सरोकार: सरकारी विज्ञापन पर उठे सवाल, अक्षय कुमार भी फिर कठघरे में
एक सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह सामाजिक बुराइयों को भी दूर करने के लिए कड़े कदम उठाएगी और अपनी योजनाओं और नीतियों से लोगों में चेतना और सरोकार पैदा करने की हरदम कोशिश करेगी। इसी के साथ एक फ़िल्मी एक्टर को लोग अक्सर नायक के रूप में देखते हैं, पर्दे के कैनवास पर जो तस्वीर उसके द्वारा उकेरी जाती है, लोग खुद को उससे जोड़कर देखने लगते हैं, उसे असल जिंदगी में फॉलो करने लगते हैं। ऐसे में उस एक्टर से उम्मीद बन जाती है कि वो जाने-अनजाने समाज की उन कुरीतियों को बढ़ावा न दें, जो लोग उसे देखकर और आगे बढ़ाने लगें।
दहेज प्रथा समाज पर कलंक होने के साथ ही महिलाओं को दोयम दर्जे का बना देता है। इसके चलते देश में हर रोज़ 20 से अधिक महिलाओं की जान चली जाती है। ऐसे में दहेज को लेकर बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार एक बार फिर सुर्खियों में हैं। फिल्म रक्षाबंधन के बाद इस बार अक्षय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के एक सरकारी विज्ञापन में नज़र आ रहे हैं, जो गाड़ी में 6 एयरबैग्स के महत्व को बताने के लिए एक पुलिसवाले का किरदार निभा रहे हैं। इसी विज्ञापन में अक्षय पर कथित तौर से दहेज प्रथा को बढ़ावा देने का आरोप लग रहा है।
क्या है विज्ञापन में बवाल?
दरअसल, यहां अक्षय एक दुल्हन की विदाई में उसके भावुक पिता से कहते हैं कि ऐसी गाड़ी में बेटी को विदा करोगे तो रोना तो आएगा ही।' फिर वह पिता को बताते हैं कि इस गाड़ी में 6 एयरबैग नहीं हैं, ऐसे में बेटी रोएगी नहीं तो क्या हंसेगी। इसके बाद पिता बेटी के लिए 6 एयरबैग वाली गाड़ी मंगाता है और बेटी हंसने लगती है। इस विज्ञापन के सोशल मीडिया पर आते ही इसके कंटेंट का विरोध होने लगा। लोग इस गाड़ी के प्रसंग को दहेज से जोड़कर देखने लगे। विपक्ष के कई नेताओं के साथ आम लोगों ने भी इस वीडियो पर आपत्ति जताते हुए इसे दहेज प्रथा को बढ़ावा देने वाला बताया।
इस विज्ञापन को शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर शेयर करते हुए लिखा, "यह एक समस्याग्रस्त विज्ञापन है। ऐसे क्रिएटिव कौन पास करता है? क्या सरकार इस विज्ञापन के माध्यम से कार के सुरक्षा पहलू को बढ़ावा दे रही है या दहेज और आपराधिक कृत्य को बढ़ावा देने के लिए पैसा खर्च किया जा रहा है?
This is such a problematic advertisement. Who passes such creatives? Is the government spending money to promote the safety aspect of a car or promoting the evil& criminal act of dowry through this ad? https://t.co/0QxlQcjFNI
— Priyanka Chaturvedi🇮🇳 (@priyankac19) September 11, 2022
उधर, तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता साकेत गोखले ने भी तंज कसते हुए कहा, भारत सरकार को आधिकारिक तौर पर दहेज को बढ़ावा देते हुए देखना बहुत अनोखा लगता है।”
1. Disgusting to see Indian govt officially promoting dowry. What even???
2. Cyrus Mistry died because the road design was faulty. That spot is an accident-prone area.
Amazing way to deflect responsibility by pushing for 6 air bags (& expensive cars) instead of fixing roads. https://t.co/vTiTdkeei2— Saket Gokhale (@SaketGokhale) September 11, 2022
बता दें कि अपराध का लेखा-जोखा रखने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हालिया आंकड़ों को देखें तो बीते साल 2021 में दहेज के चलते हज़ारों महिलाओं की जान गई। ऐसे में ये मुद्दा महिलाओं के साथ-साथ पूरे समाज के लिए संवेदनशील है। हालांकि पितृसत्ता की व्यवस्था में ये कोई मुद्दा ही नहीं है। बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार वैसे ही अपनी देशभक्ती और पीएम मोदी के साथ एपॉलिटिकल इंटरव्यू को लेकर चर्चा का विषय रहे हैं। एक्टर कई बार एक खास विचारधारा को बढ़ावा देते भी नज़र आते हैं। ऐसे में उनका असर एक बड़े जनसमुदाय पर पड़ना लाज़मी है।
सोशल मीडिया पर विज्ञापन को लेकर आपत्ति
सोशल मीडिया पर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस विज्ञापन को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से साझा किया है। इसके साथ उन्होंने कैप्शन लिखा है कि 6 एयरबैग वाले गाड़ी से सफर कर जिंदगी को सुरक्षित बनाएं। गडकरी के इस ट्वीट पर लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रिया आ रही है। एक तरफ लोग उन्हें सड़क सुरक्षा नियमों के अलावा सड़कों की हालत पर भी गौर करने की सलाह दे रहे हैं। तो वहीं, कुछ यूजर्स इस विज्ञापन का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि एक्टर का यह विज्ञापन दहेज प्रथा को बढ़ावा देने वाला है।
6 एयरबैग वाले गाड़ी से सफर कर जिंदगी को सुरक्षित बनाएं।#राष्ट्रीय_सड़क_सुरक्षा_2022#National_Road_Safety_2022 @akshaykumar pic.twitter.com/5DAuahVIxE
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) September 9, 2022
ट्विटर पर इस विज्ञापन के कंटेंट पर सवाल उठाए जा रहे हैं। और इसके लिए मोदी सरकार और उसकी सोच को भी कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। कई यूजर्स ने एक्टर से सवाल किया कि क्या आपको पता है कि आप दहेज को बढ़ावा दे रहे हैं? कई अन्य यूजर्स ने लिखा कि क्यों हम और आप नॉर्थ इंडिया में बेटियों के गरीब मां-बाप पर बोझ बढ़ा रहे हैं? छह एयरबैग का ऐड बनाने के लिए कोई और तरीका भी हो सकता था। कई लोगों ने लिखा कि आप इस विज्ञापन के जरिए उन तमाम पिताओं पर बोझ बढ़ा रहे हैं, जिन्हें बेटियों की शादी करनी है।
गौरतलब है कि दहेज के कारण कई बार महिलओं को हाशिए पर धकेल दिया जाता है, उनके साथ घरेलू हिंसा होती है और कई बार तो मौत भी हो जाती है। हमारे देश में दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए क़ानून काफ़ी पहले बन चुका है, लेकिन इसके बावजूद यह सामाजिक समस्या आज भी वैसे की वैसे ही बनी हुई है। इसकी जड़ें इतनी मज़बूत हो गई हैं कि अमीर हो या गरीब, हर वर्ग के लोगों को इसने जकड़ रखा है। दहेज समाज में गर्व का मुद्दा बन चुका है, जिसके तहत यह माना जाता है कि जिसको जितना ज्यादा दहेज मिलता है, वह उतना ही योग्य है। इसका प्रदर्शन दहेज लेने और दहेज देने वाले लोग गांव में ढिंढोरा पीटकर करते हैं लेकिन क़ानूनी कार्रवाई से बचने के लिए लोग इसे अक्सर ‘गिफ़्ट’ का नाम दे देते हैं।
दहेज उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता लेकिन मामला नजरअंदाज
बहरहाल, विश्व बैंक के एक अध्ययन में पाया गया है कि पिछले कुछ दशकों में, भारत के गाँवों में दहेज प्रथा काफ़ी हद तक स्थिर रही है। लेकिन ये प्रथा बदस्तूर जारी है। देखा जाए तो 1979 के आंदोलन के बाद लोगों में दहेज उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता बढ़ी और लोगों ने इस विषय को लेकर आगे आना शुरू किया। महिला कार्यकर्ताओं की हिम्मत की भी हमें दाद देनी होगी कि कैसे उन्होंने लोगों के बीच जागरूकता लाने का काम किया लेकिन इन सब प्रयासों के बाद आज भी लोग अपने आस-पास दहेज उत्पीड़न के मामलों को नजरअंदाज कर देते हैं। दहेज से जुड़ा मामला कभी भी पारिवारिक मामला नहीं हो सकता है क्योंकि आप जब दहेज लेते हैं या देते हैं तो आप उसमें कहीं न कहीं दिखावे की बात को भी आगे रखते हैं।
शादी होने के बाद आज भी लोग यह पूछने से कतराते नहीं हैं कि बहू के घर से क्या सामान आया या आपने अपनी बेटी को दहेज में क्या दिया। वहीं, कुछ लोगों का कहना यह भी होता है की वे दहेज अपनी बेटी की खुशी के लिए दे रहे होते हैं और फिर लड़के के घरवाले आज भी यही उम्मीद लगाकर बैठे होते है कि बहू के दहेज में जो आएगा उनसे उनका घर चलेगा। इस सोच के चलते शुरू होता है उत्पीड़न का सिलसिला, शुरुआत होती है तानों से, फिर मार-पीट और आगे जाकर हत्या। आंदोलन से हमारे कानूनों में फ़र्क आ सकता है, हम कुछ लोगों की सोच में बदलाव भी ला सकते हैं। लेकिन दहेज को लेकर समाज की सोच का परिवर्तन तभी होगा, जब हम दहेज लेने या देने की मांग को सिरे से खारिज कर देंगे। ऐसे में हम अपनी नायकों से इतनी उम्मीद तो रख ही सकते हैं कि वो इस संघर्ष में साथ न दें तो कम से कम इसके खिलाफ भी जाने-अनजाने में खड़े न हों। और असल सवाल अपनी सरकार और उसके मंत्रालयों से कि क्यों नहीं 'जनहित' के विज्ञापन बनाते समय व्यापक और वास्तविक जनहित का ध्यान रखा जाता।
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