बिधूड़ी प्रकरण को अपने लिए फ़ायदेमंद मान रही है भाजपा
इसी महीने की शुरूआत में जब तमिलनाडु के युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने लेखकों और कलाकारों के एक सम्मेलन में सनातन धर्म को लेकर एक विवादास्पद टिप्पणी की थी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट की मीटिंग में मौजूद अपने मंत्रियों से उस टिप्पणी का 'माकूल’ जवाब देने को कहा था। लेकिन लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी ने बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए जो गाली-गलौच की, उस पर प्रधानमंत्री की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
देश में और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बिना भूले 'सबका साथ, सबका विश्वास और सबका विकास’ तथा 'वसुधैव कुटुंबकम’ का मंत्रोच्चार करने वाले प्रधानमंत्री की इस घटनाक्रम पर यह चुप्पी हैरान करने वाली है। होना तो यह चाहिए था कि प्रधानमंत्री मोदी खुद सदन में आते और सदन के नेता होने के नाते पूरे घटनाक्रम पर खेद जताते हुए अपनी पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी को कड़ी नसीहत देते। वे ऐसा करते तो न सिर्फ पूरे देश में बल्कि दुनिया भर में एक सकारात्मक और आश्वस्तकारी संदेश जाता।
प्रधानमंत्री से ऐसा इसलिए भी अपेक्षित था कि यह पूरा वाक्या संसद की उस नई इमारत में हुआ था जिसका निर्माण उन्होंने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में कोरोना महामारी के दौरान अरबों रुपये के खर्च से कराया था और चार महीने पहले जिसके भव्य उदघाटन समारोह में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्होंने सेंगोल (राजदंड) स्थापित किया था। इस मौके पर उन्होंने कहा था, ''यह संसद भवन केवल एक इमारत नहीं है, बल्कि यह 140 भारतीयों की आकांक्षाओं और सपनों का प्रतिबिंब है। यह हमारे लोकतंत्र का मंदिर है, जो दुनिया को भारत की प्रतिबद्धता का संदेश देता है।’’
संसद की इस नई इमारत में इस पहले और विशेष सत्र की शुरूआत के मौके पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यह भवन सांसदों को नई प्रेरणा और ऊर्जा देगा, जो हमारे लोकतंत्र को और ज्यादा मजबूत व समृद्ध बनाएगी। संसद का विशेष सत्र 18 सितंबर को शुरू हुआ था और 21 सितंबर को उसका समापन हुआ। सत्र शुरू होने से ठीक पहले मोदी ने कहा था कि इस सत्र की अवधि छोटी जरूर है लेकिन इसमें कुछ बड़े और ऐतिहासिक महत्व के काम होने वाले हैं। करोड़ों रुपये के खर्च से चार दिन तक चले सत्र में और जो कुछ हुआ उसे ऐतिहासिक महत्व का कहे जाने पर दो राय हो सकती है लेकिन आखिरी दिन जो हुआ उसे वाकई 'बहुत बड़ा’, 'अभूतपूर्व’ और 'ऐतिहासिक’ मानने से शायद ही कोई इनकार करेगा।
बहरहाल इस पूरे मामले पर प्रधानमंत्री ने जो चुप्पी साध रखी है, वह सामान्य नहीं है। बिधूड़ी ने जो कुछ किया वह भी सुनियोजित था और उस प्रधानमंत्री की चुप्पी भी बहुत सुनियोजित और रणनीतिक है, जिसका संबंध आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों से जुड़ा है। यही वजह है कि जिस समय बिधूड़ी लोकसभा में दानिश अली को गालियां दे रहे थे, उस समय उनके ठीक पास बैठे पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और उनके पीछे बैठे पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सबकुछ सुन कर ठहाके लगा रहे थे। यही नहीं, सत्तापक्ष के कुछ सांसद मेजें थपथपा कर बिधूड़ी की हौसला अफजाई भी कर रहे थे। सदन में मौजूद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी और अन्य मंत्रियों में से भी किसी ने बिधूड़ी को रोकने-टोकने की कोशिश नहीं की। बाद में जब बिधूड़ी के इस व्यवहार का समूचे विपक्ष ने विरोध किया और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अनमने ढंग से खेद व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ''बिधूड़ी जी ने क्या कहा, मैं ठीक से सुन नहीं पाया। फिर भी अगर विपक्ष उनकी बातों से अपने को आहत महसूस करता है तो मैं खेद व्यक्त करता हूं।’’
प्रधानमंत्री की भाव-भंगिमा को समझते-बूझते हुए ही लोकसभा स्पीकर ओम बिडला ने भी रमेश बिधूड़ी को चेतावनी देकर और उनके भाषण के आपत्तिजनक अंशों को सदन की कार्यवाही से निकाल कर अपना 'कर्तव्य’ पूरा कर दिया। इसी तरह पार्टी ने भी बिधूड़ी को कारण बताओ नोटिस देकर उनसे 15 दिनों में जवाब देने को कहा है। लेकिन सब जानते हैं, जिन्होंने नोटिस दिया है वे भी और जिसे नोटिस दिया गया वह भी कि ऐसे नोटिस का कोई औचित्य नहीं है। बिधूड़ी नोटिस का जो जवाब देंगे उससे पार्टी का संतुष्ट होना तय है।
भाजपा के तमाम नेता भी इन सारी बातों को समझते-बूझते ही खुल कर बिधूड़ी का बचाव कर रहे हैं। सोशल मीडिया में भाजपा के समर्थक शुरू दिन से ही माहौल बनाए हुए हैं कि बिधूड़ी ने कुछ गलत नहीं किया है। सैकड़ों लोगों ने व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी डीपी में रमेश बिधूड़ी की फोटो लगाई है। भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने स्पीकर को चिट्ठी लिख कर उलटे दानिश अली पर कार्रवाई करने की मांग की है। दुबे ने आरोप लगाया है कि दानिश अली ने प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया वे बिधूड़ी के भाषण के बीच में बार-बार बाधा डाल रहे थे, जो कि नियम के खिलाफ था।
बिधूड़ी अपनी किशोरावस्था से जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं, उसके मुखिया मोहनराव भागवत अक्सर कहते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों का एक ही डीएनए है और सब भारत माता की संतानें हैं। लेकिन इस मामले में अपने स्वयंसेवक बिधूड़ी के आचरण पर भागवत या संघ के किसी अन्य नेता की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, बल्कि संघ की साप्तहिक पत्रिका 'पांचजन्य’ के ट्विटर हैंडल से बिधूड़ी की तारीफ की गई है। उनकी पारिवारिक सामाजिक पृष्ठभूमि बखान करते हुए बताया गया है कि वे और उनका परिवार कितना त्यागी है, जिन्होंने अपनी जमीनें स्कूल, अस्पताल आदि के लिए दान की है।
दरअसल बिधूड़ी भाजपा के सामान्य सांसद नहीं हैं। वे दिल्ली के सबसे समृद्ध और संभ्रात माने जाने वाले दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से लगातार दो बार चुने गए हैं। वे तीन बार दिल्ली विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी जब विदेशी दौरे से लौटते हैं तो दिल्ली हवाईअड्डे पर उनके स्वागत के लिए तथा इसके अलावा दिल्ली में होने वाली मोदी की रैलियों अथवा रोड शो के लिए भी भीड़ प्रबंधन का जिम्मा बिधूड़ी ही उठाते हैं। इस नाते वे प्रधानमंत्री के चहेते सांसदों में से एक हैं। इसलिए भी ताजा मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी समझी जा सकती है।
सो, इस तरह भाजपा और संघ खुल कर बिधूड़ी के बचाव में उतर पड़े हैं। रमेश बिधूड़ी भाजपा के नए हिंदू हीरो है और साथ ही जातीय हीरो भी। उन्हें सोशल मीडिया में मुस्लिम विरोध का प्रतीक बना कर पेश करते हुए जिस तरह उनकी गुर्जर पहचान को उजागर किया जा रहा है वह अनायास नहीं है। उन्हें वीर गुर्जर बताया जा रहा है। भाजपा को लगता है कि इसका कुछ न कुछ असर राजस्थान में होगा। दिल्ली-एनसीआर से लगते राजस्थान के बड़े इलाके में गुर्जर आबादी है, जिसके नेता सचिन पायलट हैं। लेकिन अब बिधूड़ी भी एक चेहरा बन गए हैं। राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश में भी गुर्जर आबादी बड़ी संख्या में है। भाजपा की योजना राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में रमेश बिधूड़ी का इस्तेमाल करने की है। उसे लगता है कि ताजा घटना मुस्लिम और गुर्जर को एक साथ वोट करने से रोक सकती है।
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