महंगाई: खाद सब्सिडी से बचने को सरकार लाई नैनो यूरिया, बढ़ती लागत-घटते उत्पादन से किसान परेशान
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से लगातार बढ़ती उर्वरक की कीमतें भारत के आयात बिल का बोझ बढ़ाती जा रही हैं। वहीं, खेतों में उर्वरकों के बेजा इस्तेमाल ने न सिर्फ उपज की लागत बढ़ाई है बल्कि पर्यावरणीय समस्याएं भी पैदा कर दी हैं। इन समस्याओं से निजात के लिए सरकार, नैनो तकनीक वाले उर्वरकों को बड़े समाधान के रूप में पेश कर रही है। भारत नैनो उर्वरक बनाने वाला दुनिया का पहला देश बन चुका है और इसके जरिए उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भर भी बनना चाहता है।
खास है कि भारत में यूरिया और डाई-अमोनिया फॉस्फेट (डीएपी) दो उर्वरकों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफको) के जरिए 2021 से लेकर अब तक इन दोनों उर्वरकों के नैनो संस्करण जारी किए जा चुके हैं। नैनो तकनीकी के इन उर्वरकों को पेटेंट भी कराया गया है। इफको का दावा है कि पारंपरिक यूरिया के मुकाबले नैनो यूरिया और नैनो डीएपी न सिर्फ पर्यावरणीय नुकसान कम कर सकती है बल्कि इसके काफी फायदे भी हैं। सरकार का कहना है कि इससे न सिर्फ खेतों में मिट्टी की सेहत ठीक होगी बल्कि किसानों की आय भी सुधरेगी। लेकिन किसान इससे सहमत नहीं हैं। तो वहीं वैज्ञानिक शोध के आंकड़े, सरकार के दावों को झुठला रहे हैं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का दावा, नैनो यूरिया के इस्तेमाल से घटा फसल उत्पादन और प्रोटीन
नैनो यूरिया का इस्तेमाल करने से फसलों की उपज कम हो रही है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि नैनो यूरिया के उपयोग से गेहूं की पैदावार में 21.6 प्रतिशत और चावल की पैदावार में 13 प्रतिशत की कमी आई है। जो सीधा सीधा किसान को नुकसान है। यह अध्ययन पीएयू में वरिष्ठ मृदा रसायनज्ञ राजीव सिक्का और नैनोसाइंस के सहायक प्रोफेसर अनु कालिया द्वारा साल 2020-21 और 2021-22 में किया गया था। नैनो यूरिया का इस्तेमाल करने से अनाज में नाइट्रोजन की मात्रा, जो प्रोटीन उत्पादन के लिए आवश्यक है, में भी गिरावट देखी गई।
डाउन टू अर्थ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जून 2021 में भारतीय किसान और उर्वरक सहकारी (इफको) द्वारा नैनो तरल यूरिया लॉन्च किया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि नैनो यूरिया की 500 मिलीलीटर स्प्रे बोतल पारंपरिक यूरिया उर्वरक के पूरे 45 किलोग्राम के बैग का स्थान ले सकती है। केंद्र सरकार ने उर्वरक के विकास के बाद से इसे काफी बढ़ावा दिया है। हालांकि जानकार इसे (नैनो के उपयोग को बढ़ावा देने को) सब्सिडी से बचने के खेल के तौर पर ज्यादा देख रहे हैं।
यूरिया सबसे अधिक नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों में से एक है, जो मिट्टी में आसानी से अमोनिया में परिवर्तित हो जाता है जो पौधों के लिए एक आवश्यक मैक्रोन्यूट्रिएंट का काम करता है। इफको के अनुसार, नैनो यूरिया में नाइट्रोजन कणिकाओं के रूप में होती है जो कागज की शीट से सौ-हजार गुना अधिक महीन होती है। मृदा विज्ञान विभाग, पीएयू लुधियाना के अनुसंधान फार्मों में लगातार दो वर्षों तक यह अध्ययन किया गया। वैज्ञानिकों ने इफको-अनुशंसित प्रोटोकॉल के अनुसार नैनो यूरिया का इस्तेमाल किया था। शोध में उपज में कमी के अलावा चावल और गेहूं के अनाज में नाइट्रोजन कंटेंट में क्रमशः 17 और 11.5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई।
नाइट्रोजन कंटेंट में कमी से प्रोटीन में कमी आ जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह भारत के लिए चिंताजनक है, क्योंकि भारत में अनाज ही प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत हैं और अगर अनाज में प्रोटीन की कमी रहती है तो भारतीय लोगों को प्रोटीन की कमी का सामना करना पड़ेगा। सिक्का ने कहा, "भले ही इस नैनो फॉर्मूलेशन द्वारा 100 प्रतिशत उपज हासिल कर ली जाए, लेकिन 45 किलोग्राम पारंपरिक यूरिया द्वारा प्रदान की गई नाइट्रोजन की तुलना में अधिक उपज से आवश्यक नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान नहीं किया जा सकता है।"
इसके अलावा, नैनो यूरिया फॉर्मूलेशन की लागत दानेदार यूरिया की तुलना में 10 गुना तक अधिक थी और इससे किसानों की खेती की लागत बढ़ जाएगी। पिछले साल, डाउन टू अर्थ की चार-भाग की रिपोर्ट में इस बात पर गौर किया गया था कि नैनो तरल यूरिया ने खेत में कैसा प्रदर्शन किया और पाया कि उर्वरक का छिड़काव करने से किसानों के लिए इनपुट लागत बढ़ रही है और कोई उल्लेखनीय परिणाम नहीं मिल रहा है।
पीएयू द्वारा किए गए प्रयोगों से यह भी पता चला कि नैनो यूरिया के प्रयोग के बाद जमीन के ऊपर ट्रिलर बायोमास और जड़ की मात्रा कम हो गई, जिसके परिणामस्वरूप फसल की कटाई के बाद रूट बायोमास में कम वृद्धि हुई। इस वजह से रूट सरफेस एरिया में कमी आई, जिससे नाइट्रोजन सहित अन्य पोषक तत्व की कमी हो सकती है। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि दूसरे वर्ष में उपज की कमी की भयावहता बढ़ गई, इससे लगता है कि उपज में कमी क्रमिक हो सकती है, जिसका अर्थ है कि यदि नैनो यूरिया का उपयोग जारी रहा तो उत्पादन साल-दर-साल कम हो सकता है।
सिक्का ने कहा, "मिट्टी में नाइट्रोजन का भंडार सीमित है और कम हो रहा है, इसलिए साल-दर-साल, यदि आप पत्तियों पर नैनो यूरिया का छिड़काव करते हैं और मिट्टी में नाइट्रोजन की भरपाई नहीं करते हैं, तो कमी क्रमिक होगी।" यह अध्ययन पीएयू की मासिक पत्रिका के जनवरी अंक में भी प्रकाशित हुआ था। ऐसा लगता है कि इफको नैनो यूरिया के साथ पारंपरिक यूरिया की अनुशंसित खुराक के बराबर अनाज की पैदावार प्राप्त करने के दावे के लिए कम से कम 5-7 साल तक दीर्घकालिक मूल्यांकन की आवश्यकता होगी। सिक्का ने कहा कि अब तक के परिणाम उत्साहजनक नहीं हैं और चावल और गेहूं के लिए इफको नैनो यूरिया के उपयोग की अनुशंसा नहीं की जा सकती।
नैनो यूरिया और नैनो डीएपी तरल रूप में किसानों को दिए जा रहे हैं। इफको का दावा है कि नैनो तरल यूरिया की 500 मिलीलीटर की एक बोतल पारंपरिक यूरिया के 45 किलो के एक कट्ठे के बराबर है। नैनो डीएपी की 500 मिलीलीटर की एक बोतल 50 किलो के डीएपी बैग के बराबर है। नैनो यूरिया 2021 से बेचा जा रहा है जबकि नैनो डीएपी को अप्रैल, 2023 में लॉन्च किया गया है। नैनो डीएपी लॉन्च करते हुए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने बताया कि मार्च, 2023 तक नैनो यूरिया की 6.3 करोड़ बोतल बनाई जा चुकी है, जिसके कारण 2021-22 में 70 हजार टन यूरिया आयात में कमी आई है। नैनो डीएपी के जरिए 90 लाख टन पारंपरिक डीएपी को कम करने का लक्ष्य रखा जा रहा है।
शशि थरूर की अध्यक्षता वाली रसायन और उर्वरक की संसदीय समिति (2022-23) ने मार्च 2023 की रिपोर्ट में नैनो उर्वरकों के कई फायदे गिनाए। रिपोर्ट में कहा गया कि देश में अत्यधिक मात्रा में अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल किए जा रहे पारंपरिक यूरिया को नैनो यूरिया नियंत्रित कर सकता है। देश में ज्यादातर फसलों में करीब 82 फीसदी नाइट्रोजन युक्त उर्वरक के तौर पर पारंपरिक यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि नैनो फर्टिलाइजर न सिर्फ पारंपरिक सब्सिडी वाले यूरिया की तुलना में कम है, बल्कि यह किसानों की लागत को भी कम करता है। नैनो यूरिया के इस्तेमाल से किसान बेहतर उपज और उच्च आय हासिल कर सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, इफको के जरिए कुल 94 फसलों पर 11 हजार खेतों में ट्रायल किया गया। नैनो यूरिया के इस्तेमाल से कृषि उपज में 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई, जिसका आशय हुआ कि प्रति हेक्टेयर 2,000 से 5,000 रुपए का फायदा हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है, “प्रधानमंत्री के जरिए संकल्पित किसानों की आय को दोगुना करने में यह एक औजार की तरह काम करेगा।” लेकिन जब डाउन टू अर्थ ने नैनो यूरिया का इस्तेमाल कर रहे किसानों से बात की तो उनके अनुभव और जवाबों ने इस तकनीक पर कई नए सवाल खड़े कर दिए।
न उपज बढ़ी, न ही किसान की आय
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में रहने वाले 38 वर्षीय किसान प्रवीण परमार अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, “वर्ष नवंबर 2022 में कुल आठ हेक्टेयर खेतों में गेहूं की फसल बुआई की थी। बुआई के करीब 20 दिन बाद प्रयोग के तौर पर 4 हेक्टेयर खेत में 500 एमएल वाली 10 नैनो यूरिया की बोतल का छिड़काव किया। खेतों में इस स्प्रे के लिए कुल 1,000 रुपए की अतिरिक्त मजदूरी भी दी। जबकि 4 हेक्टेयर खेत में पहले की तरह पारंपरिक यूरिया का छिड़काव किया। मैंने पाया कि जिन 4 हेक्टेयर खेतों में पारंपरिक यूरिया पड़ी थी, उन फसलों के रंग में न सिर्फ बदलाव आया बल्कि पत्ते भी चौड़े हो गए जबकि नैनो यूरिया वाले खेतों में किसी तरह का बदलाव नहीं दिखा। बाद में नैनो तरल यूरिया वाले खेतों में मजबूरन पारंपरिक यूरिया डालना पड़ा।” परमार बताते हैं कि अगर वे समय रहते खड़ी फसल पर पारंपरिक खाद न डालते तो उन्हें उपज में बड़ा नुकसान होता। कुल मिलाकर नैनो खाद के प्रयोग से सरकार पर भले सब्सिडी का कुछ बोझ कम हो जाए लेकिन किसान की आय बढ़ती नहीं दिखती है। प्रोटीन में कमी का आना अलग चिंता का विषय है।"
यूरिया के कट्टे का वजन एक बार फिर घटा, अब 40 kg की पैकिंग
कैबिनेट कमेटी की नई शिफारिशों के मुताबिक अब नीम कोटेड यूरिया 45kg के बैग की जगह सल्फर कोटेड यूरिया 40kg के बैग में आया करेगा। जबकि कीमत वहीं पुरानी यानी 266.50 रुपए (GST सहित) ही रखी गई है। खास है कि पहले यूरिया का वजन 50 किलो के बैग से घटा कर 45 किलो प्रति बैग किया गया था। कीमत 266.50 रुपए ही रखी गई थी। यानी कीमत न बढ़ाकर, एक बार फिर 5 किलो यूरिया बैग से निकाल लिया गया है। उर्वरक मंत्रालय से जारी पत्र के अनुसार, सभी उर्वरक निर्माता कम्पनियों को 40 किलोग्राम के बैग की बाबत पत्र जारी कर दिए गए हैं।
साभार : सबरंग
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