‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का बेतुका तर्क
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व, 26 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को संविधान हत्या दिवस यानी “संविधान की हत्या का दिन” जैसा नाम देने का हताशा भरा प्रयास करता दिखाई दे रहा है। स्पष्ट है, बिना किसी विचार किए सत्तारूढ़ पार्टी ने ऐसा किया है, देखना यह होगा कि संविधान के प्रति लोगों की प्रतिबद्धता को जगाने में यह नाम कितना काम आता है। यदि उस दिन वास्तव में संविधान की हत्या कर दी गई थी, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके 240 भाजपा सांसदों सहित 18वीं लोकसभा के सदस्यों ने शपथ कैसे ली?
अगर 50 साल पहले संविधान की “हत्या” की गई थी, तो मोदी सरकार ने हमारे गणतंत्र के इतिहास में पहली बार 26 नवंबर, 2015 को संविधान दिवस मनाने में गर्व क्यों महसूस किया और हर साल ऐसा क्यों करती है? 1949 में उस दिन, संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया था और उसे अधिनियमित किया था, जिसमें कहा गया था कि “हम लोग” “भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का संकल्प लेते हैं।”
यह वह परिवर्तनकारी संविधान है, जिसे "राष्ट्र की आधारशिला" कहा जाता है, जो हमेशा बना रहता है। हाल ही में 18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों में देश की जनता ने संविधान को बचाने को चुनावी मुद्दा बनाया था। तो, हाल ही में सांसद और बाद में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने कैसे भारत के संविधान के प्रति निष्ठा दिखाई और अब एक गजट अधिसूचना जारी कर कह रहे हैं कि 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने इसकी "हत्या" कर दी थी?
महात्मा गांधी की हत्या के दिन को कोई भी ‘गांधी हत्या दिवस’ नहीं कहता है। इंदिरा गांधी की हत्या के दिन को कोई भी ‘इंदिरा गांधी हत्या दिवस’ नहीं कहता है।
निश्चित रूप से, ‘संविधान हत्या दिवस’ की बजाय संविधान सुरक्षा दिवस जैसा कोई बेहतर नाम हो सकता था।
संविधान बचाने को चुनावी मुद्दा बनाने से भाजपा परेशान
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मोदी और शाह सहित भाजपा का शीर्ष नेतृत्व 18वीं लोकसभा में बहुमत खोने से घबरा गया है, क्योंकि कांग्रेस, इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दलों और कई राज्यों की जनता के आम लोगों ने ‘संविधान बचाने’ को चुनावी मुद्दा बना दिया है, क्योंकि तब कुछ भाजपा उम्मीदवारों ने यह दावा किया था कि यदि मोदी और भाजपा 400 से अधिक सीटें जीतने और तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही तो संविधान को बदल देंगे।
पार्टी नेतृत्व इसका मुकाबला करने में असमर्थ थे और अपनी हताशा में, ऐसा प्रतीत होता है कि उसे संविधान हत्या दिवस नाम देने के अलावा कोई रास्ता नहीं सूझा, जिसमें संविधान की रक्षा के लिए लोगों की भावना को ऊपर उठाने के लिए किसी भी प्रकार की शालीनता, अनुग्रह और शिष्टाचार का अभाव है।
आरएसएस का संविधान पर हमला
भाजपा नेतृत्व को यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब संविधान सभा में संविधान का निर्माण किया जा रहा था, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस, जिससे मोदी सहित अधिकांश भाजपा नेता जुड़े हुए हैं, ने संविधान को अपनाए जाने और लागू किए जाने के चार दिन बाद 30 नवंबर, 1949 को अपने मुखपत्र ऑर्गनाइजर में प्रकाशित एक लेख में इसे खारिज कर दिया था।
निंदात्मक लहजे में ऑर्गनाइजर के लेख में कहा गया कि संविधान में कुछ भी ‘भारतीय’ नहीं है और इसके निर्माताओं पर आरोप लगाया कि की इसकी “बड़ी मात्रा” ब्रिटिश प्रथाओं से ली गई हैं, या “अमेरिकी, कनाडाई, स्विस और अन्य विविध संविधानों” के कई प्रावधानों का इस्तेमाल किया गया है और इसलिए इसे तैयार करने में “मनुस्मृति में वर्णित कानूनों” को कभी ध्यान में नहीं रखा गया।
ऑर्गनाइजर ने अपने एक अन्य अंक में बी.आर. अंबेडकर के बारे में बड़ा तीखा लेख लिखा था, जो संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे और जिन्होंने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
दरअसल, जब संविधान लागू नहीं हुआ था, तब आरएसएस के मुखपत्र ने जो लिखा, वह संविधान को उसके शुरुआती अवस्था में ही खत्म करने के बराबर था। इसलिए, अब भाजपा का यह दावा कि 25 जून, 1975 को उसकी हत्या कर दी गई थी, झूठा है और यह अपने लिए बचने का रास्ता खोजने और मतदाताओं को यह संदेश देने के लिए किया गया है कि वह संविधान को कांग्रेस से बचा रही है, जिसने 50 साल पहले इसे “घातक झटका” दिया था।
संविधान पर भाजपा का हालिया हमला
भाजपा नेतृत्व की ओर से यह कहना कि पार्टी संविधान की रक्षा के लिए खड़ी है, लोगों के मन में यह धारणा बनाना कि वह संविधान की रक्षा के लिए खड़ी हुई है, जोकि बहुत ही भोली-भाली बात है। दरअसल, पिछले दो सालों में इसके नेता एसपी सिंह बघेल ने केंद्रीय मंत्री के तौर पर अपमानजनक बयान दिया था कि संविधान का मूल ढांचा हिंदू राष्ट्र है। यहां तक कि उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने भी बेतुका दावा किया था कि संसद के पास संविधान के मूल ढांचे में संशोधन करने का अधिकार है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 1974 में केशवानंद भारती मामले में कहा था कि इसके ‘मूल ढांचे’ को बदला नहीं जा सकता।
संविधान बचाने का लोगों का संकल्प
प्रधानमंत्री मोदी ने 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के अवसर पर यह दावा करके धर्म के मामले में राज्य की तटस्थता के आदर्श का उल्लंघन किया था कि “राम का मतलब राष्ट्र, राम का मतलब राष्ट्र है।” प्रधानमंत्री के पद पर आसीन व्यक्ति की तरफ से इस तरह की घोषणाएं संविधान पर घातक हमला है, जो किसी हिंदू देवता या किसी दैवीय व्यक्ति के नाम पर भारतीय राज्य या भारत को परिभाषित नहीं करता है।
इसलिए प्रधानमंत्री संविधान की मूल भावना के विरुद्ध काम कर रहे हैं, और संविधान के आदर्शों पर हमला कर रहे हैं। अब केंद्रीय गृह मंत्री का यह कहना कि सरकार ने ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का फैसला किया है, हास्यास्पद लगता है और यह जनता की इच्छा के विपरीत है, जिसने लोकसभा में भाजपा का बहुमत छीनकर उसे यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वे भाजपा के हमले से संविधान को बचाने के लिए सबसे आगे हैं।
लेखक, भारत के राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के विऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि रहे चुके हैं। ये उनके निजी विचार हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।