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बनारसः "कछुओं को कैसे पता कि उनका घर बदल गया है!" 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍युनल (एनजीटी) ने टेंट सि)टी और कछुआ सेंचुरी शिफ्टिंग मामले सुनवाई की।
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा पार रेतीले मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस पांच सितारा कॉटेज और टेंट सिटी का उद्घाटन किया था वह परियोजना फिलहाल खटाई में पड़ गई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सख्त रुख को देखते हुए टेंट सिटी बसाने वाली गुजरात की दोनों कंपनियों निरान और प्रवेग ने अपने कदम खींच लिए हैं। इस बीच, टेंट सिटी बसाने और कछुआ सेंचुरी शिफ्टिंग मामले की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने बेहद कड़े शब्दों में नाराजगी जाहिर की और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से सवाल किया है, "बनारस में कछुओं को कैसे पता कि उनका घर बदल गया है? किसी भी सेंचुरी का आकार घटाया और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन उसे दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जा सकता है।"

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रधान पीठ के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल ने टेंट सिटी और कछुआ सेंचुरी के मामले की सुनवाई के बाद सख्त आदेश जारी करते हुए बनारस के कलेक्टर को निर्देश दिया है कि वह टेंट सिटी बसाने वाली दोनों कंपनियों से पर्यावरणीय जुर्माना वसूलकर सरकारी खजाने में जमा कराएं। एनजीटी ने दोनों कंपनियों पर समान रूप से 17 लाख 12 हजार 500 रुपये जुर्माना लगाया है। एनजीटी ने पिछले साल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय पर सचिव पर नियमों का उल्लंघन करने पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। जुर्माने की इस धनराशि को घटाकर अब पांच हजार रुपये कर दिया गया है। केंद्रीय पर्यावरण सचिव ने इस मामले की सुनवाई कर रहे पीठ के समक्ष एक याचिका दायर करते हुए जुर्माना राशि पूरी तरह समाप्त करने का आग्रह किया था।

बनारस के जाने-माने अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगा की रेत पर पांच सितारा सुविधाओं वाली टेंट सिटी परियोजना को पूरी तरह से रद्द कराने और कछुआ सेंचुरी को शिफ्ट किए जाने के खिलाफ पिछले साल याचिका दायर की थी। इनका कहना था कि, "चंद लोगों को ऐशो आराम देने के लिए कायदे-कानून को ताक पर रखकर टेंट सिटी बसाई गई। साथ ही मनमाने तरीके से कछुआ सेंचुरी को शिफ्ट कर दिया गया। कुछ लोगों को लाभ देने के लिए गंगा के कछुओं को मार डाला गया। इनका कहना था कि कछुआ सेंचुरी की बाउंड्री को थोड़ा बदला जा सकता है, लेकिन कछुओं को शिफ्ट नहीं किया जा सकता।"
एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 13जनवरी 2024 को टेंट सिटी और कछुआ सेंचुरी के मामले में सुनवाई करते हुए एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि कछुओं को कैसे पता कि उनका घर बदल गया है। कछुआ सेंचुरी शिफ्ट किए जाने से संबंधित अधिसूचना वापस लेने का अधिकार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को नहीं है। ट्रिब्यूनल ने सवाल किया कि मंत्रालय ने कछुआ सेंचुरी की अधिसूचना वापस लेने की जानकारी कछुओं को कैसे पता लगी? वहां से कछुए कहां चले गए? कछुआ सेंचुरी को कागज पर अधिसूचित करके नहीं हटाया जा सकता। आखिर कछुआ होंगे तभी आपने उसको कछुआ अभयारण्य घोषित किया होगा, फिर कछुए गए कहां गए?

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के तीन जजों की पीठ ने 06 फरवरी 2024 को इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि आखिर कछुआ सेंचुरी यहां से हटाया ही क्यों गया? इसके लिए यहां पर पहले से मौजूद कछुआ सेंचुरी को कहीं और शिफ्ट कर दिया गया। क्या कोई प्राकृतिक वास स्थान कहीं दूसरी जगह पर शिफ्ट किया जा सकता है? कछुए तो वहीं, आएंगे जहां का वातावरण उनके लिए मुफीद है। एनजीटी ने अपने आदेश में टेंट सिटी बसाने वाली दोनों कंपनियों पर 17,12,500 का पर्यावरणीय मुआवजा देने का आदेश दिया है। बनारस के कलेक्टर को निर्देश दिया गया है कि वह यथाशीघ्र वसूली कराएं।

साल 2023 में वाराणसी में गंगा किनारे दो निजी कंपनियों निरान और प्रवेग ने टेंट सिटी स्थापित किया था। बनारस में गंगा किनारे बसाया गया तंबुओं का शहर रसूखदारों का लग्जरियस होटल सरीखा था। एक कॉटेज से 25-30 हज़ार रुपये तक वसूले गए थे। कायदे-कानून को ताक पर रखकर टेंट सिटी के आयोजकों ने शादियां कराईं। पवित्र नदी गंगा की अस्मिता तार-तार होती रही। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि गंगा के किनारे वाराणसी में टेंट सिटी परियोजना की स्थापना वाणिज्यिक उद्देश्यों की पूर्ती के लिए की गई थी, जो वनस्पति और जीवजंतुओं के लिए हानिकारक है। परियोजना प्रबंधकों ने "नदी गंगा (पुनर्जीवन, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण के आदेश-2016" का पालन नहीं किया।

ट्रिब्यूनल ने बनारस में गंगा पार टेंट सिटी बसाए जाने के दौरान बरती गई अनियमितताओं की जांच के लिए पिछले साल एक संयुक्त समिति का गठन किया था, जिसने 24 मई 2023 को रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि टेंट सिटी बसाने वाली कंपनियों ने जमकर मनमानी की। उन्होंने पूर्व एक्सेप्टेड ऑपरेशन टू ऑपरेट (सीटीओ) हासिल किए बगैर ही परियोजना का संचालन किया। जल प्रतिरोध और नियंत्रण अधिनियम और 1981 के वायु (प्रतिरोध और नियंत्रण) अधिनियम के तहत दोनों कंपनियों ने अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेने की जरूरत नहीं समझी। सुनवाई के दौरान टेंट सिटी परियोजना के संचालकों की ओर से कहा गया कि इस साल टेंट सिटी की स्थापना के लिए कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

एनजीटी ने 30 अक्टूबर 2023 कहा कि वाराणसी के गंगा के किनारे टेंट सिटी की स्थापना एक मौसमिक गतिविधि है। साल 2022-2023 के लिए परियोजना प्रस्तावक ने टेंट सिटी की स्थापना की थी जो 16 जनवरी 2023 को संचालित की गई थी। 31 मई 2023 को मॉनसून के आने से पहले बंद कर दी गई थी। टेंट सिटी का मामला जब ट्रिब्युनल में पहुंचा तो 15 दिसंबर 2023 को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के सदस्य सचिव को एनजीटी के सामने पेश होने का आदेश दिया और कहा, "वह यह भी बताएंगे कि नदी तल/तट पर पर्यावरण कानूनों का इतना बड़ा उल्लंघन क्यों किया गया है, जहां कंक्रीट संरचनाएं खड़ी की गई हैं, जो पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं, उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने की कार्रवाई आज तक क्यों नहीं की गई है।" ट्रिब्युनल को रिपोर्ट मिली कि टेंट सिटी की निर्माण सामग्री और संरचनाएं नदी के किनारे पड़ी हुई हैं। ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश स्थित उत्तर प्रदेश पल्युशन कंट्रोल ब्यूरो (यूपीपीसीबी) के सदस्य सचिव को आगाह किया कि अब तक यूपीपीसीबी द्वारा नुकसान पहुंचाने के लिए कोई कार्रवाई क्यों नहीं ली गई?]

सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश पल्युशन कंट्रोल ब्यूरो (उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के सदस्य सचिव ने वर्चुअल मोड के माध्यम से ट्रिब्यूनल को बताया कि टेंट सिटी के परियोजना प्रबंधकों से जुर्माना राशि वसूलकर सरकारी खजाने में जल्द ही जमा करा दी जाएगी। सुनवाई के दौरान एनजीटी ने कछुआ सेंचुरी के मुद्दे को गंभीरता से लिया और इसे शिफ्ट किए जाने का खास कारण पूछा। इस पर सरकारी अधिवक्ता ने बताया कि कछुआ सेंचुरी को निरस्त किए जाने का एक वाद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। एनजीटी को वन्य जीव कानून के मामले में सुनवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। विभिन्न समितियों की सहमति के बाद बनारस में कछुआ सेंचुरी को डी-नोटिफाई किया गया।

ट्रिब्यूनल का कहना है कि आप एरिया अल्टर कर सकते हैं, लेकिन किसी अभ्यारण को शिफ्ट नहीं कर सकते। किसी भी कानून में ऐसा करने की आजादी नहीं दी गई है। कछुआ सेंचुरी का मामला भले ही वाइल्ड लाइफ एक्ट एनजीटी के दायरे में नहीं है, लेकिन इससे जलीय जीवों पर असर पड़ेगा तो एनजीटी इस मामले में विचार कर सकता है। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को जवाब देने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई 12 अप्रैल 2024 को होगी। एनजीटी ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को कछुआ सेंचुरी के निरस्त करने के मामले को पीठ के समक्ष रखने का आदेश दिया है।

13 जनवरी 2023 को टेंट सिटी परियोजना का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, "इस परियोजना के साथ काशी आने वाले पर्यटकों और भक्तों को अब आवास का एक अविश्वसनीय साधन मिल गया है। पर्यटन की संभावनाओं का दोहन करने के लिए टेंट सिटी परियोजना विकसित की गई है। पर्यटक स्थित गंगा घाटों से नावों के जरिये टेंट सिटी तक पहुंच सकते हैं।" जनवरी 2023 में पहली बार गंगा पार रेती पर बसाई गई टेंट सिटी को बसाने में मानकों के उल्लंघन का आरोप है। इस मामले में एनजीटी ने शासन और प्रशासन को भी निशाने पर लिया है। ऐसे में इस वर्ष टेंट सिटी बसाने की योजना को धरातल पर नहीं उतारा जाएगा। पहली बार गंगा पार रेती पर टेंट सिटी जनवरी 2023 में बसाई गई थी। 14 जनवरी से 31 मई तक टेंट सिटी का संचालन कराया गया और इस दौरान करीब 60 हजार से ज्यादा सैलानियों ने टेंट सिटी का लुत्फ उठाया था। टेंट सिटी की मांग को देखते हुए कंपनियों ने नंवबर से मई तक टेंट सिटी बसाने का निर्णय लिया था। मगर, मामला एनजीटी में जाने के बाद इस योजना पर ग्रहण लग गया। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि टेंट सिटी को पूरी तरह बसाने में करीब दो महीने का वक्त चाहिए होगा। फिलहाल, न्यायालय में मामला होने के चलते अभी इसकी शुरुआत के आसार नहीं है।

न्यूजक्लिक ने गंगा पार रेती पर टेंट सिटी के बाद के हालात को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सौरभ तिवारी के माध्यम से 13 दिसंबर 2023 को दायर शपथ पत्र में टेंट सिटी स्थल पर निर्मित ईंट, लोहे के छड़ से हुए निर्माण की खबर को को एनजीटी ने गंभीरता से लिया और तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह का निर्माण तो नदी तल में हो ही नहीं सकता। एनजीटी की संयुक्त समिति ने मई 2023 में टेंट सिटी परियोजना पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें टेंट सिटी बसाने वाली कंपनियों की तमाम खामियों को उजागर किया गया था। टेंट सिटी की स्थापना के वक्त दावा किया गया था कि गंगा की रेत पर सिर्फ आध्यात्मिक और धार्मिक आयोजनों से जुड़ी गतिविधियां ही की जाएंगी। निर्माण सामग्री एक जून 2023 तक गंगा तट से पूरी तरह हटा दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सूत्रों का कहना है कि वाराणसी विकास प्राधिकरण अगर 2024-25 में टेंट सिटी स्थापित करना चाहता है, तो उसे एनएमसीजी से नए सिरे से मंजूरी लेनी होगी।

अधिवक्ता सौरभ तिवारी कहते हैं,''टेंट सिटी को लेकर लोगों के जेहन में है कि इससे बहुत से लोगों का रोजगार चला जाएगा। बड़ा सवाल यह है कि गंगा नदी है तभी रोजगार है। जब नदी का अस्तित्व ही नहीं बचेगा तो आने वाली पीढ़ियां कैसे जिंदा रह पाएंगी? आज का रोजगार कल का भविष्य चौपट करेगा। लोग सोचते हैं कि गंगा मेरे पाप धोएगी और सब चीज़ों का ख़याल रखेगी। वे भूल जाते हैं कि गंगा आपके पापों का ख़याल रखेगी, लेकिन आपके कचरे का नहीं। टेंट सिटी जैसी परियोजनाएं भूजल पुनर्भरण, नदी की जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्यों को ख़राब करती हैं। साल 1986 से अब तक गंगा निर्मलीकरण के नाम पर 2,500 करोड़ रुपये से ज्यादा ख़र्च किए जा चुके हैं। गंगा की सफ़ाई में केवल पैसा बहाने से स्थिति नहीं बदलेगी।''


(लेखक बनारस के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)
 
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