मुद्दा: कश्मीर को शिमला समझौता विवादित मानता है
फ़ाइल फ़ोटो। सन् 1972 में शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करतीं भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फ़िकार अली भुट्टो। फ़ोटो साभार वायर/ Bhutto.org
पिछले दिनों दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे भारत के हिस्से वाल कश्मीर (जम्मू-कश्मीर) की तरफ़ ध्यान चला गया।
पहली घटनाः केंद्र की हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 5 अक्तूबर 2023 को जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी (जेकेडीएफ़पी) को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया। यह कार्रवाई आतंकवाद गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत की गयी।
केंद्र सरकार का कहना है कि प्रमुख अलगाववादी नेता शबीर महमूद शाह की बनायी यह पार्टी (जेकेडीएफ़पी) ‘भारत-विरोधी’ और ‘पाकिस्तान-समर्थक’ गतिविधियों में लगी हुई है, कश्मीर को ‘विवादित’ मानती है, और ‘भारत के संविधान के ढांचे के तहत’ किसी समझौते या समाधान को ‘ख़ारिज’ करती है। ‘इसलिए इस पार्टी पर रोक लगाना ज़रूरी है।’
दूसरी घटनाः दिल्ली के उपराज्यपाल ने, वर्ष 2010 में दर्ज की गयी प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआर) के आधार पर, 10 अक्तूबर 2023 को दिल्ली पुलिस को मंज़ूरी दे दी कि वह (दिल्ली पुलिस) लेखक अरुंधति राय और कश्मीर अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर शेख़ शौकत हुसैन पर मुक़दमा चलाये। (वर्ष 2010 में दर्ज की गयी एफ़आईआर पर अब, वर्ष 2023 में, कार्रवाई करने की बात हो रही है!)
यह मामला दिल्ली में 10 अक्तूबर 2010 को एक सार्वजनिक कार्यक्रम (सेमिनार) में अरुंधति राय और शेख़ शौकत हुसैन के दिये गये भाषणों से जुड़ा है। सेमिनार कश्मीर पर केंद्रित था और उसका विषय था, ‘आज़ादी-एकमात्र रास्ता’ (Azadi-The Only Way).
सेमिनार ख़त्म होने के 18 दिन बाद, 28 अक्तूबर 2010 को, दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में एफ़आईआर दर्ज की गयी। (18 दिनों तक क्या होता रहा, यह सोचने की बात है!) इसमें कहा गया कि इन दोनों वक्ताओं (और अन्य वक्ताओं) के भाषण ‘दो धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करनेवाले’ थे, और वक्ताओं ने ‘कश्मीर को भारत से अलग कर देने की वकालत’ की थी।
इन दोनों घटनाओं का ज़िक्र इसलिए किया जा रहा है के भारत के हिस्से वाले कश्मीर की स्थिति के बारे में बहस और विवाद बना हुआ है, अलग-अलग राय बनी हुई है, और इसका आख़िरी समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। समाधान अगर कोई होगा, तो वह राजनीतिक स्तर पर ही होगा, पुलिस या सेना के स्तर पर नहीं।
ऐसी स्थिति में मुझे शिमला समझौता याद आता है। क्या आपको यह समझौता याद है? इसे भारत-पाकिस्तान शांति समझौता भी बोलते हैं। यह 1972 में हुआ था। ग़ौर करने की बात है कि आज भी यह समझौता लागू है और इसे न तो भारत सरकार ने, न पाकिस्तान सरकार ने ख़ारिज किया है। इस समझौते में, ‘जम्मू कश्मीर का अंतिम समाधान’ ढूंढने की बात कही गयी है।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि में शिमला समझौता हुआ था। यह भारत और पाकिस्तान के बीच शांति समझौता था—दोनों देशों के बीच शांति और द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा दने के लिए। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में 2 जुलाई 1972 को इस पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने दस्तख़त किये थे।
इस समझौते का जो आधिकारिक पाठ (text) उपलब्ध है, उसका आख़िरी पैराग्राफ़ ध्यान देने लायक है। इस पैराग्राफ़ के आख़िरी हिस्से में ‘जम्मू कश्मीर का अंतिम समाधान’ (final settlement of Jammu and Kashmir) ढूंढने का संकल्प जताया गया है। जाहिर है, यह काम दोनों देशों की सरकारों को शांतिपूर्ण तरीक़े से करना है।
इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह हुआ कि शिमला समझौते के मुताबिक भारत के हिस्से वाले कश्मीर (जम्मू कश्मीर) की स्थिति के बारे में भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद और विवाद है, और इसका ‘अंतिम समाधान’ (final settlement) अभी नहीं हुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि कश्मीर विवादित इलाका है। शिमला समझौता इस विवाद और मतभेद को स्वीकार करता है।
अगर अरुंधति राय या शेख़ शौकत हुसैन या शबीर अहमद शाह या यासीन मलिक कश्मीर को विवादित इलाक़ा मानते हैं और इस विवाद का शांतिपूर्ण राजनीतिक समाधान ढूंढने की बात करते हैं, तो यह पूरी तरह शिमला समझौते की भावना के अनुरूप है।
(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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