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कोविड-19 लॉकडाउन : दर-दर भटकते 70 हज़ार  बंगाली प्रवासी मज़दूर

प्रवासी श्रमिकों को सही समय पर सहायता प्रदान करने में राज्य की तृणमूल सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार की विफलता उनकी सरकारों की मंशा पर गंभीर सवाल उठाती है।
कोविड-19 लॉकडाउन
प्रवासी मज़दूरों का एक समूह जिसने बंगला संस्कृती मंच से संपर्क किया था।

लॉकडाउन के तहत संकट में फंसे प्रवासी श्रमिकों की वापसी में सबसे महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक उनकी संख्या पर सटीक डेटा में कमी का होना था तथा उन स्थानों की जानकारी का न होना भी था जहां वे फंसे हुए हैं। गृह मंत्रालय के 1 मई के आदेश के अनुसार, प्रत्येक राज्य को इस डेटा को एकत्र क उसे राज्य सरकारों के साथ साझा करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था, जहां भी संबंधित राज्य के श्रमिक फंसे हुए हैं। इस संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार ने फंसे हुए श्रमिकों की वापसी की यात्रा के अनुरोधों को पंजीकृत करने के लिए एक हेल्पलाइन, ऐप और वेबसाइट की स्थापना की थी, लेकिन अन्य राज्यों की तरह, इनकी वेबसाईट में भी बेहद कमियाँ मौजूद है जो शायद ही सुलभ काम करती है।

हालांकि इन सरकारी माध्यमों से कितने अनुरोधों को अभी तक संसाधित किया गया है उसकी संख्या पर सार्वजनिक डोमेन में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन बंगला संस्कृती मंच द्वारा एकत्र किए गए डेटा और न्यूज़क्लिक द्वारा की गई समीक्षा से पता चलता है कि राज्य के 70,000 से अधिक प्रवासी श्रमिक देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए हैं, और वे सभी अपने घरों को लौटने के लिए बेताब है।

फंसे श्रमिकों के सटीक स्थानों के विवरण के साथ, पूरे के पूरे डेटा को राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को को भी दो बार पेश किया गया है। दोनों ही बार, सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है, अपनी नौकरी एवं वेतन के नुकसान और भूख, भेदभाव, बेचैनी और गृहिकता के अवसाद को झेल रहे इन प्रवासी श्रमिकों की सहायता करने के सरकारों के इरादे पर सवाल खड़ा हो जाता है।

दस्तावेज़ीकरण की शुरूआत

2017 में स्थापित, बंगला संस्कृती मंच (BSM) की पश्चिम बंगाल इकाई की कई जिलों में मजबूत उपस्थिति है, खासकर वहाँ जहाँ से श्रमिक बड़ी तादाद में बाहर काम करने जाते हैं। बंगला मंच ने पिछले तीन वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों की सहायता की है, जिसमें उन्हें दंगों या प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भोजन और राशन की आपूर्ति की गई और विशेषकर 2019 में अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के बाद कश्मीर से 30 बंगला प्रवासियों की वापसी को भी सुलभ किया था।

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कोविड़-19 लॉकडाउन के दौरान लोगों को राशन वितरित करते बंगला संस्कृत मंच के कार्यकर्ता।

24 मार्च को पहली बार राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए बीएसएम ने 12 नंबरों की हेल्पलाइन की शुरुवात की। “हमने उस क्षेत्र के लोगों से कहा कि जिनके भी पास हमारे व्यक्तिगत नंबर हैं वे उन नंबरों को दूसरे राज्यों में फंसे अपने परिवार के सदस्यों को भेज दें, तब उन्हौने हमारे द्वारा दिए गए नंबरों को अन्य श्रमिकों को दे दिया। ”बीरभूम के बारासिजा हाई स्कूल में एक शिक्षक सम्राट अमीन और हेल्पलाइन के प्रभारी बीएसएम सदस्य ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हमने सोशल मीडिया पर भी अपने नंबर प्रसारित कर दिए थे।

“हेल्पलाईन शुरू करने के एक घंटे के भीतर ही कई संकटग्रस्त श्रमिकों से कॉल आने लगे। आमतौर पर, पहला फोन करने वाला यह एक ऐसा व्यक्ति था जो श्रमिकों के एक बड़े समूह की ओर से बात कर रहा था और उसने बताया कि अब उनके पास न तो पैसा है और न ही भोजन, इसके तुरंत बाद हमने अन्य राज्यों में सरकारों और सिविल सोसाइटी समूहों के साथ समन्वय करना शुरू कर दिया ताकि उनके लिए जरूरी व्यवस्था की जा सके।” उक्त बातें मालदा-स्थित मोहम्मद रिपन शेख ने कही जो बीएससी तृतीय वर्ष के छात्र हैं और बीएसएम सदस्य और हेल्पलाइन ऑपरेटर भी हैं।

बीएसएन के सदस्य और हेल्पलाइन ऑपरेटर हलीम हक़ ने बताया, “कुछ श्रमिकों को लगा कि हम सरकारी अधिकारी हैं और उन्हौने हमें उनकी वापसी की व्यवस्था न पाने के लिए गाली दी, खासकर जब से 1 मई से स्पेशल श्रमिक ट्रेनें शुरू की गई। लेकिन उनमें बहुत से लोग रो रहे थे और लगभग सभी श्रमिकों ने कहा कि वे अब घर लौटना चाहते हैं।”

हेल्पलाइन संचालित करने वाले अमीन, शेख, हक़ और अन्य कार्यकर्ताओं ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे मई के दूसरे सप्ताह तक हर दिन 12-14 घंटे कॉल और कंप्यूटर पर डेटा संग्रहीत करने में बिताते थे, यह तब तक जारी रहा जब तक कि यात्रा अनुरोधों को पंजीकृत करने के लिए सरकारी हेल्पलाइन चालू नहीं हो गई थी।

आंकड़े क्या दर्शाते हैं

बीएसएम ने लगभग 35,000 प्रवासी श्रमिकों को राहत देने का काम किया है, जिन्हौने दूसरे राज्यों से बड़े पैमाने पर नागरिक समाज समूहों से समर्थन के लिए फोन किए थे।

अजय रे जो बीएसएम के संस्थापक सदस्यों में से एक और आईआईसीएस (IICS) से पीएचडी कर रहे हैं ने न्यूज़क्लिक को बताया, “हम यह बात जानते थे कि राज्य में प्रवासी श्रमिकों का कोई डेटाबेस नहीं है, और सटीक जानकारी के बिना उनकी सहायता करना कठिन होगा।” नियत समय में, कार्यकर्ताओं ने प्रत्येक फंसे हुए प्रवासी श्रमिक का नाम, आधार संख्या और वर्तमान पते को शामिल कर अपनी सूची को अपडेट किया।

राज्य के 70,000 से अधिक श्रमिक देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए हैं। इनमें से अधिकांश प्रवासी श्रमिक ऐसे जिलों से हैं जिनके पास रोजगार के कुछ अवसर हैं, जैसे बीरभूम, मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर और दक्षिण 24-परगना, हावड़ा और हुगली। पश्चिम बंगाल से जिन राज्यों की तरफ सबसे अधिक प्रवासी श्रमिक कूच करते हैं, उनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, दिल्ली और पंजाब शामिल हैं।

इनकी तरफ़ से मुँह फेरना 

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा को 29 मार्च को एक ईमेल भेजा गया था, बमुश्किल सरकार को तब अपनी हेल्पलाइन शुरू किए तीन दिन हुए थे। तब तक फंसे हुए 8,000 श्रमिकों का विवरण राज्य सरकार के साथ साझा किया जा चुका था, उन्हें वापस लाने के लिए राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने के लिए कहा गया था, और अंतरिम अवधि के दौरान अन्य राज्यों में फंसे इन मजदूरों के लिए भोजन और आश्रय की व्यवस्था की भी दर्खास्त की गई थी।

“कुछ श्रमिकों को सरकार से फोन आए, लेकिन मामला इस पर ही रुक गया। चूंकि श्रमिकों को कोई मदद नहीं मिली, इसलिए हमने 17 अप्रैल को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लिखा और उनके साथ 34,000 फंसे हुए श्रमिकों के विवरण को साझा किया।“ रे ने न्यूज़क्लिक को बताया।

इस बार भी, सरकार ने मदद का वादा किया, लेकिन इस वादे मे फिर से कार्रवाई का अभाव था। 25 अप्रैल को, यानि लॉकडाउन के एक महीने बाद, गृह सचिव अजय भल्ला को एक ईमेल भेजा गया, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे राज्य के 45,000 प्रवासी श्रमिकों की अल्पकालिक और दीर्घकालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया था जिसमें मणिपुर जैसे राज्य भी शामिल है।

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लेकिन सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। 8 मई को, भल्ला को एक और ईमेल भेजा गया, इस बार पश्चिम बंगाल के 70,000 प्रवासी श्रमिकों का विवरण और उनके फंसे होने के स्थान को साझा किया गया, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ।

 

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सरकार के इरादे पर सवाल

तृणमूल कांग्रेस की राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार की विफलता का इस बात से चलता है कि दोनों ही सरकारें प्रवासी श्रमिकों की सहायता करने में असमर्थ रही और इसलिए दोनों सरकारों की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

प्रवासी श्रमिकों के ‘आधार संख्या’ से अपडेट की गई इन सूचियों को कई पार्टियों के राजनीतिक नेताओं के साथ भी साझा किया गया है। जबकि अधिकांश ने मामले पर विचार करने का वादा किया जबकि सरकारें श्रमिकों को भोजन, धन या घर लौटने में सहायता करने के लिए बहुत कम प्रयास करती दिखी हैं।

इस बीच, प्रवासी श्रमिकों का संकट गहरा रहा है। 10 मई को, बीएसएम को राज्य से एक संकटग्रस्त प्रवासी श्रमिक द्वारा पहली आत्महत्या के बारे में जानकारी मिली। अठारह वर्षीय आसिफ़ इक़बाल केरल के एक ईंट भट्टे में काम करता था, जहाँ अन्य राज्यों की तुलना में प्रवासी श्रमिकों के लिए सुविधाएं अपेक्षाकृत बेहतर हैं। कई हफ्तों से घर जाने की ललक में, उसने सुबह लगभग 5 बजे खुद को फांसी लगा ली, इसके बारे में उसके सहकर्मियों ने फोन कर उक्त जानकारी हमारे कार्यकताओं को दी।

बीएसएम के अध्यक्ष समीरुल इस्लाम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जब उन्होंने आसिफ के चाचा को इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की सूचना देने के लिए फोन किया, तो उन्होंने आश्चार्य व्यक्त किया कि क्या तालाबंदी केवल गरीबों के लिए है।“ उन्होंने कहा कि एक तरफ तो अमीर लोग महंगी शराब खरीद रहे हैं और उनके बच्चों को विदेश से जहाज़ में वापस लाया जा रहा है। जबकि हमारे बच्चे घर वापसी के इंतजार में दम तोड़ रहे हैं, क्योंकि वे घर लौटने में असमर्थ हैं।”

उसने पूछा कि "इस तरह कितने ओर लोगों को अपनी जान देनी होगी ताकि सरकारों को महसूस हो सके कि प्रवासी श्रमिकों को तत्काल मदद की ज़रूरत है?”

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

COVID-19 Lockdown: Data Show 70K Bengali Migrant Workers Stranded, Centre, State Turn a Blind Eye

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