लॉकडाउन: कार्गो मामले को लेकर बंगाल सरकार और केंद्र आमने-सामने
कोलकाता: नई दिल्ली के साथ सीधे और राज्य के राज्यपाल जगदीश धनखड़ के साथ टकराव पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए स्पष्ट मामलों के अलावा ऐसा लगता है कि 'कारण के बारे में न बताना' ही वजह है। राज्यपाल अक्सर लॉकडाउन से निपटने के लिए राज्य प्रशासन की आलोचना करते हुए बयान जारी कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में, धनखड़ मुख्यमंत्री को इसलिए भी निशाना बना रहे हैं क्योंकि वह खुद स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग का प्रभार संभाल रही हैं।
‘कारण के बारे में न बताना’ का एक अंतरराष्ट्रीय पहलू है और विडंबना यह है कि केंद्र और मुख्यमंत्री दोनों को उनके अपने अपने रुख के लिए दोषपूर्ण नहीं बनाया जा सकता है; हालांकि बनर्जी के लिए “कुछ हद तक उदार” होने के लिए दबाव डाला जा रहा है। यह कोलकाता से लगभग 80 किमी दूर पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले में भारतीय सीमा पर पेट्रापोल सीमा के माध्यम से बांग्लादेश के लिए कार्गो की आवाजाही को लेकर है।
एक स्ट्रैटजिक ट्रांजिट प्वाइंट पेट्रापोल (दूसरी ओर बेनापोल) के माध्यम से बांग्लादेश में कार्गो की आवाजाही सामान्य थी सामान्य थी जो नई दिल्ली द्वारा COVID-19 के चलते तीन सप्ताह के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद 24-25 मार्च की मध्यरात्रि से रुक गया। लॉकडाउन को बाद में 3 मई तक बढ़ा दिया गया है।
हाल के दिनों में, पिछले शुक्रवार को रमज़ान के रोज़े की शुरुआत को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने मुख्यमंत्री को सुझाव दिया कि वह लॉकडाउन को लेकर कुछ हद तक उदार हो और पेट्रापोल में रुके कार्गो की आवाजाही की अनुमति दें। निस्संदेह प्रतिबंधित आवाजाही नई दिल्ली को ढाका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करने का एक प्रयास कहा जाएगा।
कमोबेश यही स्थिति स्थल सीमा वाले देश नेपाल और भूटान की है। नेपाल और भूटान के साथ भारत के व्यापार समझौते भारत-नेपाल और भारत-भूटान व्यापार में कोलकाता की अहमियत को प्रमाणित करते हैं।
हॉटस्पॉट्स और नियंत्रण को कठिन बनाने के काम के साथ, बंगाल के सीएम को केंद्र के सुझावों पर कार्रवाई करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। क्योंकि उन्हें डर है कि अगर वह मामूली रूप से भी ढील देती हैं, तो वह "कोरोना वायरस के आने के स्रोत को फिर से सक्रिय कर सकती है" और अपनी समस्याओं को बढ़ा सकती है। लॉकडाउन का लागू करना, संयोग से, तनावपूर्ण राज्य-केंद्र संबंधों में एक अहम मुद्दा बन गया है और जो बनर्जी को ढाका कार्गो मुद्दे पर अड़े रहने की वजह देता है।
आयात-निर्यात व्यापार स्रोतों के जांच पड़ताल से पता चलता है कि सौभाग्य से उनके लिए लॉकडाउन के प्रभावी होने से पहले चेकपोस्ट पर लैंड पोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के कर्मचारियों द्वारा खराब होने वाली वस्तुओं को मंज़ूरी दे दी गई थी। पेट्रापोल चेकपोस्ट के प्रबंधक सुवजीत मंडल के अनुसार, अभी लगभग 2,000 कार्गो से लदे ट्रक हैं, जिनमें से लगभग 250 बोंगन में प्रतीक्षा कर रहे हैं और बाकी 1,700 से ज़्यादा पेट्रापोल में हैं।
व्यापार सूत्रों ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि भारत से निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुएं हैं: सूती कपड़े, मोटर वाहन चेसिस, गैर-मिश्र धातु इस्पात, यार्न, लोहा और इस्पात उत्पाद, सिंथेटिक फाइबर, दोपहिया, मोटर साइकिल और स्कूटर, मशीनरी पार्ट्स, किताबें और कागज, अनाज और अन्य खाद्य उत्पाद।
बांग्लादेश से भारत में आयात होने वाली प्रमुख वस्तुएं हैं: जूट उत्पाद, सुपारी, मछली, कपास के टुकड़े, रेडीमेड वस्त्र, बुना हुआ कपड़ा, चावल की भूसी, जिंक प्लेट, सीसा और पुनर्प्रसंस्कृत प्लास्टिक।
लॉकडाउन को लेकर नई दिल्ली के साथ सीधे टकराव का मूल कारण राज्य सरकार को अग्रिम सूचना दिए बिना 20 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्रालय के दो अंतर-मंत्रालयीय केंद्रीय दल (आईएमसीटी) को राज्य में भेजने का है। तब से लेकर अब तक के घटनाक्रम को देखते हुए यह कहना पर्याप्त है कि सीएम को बहुत सख्त लहजे में लिखे उस पत्र के बाद नरम होना पड़ा जो केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा को 21 अप्रैल को लिखा था। पत्र में आईएमसीटी से मिली शिकायत का भी ज़िक्र किया गया था कि उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा था।
भल्ला ने यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र के निर्देश राज्य में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 35 के संदर्भ में बाध्यकारी थे, 31 मार्च के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश इस तरह हैं “सार्वजनिक सुरक्षा के हित में भारतीय संघ द्वारा जारी किए गए निर्देशों और आदेशों का पालन राज्य ईमानदारी से करेगी।”
भल्ला के 21 अप्रैल के पत्र ने सीएम को नाराज़ कर दिया, "मैं भी इस तरह के पत्र लिख सकती हूं।" गृह मंत्री अमित शाह ने बनर्जी को जानबूझकर आईएमसीटी के दौरे के बारे में पहले सूचित नहीं किया। भले ही ये कुछ समय के लिए था। भले ही टीमों के लिए उत्तेजक स्थिति की आशंका हो।
राज्यपाल धनखड़ सामान्य तौर पर राज्य प्रशासन में और विशेष रूप से सीएम में अक्सर ग़लती तलाशते रहे हैं। दूसरी ओर बनर्जी और अन्य टीएमसी नेताओं ने उन पर अक्सर राजभवन जाने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के इशारे पर कथित रूप से काम करने का आरोप लगाया। हाल ही में, सीएम ने उन पर संवैधानिक पद का पालन न करने और "संवैधानिक मुखिया जैसा व्यवहार न करने" का आरोप लगाया।
24 अप्रैल को सीएम को लिखे गए 14 पृष्ठ के एक पत्र में एक बिंदु पर धनखड़ ने पाया कि वह महामारी से निपटने में बुरी तरह विफल रही थीं और अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण में धार्मिक रूप से लिप्त थीं। साथ ही, उनकी पार्टी के नेता विपक्ष को इस स्थिति में उनसे अपेक्षित भूमिका नहीं निभाने दे रहे थे, हालांकि विपक्षी दलों ने उन्हें रचनात्मक दृष्टिकोण का आश्वासन दिया था। अपने मंत्रालय को राजभवन के माध्यम से बदनाम करने की दिशा में बनर्जी राज्यपाल के कार्य को भाजपा और केंद्र की संयुक्त आदेश के रूप में देखती हैं।
केंद्र और राज्य-केंद्र द्वारा संकट से निपटने के बारे में पूछे जाने पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि इसने केंद्र सरकार और राज्य की तैयारी न होने को उजागर कर दिया है। सलीम ने आगे कहा कि, "शुरू से ही, हम मुख्यमंत्री को बता रहे हैं कि हमारा रचनात्मक दृष्टिकोण होगा, लेकिन जब हमने वायरस के प्रसार को रोकने और पार्टी संबंध का ध्यान दिए बिना राहत व राशन वितरण सुनिश्चित करने में विफलता को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया तो हमारे नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया।” उन्होंने आगे कहा,“हालांकि पंचायत स्तर तक ज़मीनी स्तर की एजेंसियों को शामिल करने की आवश्यकता है, ममता ने हमेशा इसे एक व्यक्ति वाले शो में बदल दिया है।”
बांग्लादेश की कार्गों को रोके जाने के संबंध में सलीम ने कहा कि स्थिति को बड़ी संवेदनशीलता के साथ संभाला जाना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में भारत विरोधी ताकतों को जगह नहीं दिया जाना चाहिए।
गतिरोध और संविधान के प्रावधानों पर टिप्पणी करते हुए हाल ही में राज्यसभा के लिए चुने गए सीपीआईएम के वरिष्ठ नेता बिकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा, "यह तुच्छ राजनीतिक खेल खेलने का समय नहीं है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों संवैधानिक पदों पर हैं; राज्यपाल केंद्र द्वारा नामांकित किए जाते हैं और उनकी भूमिका अच्छी तरह से परिभाषित है और मुख्यमंत्री विपुल कार्यकारी शक्तियों के साथ एक निर्वाचित प्रतिनिधि है। लेकिन, वे सत्ता के दो केंद्र नहीं हैं। अगर राज्यपाल किसी भी विषय पर जानकारी मांगते हैं और अपनी सलाह देते हैं तो मुख्यमंत्री को आपत्ति नहीं होनी चाहिए और इसे हस्तक्षेप नहीं मानना चाहिए। ”
भट्टाचार्य ने कहा कि यद्यपि स्वास्थ्य राज्य का विषय है ऐसे में समस्या की व्यापकता को देखते हुए नई दिल्ली को बहुत बड़ी भूमिका निभानी होती है जिसे स्वाभाविक रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करना पड़ता है। उन्होंने कहा, "यह न तो केंद्र-राज्य का मुद्दा है और न ही किसी विशेष राज्य की समस्या है।"
पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने कहा कि पद के मामले में राज्यपाल राज्य के पहले नागरिक हैं। जो वह कह रहे हैं और शिकायत कर रहे हैं, वह गलत नहीं है। कोई न कोई मामला अवश्य है। क़ानून निर्माताओं सहित विपक्षी पार्टी के नेता काम करने में सक्षम नहीं हैं। मित्रा ने न्यूज़क्लिक से कहा, “क्या मुझे यह स्पष्ट करने की आवश्यकता क्यों है? राहत वितरण में कोई पारदर्शिता नहीं है। इसे सत्ताधारी लोगों का एकाधिकार क्यों होना चाहिए? हमने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि राहत कार्यों की देखरेख और सरकार के निवारक उपायों के क्रियान्वयन के लिए ऑल पार्टी कमेटी का गठन किया जाए। लेकिन, उन्हें जवाब नहीं मिला है।”
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव स्वप्न बनर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में घटिया दर्जे की राजनीति हो रही है। उन्होंने कहा, 'मुख्यमंत्री ने खुद को नीचा कर दिया है; संबोधन सहित उनके सभी कार्य शोर शराबे वाले हैं जो महज लाइमलाइमट में आने का जरिया है। इस अहम वक्त में, मुख्यमंत्री को शोर शराबे के साथ सड़क पर दिखना चाहिए।”
उन्होंने कहा, "हां, सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी और हमने वाम दलों को ध्यान में रखते हुए अपने रचनात्मक दृष्टिकोण होने का कुछ सुझाव दिया है। लेकिन, इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।”
रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ इंडिया के राज्य सचिव मनोज भट्टाचार्य ने कहा कि उन्हें राज्यपाल का आचरण स्वीकार नहीं है। वह जो कर रहे हैं वह उनके पद के लिए अपमानजनक है। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, 'हम अपने पुराने सुझाव पर क़ायम हैं कि राज्यपाल का पद समाप्त कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इस पर भारी खर्च होता है। राज्यपाल के कार्यालय के माध्यम से किसी राज्य में केंद्र द्वारा निगरानी का स्वागत नहीं किया जाता है।”
उन्होंने कहा, हालांकि, "सीएम की प्रतिक्रिया इस मुद्दे की गंभीरता के लिए अनुकूल नहीं थी। उन्होंने आगाह किया, "यह एक व्यक्ति का शो है। महामारी से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास की कोई तस्वीर नहीं दिखती है। यदि वायरस के सामुदायिक संचरण का एक भी मामला आता है तो यह एक ख़तरनाक स्थिति होगी।”
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
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