भीमा कोरेगांव : नए साल के पहले हफ़्ते ने दोहराई प्रक्रियात्मक देरी की वही पुरानी दास्तान
इस हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा दी गई जमानत पर स्टे/रोक के समय को बढ़ा दिया है।
नवलखा, भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद माओवादी लिंक और आपराधिक साजिश मामले में आरोपी हैं और उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत मुक़दमा दर्ज़ है।
नवलखा को 28 अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया गया था, शुरू में घर में नजरबंद रखा गया, और बाद में अप्रैल 2020 में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। फिर सुप्रीम कोर्ट में उनकी याचिका की सुनवाई के बाद, पिछले साल नवंबर से घर में नजरबंद रखा जा रहा है।
भारतीय न्यायशास्त्र में यह एक सुस्थापित सिद्धांत है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और आज़ादी के अधिकार में जमानत को नियम और जेल को अपवाद माना गया है।
यूएपीए जैसे आतंकवाद विरोधी कानून, जमानत देने के मामले में बड़ी ऊंची सीमा लगाते हैं जो जमानत के नियम में अपवाद पैदा करते हैं।
यूएपीए की धारा 43डी(5) के तहत, अदालतों को यह विश्लेषण करना जरूरी है कि क्या आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं, न कि जमानत से इनकार करने के 'उचित आधार' की जांच करना, जैसा कि जमानत पर अन्य कानूनों के अनुसार जरूरी है।
इसलिए यूएपीए में दी गई जमानत पर स्टे/रोक का 'अभ्यास' अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित अधिकार और एक व्यक्ति की निरंतर कैद के बीच एक अतिरिक्त बाधा पैदा करती है।
अभियोजन पक्ष के सामने जमानत रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील करने की सामान्य प्रक्रिया उपलब्ध होने के बावजूद, एक अतिरिक्त परत का इस्तेमाल किया जाता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने पहले टिप्पणी की थी कि 'जमानत जरूरी लेकिन जेल नहीं' का नियम आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे बुनियादी नियमों में से एक है। सीजेआई ने ऑन रिकॉर्ड कहा था कि, ''आज़ादी से एक दिन भी वंचित करना कई दिनों के बराबर है।''
एक अन्य अवसर पर, सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने निम्नलिखित शब्दों में 'व्यक्तिगत आज़ादी' के महत्व पर जोर दिया था: "यदि हम मामले में कार्रवाई नहीं करते हैं तो हम अनुच्छेद 136 (संविधान के तहत राहत देने की विशेष शक्तियां) के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अनुदान राहत का उल्लंघन कर रहे होंगे।"
तथ्य
19 दिसंबर, 2023 को उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ जिसमें न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और शिवकुमार डिगे थे, ने योग्यता के आधार पर नवलखा को जमानत दे दी। हालाँकि, उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति देने के लिए जमानत आदेश पर तीन सप्ताह की रोक लगा दी।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच जिसमें एम.एम. सुंदरेश और एस.वी.एन. भट्टी थे ने, एनआईए के अनुरोध के बाद जमानत आदेश पर स्टे/रोक बढ़ा दिया।
नवलखा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि नवलखा अन्य सह-आरोपियों- वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा और आनंद तेलतुंबडे- के समान जमानत पाने के हकदार हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने खुद जमानत की अनुमति दी है।
वहीं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने इस बात पर जोर दिया कि नवलखा के मामले को एक अन्य सह-आरोपी- वन अधिकार कार्यकर्ता, महेश राउत के मामले में एनआईए की अपील के साथ रख कर देखा जाना चाहिए।
अदालत ने नवलखा की जमानत पर स्टे/रोक तब तक बढ़ा दिया जब तक सीजेआई इस मामले को एक बेंच को आवंटित नहीं कर देते हैं।
राउत को 21 सितंबर को उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी थी। उच्च न्यायालय ने जमानत आदेश पर एक सप्ताह की रोक लगाने की अनुमति दी थी। हालाँकि, राऊत को अभी भी जेल में हैं, क्योंकि एनआईए की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ी है।
समय की कमी और एनआईए द्वारा मांगे गए स्थगन सहित विभिन्न कारणों से राउत के मामले को चार बार स्थगित किया जा चुका है, जिसके परिणामस्वरूप लगभग तीन महीने तक स्टे/रोक जारी रही।
चूंकि मामले विभिन्न पीठों के समक्ष लंबित पड़े हैं, इसलिए अदालत ने शुक्रवार को रजिस्ट्री को नवलखा के मामले को सीजेआई के समक्ष रखने का निर्देश दिया ताकि इस तरह के सभी समान मामलों को एक ही पीठ के सामने पेश करने पर विचार किया जा सके।
इसके अलावा, एक और साल भीमा कोरेगांव मामले में बिना मुकदमे के न्यायिक हिरासत में रखे गए आरोपी व्यक्तियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के साथ शुरू होता है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में सह-आरोपी, जाति विरोधी कार्यकर्ता और शिक्षाविद् हनी बाबू की जमानत याचिका पर प्रतिवादियों, महाराष्ट्र सरकार और एनआईए को नोटिस जारी किए हैं।
बाबू को जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में वे मुकदमा चलाने की प्रतीक्षा में तलोजा जेल में बंद है।
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति संजय करोल की खंडपीठ ने उत्तरदाताओं को तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
बाबू की जमानत अर्जी 19 सितंबर, 2022 के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देती है, जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। एनआईए ने बाबू पर माओवादी गतिविधियों और उसकी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सह-साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया है।
पृष्ठभूमि
उक्त मामले के सिलसिले में 6 जून, 2018 को पुणे पुलिस ने कई कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों को गिरफ्तार किया था।
इनमें मानवाधिकार वकील और दलित अधिकार कार्यकर्ता, सुरेंद्र गाडलिंग; दलित अधिकार कार्यकर्ता और मराठी पत्रिका विद्रोही के संपादक, सुधीर धावले; कार्यकर्ता और शोधकर्ता, और राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए समिति के सदस्य, रोना विल्सन शामिल थे।
नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की पूर्व प्रमुख, और दलित और महिला अधिकार कार्यकर्ता, शोमा सेन; और महेश राउत, जो केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलोशिप कार्यक्रम के पूर्व फेलो हैं, को भी गिरफ्तार किया गया है।
फिर 28 अगस्त, 2018 को कार्यकर्ता, कवि, लेखक और शिक्षक डॉ. पी. वरवरा राव; ट्रेड यूनियनवादी, कार्यकर्ता और वकील, सुधा भारद्वाज; अरुण फरेरा; वर्नोन गोंसाल्वेस; गौतम नवलखा को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया।
बाद के महीनों में, स्कॉलर, लेखक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, डॉ. आनंद तेलतुम्बडे; आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और जेसुइट पादरी, फादर स्टेन स्वामी; हनी बाबू; और संगीत कलाकारों, जाति-विरोधी कार्यकर्ताओं और सांस्कृतिक मंडली कबीर कला मंच के सदस्यों, सागर गोरखे, रमेश गाइचोर और ज्योति जगताप को भी गिरफ्तार किया गया था।
भीमा कोरेगांव मामले में अभी सुनवाई शुरू होनी बाकी है। मामले में अभियोजन पक्ष ने 5,000 पन्नों से अधिक का आरोपपत्र दायर किया है और कम से कम 200 गवाहों से जिरह करने का इरादा रखता है।
वर्तमान में 16 अभियुक्तों में से दस जेल में हैं, जो अब बिना मुकदमे के न्यायिक हिरासत में लगभग दो से पांच साल बिता चुके हैं।
गोंसाल्वेस और फरेरा के अलावा, जिन्हें 2023 में जमानत दी गई थी, वे अन्य पांच आरोपी सुधा भारद्वाज, वरवरा राव और आनंद तेलतुंबडे, राउत और नवलखा हैं जो अब तक जमानत हासिल करने में कामयाब रहे हैं।
इनमें से भारद्वाज, राव और तेलतुंबडे को रिहा कर दिया गया है जबकि राउत और नवलखा अभी भी सलाखों के पीछे हैं, उनकी जमानत पर स्टे/रोक लगा दिया गया है।
फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में के चिकित्सा आधार पर जमानत का इंतजार करते हुए जेल में कोविड से संक्रमित होने के बाद न्यायिक हिरासत में निधन हो गया था।
सारा थानावाला द लीफ़लेट में एक स्टाफ लेखिका हैं।
सौजन्य: द लीफ़लेट
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