू ने दैनिक जीवन को लगभग असंभव बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप "आर्थिक गला घोंटना" जारी रहा। जब सशस्त्र सेटलर्स वाले गिरोह अपने खुद के उत्पात को अंजाम नहीं दे रहे थे, तो आईडीएफ रोज़ाना लगातार घातक छापे मारती थी।
इस बीच, कब्जे वाले फ़िलिस्तीनी इलाकों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रिपोर्टर, फ्रांसेस्का अल्बानीज़ ने महासभा के विचार के लिए दो रिपोर्टें दायर की हैं। इनमें से पहली रिपोर्ट मार्च में प्रकाशित हुई और जुलाई 2024 में आधिकारिक स्वीकृति दी गई, जिसमें गज़ा में पांच महीने तक चले सैन्य हमलों के बाद पैदा हुई स्थिति का सारांश दिया गया:
...इज़राइल ने गज़ा को नष्ट कर दिया है। 30,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें 13,000 से ज़्यादा बच्चे शामिल हैं। माना जा रहा है कि 12,000 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और 71,000 घायल हैं, जिनमें से कई के शरीर पर गंभीर चोटें आई हैं। सत्तर प्रतिशत आवासीय क्षेत्र नष्ट हो गए हैं। अस्सी प्रतिशत आबादी को जबरन विस्थापित किया गया है। ...हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया गया है और व्यवस्थित ढंग से उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया है। आने वाली पीढ़ियों को इस अकल्पनीय सामूहिक आघात का सामना करना पड़ेगा।
इसके कुछ अपरिहार्य निष्कर्ष निकले: “इज़राइल ने नरसंहार करने की सीमा को पार कर लिया है”, और “अधिक व्यापक रूप से” देखा जाए तो इज़राइल की कार्रवाइयों के पीछे की हक़ीक़त “फिलिस्तीन में उसके उपनिवेशवादी-कॉलोनी प्रोजेक्ट का अभिन्न अंग था”। यह एक “पूर्वानुमानित त्रासदी” का संकेत था क्योंकि इज़राइल ने दशकों से, दुनिया के सामने, “सैन्य कब्जे के माध्यम से अपने उपनिवेशवादी-कॉलोनी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया है, जिससे फ़िलिस्तीनी लोगों से उनके आत्मनिर्णय के अधिकार को छीन लिया गया है”।
1 अक्टूबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट में, अल्बानीज़ ने इन निष्कर्षों पर एक शीर्षक दिया: "उपनिवेशवाद के रूप में नरसंहार"। गज़ा पर हमले के बहुत पहले ही संकेत भेज दिए गए थे। 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल के दक्षिणी क्षेत्र में फिलिस्तीनी प्रतिरोध सेनानियों द्वारा सशस्त्र आक्रमण के एक सप्ताह के भीतर, इजराइल ने गज़ा पट्टी के उत्तर में 10 लाख से अधिक फ़िलिस्तीनियों को दक्षिण की ओर जाने का आदेश जारी किया था। 24 घंटे के भीतर इसके अनुपालन की मांग की गई, जिसे विशेष ऑब्जर्वर ने "इतिहास में सबसे तेज़ सामूहिक विस्थापनों में से एक" माना।
अल्बानीज़ ने तब “जानबूझकर बड़े पैमाने पर किए जाने वाले एथनिक सफाए के जोखिम की चेतावनी दी थी”, और उनके लिए बहुत खेद की बात है कि यह “भविष्यवाणी सच साबित हुई”। उसके बाद से उन्होंने जो अनुमान लगाए हैं, वे विशेष समिति के निष्कर्षों के अनुरूप हैं: “इज़राइली अधिकारियों और अन्य द्वारा फ़िलिस्तीनियों को गज़ा छोड़ने और इज़राइलियों को ‘गज़ा में वापस बसाने’ और 2005 में ध्वस्त किए गए उपनिवेशों का पुनर्निर्माण करने के आह्वान के बीच, गज़ा में कम से कम 90 प्रतिशत फ़िलिस्तीनियों को अब जबरन विस्थापित कर दिया गया है – कई को तो दस से ज़्यादा बार विस्थापित किया गया है।”
विशेष प्रतिवेदक की जुलाई की रिपोर्ट में कहा गया है कि किस तरह से इजराइल की कार्रवाई 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए नरसंहार कन्वेन्शन में सूचीबद्ध हर एक मानदंड को पूरा करती है। नरसंहार एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है जिसके लिए हर देश को दंडित करना ज़रूरी है। नरसंहार का कोई औचित्य नहीं हो सकता है, और इसकी रोकथाम एक अनिवार्य मानदंड है।
दक्षिण अफ्रीका एक अकेला ऐसा देश था जिसने गज़ा पर इजराइल के हमले के शुरुआती कुछ महीनों में ही इसे स्पष्ट रूप से देख लिया था। दिसंबर 2023 में इसने हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में याचिका दायर की, जिसमें जीनोसाइड कन्वेन्शन के तहत इजराइल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पाने कई पहले के आदेशों में पाया कि दक्षिण अफ्रीका द्वारा दावा किए गए अधिकारों की रक्षा में "अनंतिम उपायों" की जरूरतें पूरी की गई थीं। हालांकि, याचिकाकर्ता के सुझाए उपायों के अलावा अन्य उपायों को निर्धारित करने की स्वतंत्रता थी।
इस प्रकार, आईसीजे ने दक्षिण अफ्रीका की मांग के अनुसार तत्काल युद्ध विराम का आदेश नहीं देने का फैसला किया, और इसके बजाय, मांग की कि इजराइल को जीनोसाइड कन्वेन्शन के अनुच्छेद II के तहत परिभाषित “सभी कृत्यों को लागू करने को रोकने के लिए” अपनी शक्ति के भीतर सभी उपाय करने चाहिए। अनुच्छेद II के तहत नरसंहार के अपराध का गठन करने वाले पांच अलग-अलग कृत्यों में से, आईसीजे ने विशेष रूप से इजराइल को चार कृत्यों से परहेज करने को कहा था।
इस साल 28 मार्च को, आईसीजे ने दक्षिण अफ्रीका के एक तत्काल अनुरोध का जवाब देते हुए अपने पिछले आदेश की फिर से पुष्टि की। इसने आगे इजराइल से कहा कि वह मौजूदा “विनाशकारी स्थिति” को देखते हुए “बिना किसी देरी के, संयुक्त राष्ट्र के साथ पूर्ण सहयोग में, सभी संबंधित पक्षों द्वारा तत्काल आवश्यक बुनियादी सेवाओं और मानवीय सहायता के बड़े पैमाने पर बिना रोकटोक के प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक और प्रभावी उपाय करे”। इन आपूर्तियों में “भोजन, पानी, बिजली, ईंधन, आश्रय, कपड़े, स्वच्छता और सफाई संबंधी आवश्यकताएं, साथ ही चिकित्सा आपूर्ति और चिकित्सा देखभाल” शामिल होनी चाहिए। उन्हें “पूरे गज़ा में दिया जाना था, जिसमें भूमि क्रॉसिंग बिंदुओं की क्षमता और संख्या बढ़ाना और उन्हें जब तक आवश्यक हो तब तक खुला रखना शामिल है”।
10 मई को, दक्षिण अफ्रीका ने गज़ा की सबसे दक्षिणी प्रशासनिक इकाई राफा पर हमले की क्रूरता के मद्देनजर एक और तत्काल अनुरोध प्रस्तुत किया। गज़ा की अधिकांश आबादी दक्षिण में बसी हुई है, इसलिए ऐसा लग रहा था कि इजराइल उन आखिरी इलाकों को भी खत्म करने की कोशिश कर रहा है, जहां जीवन अपेक्षाकृत सुरक्षित हो सकता था।
दो सप्ताह बाद, आईसीजे ने अपना तीसरा आदेश जारी किया, जिसमें पहले के आदेशों का पूर्ण अनुपालन करने की जरूरत पर जोर दिया गया, तथा इस अनिवार्य मांग को जोड़ा गया कि इजराइल को “रफा प्रांत में अपने सैन्य आक्रमण तथा अन्य किसी भी कार्रवाई को तुरंत रोकना चाहिए, जो गज़ा में फिलिस्तीनी समूह पर जीवन की ऐसी परिस्थितियों को थोप सकती है, जिससे उनका संपूर्ण या आंशिक रूप से भौतिक विनाश हो सकता है”। आईसीजे ने इससे अधिक कुछ नहीं किया, हालांकि आदेश युद्ध विराम तथा “पूरी गजा पट्टी से” इजराइली सेना की बिना शर्त वापसी की दक्षिण अफ्रीका की मांग को पूरी तरह से स्वीकार करने से चूक गया।
जबकि आईसीजे में धीमी गति से विचार-विमर्श जारी है, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी), जो संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के बाहर स्थापित एक निकाय है, जिसका काम प्रतिबंध लगाना और दंडित करना (केवल सलाह देने के बजाय) है, अपने मुख्य अभियोजक द्वारा इजराइली राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने के अनुरोध को अति पीड़ा देनेवाला मान रहा है।
इसे संतुलित करने के प्रयास में, मुख्य अभियोजक करीम खान ने फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधी समूह हमास के तीन नेताओं - इस्माइल हनीया, मोहम्मद देफ और याह्या सिनवार - के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट का भी अनुरोध किया है, जिन्हें इजराइल ने निशान बनाकर पहले ही मार दिया है।
इससे आईसीसी के पास यह तय करने का आसान काम रह जाता है कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री (अब बर्खास्त) योआव गैलेंट को न्याय के कटघरे में कब लाया जाना चाहिए। 19 नवंबर को अनुरोध किया गया था जिसे अब 183 दिन हो चुके हैं और आईसीसी ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। तुलना का एक मानक, जहां कपटता की गहराई का पता चलता है कि, मार्च 2023 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट का अनुरोध किया था जिसे मात्र 23 दिनों के भीतर स्वीकार कर लिया गया था।
यह विश्वसनीय रूप से रिपोर्ट किया गया है कि इजराइल ने पिछले दिनों अपने काम की जांच के मामले में आईसीसी अधिकारियों को धमकाया और ब्लैकमेल किया था। इसे मूल रूप से समझा जा सकता है कि करीम खान ने गज़ा पर हमला शुरू करने के बाद सात महीने से भी कम समय में पहला कदम क्यों उठाया। यह भी स्पष्ट है कि हाल के दिनों में उसके कथित गुप्त यौन उत्पीड़न के मामले में क्यों जांच की गई।
यू.के. और यू.एस. के खुफिया प्रमुखों ने हाल ही में अपना पहला संयुक्त लेख प्रकाशित किया, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि रूस ने यूरोप में युद्ध-मोर्चा खोलकर शीत युद्ध के बाद से वैश्विक व्यवस्था के प्रति सबसे बड़ा खतरा पैदा कर दिया है।
अक्सर कहा जाता है कि कानून हुकूमत के हितों की रक्षा का बारीक आवरण है। और जब दोनों के बीच कोई खुला टकराव होता है, तो हुकूमत ही जीतती है।
सुकुमार मुरलीधरन, दिल्ली में स्थित स्वतंत्र लेखक व शोधकर्ता हैं। ये उनके निजी विचार हैं।
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