''उनसे अलग राय रखता हूं इसलिए मेरा करियर बर्बाद कर दिया''
दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में करीब 14 साल से हिंदी विभाग में एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहे डॉ. लक्ष्मण यादव को निकाल दिया गया है। लक्ष्मण यादव दिल्ली यूनिवर्सिटी के उन टीचर्स में शुमार हैं जो सामाजिक मुद्दों पर बेबाक बोलते रहे हैं। वो कॉलेज में छात्रों के बीच जितने फेमस हैं उतने ही सोशल मीडिया पर भी। X और यूट्यूब पर उन्हें फॉलो करने वालों की लंबी लिस्ट है। उन्हें अक्सर सोशल मीडिया से लेकर पब्लिक मीटिंग तक में बोलते हुए मुद्दों को उठाते हुए देखा गया है। लेकिन अब उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया है। डॉ. लक्ष्मण यादव ने अपने टर्मिनेशन लेटर को X पर शेयर करते हुए गोरख पांडे की एक चर्चित कविता के साथ ही लिखा -
मेरे लहज़े में जी हुज़ूर ना था
इससे ज़्यादा मेरा क़सूर ना था
आधिकारिक सूचना. हमसे हमारी धड़कन छीन ली गई. वज़ह नहीं बताई. मगर वज़ह जगज़ाहिर है.
मेरे लहजे में जी-हुजूर न था
इससे ज्यादा मेरा कसूर न था.वे डरते हैं
किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे… pic.twitter.com/Yd9ntKfGqX— Dr. Laxman Yadav (@DrLaxman_Yadav) December 6, 2023
डॉ. लक्ष्मण यादव को निकाले जाने पर सोशल मीडिया पर तीख़ी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।कॉलेज में छात्रों ने भी उनको निकाले जाने के विरोध में प्रोटेस्ट किया।
डॉ.लक्ष्मण यादव के बारे में
उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ के रहने वाले डॉ. लक्ष्मण यादव हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमए में गोल्ड मेडलिस्ट और JRF ( Junior Research Fellowship) क्वालीफाई कर लक्ष्मण यादव ने IAS बनने के सपने के साथ 2009 में दिल्ली का रुख़ किया। IAS की तैयारी के साथ ही उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी में एडमिशन ले लिया। 2010 में उन्हें ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में इंटरव्यू देने का मौक़ा मिला और एडहॉक पर उन्हें नौकरी मिल गई। 1 सितंबर 2010 को उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के हिंदी विभाग में ज्वाइन कर लिया। वे बताते हैं कि ''1 सितंबर 2023 को 13 साल पूरा हो गए और 14वां साल चल रहा था। फिलहाल यही कहानी है कि इस बार जब परमानेंट का इंटरव्यू हुआ और उसमें उन्हें नहीं लिया। 14 साल पुराने एक शिक्षक को निकाल दिया।''
हमने डॉ. लक्ष्मण यादव से फोन पर विस्तार से बात की।
सवाल: आपका टर्मिनेशन लेटर देखा उसमें कुछ ख़ास नहीं लिखा है।
जवाब: असल में नियम और कायदे की बात करें तो एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडिकेटर ( Academic performance Indicators ) होते है। API में 100 में से जितने नंबर मिलते हैं उसके बेस पर इंटरव्यू के लिए कॉल आती हैं तो मेरे 100 में से 96 हैं। मैंने आज Twitter पर उसे भी लगा दिया है।
Academic Performance Indicators (API) : 96/100
ये चार नम्बर भी इसलिए कम हुए कि हमारे BA MA में 80% से ज़्यादा नहीं हैं। अन्यथा 100/100 होते। भले ही ये इंटरव्यू के पहले की पात्रता है।
बावज़ूद इसके अगर आपको परमानेंट नहीं किया जाए, तो एक बात स्पष्ट है, यहाँ नियुक्ति पाने के लिए… pic.twitter.com/vUWpTHzld6
— Dr. Laxman Yadav (@DrLaxman_Yadav) December 7, 2023
वे आगे कहते हैं कि ''नियम पहले बदले थे लेकिन उन्होंने बदला नहीं 100% वेटेज इंटरव्यू बोर्ड के पास है तो API चलो ठीक है मेरिट का एक पैमाना तो है लेकिन उसपर इंटरव्यू नहीं होता। नियम ये कहता है कि 100 फीसदी इंटरव्यू बोर्ड के हाथ में अधिकार है जैसा कि मान लीजिए 5 पद हैं तो वे पांचों पर केवल नाम लिख देंगे इस पद पर इनको नियुक्त किया जा रहा है इस पद पर इनको नियुक्त किया जा रहा है, ये दो लोग वेटिंग में हैं और उसके बाद नीचे साइन करके रिजल्ट बन जाता है। उसमें इस बात का कोई नियम ही नहीं है कि वे कोई वजह बताएं या कोई मैरिट उन्होंने बनाई है तो उस मेरिट को रिलीज करें। किस बेस पर वो 14 साल पुराने टीचर को बाहर कर रहे हैं किस बेस पर बिना टीचिंग एक्सपियंस वाले से रिप्लेस कर रहे हैं। ये कई शर्तें हैं जिसका फायदा वे उठाते हैं वजह नहीं बताते। हम भी जानना चाहते हैं कि हमें क्यों निकाला गया इसका कारण बताएं।''
सवाल: आपने इंटरव्यू पर सवाल उठाए हैं, क्या आपको लगता है कि नियमों को अनदेखा किया गया है?
जवाब: मैं ये दावा नहीं करूंगा कि किसी गाइडलाइन को उन्होंने अनदेखा किया है क्योंकि ये बहुत चालाक लोग हैं इनके पास इस बात का पर्याप्त मौका है कि वो बकायदा इंटरव्यू लेते हुए भी किसी को बाहर कर सकते हैं क्योंकि उन्हें कारण कहीं बताना नहीं है। उनको तो फाइनल रिजल्ट देना है। लेकिन अंदर से बात आती है कि जब अंतिम दिन रिजल्ट बनता है जब इंटरव्यू खत्म हो चुका होता है तो बातचीत शुरू होती कि क्या निर्णय लेना है तो सैद्धांतिक तौर पर बातचीत ऐसे शुरू होनी चाहिए कि इनका इंटरव्यू अच्छा हुआ है इनका वर्क एक्सपियंस अच्छा है या इनका पब्लिकेशन अच्छा या इनका एकेडमिक अच्छा है। लेकिन वहां बातचीत ऐसे शुरू होती है कि ''लक्ष्मण यादव को हमें निकालना है चाहे आप जिसको रख लें।'' तो इसमें प्रिंसिपल, चेयरमैन, वीसी, नॉमिनी ये सारे लोग एक तरफ थे ऐसा मुझे लगता है कि इन्हें ऊपर से कोई निर्देश देकर भेजा गया था कि बाकी आप चाहे जिसको रख लें लेकिन लक्ष्मण यादव को बाहर कर दें। तो इस वजह से ये सब किया गया।
सवाल: सिर्फ ज़ाकिर हुसैन ही नहीं रामजस में भी 8 एडहॉक टीचर्स को निकाला गया है उनको लेकर प्रोटेस्ट हुआ आपके लिए भी प्रोटेस्ट हुआ। एक बात तो तय है कि छात्र आप लोगों के साथ हैं वो चाहते हैं कि ऐसे टीचर कॉलेज में यूनिवर्सिटी में रहने चाहिए।
जवाब: मेरा मानना है कि जितने भी बाकी लोग हटाए जा रहे हैं मेरा मामला उनसे थोड़ा अलग और एक कदम आगे का है। बहुत सारे टीचर इसलिए भी निकाल दिए गए क्योंकि वे RSS की शाखाओं में नहीं गए उन्होंने किसी प्रोफेसर के चैंबर में जाकर चापलूसी नहीं की तो कई वजह है। मेरिट देखकर विश्वविद्यालय में नियुक्ति होनी चाहिए शैक्षणिक अनुभव (teaching experiences) के बेस पर हो जिससे अच्छे टीचर आएं, विश्वविद्यालय अच्छा बने। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है ये बिल्कुल क्लियर मैसेज है अगर आप हमारी संघ की शाखा के हैं, ABVP के पदाधिकारी हैं, बीजेपी के किसी नेता के रिश्तेदार हैं, किसी प्रोफेसर के रिश्तेदार हैं तो आपको कई लोगों को हटाकर नियुक्ति दे दी जाएगी और इस चक्कर में 10 साल, 15 साल तक पढ़ाने वाले लोगों को हटाया गया है।
''अफसोस इस बात का है कि जिसे निकाला जाता है वो इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि वो इसका विरोध करने के लिए सामने आए क्योंकि आज अगर मैं विरोध करने के लिए सामने आ रहा हूं तो मुझे पता है मेरा आगे का करियर ख़त्म है। लेकिन मैं आज ये बात नहीं बोलूंगा तो मैं अपनी नज़रों में गिर जाऊंगा बस अफसोस यही है कि विश्वविद्यालय पूरी तरह बर्बाद किया जा रहा है। बहुत सारे लोगों को बाहर कर दिया गया। मुझे बाहर करने की दो बातें थीं, एक तो मैं उनके खेमे में नहीं था और दूसरा मैं उनका Ideological challenge हूं, मैं उनसे अलग राय रखता हूं। इसलिए उन्होंने मुझे सज़ा देने के लिए मेरा करियर बर्बाद कर दिया तो ये दोनों वजह इसमें शामिल हैं।
सवाल: इसी साल हिंदू कॉलेज में एडहॉक पर पढ़ा रहे समरवीर ने सुसाइड किया था, हम ये देख रहे हैं कि जिन टीचर्स को निकाला जा रहा है उनमें से कई ने लंबे वक़्त तक कॉलेज में पढ़ाया है, यूनिवर्सिटी को अपना वक़्त दिया है, अगर इतने सालों के बाद इस तरह से निकाला जा रहा है तो आपको नहीं लगता ऐसे में वो आगे क्या करेंगे उनके पास करियर के हिसाब से क्या विकल्प बचते हैं?
जवाब: असल में यही सवाल हम पिछले कई सालों से कर रहे हैं, ''सेव एजुकेशन, सेव नेशन'' जो भी हमने लड़ाई लड़ी इन सबके लिए लड़ी कि हमारे संस्थान बर्बाद ना हों। बहरहाल, हो ये रहा है कि हमने कई करियर छोड़कर अपनी जिन्दगी का सबसे क़ीमती समय इस प्रोफेशन में दिया है, मान लीजिए मैं 14 साल इस कॉलेज में पढ़ा चुका हूं और मेरी उम्र अब 35 साल हो चुकी है क्योंकि मेरी 21 साल की उम्र में नौकरी लग गई थी। अब 35 साल में किसी और जगह पर, कोई और करियर विकल्प खोजने के लिए मेरे सारे रास्ते बंद हो चुके हैं।
वे आगे कहते हैं कि ''14 साल का मतलब है, 14 बैच पढ़ाना, हमारे पढ़ाए हुए बच्चे competitive exam में क्वालीफाई हुए, कई जगहों पर नौकरी पा गए, इसी दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन गए और 14 साल बाद सिलेक्शन कमेटी को ये लगता है कि मैं टीचर बनने के क़ाबिल नहीं हूं तो क्या 14 साल तक विश्वविद्यालय ने किसी नाकाबिल शिक्षक से छात्रों का भविष्य बर्बाद करवाया? और अगर 14 साल आपने मुझे continuationका लेटर दिया है तो इसका मतलब है कि मैं एक अच्छा टीचर हूं और फिर जब मैं 14 साल अच्छा टीचर हूं तो 14 मिनट के इंटरव्यू में मैं ख़राब टीचर कैसे हो गया? इस तरह के कई सवाल हैं।''
''और निश्चित तौर पर जब किसी को निकाला जा रहा है तो उसके लिए सारे दरवाज़े बंद हैं, घर वालों को, रिश्तेदारों को हम ये बात नहीं समझा सकते कि सिस्टम में हम फिट नहीं हैं मतलब ''मेरे लहज़े में जी हुजूर ना था, और मेरा कोई क़सूर ना था''। अफसोस ये है कि जब निकाला जा रहा है तो समरवीर जैसे हमारे साथी जिन्होंने सुसाइड कर लिया उस पर भी देश में कोई हंगामा नहीं हुआ, परिवार बर्बाद हो गया उसका तो मैं उस अवसाद में नहीं जाऊंगा। मैंने ये चुना है कि मैं इसके खिलाफ बोलूंगा और भले ये जानते हुए कि इसमें मेरा करियर और ख़राब कर दिया जाएगा। लेकिन अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ अगर हम नहीं बोलेंगे तो कौन बोलेगा, तो इसलिए ये बिल्कुल क्लीयर है बहुत सारे लोगों को निकाला जा रहा है, उनके पास अब करियर का कोई विकल्प नहीं बचा है।''
सवाल: दिल्ली विश्वविद्यालय में पहले भी अलग-अलग विचारधारा के लोग (पढ़ाने वाले) रहे हैं लेकिन ऐसी कभी नौबत नहीं आई। क्या अब विश्वविद्यालयों में एक ही विचारधारा रहेगी?
जवाब: कई बार मैं एक सवाल पूछता हूं कि आज जो RSS के लोग हैं प्रिंसिपल बन गए, प्रोफेसर बन गए इनकी नियुक्ति तो तब हुई होगी जब इनकी सरकार नहीं थी इसका मतलब तो ये है ना कि विचारधारा, सरकार से, कैंपस नहीं चलते थे। लेकिन हां ये बिल्कुल ठीक है कि जिनकी सरकारें होती थीं उनका प्रभाव ज़्यादा होता था। पहले भी बहुत सी ख़राब Appointmentहुई हैं लेकिन ये नहीं था कि ये मेरे खिलाफ है या ये मेरे साथ नहीं है तो इन सबको निकाला जाए। RSS की सोची-समझी साजिश है वे शैक्षिक संस्थाओं को पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में रखने के लिए एक तरफ से अपना काडर भर रहे हैं और जो भी उनके साथ नहीं है वो उनके खिलाफ है ये मान कर के बाकी सारे लोगों को बेदखल किया जा रहा है।
सवाल: इन सबकी वजह से छात्रों का कितना नुकसान होने वाला है?
जवाब: उनके खेमे के बहुत सारे छात्र होंगे जिनको बरगलाया जाएगा। मेरे विद्यार्थियों को जब से पता चला है वो रो रहे हैं, मैं उन विद्यार्थियों के लिए रो रहा हूं। मुझे नहीं पता इसकी क्षतिपूर्ति कैसे होगी, विद्यार्थियों का ही नहीं ये पूरे देश का नुकसान है। आप निडर और साहसी पढ़ाने वाले प्रोफेसर नहीं बना रहे, कमजोर और गुलाम लोगों को, शाखा में जाने वालों को बना रहे हैं। सारा नुकसान विद्यार्थियों का है, ऐसे तो ये एकेडमिक इंस्टीट्यूशन बहुत जल्द ही बर्बाद नज़र आएंगे।
सवाल: आगे क्या करेंगे आप?
जवाब: दो-तीन काम मैं करने जा रहा हूं। मैं सिलसिलेवार एक-एक चीजें जो मुझे लगता है कि पूरे देश को जाननी चाहिए कि एकेडमिया के भीतर क्या हो रहा है मैं उस पर लिखना और बोलना दोनों जारी रखूंगा। मैं सोशल मीडिया के ज़रिए जो भी चीजें देश को बताने लायक होगी बताऊंगा। निजी लड़ाई से आगे बढ़ाकर वैचारिक लड़ाई बनाएंगे। देश की ऐसी लड़ाई जिसमें शिक्षा को बचाया जा सके, शैक्षिक संस्थाओं को एक रंग में रंगने के खिलाफ, मेरिट के खिलाफ जो माहौल है इसके खिलाफ एक मिशन की तरह से काम करूंगा ताकि लोग जागरूक हों ताकि अगली बार किसी का नंबर मेरी तरह ना आए। किसी के करियर को बर्बाद ना किया जाए।
हमने इस पूरे मामले पर बात करने के लिए ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के प्रिंसिपल से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन ख़बरे लिखे जाने तक उनसे बात नहीं हो पाई।
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