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देव दिवाली : चिराग तले अंधेरा

सोनू हो या रेनू इस तरह के बच्चों की ज़िन्दगी में न तो दिवाली और न ही देव दिवाली उनके चेहरे पर मुस्कान ला पा रही है।
Dev diwali

दिवाली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जहां दिवाली राम के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती हैं वहीं देव दिवाली शिव द्वारा त्रिपुरासुर के वध की खुशियों में। कहा जाता है कि शिव ने जब त्रिपुरासुर का वध किया तो ‘देवगण’ ‘भगवान शिव’ से मिलने के लिए काशी नगरी पहुंचे। ‘देवगण’ ने त्रिपुरासुर की वध की खुशी में गंगा स्नान किया और दीप जला कर खुशियां मनाईं। इसी से देव दिवाली की शुरूआत हुई, जिसको काशी में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। 

15 नवम्बर, 2024 को काशी में देव दिवाली की धूम थी, जिसमें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हिस्सा लिया और नमोघाट पर दीप जलाया। 

यूपी में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद दीपों की संख्या का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का लक्ष्य रखा जाता है। दिवाली में अयोध्या के सरयू तट के 55 घाटों पर 28 लाख दीपकों को जलाकर योगी सरकार गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करा चुकी है। यह रिकॉर्ड पहले भी इसी सरकार के नाम था 2023 में 22.23 लाख और 2022 में 15.76 लाख दीप जला कर वर्ल्ड रिकॉर्ड भाजपा सरकार ने बनाया था। 

इसी तरह काशी में देव दिवाली पर 15 नवम्बर को 84 घाटों और 700 मंदिरों और मठों में 25 लाख दीप जलाये गये, जबकि 2023 में 18 लाख दीप जलाने का रिकॉर्ड था। भाजपा की योगी सरकार दीप जलाने के रिकॉर्ड में व्यस्त दिखाई देती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट देख लें तो इस सरकार के और कई सारे रिकॉर्ड सामने आ जायेंगे, जो कि इन दीपों के पीछे छुपी सच्चाई को दिखाते हैं। इस सच्चाई को तो वह आग की लौ भी दिखा रही थी, जिसको छुपाने के लिए सरकार ने कनात लगा दिया था। कनात के उस पार से आती हुई लौ बता रही थी कि कोई मां अपने बच्चों के लिए खाना बना रही है। यह लौ बता रहा थी कि उस कनात के पीछे भी लोग हैं, जिनको छिपाने की नाकाम कोशिश की गई है। वह लौ उस ‘उज्जवला योजना’ की भी सच्चाई को बता रही थी। 

देव दिवाली को अद्धभुत बनाने के लिए 60 मिनट तक ग्रीन पटाखों से आतिशबाजी की गई, लेजर शो से आसमान में सतरंगी छठा बिखेरी गई। कहा जा रहा है कि इसको देखने 40 देशों के मेहमान आये थे, अनुमान लगाया जा रहा है कि इस दिन दुनिया भर के 15 लाख लोग काशी पहुंचे। 

इस घाट से 400 मीटर दूरी पर एक मां अपनी 7-8 साल की बेटी के साथ पेट भरने के लिए रस्सी पर करतब दिखा रही थी, लेकिन वहां पर इन 15 लाख लोगों में से एक भी व्यक्ति नहीं था। उसने करतब दिखाने वाले पोल पर ‘श्री राम मन्दिर और धार्मिक झंडे’ भी लगाए हुए थे। मां-बेटी ने यह सोचा होगा कि धार्मिक उत्सव है, लोग हमें अलग धर्म का नहीं समझें और हमारी कमाई होगी! जितनी देर मैं देख पाया, उन मां-बेटी के अलावा कोई था तो उनकी तन्हाई। 

तुलसी घाट जाते ही मैंने देखा कि वहां 8-9 साल का सोनू फूल बेच रहा है, लेकिन उसके पास कोई खरीदार नहीं था। वह लोगों के बीच में बैठा था, जिसके चारों तरफ लोग ही लोग थे। सोनू चुप-चाप शांत चेहरे पर उदासी लिए बैठा था, जैसा कि वह इस दुनिया में अकेला होl उसको वह आतिशबाजी, पटाखें और लेजरों की सतरंगी दुनिया भा नहीं रही थी। सोनू की उम्र तो यह सब देख कर उत्साहित होने की थी, लेकिन सोनू के चेहरे की गंभीरता बता रही थी कि वह इस चकाचौंध की दुनिया से अलग कहीं और खोया हुआ है। 

सोनू से कुछ दूरी पर एक बूढी माता जी भी फूल माला बेच रहीं थीं। उनकी चेहरे की उदासीनता बता रही थी कि जिस उम्र में लोग मुक्ति पाने लिए उस गंगा के घाटों पर आते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, उस उम्र में माता जी की आँखें भगवान खोजने की जगह ग्राहक को खोजने को आतुर थीं। 

आगे जाने के बाद कई इस तरह के चेहरे दिखे,जो भीड़ के बीचों-बीच कहीं एकांत में खोए हुए थे। इसी में से एक चेहरा 6 साल की रेनू का था, जो अपनी मां के साथ बैठी इधर-उधर देख रही थीl लेकिन इन मां-बेटी के आंखें भी उसी तरह सूनी थीं, जैसे पहले करतब दिखा रही मां-बेटी की। उनकी भी वही हालत थी कि भीड़ तो है,लेकिन भीड़ में अकेले हैं। 

सोनू हो या रेनू इस तरह के बच्चों की जिन्दगी में न तो दिवाली और न ही देव दिवाली उनके चेहरे पर मुस्कान ला पा रही है। आप लाखों नहीं करोंड़ों दीप जलाएंl आप घाट का नाम जो भी रख लें, लेकिन इन चेहरों की मुस्कराहट जब तक अधूरी है तब तक आपके झूठे विकास की पोल खुलती रहेगी। हमें उस त्रिपुरासुर को खोज कर वध करना होगा, जिसने इनके चेहरे की मुस्कुराहट को चुराया है। मुझे बस ऐसे आयोजनों के लिए कवि गीतकार गोपाल दास नीरज की पंक्तियाँ याद आ रही हैं–

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,

कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,

मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,

कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,

चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,

भले ही दिवाली यहाँ रोज आए

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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