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इज़रायल का ख़ूनी और अमानवीय अतीत

इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के भारत पहुंचने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ज़ोरदार स्वागत किया गया लेकिन यह जश्न इज़रायल का ख़ूनी और अमानवीय अतीत छिपा नहीं सकताI
मोदी
Image Courtesy: Dawn

भारत ने भले ही फिलिस्तीन को अपनी खोई हुई ज़मीन को पुनः प्राप्त करने और अपने देश को इज़रायल से स्वतंत्र करने के लिए फिलिस्तीनी संघर्ष का लगातार समर्थन किया था लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने इज़रायल के साथ दोस्ती बढ़ाने की दिशा में एक अलग रूख दिखाया है। वर्ष 2014 में आरएसएस समर्थित भाजपा सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है। दमन और हिंसा के उसके क्रूर इतिहास को नज़रअंदाज़ कर इज़़रायल को एक साहसी राष्ट्र और भारत के मित्र के रूप में पेश किया जा रहा है। इज़़रायल के बारे में यहां कुछ चौंकाने वाले तथ्य ये है जिसे हम भूल जाते हैं।

फिलिस्तीन

Credit: If Americans Knew

800,000 से भी ज़्यादा फिलिस्तीनियों को उजाड़ कर इज़राइल बनाया गया

वर्ष 1920 में फिलिस्तीन की अनुमानित आबादी लगभग 6,03,000 थी। इनमें से अरब मूल की 90% और यहूदियों की 10% आबादी थी। अरबवासियों की आबादी में मुस्लिम और ईसाई दोनों शामिल थें। यूरोप में ब्रिटिश ज़ियोनिस्ट और यहूदी विरोधी कार्रवाई के चलते अगले 16 वर्षों में यहूदियों की बड़ी संख्या फिलिस्तीन में प्रवास कर गई। साल 1936 तक यहूदियों की संख्या बढ़कर 3,85,400 हो गई (कुल आबादी का 27.8%) जबकि अरब मूल के लोगों की आबादी 9,83,200 रही। साल 1947 और 1950 के बीच 531 गांवों और शहरों को नस्लीय आधार पर सफ़ाया किया गया और लोगों को उनकी पैतृक भूमि से पलायन करने को मजबूर किया गया था। क़रीब 8,04,767 अरबी फिलिस्तीनियों ने आस-पास के देशों में शरण लिया। 1950 में इस लड़ाई से यहूदी स्वामित्व वाली भूमि का क़ब्ज़ा 8% से बढ़कर 85% हो गया। पश्चिमी शक्तियों द्वारा समर्थित ज़िओनिस्ट ताक़तों द्वारा फिलीस्तीनियों से नस्लीय संघर्ष में 33 गाँवों/इलाकों में सामूहिक हत्या की गई।

 

स्रोत: माज़िन क्यूसिय की पुस्तक Sharing the Land of Canaan: Human Rights and the Israeli-Palestinian Struggle, जिसका कुछ अंश  Americans for Peace Now (ये  Shalom Achshav का सहयोगी संगठन है) में प्रकाशित किया गया, जो इज़रायल का प्रख्यात शांति आंदोलन है।

 

इज़राइल

Credit: Digital Journal

मृतकों की संख्या: वर्ष 2000 से अब तक क़रीब 10,000 फिलिस्तीनियों की हत्या की गई

 

वर्ष 2000 के बाद से अब तक हुए संघर्ष में 9510 फिलिस्तीनी और 1242 इज़रायली मारे गए हैं इनमें 2167 फिलीस्तीनी बच्चे और 134 इज़रायली बच्चे शामिल हैं।

जबकि इसी अवधि में 95,299 फिलिस्तीनी और 11895 इज़रायली घायल हुए हैं।

इतनी बड़ी संख्या में मौत प्रत्यक्ष रूप से विपक्षी कार्रवाइयों के कारण हुई। इसमें कुपोषण या इज़रायल के अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव जैसे गाजा की नाकाबंदी आदि फिलीस्तीनियों की मौत में शामिल नहीं है।

[स्रोत:  B’Tselem, The Israeli Information Center for Human Rights in the Occupied Territories]

 

चिल्ड्रेन

Credit: mirror.co.uk

राजनीतिक क़ैदीइज़राइल की जेलों में 6000 से ज़्यादा फिलीस्तीनी क़ैदी बंद हैं

इज़रायल की जेलों में 6296 फ़िलिस्तीनी राजनीतिक क़ैदी बंद हैं जिसमें 300 बाल क़ैदी और 65 महिला क़ैदी शामिल हैं। इनमें से 520 को उम्र क़ैद की सज़ा दी जा चुकी है जबकि 466 क़ैदियों को 20 साल या इससे ज़्यादा की सज़ा दी गई है।

वहीं फिलिस्तीन की जेलों में एक भी इज़रायली क़ैदी नहीं है।

[स्रोत:  Addameer Prisoner Support and Human Rights Association]

पोलिटिकल कैदी

Credit: Countercurrents

फिलिस्तीनियों के क़रीब 50,000 घरों को ध्वस्त कर दिया गया है

वर्ष 1967 से अब तक इज़रायलियों ने फिलीस्तीनियों के 48,488 घरों को ध्वस्त कर दिया है, जबकि फ़िलिस्तीनियों द्वारा एक भी किसीइज़़रायली के घरों को गिराने की जानकारी नहीं है।

बी सेलेम ( B’Tselem) के मुताबिक़ इज़रायली रक्षा बलों ने अपनी नीति के अनुसार सामूहिक विध्वंस के तीन प्रकारों से घरों को नष्ट किया: 1)सैन्य आवश्यकताओं के लिए 'सफाई अभियान'; 2) पश्चिमी तट के क्षेत्र 'सी' में अनधिकृत घरों के प्रशासनिक विध्वंस जहां इज़रायली अभी भी जबरन नियोजन और निर्माण प्राधिकरण को बरकरार रखे हुए है और 3) इजरायल नागरिकों या सैनिकों पर हमले में शामिल होने के संदेह में फिलीस्तीनियों के रिश्तेदारों और पड़ोसियों को दंडित करने के लिए घरों को ध्वस्त करना।

ध्यान दें कि ये आँकड़े केवल 'ढ़ाचागत' है अर्थात एक इमारत में अगर तीन मंज़िल है और उसमें तीन परिवार रहते थें तो उसकी गणना केवल एक की गई।

[स्रोत: The Israeli Committee Against Home Demolitions]

डेमोलिशन

Credit: russian.palinfo.com

वर्ष 1967 के बाद इज़रायल ने 5,00,000 यहूदियों को फिलिस्तीनी भूमि पर जबरन बसाया

इज़रायल ने फिलिस्तीनी भूमि पर 261 बस्तियों का निर्माण किया जिसमें 163 'यहूदी' बस्ती और 98 सीमांत बस्ती थें। इसमें पूर्व येरूशलम के आस पास की 24 बस्तियां शामिल हैं।

साल 1967 के युद्ध के बाद जबरन भूमि पर क़ब्ज़ा करने और इज़रायली नागरिकों को इस पर बसाने की नीति अपनाई गई। 5,00,000 से ज़्यादा इजरायली नागरिक अब पश्चिमी तट पर रह रहे हैं। ज़ब्त भूमि को संवृत सैन्य क्षेत्र घोषित किया गया और वहां रहने वाले या फिलीस्तीनियों को खेती के लिए भूमि का इस्तेमाल करने के लिए सेना की अनुमति के बिना इलाक़े में प्रवेश करने के लिए रोक लगा दिया गया है। फिलीस्तीनी बस्तियों को अलग कर दिया गया और उनकी गतिविधियों के लिए और सशस्त्र सेना द्वारा उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए सड़कों और बाईपास की एक जटिल प्रणाली का निर्माण किया गया।

[स्रोत:  Americans for Peace Now, ये संगठन शालोम एचशव (Shalom Achshav) का सहयोगी संगठन है जो इज़रायल का प्रख्यात शांति आंदोलन है।]

इज्रेली यहूदी

Credit: Al Jazeera

यूएन ने ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों के लिए इज़रायल की 77 बार निंदा की

यूएन ने वर्ष 1955 और 2013 के बीच शरणार्थियों के मुख्य मुद्दे येरूशलम पर क़ब्ज़ा और अपनी सीमाओं के विस्तार के अलावा पड़ोसियों पर अवैध हमले,मानवीय अधिकारों के उल्लंघन, फिलीस्तीनी भूमि पर क़ब्ज़ा करने, अवैध बस्ती, और संयुक्त राष्ट्र चार्टर और जेनेवा कन्वेंशन का इज़रायल द्वारा उल्लंघन के चलते लेकर इज़रायल के ख़िलाफ़ 77 बार प्रस्ताव पारित किया।

फिलिस्तीनियों को संयुक्त राष्ट्र के ऐसे केवल एक संकल्प द्वारा निशाना बनाया गया।

इस तरह अमेरिका द्वारा समर्थित इज़रायल की दंड से मुक्ति है जिसने वैश्विक संगठन द्वारा इस निंदा की तरफ़ ध्यान नहीं दिया और बिना संकोच के अपनी नीतियां बढ़ाना जारी रखा।

[स्रोत: Americans for Peace NowShalom Achshav की सहयोगी संस्था जो इज़रायल की प्रख्यात शांति आंदोलन है, 1955 से 1992 तक के प्रस्तावों के लिए पॉल फिंडले की पुस्तक  Deliberate Deceptions (1998, पृष्ठ 192-4) और 1993 से 2013 तक के प्रस्तावों के लिए UN.org ] 

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Credit: The Times of Israel

इज़राइल को अमेरिका का भरपूर सहारा

1949 से 2016 के दौरान अमेरिका ने इज़राइल को 131.1 बिलियन डॉलर की मदद दीI यह दुनिया में किसी भी और देश से ज़्यादा हैI इस पूरी रकम में से लगभग 68 बिलियन डॉलर 1949 से 1996 के बीच 47 साल के लम्बे अर्से में दिया गया, जबकि 62.1 बिलियन डॉलर पिछले 20 सालों में दिए गयेI इस 20 साल के अर्से में ही अमेरिका की तरफ से धीरे-धीरे आर्थिक मदद को कम कर उसकी जगह सैन्य सहायता देना शुरू किया गयाI साल 2017 में अमेरिका ने 3.7 बिलियन डॉलर ‘Foreign Military Financing’ (विदेशों को सैन्य मदद) के लिए रखेI अमेरिका दुनियाभर में जितनी भी सैन्य मदद कर रहा है उसका यह कुल 54% हैI

[स्रोत: US Foreign Aid to Israel, Congressional Research Service, 2016 ]

 

 

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Credit: Fortune

युद्ध और हिंसा का वैश्विक निर्यातक है इज़रायल

इज़़राइल रक्षा पर अपनी सकल घरेलू उत्पाद का 5.4% ख़र्च करता है जो कि इस क्षेत्र में ख़र्च करने वाले दुनिया के देशों में से एक है। अमेरिका द्वारा पोषितइज़़रायल हथियारों का प्रमुख निर्यातक बन गया है। एसआईपीआरआई के अनुसार वर्ष 2017 में यह दुनिया का 7वां सबसे बड़ा हथियार निर्यातक था। यह दुनिया भर केदक्षिणपंथी प्राणघातक दस्ते, तानाशाहों और दमनकारी शासनों के लिए विशेषज्ञता और हथियारों की आपूर्ति के लिए जाना जाता है।

फिलिस्तीन

Credit: Al Jazeera

वर्ष 1949 में स्थापना के बाद से इज़रायल आक्रामक रूप से कई घोषित और अघोषित युद्धों और कई अन्य सैन्य कार्रवाइयों में शामिल हुआ जिन्हें आधिकारिक तौर पर इजरायल के राज्यों द्वारा युद्ध नहीं कहा जाता है लेकिन वास्तव में ये युद्ध हैं। प्रमुख युद्ध हैं: 'स्वतंत्रता संग्राम' (1947-49); स्यूज़-सिनाई युद्ध (1956); छह दिवसीय युद्ध (1967); एट्र्रिशन युद्ध (1967-70); 'योम किप्पर' युद्ध (1973); प्रथम लेबनान युद्ध (1982-85); द्वितीय लेबनान युद्ध (2006);प्रथम गाजा युद्ध (2008-09); द्वितीय गाजा वॉर (2012); तृतीय गाजा युद्ध (2014)। इसके अलावा, इसने आधिकारिक तौर पर फिलिस्तीनी विद्रोह(इंतिफादा) के दमन को युद्ध के रूप में सूचीबद्ध किया है। ये पहला इंतिफादा (1973- 93) और दूसरा (अल-अक्सा) इंतिफादा (2000-05) था। वर्ष1982 में सबरा और शेतिला शरणार्थी शिविर नरसंहार सहित इन सभी युद्धों को नागरिकों के क्रूर नरसंहारों के रूप में जाना जाता है।

[स्रोत:  MERIP और JVL]

 

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