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‘भारत सरकार WTO से बाहर आए’: किसान संगठनों ने उठायी आवाज़

“WTO अब पूरी तरह से अपना हर छद्म हटाकर निजी-कॉर्पोरेट कंपनियों के वफ़ादार कारिंदे की भूमिका में आ गया है। जो इस बात पर आमादा है कि ‘खेती-किसानी’ को पूरी तरह से कॉर्पोरेट-निजी हाथों में येन-केन-प्रकारेण दे दिया जाए”।
WTO

“पूरी दुनिया वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा के भयावह संकटों जूझ रही है। जिसका सबसे बड़ा कारण है किसानों-मजदूरों को तबाह करनेवाली विश्व कॉर्पोरेटों की संस्था WTO द्वारा कॉर्पोरेटपरस्त नीतियाँ बनाकर दुनिया भर की देशों की जन विरोधी सरकारों द्वारा जबरन लागू कराया जाना।”

आबू धाबी में चल रही WTO की 13वीं बैठक (26 से 29 फरवरी) एक बार फिर इसी पर केन्द्रित है कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को निजी- कॉर्पोरेट कंपनियों के चंगुल में कैसे टिकाये रखा जाय। जिसका पुरी दुनिया के जनपक्षधर राष्ट्रों के साथ साथ मजदूर-किसान संगठन तीखा विरोध प्रदर्शित कर रहें हैं।

विरोध के इसी स्वर को मजबूत बनाने के लिए ही भारत में भी संयुक्त किसान मोर्चा के साथ साथ कई मजदूर संगठनों ने 26  फ़रवरी को राष्ट्रव्यापी विरोध करने का आह्वान किया। उक्त बातें झारखंड और बिहार में अभियान को संगठित कर रहे विभिन्न किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहीं।

उक्त मुद्दे पर झारखण्ड के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और बिनोबा भावे विश्वविद्यालय के पूर्व उप कुलपति प्रो. रमेश शरण ने भारत के किसान संगठनों के विरोध को पूरी तरह से सही ठहराते हुए कहा कि- WTO अब पूरी तरह से अपना हर छद्म हटाकर निजी-कॉर्पोरेट कंपनियों के वफादार कारिंदे की भूमिका में आ गया है। जो इस बात पर आमादा है कि ‘खेती-किसानी’ को पूरी तरह से कॉर्पोरेट-निजी हाथों में येन-केन-प्रकारेण दे दिया जाय। जिसके लिए भारत की मौजूदा केंद्र की सरकार WTO का आदेशपाल बनकर अपने ही देश के किसानों की एमएसपी की मांग को पूरी बेशर्मी के साथ अनसुना कर रही है। क्योंकि WTO ने “मुक्त बाज़ार व्यवस्था” की आड़ में खेती-किसानी को पूरी तरह निजी चंगुल में देकर किसानों को “आर्थिक गुलाम” बनाना चाहती है। जिसमें किसानों को एमएसपी दे देने से भारी रुकावट आ जाएगी। दुनिया के कई देशों के शिक्षित नागरिक समाज के लोग अपने किसानों के पक्ष में खड़े होकर WTO का विरोध कर रहें हैं। लेकिन भाजपा राज ने भारत के “तथाकथित शिक्षित-बौद्धिक नागरिक समाज” के बड़े हिस्से को “जय श्रीराम “ के नशे में पूरी तरह से डुबा दिया है। जो 200 रुपये किलो टमाटर खरीदना भी अपना “राष्ट्रधर्म” मानने पर अमादा है। भारत के आन्दोलनकारी किसानों द्वारा WTO के विरोध के संदेशों को व्यापक किसानों के साथ साथ आम गरीब जनता तक भी ले जाने की ज़रुरत है। जो निजी-बाज़ार संचालित बेलगाम महंगाई से हर दिन जूझ रहे हैं।     

26 फ़रवरी को WTO के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी अभियान के तहत केन्द्रीय कार्यक्रम पटना में संगठित किया गया। पटना स्थित जीपीओ गोलंबर परिसर से “भारत सरकार WTO से बाहर आओ” के नारे लगाते हुए पटना जीपीओ गोलम्बर परिसर से प्रतिवाद मार्च निकाला गया। जो बुद्धा स्मृति पार्क परिसर के समीप जाकर विरोध-सभा में तब्दील हो गया। विरोध अभियान का नेतृत्व कर रहे किसान नेताओं ने अपने संबोधनों में कहा कि- आज देश भर में आन्दोलनकारी किसान प्रातिवाद-मार्च निकालकर WTO का पुतला इसलिए जला रहें हैं कि ‘कृषि क्षेत्र’ को WTO के दायरे से बाहर निकाला जाय। भारत के साथ साथ पूरी दुनिया के सबसे ज़रूरी हो गया है कि खाद्य-सुरक्षा को लेकर बढ़ाये जा रहे संकटों के समाधान एकमात्र रास्ता है WTO की किसान विरोधी नीतियों पर पूरी तरह से रोक लगाना। जिसके लिए यह भी अनिवार्य हो गया है कि WTO के कृषि सम्बन्धी पीस क्लॉज़ को स्थायी करना। जिसके नहीं होने के कारण ही WTO संचालित नीतियों को लागू कर रहीं कई देशों के साथ साथ भारत की सरकार एमएसपी पर फसलों की खरीद और अपने नागरिकों के भोजन और खाद्य सुरक्षा के अधिकारों की रक्षा के दायित्व पर लगातार रोक लगा रही है। यही नहीं, WTO के ही निर्देश पर मछुआरों, डेयरी और कुक्कुट-पालन जैसे नागरिक स्वरोजगार क्षेत्रों से जुड़े लोगों को अपनी आजीविका टिकाने के लिए मिलनेवाली सरकारी सब्सिडी के वैधानिक प्रावधानों पर भी रोक लगायी जा रही है। वहीं इसी WTO की नीतियों के तहत कॉर्पोरेट-निजी कंपनियों को असीमित सरकारी आर्थिक सहयोग देने से लेकर अरबों-करोड़ों की कर्जा माफ़ी तक खुलकर की जा रही है।

किसान नेताओं ने जोर देकर कहा कि देश के किसानों के साथ साथ हर नागरिक को यह समझना ही होगा कि बेलगाम मुनाफ़ाखोर कॉर्पोरेटीकरण और नीजिकरण WTO की नीतियों की ही देन है। जिसे लागू करने के लिए ही भारत की सरकार देश के सार्वजनिक क्षेत्रों से लेकर जल-जंगल-ज़मीन और प्राकृतिक-खनिज़ संसाधनों की खुली कॉर्पोरेट-लूट की छूट मचाये हुए है। केंद्र सरकार की नीतियों के कारण ही देश की विशाल आबादी के सामने आजीविका के साथ साथ भीषण भूखमरी-बेकारी का विकराल संकट गहराता जा रहा है। जिससे ध्यान हटाने के लिए ही “मुफ्त अनाज-राशन” की भीख बांटकर वोट बटोरने की कवायद की जा रही है। इसलिए भारत को उक्त संकटों से उबारने और देश के गरीबों और किसानों का वास्तविक कल्याण और संकटों से कारगर निज़ात तभी संभव होगा जब भारत को WTO की जानलेवा फंदे से बाहर निकाला जाय। जिस पर अमल करने के अपने दायित्वों से साफ़ इनकार करते हुए केंद्र की सरकार इस अहम् मसले को लोगों की नज़रों से गायब कर देने के लिए ही “मंदिर और हिन्दू राष्ट्र निर्माण” का उन्मादी माहौल लगातार बढ़ा रही है। जिसके लिए अडानी-अम्बानियों ने भी अपने खजाने खोल रखे हैं ताकि उनकी लूट बदस्तूर जारी रहे। इसलिए किसानों के इस विरोध को सिर्फ उनका अपना ममला नहीं समझा जाय, बल्कि यह देश के हर नागरिकों की ज़िन्दगी और बेहतरी से जुड़ा अहम् मसला समझने की ज़रूरत है।

कार्यक्रम के अंत में केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ नारे लगाते हुए WTO का पुतला जलाया गया। इसी तरह के कार्यक्रम कई अन्य स्थानों पर भी संगठित कर भारत को WTO से बाहर लाने की मांग की गयी। 

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