Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे: चुनावी बॉन्ड की नई हैरतअंगेज कहानी

सवाल है कि ऐसी कंपनियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी? क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि कहीं सिर्फ चंदा देने के लिए तो इन कंपनियों की स्थापना नहीं हुई थी?
Image

राजनीतिक दलों के चंदा देने के लिए बनाई गई चुनावी बॉन्ड की योजना को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इसका जो पूरा ब्योरा सामने आया है उससे जाहिर हुआ है कि इस योजना की आ़ड़ में अब तक का सबसे बडा घोटाला हुआ है जिसकी सबसे बडी लाभार्थी केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा रही है। यह उजागर होने के बाद अब हर दिन इस घोटाले से जुड़ी नई कहानी सामने आ रही है। ताजा कहानी ऐसी कंपनियों के बॉन्ड खरीदने की है जो कानूनी रूप से बॉन्ड खरीद ही नहीं सकती थी। नियम के मुताबिक तीन साल से कम पुरानी कंपनी बॉन्ड नहीं खरीद सकती थी। लेकिन आंकड़ों के मुताबिक कम से कम 20 ऐसी कंपनियों ने कुल 103 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। इनमें से आठ कंपनियों ने सिर्फ एक पार्टी को चंदा दिया। तेलंगाना में दिसंबर 2023 तक सत्तारूढ़ रही भारत राष्ट्र समिति को इन आठ कंपनियों ने साढ़े 37 करोड़ रुपए के बॉन्ड चंदे के रूप में दिए। इसके अलावा आंध्र प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी तेलुगू देशम पार्टी को भी नई कंपनियों ने चंदा दिया। भाजपा और कांग्रेस को भी सिर्फ बीआरएस को चंदा देने वाली आठ कंपनियो को छोड़ कर बची हुई 12 कंपनियों में से कुछ की ओर से चंदा मिला है। अब सवाल है कि ऐसी कंपनियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी? क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि कहीं सिर्फ चंदा देने के लिए तो इन कंपनियों की स्थापना नहीं हुई थी? केंद्र सरकार से उम्मीद करना बेमानी है कि वह इस बात की जांच कराएगी कि कैसे नियमों का उल्लंघन करके कंपनियों ने बॉन्ड खरीदे? सवाल है कि क्या अदालत इसका संज्ञान लेगी और जांच के आदेश देगी?

बिहार में सिर्फ जंगल राज का एजेंडा

बिहार में भाजपा और जनता दल (यू) अब भी जंगल राज के उसी घिसे-पीटे मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे है जिस पर दोनों पार्टियां 25-30 साल से चुनाव लड़ती आ रही हैं। नब्बे के दशक के मध्य में जब नीतीश कुमार की पार्टी के नेता जॉर्ज फर्नांडीज होते थे और उसका नाम समता पार्टी होता था तब से भाजपा और समता पार्टी जंगल राज के मुद्दे पर चुनाव लड़ते आ रहे हैं। बिहार में लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के शासन को नीतीश और भाजपा ने जंगल राज का नाम दिया था। हालांकि इसी मुद्दे पर उनको हराने के बाद नीतीश कुमार दो बार लालू प्रसाद के साथ तालमेल कर चुके हैं। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह सबसे मुख्य मुद्दा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों के भाजपा के बूथ प्रभारियों और अन्य नेताओं के साथ वर्चुअल कांफ्रेन्स की। उसमें उन्होंने कहा कि भाजपा को बिहार के लोगों को जंगल राज की याद दिलानी चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि पहले क्या होता था। लोग रात में घरों से निकलने मे डरते थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हर सभा में यही बात कह रहे हैं कि बिहार में पहले कुछ नहीं था। 2005 से पहले जंगल राज था और उसके बाद सब कुछ उन्होंने किया। हैरानी की बात है कि सूबे में नीतीश कुमार के करीब 19 साल और केंद्र में मोदी के 10 साल के शासन के बाद भी दोनों पार्टियों को बिहार में किसी सकारात्मक मुद्दे की बजाय 25 साल पुराने मुद्दे पर चुनाव लड़ना पड़ रहा है।

दिल्ली में सिर्फ केजरीवाल ही चुनावी मुद्दा

दिल्ली में कांग्रेस ने अपने कोटे की सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम तय नहीं किए हैं जबकि आम आदमी पार्टी के कोटे के चारों उम्मीदवारों के नाम तय हो गए हैं और वे प्रचार भी कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी चाहती है कि कांग्रेस जल्दी अपने उम्मीदवारों की घोषणा करे ताकि साझा प्रचार हो सके। इस बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से उनकी पार्टी को एक मुद्दा मिल गया है। अब कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी या भाजपा, सबका मुद्दा सिर्फ अरविंद केजरीवाल है। अब दिल्ली में किसी दूसरे मुद्दे की चर्चा नहीं हो रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दिल्ली में घर-घर गारंटी योजना लॉन्च की लेकिन उसका कोई माहौल बनता नहीं दिख रहा है। इसके उलट सारी पार्टियां, सारे नेता और यहां तक कि आम मतदाता भी सिर्फ केजरीवाल की बात कर रहे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि बात कर रहे हैं तो उनका समर्थन कर रहे हैं या उनके प्रति सहानुभूति जता रहे हैं। लेकिन चुनावी चर्चा के केंद्र में सिर्फ केजरीवाल हैं। उनकी पार्टी ने केजरीवाल के समर्थन में सार्वजनिक उपवास किया तो भाजपा ने केजरीवाल के इस्तीफ़े की मांग पर प्रदर्शन किया। ऐसा लग रहा है कि दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुद्दा उतना नहीं है, जितना केजरीवाल है। केजरीवाल के पक्ष में या उनके विरोध में मतदाताओं की गोलबंदी हो रही है और यह भी लग रहा है कि कांग्रेस को भी इसी मसले पर वोट मांगना होगा। पहले कांग्रेस के नेता केजरीवाल का नाम लेने में हिचक रहे थे लेकिन अब उनको लग रहा है कि इसी नाम पर चुनाव लड़ना होगा।

उम्मीदवार तय करने में कांग्रेस फिसड्डी

लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस किस्तों में अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रही है। कई राज्यों में तो छानबीन समिति की बैठक हो गई और उसके बाद उसकी बनाई सूची को लेकर केंद्रीय चुनाव समिति के नेताओं की भी बैठक हो गई लेकिन सूची वापस कर दी गई और नए सिरे से विचार करने को कहा गया। सवाल है कि कांग्रेस विपक्ष में रहते हुए क्या तैयारी कर रही थी? राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर रहे थे लेकिन बाकी नेता क्या कर रहे थे? उन्होंने क्या सर्वे कराया था, क्या जमीनी फीडबैक मंगवाया था, क्या पार्टी के लिए प्रतिबद्ध नेताओं और जीतने वाले उम्मीदवारो की सूची बनाई थी? भाजपा ने सरकार में रह कर यह सब काम कर लिया था लेकिन कांग्रेस का काम पूरा नहीं हुआ। कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां भी इस बात से परेशान हैं। इसीलिए दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि कांग्रेस अपने कोेटे की तीन सीटों पर उम्मीदवार घोषित करती तो प्रचार शुरू होता। आम आदमी पार्टी ने तीन हफ्ते पहले उम्मीदवार घोषित कर दिए और कांग्रेस में अब भी संभावित उम्मीदवारों में नए नए नाम जुड़ रहे हैं। यही स्थिति हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार और झारखंड की है। यही स्थिति अमेठी और रायबरेली को लेकर है। भाजपा के उम्मीदवारों का प्रचार चल रहा है, रैलियां हो रही है और कांग्रेस में अभी संभावित उम्मीदवार तलाशे जा रहे हैं।

विपक्षी पार्टियों के खाते सीज करने का अभियान

कांग्रेस के बैंक खाते सीज करने के बाद अब खबर है कि आयकर विभाग ने केरल में सत्तारूढ़ सीपीएम के एक जिले का बैंक खाता सीज कर दिया है। केरल एकमात्र राज्य है, जहां कम्युनिस्ट पार्टियां ताकत से चुनाव लड़ रही हैं। वह अब वामपंथ का एकमात्र किला है। वहां त्रिशूर जिले में सीपीएम का बैक खाता सीज कर दिया गया है। उस खाते में पौने पांच करोड़ रुपए थे। बताया जा रहा है कि पिछले दिनों पार्टी ने उसमें एक करोड़ रुपए निकाले जिससे आयकर विभाग की नजर उस पर गई और उसने ऐन चुनाव के बीच खाते को सीज कर दिया। कुछ दिन पहले ही आयकर विभाग ने कांग्रेस का खाता सीज किया था। कांग्रेस को आयकर विभाग ने साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए का नोटिस दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उसने कहा कि वह चुनाव तक इस पर कार्रवाई नहीं करेगी। आयकर विभाग ने तृणमूल कांग्रेस को 11 नोटिस दिए हैं और सीपीएम को भी नोटिस जारी किया गया है। दरअसल चुनाव के बीच एक तो नोटिस जारी करना ही ज्यादती और उस बीच आयकर विभाग बैंक खाते सीज कर रहा है। हैरानी है कि विपक्षी पार्टियां इसकी शिकायत चुनाव आयोग से कर रही हैं तो वहां से उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। जो थोड़ी बहुत राहत पार्टियों को मिली है वह अदालत से ही मिली है।

मछली का कांटा भाजपा के गले में फंसा

इन दिनों भारत की राजनीति ऐसी हो गई है कि हर छोटी-छोटी बात पर सनातन धर्म खतरे में आ जा रहा है। बिहार में राजद नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तथा विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश साहनी ने मछली खाते हुए अपना वीडियो पोस्ट किया तो पटना से लेकर दिल्ली तक भाजपा के तमाम नेताओं की भावनाएं आहत हो गईं और कहा जाने लगा कि ये दोनों नवरात्र के बीच मछली खा रहे थे इसलिए सनातन विरोधी है। सोचने वाली बात है कि मछली खाने से कोई कैसे सनातन विरोधी हो सकता है? इससे भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि तेजस्वी ने बाद में मजाक उड़ाते हुए कहा कि उन्होंने भाजपा नेताओं का आईक्यू टेस्ट करने के लिए इसे डाला था। असल में उनकी पोस्ट में मछली खाने के वीडियो की तारीख भी लिखी हुई है, जो नवरात्र शुरू होने से एक दिन पहले की है। लेकिन किसी ने तारीख पर ध्यान नहीं दिया और तेजस्वी तथा मुकेश साहनी पर हमले शुरू कर दिए। इससे उनका मजाक तो बना ही है लेकिन साथ ही भाजपा को राजनीतिक रूप से नुकसान की संभावना भी पैदा हो गई है। मुकेश साहनी मल्लाह जाति से आते हैं जिसका मुख्य पेशा मछली पकड़ना है जो नवरात्र के दौरान भी जारी रहता है। ऐसे में उनके नेता अगर मछली खा रहे हैं और इसके लिए उनकी आलोचना हो रही है तो यह जाति की अस्मिता का मामला बन जाता है। इसीलिए मुकेश सहनी ने मछुआरों की आम बोलचाल की बातों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि भाजपा के गले में मछली का कांटा अटक गया है।

कहां गायब हो गए केजरीवाल के सांसद?

आम आदमी पार्टी के इकलौते लोकसभा सांसद सुशील कुमार रिंकू भाजपा में चले गए हैं और भाजपा की टिकट पर जालंधर से चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन सवाल है कि पार्टी के 10 राज्यसभा सांसद हैं उनमें से संजय सिंह के अलावा बाकी सब कहां चले गए? पार्टी की ओर से रोज प्रदर्शन किया जा रहा है, लेकिन उसमें पार्टी के ज्यादातर राज्यसभा सांसद कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। कई लोगों ने इस बात को नोटिस किया है कि पिछले दिनों चुनाव आयोग पर तृणमूल कांग्रेस ने प्रदर्शन किया तो पार्टी के करीब 10 राज्यसभा सांसद प्रदर्शन में शामिल हुए। चूंकि लोकसभा के लगभग सभी सांसद चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए प्रदर्शन का जिम्मा राज्यसभा सांसदों ने संभाला था। डेरेक ओ ब्रायन से लेकर डोला सेन और हाल में सांसद बनीं सागरिका घोष तक धूप में बैठी रहीं। पुलिस के साथ उनकी झड़प भी हुई। इसके उलट आम आदमी पार्टी की ओर से किए जा रहे प्रदर्शनों में राज्यसभा के इक्का-दुक्का सांसद शामिल हो रहे हैं। जब से संजय सिंह जेल से छूटे हैं, वे जरूर प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं लेकिन दिल्ली के बाकी दो राज्यसभा सांसदों का पता नहीं है। एनडी गुप्ता पार्टी के कोषाध्यक्ष है और उन्हें दूसरी बार राज्यसभा में भेजा गया है। नई-नई राज्यसभा सांसद बनी दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष स्वाति मालिवाल अपनी बहन के इलाज के सिलसिले में अमेरिका में हैं। पंजाब से पार्टी के सात राज्यसभा सांसद हैं लेकिन उनमें से किसी का अता-पता नहीं है।

किसे माना जाए नकली शिव सेना?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महाराष्ट्र की एक चुनावी सभा में उद्धव ठाकरे की पार्टी को 'नकली शिव सेना’ करार दे दिया। यानी उनकी नजर में भी एकनाथ शिंदे का गुट ही असली शिव सेना है। दलबदल विरोधी कानून की मनमानी व्याख्या करते हुए चुनाव आयोग और विधानसभा स्पीकर ने भी उसी को असली शिव सेना माना क्योंकि उसके साथ ज्यादा विधायक और सांसद थे। लेकिन हैरानी की बात है कि इस 'असली शिव सेना’ के साथ जितने सांसद थे उतनी सीटें भी भाजपा ने उसको नहीं दी है। पिछली बार अविभाजित शिव सेना जितनी सीटों पर लड़ी थी उतनी सीटें देने की बात तो दूर है। गौरतलब है कि पिछली बार भाजपा 25 और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली अविभाजित शिव सेना 23 सीटों पर लड़ी थी, जिसमें से 18 पर उसे जीत मिली थी। इस बार भाजपा ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली 'असली शिव सेना’ को बडी मुश्किल से 13 सीटें दी हैं। सवाल है कि अगर वह असली शिव सेना है तो उसे पिछली बार की तरह 23 सीट क्यों नहीं दी गईं? कह सकते है कि इस बार अजित पवार के रूप मे एक नया सहयोगी भी है जिसे चार सीटें दी गई हैं। तब भी चार सीट छोड़ कर 19 सीट शिव सेना को मिल सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।


 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest