दिल्ली यूनिवर्सिटी: ''10 मिनट का इंटरव्यू, क्या ये सिलेक्शन प्रक्रिया फ़ेयर है?''
जहां एक तरफ दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में पिछले 14 साल से पढ़ा रहे डॉ. लक्ष्मण यादव को परमानेंट की चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया वहीं रामजस कॉलेज में भी इंग्लिश डिपार्टमेंट के 10 एडहॉक टीचर्स में से 8 को हटा दिया गया।
एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली यूनिवर्सिटी से अच्छी-खासी संख्या में टीचर्स को हटाया गया है। इनमें से कई ऐसे हैं जो यहां 10 साल या उससे भी अधिक वक़्त से पढ़ा रहे थे। लेकिन अब उन्हें फिर से नौकरी की तलाश या दूसरे विकल्प तलाश करने होंगे।
किसी डिपार्टमेंट में एक साथ 8 टीचर्स का जाना छात्रों के लिए बड़ी बात है जिसका असर रामजस में देखने को मिला। वहां जैसे ही इंग्लिश डिपार्टमेंट से 8 टीचर्स को हटाने की ख़बर मिली छात्रों ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई और विरोध-प्रदर्शन भी किए गए। छात्र अपने टीचर्स के साथ खड़े नज़र आए।
दिल्ली विश्वविद्यालय से लगातार हटाए जा रहे एडहॉक टीचर्स के लिए कोई बड़ा आंदोलन होता नज़र नहीं आ रहा है। ज़ाकिर हुसैन से हटाए गए डॉ.लक्ष्मण को लेकर फिर भी सोशल मीडिया पर कुछ हलचल दिखी लेकिन बाकी कॉलेज से हटाए गए एडहॉक टीचर्स ने शायद ख़ामोश रहना ही बेहतर समझा।
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लेकिन रामजस में 8 एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर में से एक ने हमने फोन पर विस्तार से बात की।
क़रीब 20 साल पहले दिल्ली में पढ़ने आई एक लड़की ने इस बड़े शहर में अपने लिए जगह बनाई। पढ़ाई की और फिर यहीं (दिल्ली यूनिवर्सिटी) पढ़ाने भी लगीं। उन्होंने 2017 में अपनी पीएचडी पूरी की और फिर DU में एडहॉक पर असिस्टेंट प्रोफेसर बन गईं। वे पिछले 8 साल 8 महीने से रामजस में पढ़ा रही थीं। वे बताती हैं कि उनके API ( Academic Performance Indicators ) Point 100 में से 94 थे। अपने बारे में बताते हुए वे कहती हैं कि ''मैं एक छोटे से शहर से आती हूं, मेरे मां-बाप Non-English speaking people हैं तो भाषा का जो Political context है मैं उसी में पैदा हुई थी और मैं पहली जनरेशन हूं जिसने अपने परिवार में से पीएचडी की और पढ़ाने के लिए आई।''
वे रामजस में इंग्लिश लिटरेचर पढ़ा रही थीं। उनका मानना है कि उन्होंने अपनी जिन्दगी के बेहतरीन आठ साल पढ़ाया, पीएचडी की, उनके बढ़िया पब्लिकेशन, क्वालिफिकेशन होने के बावजूद महज़ 10 मिनट के इंटरव्यू में उन्हें जज कर लिया गया। वे कहती हैं कि-''मैं अपने कॉलेज की एकमात्र ऐसी शिक्षक हूं जिसने 8 साल 8 महीने के दौरान जितने भी सेमेस्टर पढ़ाया। छात्रों से फीडबैक लिया ताकि मैं अपने आप को शिक्षक के तौर पर और बेहतर बना सकूं। हम ऐसे शिक्षक नहीं जो बस क्लास में जाकर कुछ पढ़ाकर चले आते। हम आत्म विश्लेषण भी करते हैं। हम अपने आप से पूछते हैं कि कैसे और बेहतर कर सकते हैं।''
वे आगे कहती हैं कि '' मैं और मेरे सहकर्मी (colleague) शिक्षक कुछ एक Ideology से belong नहीं करते'' वे समझाने की कोशिश करती हैं कि ''अंग्रेजी अपने आप में बहुत पॉलिटिकल भाषा है। उस भाषा में देश के लिटरेचर को पढ़ाने की एक विरासत रही है। लेकिन मौजूदा वक़्त में बहुत कुछ में सुधार चल रहा है और हम में से बहुत से इस लहर में फंस गए हैं। ये जो पोलराइज़ कॉनटेक्स बनाया जा रहा है कि '' तुम ये विचारधारा फॉलो नहीं करते '' तो ये ग़लत है।''
वे गहराई से बातों को समझाने की कोशिश करती हुए कहती हैं कि ''ऐसे लोग हैं जिन्होंने 8 साल, 9 साल, 10 साल पढ़ाया है और जिनके API पाइंट 82 से 94 हैं लेकिन उन्हें बाहर निकाल रहे हैं, किस आधार पर? 10 मिनट के इंटरव्यू में, क्या ये सिलेक्शन प्रक्रिया फेयर (निष्पक्ष) है? जिस संस्थान को हमने अपनी ज़िन्दगी के बेहतरीन साल दिए (जब हमें 30s में थे) डेडिकेशन के साथ तो किस आधार पर तय किया, क्या ट्रांसपेरेंसी है इसकी? अगर हम पूछें आपने किस चीज़ को तरजीह (preference) दी। आपने कैसे हमें मार्क किया है, हमें और जिन्होंने एक भी साल नहीं पढ़ाया उनको कैसे एक ही कैटेगरी में डाला? जिनको आपने सिलेक्ट किया, वो खुलकर नेताओं को शुक्रिया कर रहे हैं, ये कैसा शिक्षा का माहौल है? ये तो न्याय नहीं है ना, लेफ्ट और राइट दोनों ही सोशल जस्टिस पर राजनीति करते हैं तो ये कहां का सोशल जस्टिस है?''
सवाल- निकाले जाने पर भी लोग बात नहीं कर रहे, आवाज़ नहीं उठा रहे लेकिन आप बोल रही हैं, आपको लगता है कि आगे करियर में दिक्कत हो सकती है?
जवाब: जी, बिल्कुल डर है। क्योंकि डर हमको दिखाया जा रहा है। मैं ये बिल्कुल नहीं बोलना चाहती कि मेरे अंदर डर नहीं है। मैंने अपनी जिन्दगी के 8 साल 8 महीने सरकार को दिए हैं, सरकारी नौकरी को दिए हैं और मुझे लगा चूंकि सरकारी नौकरी है तो सरकार हमारी प्रोटेक्शन करेगी लेकिन ये नहीं हुआ। हममें से बहुत से लोग कहीं और भी नौकरी कर सकते थे। ऐसा नहीं है कि हमारे पास क्वालिफिकेशन नहीं है हम आठ में से चार की अच्छी जगह से पीएचडी है।
''पहले तो हमें डर नहीं था। इसलिए नहीं था क्योंकि एक जो हार्डवर्क का सिस्टम है हमने वो फॉलो किया। जितना हमको point system में बोला गया हमने अपने आप को तैयार किया, तो अब डर ये है कि सबकुछ करके भी जॉब नहीं मिल रही है तो और क्या करना है?''
''हम अपनी केटेगरी में बेस्ट हैं। डर है कि इतने साल पढ़ाया अगर ये हमको जॉब नहीं दिला रहा है तो क्यों? दिल में डर है, सवाल है curiosity है, सबकुछ है हम बहुत तनाव से गुजर रहे हैं। मैं अपनी फैमिली की सोल केयर टेकर हूं (एकमात्र देखभाल करने वाली) हमारे जॉब हमसे छीन लिए गए तो बिल्कुल डर है।''
सवाल: एडहॉक टीचर्स को हटाए जाने के विरोध में रामजस में छात्रों ने प्रोटेस्ट किया जिस तरह से भी आवाज़ उठा सकते थे उठाई। आपको क्या लगता है इन सबके बीच किसका नुकसान हो रहा है?
जवाब: मैं शिक्षक बनी हूं क्योंकि मैंने अपनी जिन्दगी में बहुत अच्छे शिक्षकों को देखा है, उनको देखकर मैं शिक्षक बनना चाहती थी मैं इसी यूनिवर्सिटी, इसी सिस्टम में पढ़ी हूं और इसी सिस्टम को वापस कुछ देना चाहती थी। लेकिन मुझे डर है कि वे लोग( छात्र) जो देख रहे हैं हमारे साथ जो हो रहा है उनकी इच्छा ही नहीं होगी इस सिस्टम में आकर टीचर बनने की। मुझे इस बात का डर है कि हम उन्हें क्या रोल मॉडल दे रहे हैं।
''मेरे अंदर कड़वाहट नहीं है ( we are not bitter ) क्योंकि अगर मैंने अपना bitterness अपने students को दिखाया तो ये 18 से 21 साल के यंग बच्चों को जो स्कूल से कॉलेज आते हैं, हमारे भविष्य हैं, ग़लत सीख होगी। जिनकी आदर्शवादी जिन्दगी होनी चाहिए। ''मुझे बस यही डर है कि नुक़सान आदर्शों का हो रहा है। टीचर और छात्रों के बीच जो प्यार है उसका नुकसान हो रहा है।''
सवाल: इन सबके बाद क्या आपको लगता है की एक पारदर्शी इंटरव्यू बोर्ड की मांग होनी चाहिए?
जवाब: हां बिल्कुल, ट्रांसपेरेंसी तो ज़रूरी है। लेकिन जो mass displacement किया जा रहा है इसका क्या मतलब है, ये हमको क्या बता रहा है कि हमने जो सीखा है 20 साल में, हमने जो पढ़ाया है उसका कोई मूल्य ही नहीं है? बात मूल्यों की है। नॉलेज सिस्टम में डायवर्सिटी की ज़रूरत है।
प्रोटेस्ट के दौरान पोस्टर लगाती एक छात्रा
हालांकि इससे पहले भी रामजस के दूसरे विभाग से एडहॉक टीचर्स को हटाया गया है और इस बार एक साथ इंग्लिश विभाग से आठ एडहॉक टीचर्स को हटाने पर छात्रों में बेहद नाराज़गी है। आइसा और SFI के साथ ही दूसरे छात्रों ने प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया और इसे ग़लत बताया। SFI से जुड़े और रामजस के थर्ड ईयर के एक छात्र से बात की उनका कहना है कि '' रामजस ही नहीं पूरे दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक साल से डिसप्लेसमेंट चल रहा है, पिछले सितंबर में जूलॉजी डिपार्टमेंट से शुरू हुआ डिस्प्लेसमेंट का सिलसिला तब से लेकर अब तक हर डिपार्टमेंट कवर हो चुका है।''
इस छात्र के मुताबिक ''नुकसान सिर्फ छात्रों का ही नहीं है ये नुकसान देखा जाए तो देश के हर आम इंसान का है। क्योंकि डिस्प्लेसमेंट को हम आइसोलेटेड इंवेंट की तरह नहीं देख सकते कि एडहॉक थे तो डिस्प्लेसमेंट होना ही था। ये पूरी तरह से एक रणनीति है, प्लान है - भगवाकरण करने का। हर चीज़ इसी तरह से बदली जा रही है।''
ये छात्र आगे कहता है कि ''दिल्ली यूनिवर्सिटी में जिस वजह से मैं पढ़ने के लिए आया था, या मेरी ही तरह कई बच्चे इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए आते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी आपको सिखाता है कि कैसे सवाल पूछते हैं। लेकिन डिबेट डिस्कशन को यहां मार दिया जा रहा है। आप कोई सवाल नहीं कर सकते। तुरंत ही एक्शन होने लग जाते हैं। जो प्रोफेसर कुछ बोलते भी नहीं थे, पूरी तरह से लिबरल थे,आ।जतक उन्होंने अपनी क्लास में किसी पॉलिटिकल थॉट का पक्ष नहीं लिया। वो शांत थे। अपना सब्जेक्ट पढ़ाते थे और चले जाते थे उन्हें भी निकाल दिया यानि आप चुप भी नहीं रह सकते ।मतलब तुम्हें बोलना है और RSS(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की बातें बोलनी है।''
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