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ब्रिक्स के विस्तार को देखते हुए जी-7 की ज़मीन खिसक रही है  

रूस को अलग-थलग करने की पश्चिमी परियोजना की विफलता के कारण जी-7 भटक गया है तथा अपनी दिशा खो चुका है।
G7
इटली में 13 जून, 2024 को होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन की ‘पारिवारिक’ तस्वीर

हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक छिपा हुआ बदलाव यह रहा है कि वाशिंगटन ने ट्रांसअटलांटिक व्यवस्था में जी-7 को अपने 'किचन कैबिनेट' के रूप में हाईजैक कर लिया है। यूक्रेन में तख्तापलट के बाद मार्च 2014 में जी-8 का जी-7 में 'सिकुड़ जाना' एक निर्णायक पल था जिसका इशारा यह था कि शीत युद्ध के बाद की शांति से कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। जी-7 की कल्पना विश्व अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले देशों के समूह के रूप में की गई थी, जो अंततः अमेरिका के वैश्विक दादागिरी/आधिपत्य को बनाए रखने के लिए बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता का वाहन बन गया। जिसका मक़सद रूस को अलग-थलग करना और हाल ही में, चीन को भी निशाना बनाना इसका मुख्य उद्देश्य बन गया था।

रूस को अलग-थलग करने की पश्चिमी परियोजना की विफलता के कारण जी-7 भटक रहा है और अपनी दिशा खो चुका है। इस साल जी-7 शिखर सम्मेलन के रोटेटिंग मेज़बान इटली ने शिखर सम्मेलन में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) को एक प्रमुख मुद्दा बनाया है। और प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी को एक अप्रत्याशित अतिथि के रूप में जिन्हे पोप ने भेजा था को जी-7 कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया, ताकि वे फैशनेबल इतालवी होटल बोर्गो एनियाटिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के रेगुलेशन की वकालत कर सकें, एक ऐसी तकनीक जिसे वे संभावित रूप से हानिकारक मानते हैं।

पोप फ्रांसिस सेमिनरी में प्रवेश करने से पहले एक रसायनज्ञ थे और जाहिर तौर पर अपने रुख को जताने के लिए उन्होने अपनी वैज्ञानिक समझ का लाभ उठाया। मेलोनी के नेतृत्व में इटली ने एआई तकनीक की काफी तेजी से जांच की है, और मार्च 2023 में चैट-जीपीटी पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया है, ऐसा करने वाला यह पहला पश्चिमी देश बन गया है।

इसी तरह, जी-7 एक महत्वाकांक्षी आउटरीच के ज़रिए पश्चिमी लोकतंत्रों के एक बंद कुलीन क्लब से आगे निकलने को बेताब है और शिखर सम्मेलन में गैर-पश्चिमी दुनिया के आमंत्रित नेताओं की एक असामान्य रूप से लंबी सूची जारी की है। यूक्रेन के अलावा, मेलोनी ने भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, सऊदी अरब, अर्जेंटीना, अल्जीरिया, केन्या और मॉरिटानिया के नेताओं को बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है। इसके पीछे का तर्क क्या था, यह बताना असंभव है।

लेकिन यह वास्तविक राजनीति है और जी-7 यूक्रेन संकट पर लाइन-अप में ‘पश्चिम बनाम बाकी’ के अंतराल को पाटने की उम्मीद कर रहा है। वास्तव में, ‘आउटरीच गेस्ट’ 14 जून को भू-राजनीतिक नाटक के रोमांचक समापन के साक्षी बने, जो जी-7 शिखर सम्मेलन का मूल है - यूक्रेन की सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए ज़ब्त रूसी परिसंपत्तियों से कैसे लाभ उठाया जाए के बारे में निर्णय लेने के लिए समूह के नेता महीनों से प्रयास कर रहे हैं।

संक्षेप में कहें तो, 2022 में रूस के खिलाफ पश्चिम के ‘नरक वाले प्रतिबंधों’ के तौर पर,  यूरोपीयन यूनियन, कनाडा, अमेरिका और जापान ने पश्चिमी बैंकों में मास्को की 300 बिलियन डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया था। (कुछ लोग कहते हैं कि वास्तविक आंकड़ा 400 बिलियन डॉलर के करीब है।) इसमें से 5-6 बिलियन डॉलर केवल अमेरिका में हैं, जबकि 210 बिलियन डॉलर यूरोप में जमा हैं, लेकिन रूसी संपत्तियों से हासिल आय का इस्तेमाल करने का निर्णय वाशिंगटन ने युद्ध के परिणामों का असली परिणाम यूरोप को भुगतने के छिपे हुए एजेंडे के साथ शुरू किया था।

आश्चर्य की बात नहीं है कि यूरोपीय सदस्यों और जापान ने संयुक्त जी-7 वक्तव्य में रूसी संपत्तियों से आय के इस्तेमाल पर प्रावधान शामिल करने के अमेरिकी दबाव का विरोध किया। सीएनएन ने सोमवार को बताया कि अमेरिकी अधिकारी अभी भी रूसी संपत्तियों के लिए बनी अपनी योजना के "सबसे संवेदनशील वित्तीय विवरण" पर सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि जी-7 देश अभी तक आम सहमति पर नहीं पहुंचे हैं और "सहायता प्रदान करने के सटीक रूप, साथ ही इन निधियों की वापसी की गारंटी" के संबंध में चर्चा जारी है।

ऐसा कहा जाता है कि अगर अड़ियल यूरोपीय लोग आखिरकार उनकी बात मान लेते हैं तो इसमें हैरानी कोई बात नहीं होनी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पश्चिमी बैंकों में रूसी धन को हड़पने का जी-7 का कदम काफी बुरा था, लेकिन यूक्रेन की जरूरतों को पूरा करने के लिए उनसे मिलने वाले मुनाफे का इस्तेमाल करना, इसे हल्के ढंग से कहें तो, डकैती का काम है।

अगर रूस-यूरोप संबंधों में मौजूदा ठहराव उस बिंदु पर पहुंच जाता है जहां से वापसी संभव नहीं है, तो अमेरिका को लाभ होगा, क्योंकि यूरोप को मॉस्को के प्रतिशोध का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। अगर जी-7 ऐसा कदम उठाता है, तो यह वैश्विक वित्तीय प्रणाली को कमजोर करेगा। अंतरराष्ट्रीय कानून का बेशर्मी से उल्लंघन करके, जी-7 एक ऐसी मिसाल कायम करेगा जो यूरोपीय संस्थानों में विश्वास को कमजोर करेगी।

यह देखना दिलचस्प होगा कि जी-7 के नेता 'आउटरीच' देशों को, जो मुख्य रूप से ब्रिक्स देशों का हिस्सा हैं, उन्हे कैसे समझाएंगे कि रूस एक अपवाद रहेगा, और इस तरह की हरकत एक दिन भारत, तुर्की, सऊदी अरब या किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं की जाएगी।

निश्चित रूप से, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अध्यक्षता में कज़ान (16-18 अक्टूबर) में होने वाली ब्रिक्स की 16वीं शिखर बैठक का भूत जी-7 को परेशान कर रहा है। मॉस्को ने यह जता दिया है कि यदि पिछले तीन साल ब्रिक्स के विस्तार में लगे, तो आगे बढ़ने वाला नया चरण यह सुनिश्चित करेगा कि विस्तारित प्रारूप में भागीदार देश एक व्यवहार्य संरचना का निर्माण करें जिसमें सदस्य देश एक व्यवहार्य संरचना विकसित करने के लिए उद्देश्यपूर्ण तरीके से काम करें।

कज़ान में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण विषय समूह के भीतर एक ऐसी मुद्रा का निर्माण होगा, जो पश्चिम से बढ़ते दबाव की पृष्ठभूमि में सदस्य देशों के आर्थिक संबंधों को काफी सरल और विस्तारित करेगी।

पिछले हफ़्ते सेंट पीटर्सबर्ग में SPIEF सम्मेलन में बोलते हुए पुतिन ने घोषणा की थी कि एक ऐसी स्वतंत्र भुगतान प्रणाली बनाई जाएगी। विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बाद में पुष्टि की कि राष्ट्रीय मुद्राओं में भुगतान के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म विकसित किया जा रहा है।

ब्रिक्स देशों ने महसूस किया है कि अमेरिका और यूरोपीयन यूनियन की ओर से जारी प्रतिबंधों के कारण आज एकल मुद्रा का निर्माण एक जरूरत बन गई है। लावरोव ने कहा कि "हाल की अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं ने पश्चिम के मुखौटे उतार फेंके हैं", जिसने सार्वभौमिक मूल्यों की आड़ में अन्य देशों पर अपने खुद के मूल्य थोपने और समान संवाद की जगह "संकीर्ण गठबंधन" स्थापित करने की कोशिश की है, जो पूरी दुनिया की तरफ से बोलने का अधिकार प्रदान करता है। लावरोव ने रेखांकित किया कि ब्रिक्स का तात्पर्य पूरी तरह से विपरीत प्रकार की साझेदारी से है - यानी, ब्लॉक संरचना के अलावा कुछ भी नहीं, और इसके विपरीत, एक मौलिक रूप से खुला प्रारूप, जिसमें केवल उन क्षेत्रों में काम करना शामिल है जो सभी प्रतिभागियों, बड़े और छोटे, के लिए पारस्परिक हित के हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि लगभग 30 देशों ने ब्रिक्स की सदस्यता मांगी है।

इस बीच, 'व्यवस्थित' शब्दों में कहें तो, जी-7 अज्ञात स्पेस में प्रवेश कर रहा है। यूरोप के सत्ता केंद्रों पर दक्षिणपंथी दल धावा बोल रहे हैं। जी-7 शिखर सम्मेलन पर नज़र रखते हुए, पोलिटिको ने लिखा है कि: "सपने देखते रहो। दक्षिणी इतालवी तटीय रिसॉर्ट बोर्गो एग्नाज़िया में जी-7 शिखर सम्मेलन में नेताओं की सबसे कमज़ोर सभा शामिल है, जो समूह ने वर्षों से इकट्ठा की है। ज़्यादातर उपस्थित लोग चुनावों या घरेलू संकटों से विचलित हैं, जिनके पद पर वर्षों से रहने से मोहभंग हो चुका है, या बड़ी बेताबी से सत्ता में बने हुए हैं। 


फ्रांस के इमैनुएल मैक्रों और ब्रिटेन के ऋषि सुनक दोनों ही अचानक चुनाव अभियान में उतर गए, जिसे उन्होंने अपनी कमजोर होती हैसियत को पलटने के लिए अंतिम प्रयास बताया है। 

“पिछले सप्ताह के अंत में हुए यूरोपीयन यूनियन संसद के चुनाव में जर्मनी के ओलाफ स्कोल्ज़ को अति-दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों ने काफी अपमानित किया था और जल्द ही उनका भी तख़्ता पलटा जा सकता है। 

कनाडा में नौ साल तक प्रधानमंत्री रहे जस्टिन ट्रूडो ने अपनी "पागलपन भरी" नौकरी छोड़ने के बारे में खुलकर बात की है। 

“जापान के फूमिओ किशिदा को इस वर्ष के अंत में होने वाले चुनाव से पहले अपनी सबसे कम व्यक्तिगत रेटिंग का सामना करना पड़ रहा है। 

“और फिर ज़ो बाइडेन भी हैं” 

"81 वर्षीय अमेरिकी राष्ट्रपति के बेटे हंटर को मंगलवार को बंदूक के मामले में दोषी पाया गया, जबकि उनके पिता की डोनाल्ड ट्रम्प के साथ पहली महत्वपूर्ण बहस से बमुश्किल दो सप्ताह पहले ही यह घटना हुई थी, जिससे डेमोक्रेट को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव अभियान में हार का गंभीर खतरा पैदा हो गया है।" 

सबसे बढ़कर, यूरोपीय लोगों के मन में यह चिंता साफ देखी जा सकती है कि अगर नवंबर में होने वाले चुनाव में लोकतंत्र को बदलने की वकालत करने वाले ट्रम्प जीत जाते हैं, तो उनके पास जी-7 जैसे पुराने मंच को बर्दाश्त करने का समय या धैर्य भी नहीं रह जाएगा। निराशाजनक परिदृश्य को देखते हुए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मेलोनी ने मामले को अपने हाथों में लिया और इटली के रणनीतिक हितों - अफ्रीका, प्रवास और भूमध्य सागर - से जुड़े एजेंडे को डिजाइन करके शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल अपने उद्देश्यों के लिए करने का फैसला किया।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। ये उनके निजी विचार हैं।

सौजन्य: इंडियन पंचलाइन

मूलतः अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

The G7 Loses Ground to BRICS

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