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खाद्य महंगाई उछली, आम आदमी को दो वक्त की रोटी जुटानी हुई दूभर, जानकार बोले महंगाई अब स्थायी!

"खाद्य महंगाई में एक बार फिर तगड़ा उछाल आया है। महंगाई दर 6 फीसदी के आंकड़े को कूदकर 8.7 फीसदी पर जा पहुंची है जिससे आम आदमी को दो वक्त की रोटी जुटानी भी दूभर हो चली है। जानकारों का भी कहना है कि महंगाई अब स्थायी हो गई है, बढ़ती रहेगी!। देखें तो सरकार ने गेहूं की कीमतें कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं जिसमें स्टॉक सीमा, निर्यात पर प्रतिबंध, खुले बाजार में गेहूं की बिक्री जैसे काम शामिल हैं। इसके बावजूद गेहूं की कीमतों में इजाफा हो रहा है और आगे भाव और बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। जी हां, मांग और आपूर्ति के बढ़ रहे अंतर के कारण आम आदमी की रोटी महंगाई की आग में तप रही है। वैसे इस आग को हवा देने वाली भी सरकार की नीतियां ही हैं।"
inflation

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में महंगाई (इंफ्लेशन) ने महीनों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। खुदरा मुद्रास्फीति में इस तेजी के लिए खाद्य कीमतों में तेज वृद्धि को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। खास है कि नवंबर में खाद्य मुद्रास्फीति रिकॉर्ड 8.70 प्रतिशत रही। जी हां, नवंबर में खुदरा महंगाई दर में तगड़ी बढ़ोतरी हुई है। सरकार के डेटा के मुताबिक नवंबर 2023 में खुदरा महंगाई दर 5.55 फीसदी रही है जो अक्टूबर 2023 में 4.87 फीसदी रही थी। जुलाई 2023 में टमाटर समेत खाद्य वस्तुओं की कीमतों में उछाल के बाद खुदरा महंगाई दर फीसदी के उच्च स्तर 7.44 फीसदी पर जा पहुंची थी। जिसके बाद अगस्त में घटकर 6.83 फीसदी और सितंबर में 5.02 फीसदी पर आ गई थी। अब नवंबर महीने में एक बार फिर से खाद्य महंगाई दर बढ़कर 8.70 फीसदी पर जा पहुंची है जो अक्टूबर 2023 में 6.61 फीसदी रही थी। आटा, फल-सब्जी, दाल-6 मसालों की कीमतों में उछाल के चलते खाद्य महंगाई में इजाफा हुआ है।

अनाज और दाल की महंगाई आम लोगों को सबसे ज्यादा सता रही है ये खुदरा महंगाई दर के डेटा से भी स्पष्ट हो रहा है। दालों की महंगाई दर बढ़कर 20.23 फीसदी पर जा पहुंची है जो अक्टूबर में 18.79 फीसदी रही थी। अनाज और उससे जुड़े प्रोडक्ट्स (गेहूं-आटा) की महंगाई दर 10.27 फीसदी रही है जो पिछले महीने में 10.65 फीसदी रही थी। मसालों की महंगाई दर 21.55 फीसदी रही है जो पिछले महीने 23.06 फीसदी रही थी। फलों की महंगाई दर 10.95 फीसदी रही है जो पिछले महीने 9.34 फीसदी रही थी। सब्जियों की महंगाई दर में इजाफा हुआ है और ये बढ़कर 17.7 फीसदी रही है जो पिछले महीने 2.70 फीसदी थी। 

खास यह है कि खाद्य मुद्रास्फीति दर न सिर्फ बढ़ी है बल्कि दुर्भाग्य से इसमें कमी के कोई संकेत भी नहीं दिख रहे हैं। जानकारों ने कहना शुरू कर दिया है कि महंगाई अब स्थायी हो चली है। यही नहीं, अक्टूबर, 2023 में चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत पर पहुंचने के बाद, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर में बढ़कर 5.55 प्रतिशत हो गई। नवंबर में ग्रामीण मुद्रास्फीति शहरी मुद्रास्फीति से आगे निकल गई– यह प्रवृत्ति जुलाई 2023 से देखी जा रही है। मुद्रास्फीति में गिरावट की प्रवृत्ति का बेस इफेक्ट और बढ़ी हुई खाद्य कीमतों के कॉम्बिनेशन से प्रेरित थी।

गेहूं की कीमतों में भारी उछाल,4200 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंचा भाव

गेहूं के कीमतों में लगातार उछाल देखने को मिल रहा है। गेहूं के बाजार भाव एमएसपी से दाेगुना तक हो गए हैं। देश की प्रमुख मंडियों के भावों पर नजर डाले तो गेहूं के भाव लगभग सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बने हुए हैं। पिछले दिनों कर्नाटक की शिमोगा मंडी में गेहूं का भाव एमएसपी से दुगुना देखा गया। यहां गेहूं का भाव 4200 रुपए के स्तर को छू गया जो अब तक का सबसे ऊंचा भाव है। इस तरह इस समय गेहूं के भाव पिछले आठ महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं।

इस रिकार्ड तेजी के पीछे वजह यह बताई जा रही है कि बाजार में गेहूं की मांग के मुकाबले कम मात्रा में गेहूं की आवक हो रही है, इसलिए गेहूं के भाव बढ़ रहे हैं। हालांकि सरकार गेहूं के भावों को कम करने के प्रयास कर रही है। सरकार ने गेहूं के भाव कम करने के लिए इसके निर्यात पर रोक लगा रखी है, इसके बावजूद गेहूं के भावों में लगातार तेजी बनी हुई है। ऐसे में किसानों को देश की विभिन्न मंडियों में चल रहे गेहूं के भावों की जानकारी होना जरूरी है। इन बढ़ी हुई कीमतों का लाभ उन किसानों को मिल रहा है जिन्होंने अपनी उपज रोककर रखी है।

ट्रैक्टर जंक्शन के अनुसार, देश की प्रमुख मंडियों में गेहूं के भाव

केंद्रीय कृषि व किसान व किसान कल्याण मंत्रालय के एजी मार्क नेट पोर्टल के मुताबिक, पिछले दिनों कर्नाटक की शिमोगा मंडी में सुपर फाइन किस्म के गेहूं के न्यूनतम भाव 3800 रुपए और अधिकतम भाव 4200 रुपए प्रति क्विंटल तक रहे। बात मध्य भारत की करें तो मध्यप्रदेश में गेहूं का सबसे अधिक रेट शामगढ़ मंडी में 3120 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। इसी प्रकार देश की अन्य मंडियों में एमएसपी से ऊपर गेहूं के भाव चल रहे हैं। बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से साल 2023-24 के गेहूं का एमएसपी 2275 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया हुआ है। देश के गेहूं उत्पादक राज्यों की प्रमुख मंडियों में गेहूं के भाव इस प्रकार रहे।

गुजरात की मंडियों में क्या है गेहूं का भाव

  • गुजरात की जम्बूसर मंडी में गेहूं का भाव 3200 रुपए प्रति क्विंटल
  • कादी मंडी में गेहूं का भाव 3055 रुपए प्रति क्विंटल।
  • कोडिनार मंडी में गेहूं का भाव 3000 रुपए प्रति क्विंटल 
  • जसदान मंडी में गेहूं का भाव 2900 2023रुपए प्रति क्विंटल है।
  • बगसरा मंडी में गेहूं का भाव 2850 रुपए प्रति क्विंटल।
  • भेसन मंडी में गेहूं का भाव 2905 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • दाहोद मंडी में गेहूं का भाव 2950 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • हिम्मतनगर मंडी में गेहूं भाव 2975 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • धोराजी मंडी में गेहूं का भाव 2755 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • जामनगर मंडी में गेहूं भाव 2915 रुपए प्रति क्विंटल है।


महाराष्ट्र की मंडियों में क्या चल रहा गेहूं का भाव

  • महाराष्ट्र की उमरेड मंडी में गेहूं का भाव 3200 रुपए प्रति क्विंटल।
  • पैठण मंडी में गेहूं का भाव 3000 प्रति क्विंटल है।
  • पार्टूर मंडी में गेहूं का भाव 3200 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • देऊलगांव राजा मंडी में गेहूं का भाव 3051 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • करंजा मंडी में गेहूं का भाव 2780 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • नागपुर मंडी में गेहूं का भाव 2712 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • औरंगाबाद मंडी में गेहूं का भाव 2651 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • अमरावती मंडी में गेहूं का भाव 2550 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • वाशिम मंडी में गेहूं का भाव 2600 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • कालवन मंडी में गेहूं भाव 2400 रुपए प्रति क्विंटल है।


मध्यप्रदेश की मंडियों में क्या चल रहा गेहूं का भाव

  • मध्यप्रदेश की शामगढ़ मंडी में गेहूं का भाव 3120 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • खंडवा मंडी में गेहूं का भाव 3042 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • खातेगांव मंडी में गेहूं का भाव 3070 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।  
  • बदनावर मंडी में गेहूं का भाव 2945 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • खातेगांव मंडी में गेहूं का भाव 3070 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।  
  • अकोदिया मंडी में गेहूं का भाव 2500 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • बडवाह मंडी में गेहूं का भाव 2401 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • भानपुरा मंडी में गेहूं का भाव 2300 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • झाबुआ मंडी में गेहूं का भाव 2505 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • खुजनेर मंडी में गेहूं का भाव 2501 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • मालथोन मंडी में गेहूं का भाव 2400 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • शिवपुरी मंडी में गेहूं का भाव 2390 रुपए प्रति क्विंटल है।


राजस्थान की मंडियों में क्या चल रहा है गेहूं का भाव

  • राजस्थान की बारां मंडी में गेहूं का भाव 2610 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • अलवर मंडी में गेहूं का भाव 2750 रुपए प्रति क्विंटल 
  • बेगू मंडी में गेहूं का भाव 2600 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • बूंदी मंडी में गेहूं का भाव 2560 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • जयपुर (बस्सी) मंडी में गेहूं का भाव 2645 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • खानपुर मंडी में गेहूं का भाव 2725 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • कोटा मंडी में गेहूं का भाव 2795 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • लालसोट मंडी में गेहूं का भाव 2620 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • लालासोट मंडावरी मंडी में गेहूं का भाव 2500 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • उदयपुर मंडी में गेहूं का भाव 2800 रुपए प्रति क्विंटल


उत्तर प्रदेश की मंडियों में क्या चल रहा है गेहूं का भाव

  • यूपी की अछल्हा मंडी में गेहूं का भाव 2500 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • आगरा मंडी में गेहूं का भाव 2650 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • अहिरौरा मंडी में गेहूं का भाव 2560 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • चौबेपुर मंडी में गेहूं का भाव 2600 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • अजुहा मंडी में गेहूं का भाव 2540 रुपए प्रति क्विंटल 
  • अकबरपुर मंडी में गेहूं का भाव 2520 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • बंथरा मंडी में गेहूं का भाव 2623 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • बरेली मंडी में गेहूं का भाव 2500 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
  • बरहज मंडी में गेहूं का भाव 2550 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • बस्ती मंडी में गेहूं का भाव 2500 रुपए प्रति क्विंटल है।


गेहूं को लेकर आगे क्या रहेगा बाजार का रूख

बाजार एक्सपर्ट्स की मानें, तो इस साल गेहूं के भाव एमएसपी से ऊपर बने रहेंगे और आने वाले समय में गेहूं के भावों में और उछाल आ सकता है। वहीं व्यापारियों का कहना है कि गेहूं के भावों में बढ़ोतरी कम आवक के कारण हो रही है। मंडी में गेहूं की आवक घट गई है। हालांकि गेहूं की घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार ने इसके निर्यात पर रोक लगा रखी है जिसका कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है। उनका कहना है कि जब तक बाजार में गेहूं की नई फसल नहीं आ जाती है तब तक गेहूं के दाम तेज ही रहेंगे। बता दें कि गेहूं की नई फसल अप्रैल में आएगी तब तक गेहूं के भाव कम होते दिखाई नहीं दे रहे हैं। यानी महंगाई स्थायी है, की भी पुष्टि हो जा रही है।

महंगाई अब स्थायी, बढ़ती रहेगी! 
 
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दावा किया है कि महंगाई जल्दी ही कम हो जाएगी। उनके कहने से पहले से कई आर्थिक जानकार यह दावा कर रहे थे कि महंगाई सीजनल है और जल्द कम हो जाएगी। वित्त मंत्री के जल्दी महंगाई कम होने के बयान की एक दूसरी आर्थिक वजह भी थी। उन्होंने यह बात कहते हुए भारतीय रिजर्व बैंक पर परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से दबाव भी बनाया कि वह नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट में बढ़ोतरी नहीं करे। वरिष्ठ पत्रकार अजीत द्विवेदी के एक लेख के अनुसार, अभी पिछले कुछ दिन से मौद्रिक समीक्षा नीति की बैठकों में नीतिगत ब्याज दर को स्थिर रखा जा रहा है। लेकिन जुलाई के महीने में खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक की तय सीमा से निर्णायक रूप से ऊपर जाने के बाद यह आशंका जताई जा रही है कि रेपो रेट में बढ़ोतरी हो सकती है। तभी वित्त मंत्री ने पहले ही अपना दांव चलते हुए कहा कि नीतिगत ब्याज दर में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की प्रक्रिया प्रभावित होगी यानी विकास दर कम होगी।

सो, एक तरफ रिजर्व बैंक है, जिसे खुदरा महंगाई दर को छह फीसदी से नीचे रखने की अपनी जिम्मेदारी निभानी है तो दूसरी ओर वित्त मंत्री हैं, जिनको विकास दर की रफ्तार की चिंता करनी है। यह दोनों संस्थाओं के बीच सनातन खींचतान है। अब अंतर यह आ गया है कि महंगाई स्थायी हो गई है और इसके कई कारण हैं, जिनमें से एक कारण खाने-पीने की चीजों, खास तौर से सब्जियों की कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी भी है। दुर्भाग्य से भारत में हमेशा खाद्यान्न की कीमतों को ही महंगाई के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है और हर व्यक्ति का बयान उसको ध्यान में रख कर ही दिया जाता है। खाने-पीने की चीजों और खास कर सब्जियों को महंगाई का जिम्मेदार ठहराना एक किस्म की साजिश भी है, जिसकी आड़ में बाकी चीजों की महंगाई छिप जाती है। अनाज और सब्जियों को जब महंगाई के नैरेटिव में विलेन बनाया जाता है तो उसका एक बड़ा फायदा यह होता है कि एक वर्ग स्वाभाविक रूप से किसानों के नाम पर इसके बचाव में आ जाता है, जिससे पूरी बहस की दिशा मुड़ जाती है। यह कहा जाने लगता है कि कीमत बढ़ने का फायदा किसान को हो रहा है और इस वजह से लोगों के पेट में दर्द में हो रहा है।

लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है। अनाज और सब्जियों की कीमत में बढ़ोतरी का फायदा आम किसान को नहीं मिलता है। उसकी फसल तो पहले ही आढ़तिए खरीद चुके होते हैं। इनकी कीमतों में बढ़ोतरी भी बाजार का खेल है, जिसमें बड़े कारोबारी और थोड़े से बड़े किसान शामिल होते हैं। अगर सरकार विनिर्मित वस्तुओं की तरह या खाने-पीने की डिब्बाबंद वस्तुओं की तरह खुले अनाज और सब्जियों की अधिकतम कीमत यानी एमआरपी निर्धारित कर दे तब किसान को फायदा संभव है। लेकिन ऐसा नहीं किया जाता है। इससे जाहिर है कि यह बहस किसान के हित की नहीं होती है। इससे दूसरे लोगों का हित पूरा किया जाता है।

तभी खाने-पीने की वस्तुओं यानी अनाज और सब्जियों की कीमतों में कमी आने के बावजूद महंगाई कम नहीं होने वाली है। हो सकता है कि आंकड़ों में अगले दो महीने में यह बताया जाए कि खुदरा महंगई कम होकर रिजर्व बैंक की छह फीसदी की सीमा के दायरे में आ गई है लेकिन उससे आम लोगों को ज्यादा राहत नहीं मिलने वाली है। इसका कारण यह है कि खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें भी खुले बाजार में बहुत कम नहीं होने वाली हैं। उनकी एक न्यूनतम कीमत तय हो चुकी है। टमाटर की कीमत ढाई सौ रुपए किलो पहुंच गई, जिसमें कमी आ रही है लेकिन कम होकर इसकी खुदरा कीमत इसके दस फीसदी के बराबर यानी 25 रुपए किलो पर नहीं आने वाली है। इसी तरह धीरे धीरे ही सही लेकिन बढ़ते बढ़ते दालों, मसालों, तेल, चावल, आटा आदि की कीमत जहां तक पहुंच गई वहां से नीचे नहीं आने वाली है। इसलिए महंगाई आंकड़ों में जैसी दिखे, वह आम लोगों को चुभने वाली रहेगी। इसका कारण यह भी है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई में 45.9 फीसदी हिस्सा खाने-पीने की चीजों की कीमत का होता है। इसी के आधार पर खुदरा महंगाई का आकलन होता है। इसके अलावा ईंधन का हिस्सा 6.8 फीसदी और कोर सेक्टर का हिस्सा 47.3 फीसदी होता है।

जुलाई में खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक की ओर से तय छह फीसदी की सीमा पार कर 7.4 फीसदी पहुंच गई तो उसके पीछे कारण यह रहा कि खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई दर 11.5 फीसदी पहुंच गई, जो जून में 6.5 फीसदी थी। यानी इसमें पांच फीसदी की बढ़ोतरी हुई तो खुदरा महंगाई आसमान पर पहुंच गई। जुलाई के महीने में ईंधन की महंगाई दर 3.6 और कोर सेक्टर की महंगाई दर 4.9 फीसदी रही। खाने-पीने की चीजों में भी सब्जियों की महंगाई जून में 0.9 फीसदी थी, जो जुलाई में 37 फीसदी हो गई। खुदरा महंगाई पर इसका सबसे ज्यादा असर रहा। इसमें और बारीक आंकड़ों में जाएंगे तो हो सकता है कि यह पता चले कि टमाटर और एक-दो दूसरी सब्जियों की कीमतों की वजह से ऐसा हुआ। ऐसे में सवाल है कि पूरे साल अगर किसी न किसी सब्जी या अनाज की कीमत ऊंची रही तो खुदरा महंगाई दर कैसे कम होगी?

मिसाल के तौर पर टमाटर के बाद प्याज की कीमतें बढ़ने की आशंका है, जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने इसके निर्यात को सीमित किया और निर्यात पर 40 फीसदी शुल्क लगा दिया। बाद में सरकार ने 24 रुपए किलो की दर से दो लाख टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का फैसला किया। प्याज के बाद हो सकता है कि किसी और कृषि उत्पाद की कीमत में बढ़ोतरी हो जाए। ऐसा इसलिए हो सकता है कि मानसून इस बार बहुत खराब रहा है और अगस्त का महीना सूखा गया है, जिससे खरीफ की फसल पर बड़ी मार पड़ी है। धान की खेती वाले इलाकों में पैदावार कम होगी, जिससे चावल की कीमत बढ़ सकती है। खरीफ का सीजन शुरू होने के साथ ही इसकी आशंका शुरू हो गई थी, जिसके बाद गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा दी गई थी। पिछले साल इसी तरह गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाई गई थी।

इस तरह की नीतियों के दो खतरे हैं। पहला तो इससे दुनिया में देश की साख बिगड़ती है और दूसरे, इसका फायदा न तो किसानों को होता है और न उपभोक्ता को होता है। सो, सरकार को नीतिगत स्थिरता और निरंतरता पर ध्यान देना चाहिए। किसान और उपभोक्ता दोनों के हितों को ध्यान में रखते हुए कम अवधि की और लंबी अवधि की योजना बनानी चाहिए। अनाज और सब्जियों के पीछे पड़ने की बजाय विनिर्मित उत्पादों और ईंधन के ऊपर ध्यान देना चाहिए। डिब्बाबंद खाने-पीने की चीजों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। पैकिंग में वजन कम किया गया और कीमत बढ़ाई गई है, जिसे स्रिंक्फलेशन नाम दिया गया है। इसी तरह एफएमसीजी उत्पादों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम कीमत के बावजूद भारत में ईंधन की कीमत आसमान छूती रही। डीजल की कीमतें कई बरसों से पेट्रोल की कीमत के बराबर पहुंची है। ईंधन और बेतहाशा टोल वसूली से माल ढुलाई महंगा हुआ है। यह किसी भी उत्पाद की कीमत में सबसे बड़ा फैक्टर बन गया है। किसान के खेत में अनाज व सब्जियां सस्ती हैं फिर भी उन्हें उपभोक्ता तक पहुंचाना इसलिए महंगा हो गया है क्योंकि ईंधन महंगा है, भारी भरकम टोल वसूली है और कारोबारियों का लालच है, जिसकी वजह से महंगाई को ग्रीडफ्लेशन भी नाम दिया जा रहा है।

ईंधन और टोल के अलाव और भी कई फैक्टर हैं, जिनकी वजह से महंगाई की परिघटना स्थायी रहने वाली है। उनमें एक मौसम है। जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का अतिरेक हर जगह देखने को मिल रहा है। भारत जैसे सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर रहने वाले देश में अगर समय से बारिश नहीं होती है या सामान्य बारिश नहीं होती है और गरमी व सर्दी दोनों बहुत होते हैं तो फसल खराब होगी। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय हालात के कारण दुनिया की आपूर्ति शृंखला बिगड़ी रहने वाली है। मिसाल के तौर पर डेढ़ साल से रूस व यूक्रेन का युद्ध चल रहा है और चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण ताइवान सहित कई इलाकों में तनाव बना हुआ है। इसका असर सप्लाई चेन पर होगा। सो, केंद्रीय बैंक की ब्याज दर हो, मानसून की अनिश्चितता हो, क्लाइमेट चेंज हो, सप्लाई चेन की समस्या हो या कारोबारियों का लालच हो या कोई और कारण हो महंगाई अब स्थायी तौर पर बनी रहने वाली है।

दो वक्त की रोटी जुटाना दिन पर दिन हो रहा दूभर, महंगाई कम करने की जिम्मेवारी किसान पर? 

कुल मिलाकर आलम यह है कि आम आदमी को दो वक्त की रोटी जुटाना दिन प्रतिदिन महंगा होता जा रहा है। जी हां, आटा पहले के मुकाबले प्रति किलो और महंगा हो गया है। बाजार में 35 रुपये किलो बिकने वाला आटा अब 37 रुपये तक हो गया है। इससे ब्रेड के रेट भी बढ़ गए। बढ़ती महंगाई के कारण लोग परेशान नजर आ रहे हैं, वहीं गृहणियों का बजट बिगड़ रहा है। लेकिन महंगाई को कम करने की ज‍िम्मेदारी रोजाना महज 28 रुपये कमाने वाले क‍िसानों के कंधे पर ही क्यों होनी चाहिए? जबक‍ि सरकार का ही दावा है क‍ि 80 करोड़ से अध‍िक लोगों को फ्री या फ‍िर दो-तीन रुपये क‍िलो के भाव पर अनाज उपलब्ध करवाया जा रहा है। 

देखा जाए तो उपभोक्ताओं को खुश रखने की कीमत भारत के क‍िसान चुका रहे हैं। वो क‍िसान ज‍िनकी सरकारी आंकड़ों में रोजाना की शुद्ध औसत आय स‍िर्फ 28 रुपये है। उपभोक्ताओं को सस्ता आटा उपलब्ध करवाने नाम पर इस साल की शुरुआत में लाई गई ओपन मार्केट सेल स्कीम से (OMSS) से क‍िसानों को करीब 45,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यह अनुमान इंड‍ियन काउंस‍िल फॉर र‍िसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉम‍िक र‍िलेशंस के एक र‍िसर्च पेपर में लगाया गया है। ज‍िसे जानमाने अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, राया दास, संचित गुप्ता और मनीष कुमार प्रसाद ने तैयार क‍िया है। इसमें कहा गया है क‍ि अगर हम फरवरी में गेहूं के अखिल भारतीय औसत थोक बिक्री मूल्य को भी लें, तो भी किसानों को ओएमएसएस की वजह से करीब 39,829 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। 

दरअसल, जब अप्रैल में गेहूं की नई फसल आई थी, उससे पहले सरकार ने एमएसपी पर अपने खरीद टारगेट को पूरा करने और महंगाई पर कंट्रोल पाने के ल‍िए ओपन मार्केट सेल स्कीम को एक बड़े हथियार के तौर पर इस्तेमाल क‍िया। भारतीय खाद्य न‍िगम (FCI) ने इस स्कीम के तहत बाजार भाव से बहुत कम कीमत पर 33 लाख टन सस्ता गेहूं डंप करके दाम घटा द‍िया था। वरना क‍िसानों की जेब में ज्यादा पैसे जाते।

साभार : सबरंग 

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