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दुनिया भर की: घर से दर-बदर और समुद्र में समाधि

जबरिया विस्थापितों के बढ़ते आकड़ों के बीच फिर समुद्र में डूबे सैकड़ों शरणार्थी
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भूमध्य सागर में पलटी नौका। फोटो साभार: रायटर्स

इस बुधवार यानी 14 जून को जिस समय संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) जिनेवा में दुनियाभर में जबरिया विस्थापन के बारे में अपनी सालाना रिपोर्ट जारी कर रही थी, ठीक उसी समय ग्रीस के तट से थोड़ा दूर भूमध्य सागर के अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में लीबिया से आ रही शरणार्थियों की एक नौका पलट रही थी। इस बड़ी नाव में कितने लोग सवार थे, किसी को ठीक-ठीक पता नहीं। अब तक 78 लोगों की लाशें मिल चुकी हैं और 104 लोग बचाए जा चुके हैं। लेकिन बाकी लोगों का कोई अता-पता नहीं है। एक अनुमान है कि इस नाव में 750 से ज्यादा लोग सवार थे। यानी अब भी साढ़े पांच सौ से ज्यादा लोग लापता हैं।

घटना को पहले ही दो दिन से ऊपर हो चुके हैं, इसलिए बाकी लोगों के बचने की उम्मीद कम से कम होती जा रही है। और, ऐसा हुआ तो, पहले ही से लाशों के समुद्र के रूप में कुख्यात भूमध्य सागर में यह शरणार्थियों के साथ हुए सबसे बड़े हादसों में से एक होगा। मारे गए लोगों की कुल संख्या के बारे में शायद कभी पता नहीं चल पाएगा। जिस जगह हादसा हुआ, वह भूमध्य सागर के सबसे गहरे इलाकों में से एक है और कई जगह तो यह गहराई पांच किलोमीटर तक की है।

हैरानी की बात यह है कि यूरोप में एक सुखद भविष्य की उम्मीद लगाए शरणार्थियों से भरी वह नौका जब पलट रही थी तो उस पर सब ओर से निगरानी थी- आसमान से हेलीकॉप्टर उस पर निगाह रखे हुए थे और ग्रीस के कोस्टगार्ड का जहाज उसे कई घंटों से एस्कॉर्ट कर रहा था। अब तक मिली जानकारियों के अनुसार 13 जून को सवेरे 8 बजे ग्रीस के कोस्टगार्ड को तट से 87 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में इस नौका की मौजूदगी से सतर्क कर दिया गया था। नाव पलटी रात 11 बजे यानी हमारे समय के हिसाब से बुधवार, 14 जून तड़के साढ़े चार बजे।

इन 15 घंटों में क्या हुआ, इसकी जानकारी साफ-साफ नहीं मिल पा रही है। नाव में मौजूद लोगों के साथ संपर्क में बने लोगों कहना है कि यह तय था कि नाव संकट में थी। लेकिन उसने ग्रीस के कोस्टगार्ड की तरफ से मदद की तमाम पेशकशों को ठुकरा दिया। आखिरकार, उसने इंजन फेल होने और नाव अटक जाने का संकेत भेजा तो साथ चल रहा ग्रीस कोस्टगार्ड का जहाज नजदीक आने लगा। लेकिन अगले 20-25 मिनट में ही नाव पहले तो एक तरफ झुकी और फिर 10-15 मिनट में पलटकर पानी में समा गई। सब कुछ मानो पलक झपकते हो गया।

यह हादसा हमारे दौर की राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक स्थिति का बड़ा प्रतिबिंब है, जिसमें गरीब, आंतरिक संघर्ष और गृहयुद्ध से जूझ रहे देशों के लोग अक्सर बेहतर, शांत व सुखद भविष्य की तलाश में अपने घरों को छोड़ देते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि जबरिया विस्थापित हुए लोगों की संख्या दुनियाभर में 11 करोड़ के पार हो गई है। पिछले साल यूक्रेन और फिर इस साल सूडान के संकट ने इन विस्थापितों की संख्या में लाखों का इजाफा किया। एक ही साल में यह संख्या 1.9 करोड़ बढ़ गई, जो किसी भी एक साल में हुआ अब तक का सबसे बड़ा इजाफा है।

यह इस दौर के समूचे दुनियावी हालात को कठघरे में खड़ा करता है। खुद संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस विस्थापन के समाधान की कल्पना करना ही मुश्किल हो रहा है। हम एक ऐसे अलग-अलग ध्रुवों में बंटे विश्व में हैं जहां मानवीय मुद्दों को भी अंतरराष्ट्रीय रिश्ते व तनाव नियंत्रित करते हैं।

लीबिया के रास्ते अफ्रीकी महाद्वीप को पीछे छोड़कर समुद्र मार्ग से यूरोप में जाने की कोशिशें हमेशा से होती रही हैं। चूंकि ये तमाम लोग किसी भी वैधानिक रास्ते से यूरोपीय देशों में नहीं घुस सकते इसलिए ग़ैरक़ानूनी और जान को खतरे में डालने वाला तरीका ही सबको अपनाना पड़ता है। मानव तस्करी का यह खेल खुले तौर पर और सबकी जानकारी में होता है लेकिन इसको रोकने की कई कोशिश नहीं होती।

ग्रीस की इस ताजा घटना के बारे में भी अब तक यही पता चला है कि बेहद उम्रदराज हो चुकी मछुआरों के इस्तेमाल में आने वाली यह नाव भी अवैध शरणार्थियों को लेकर 10 जून को लीबिया के तोबरुक से रवना हुई थी। इनमें महिलाएं और बच्चे भी थे। ये सभी इटली जाना चाहते थे। इटली जाने की चाह ही शायद इन सब लोगों की मौत का कारण भी बन गई।

लीबिया से उत्तर में भूमध्य सागर को पार करें तो पूर्व की तरफ ग्रीस पड़ता है और पश्चिम की तरफ इटली। ये सारे लोग इटली इसलिए जाना चाहते थे क्योंकि इटली के तमाम पड़ोसी देश वीजा-मुक्त ईयू के सदस्य हैं और शरणार्थियों के लिए वहां घुस पाना अपेक्षाकृत आसान है। जबकि ग्रीस के पड़ोसी बाल्कन देश शरणार्थियों व गैरकानूनी प्रवासियों को लेकर अपनी नीतियों को सख्त बना रहे हैं। वहां उनके लिए संकट और अनिश्चितता बनी रहती। यही वजह थी कि जब कई घंटों तक ग्रीस कोस्टगार्ड का जहाज मदद की पेशकश करता रहा तो नाव में मौजूद हैंडलर इसी डर से पेशकश को ठुकराते रहे कि उन्हें ग्रीस जाना पड़ जाएगा, क्योंकि उन्हें तो इटली जाना था। ग्रीस के कोस्टगार्ड और सरकार ने इस वजह से जबरन दखल नहीं दिया कि उन्हें डर था कि किसी भी जोर-जबरदस्ती से कहीं नाव न पलट जाए या लोग समुद्र में न कूद पड़ें।

इन तमाम लोगों ने इटली जाने के लिए 4,500 डॉलर हरेक ने दिए थे। कई लोगों ने तो सोशल मीडिया के जरिये ही समुद्री सफर की बुकिंग कर ली थी। इस धंधे में लगे लोगों ने सबसे वादा किया था कि अच्छा जहाज होगा और खूब जगह होगी, लेकिन लोग जब नाव रवाना होने की जगह पहुंचे तो वहां कुछ और ही हालात थे। लेकिन फिर उनके पास लौट जाने का भी विकल्प नहीं बचा था। समुद्र में तीन दिन के भीतर दो-तीन बार नाव में मैकेनिकल दिक्कत आती रही जो नाव चलाने वाले लोग किसी तरह मिल-जुलकर ठीक करते रहे। ग्रीस के कोस्टगार्ड ने जो हवाई फोटो इस नाव के लिए थे, उसमें साफ दिख रहा था कि उसमें किस कदर लोग ठूंस-ठूंसकर भरे हुए थे और वे कितना परेशान थे।

अब इसमें ग्रीस सरकार की कितनी गलती रही, इस पर बहस चलती रहेगी, लेकिन हकीकत यही है कि यह एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान दुनिया के तमाम देश मिलकर नहीं खोज पा रहे, क्योंकि जो देश समाधान ढूंढने में मदद कर सकते हैं, वे फिलहाल सिर्फ अपना सुकून तलाशने में व्यस्त हैं।

2011 में सीरिया का युद्ध शुरू होने से पहले विस्थापन का आकड़ा करीब-करीब स्थिर चल रहा था। लेकिन फिर तेजी से बढ़ना शुरू हुआ और अब उसके दोगुने से ज्यादा हो चुका है। दुनिया की आबादी के हर 74 लोगों में से एक इस समय जबरिया विस्थापित है। वजह सबको पता हैं- सशस्त्र संघर्ष, उत्पीड़न, भेदभाव, हिंसा और मौसमी मार।

उधर तमाम संपन्न देश शरणार्थियों को स्वीकार करने में हिचकिचा रहे हैं और अपने नियम सख्त करते जा रहे हैं। खुद संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि तमाम देश 1951 के रिफ़्यूजी कनवेंशन के सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहे हैं जिसपर सभी देशों ने दस्तखत किए थे।

इस स्थिति से निबटने के नए तरीके सारे देशों ने मिलकर नहीं ढूंढे तो भूमध्य सागर और ऐसे ही ही तमाम रास्तों को लाशों से पाटते रहेंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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