झारखंड : “डेमोग्राफी विवाद” झामुमो ने कहा भाजपा की विभाजनकारी सियासी चाल!
यूं तो झारखंड विधान सभा में भी सत्रों के दौरान पक्ष –विपक्ष के बीच वैसी ही नोक-झोंक-तकरार और हंगामे की स्थितियां अक्सर वैसी ही बनते देखा गया है, जैसा कि अन्य राज्यों की विधान सभाओं में हुआ करती है। लेकिन इस बार मॉनसून सत्र के दौरान जो हंगामेदार स्थितियां बनीं कि विधानसभा अध्यक्ष को एक दिन में दो दो बार सत्र की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ गयी।
क्योंकि “बांग्लादेशी घुसपैठ” और आदिवसियों की घटती “डेमोग्राफी” के सवाल पर विपक्ष भाजपा के कई विधायकगण अध्यक्ष के वेल में आकर सरकार विरोधी नारेबाजी करने लगे। तो ‘संताल को झारखंड से अलग करने की भाजपाई साजिश नहीं चलेगी‘ के नारे लगाते हुए सत्ता पक्ष के भी कई विधायक वेल में पहुंचकर “हंगामे का जवाब हंगामे’ से देते हुए देखे गए।
वैसे मॉनसून सत्र के शुरू होने के पहले से ही इस बार सदन के हंगामेदार होने के संकेत मिल रहे थे। क्योंकि दिल्ली में संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र के दौरान गोड्डा से भाजपा संसद ने विवादास्पद मांग उठा दी की जिससे राज्य सरकार समेत झारखंड मुक्ति मोर्चा के अलावे कई आदिवासी संगठन तीखी प्रतिक्रिया में हैं।
मामला है कि 25 जुलाई के दिन संसद में बोलते हुए झारखंड के संताल परगना क्षेत्र स्थित गोड्डा से भाजपा संसद निशिकांत दूबे ने केंद्र सरकार से मांग कर डाली कि- झारखंड प्रदेश के पूरे संताल परगना क्षेत्र के साथ साथ बिहार के अररिया, किशनगंज और कटिहार जिलों के अलावे पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद ज़िलों को मिलाकर एक नया केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए। क्योंकि इन इलाकों में “बांग्लादेशी घुसपैठ” (मुसलमान) बढ़ते जाने के कारण पूरे संताल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की “डेमोग्राफी” घट रही है, वहीं, बाकी अन्य ज़िलों में हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहे हैं।
इस बयान ने मानो “आग में पेट्रोल” डालने जैसा काम किया। क्योंकि पिछले समय में भाजपा के केन्द्रीय प्रवक्ताओं से लेकर प्रदेश व स्थानीय स्तर के नेताओं द्वारा हर चुनाव के ऐन मौके पर झारखंड में “बांग्लादेशी घुसपैठ” का मामला उठाकर राज्य सरकार और उसके सभी घटक दलों पर “मुस्लिम तुष्टिकरण” का आरोप लगया जाता रहा है।
लेकिन इस बार तो आसन्न विधान सभा चुनाव को लेकर भाजपा द्वारा इस मुद्दे की आड़ में खुलकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का “युद्धघोष” जैसा किया जा रहा है, ऐसा आरोप लगाया जा रहा है झामुमो की ओर से।
चर्चाओं में कहा जा रहा है कि इस बार झारखंड में आसन्न विधान सभा चुनाव को लेकर राज्य के संताल परगना क्षेत्र को टारगेट करते हुए “बांग्लादेशी घुसपैठ” मुद्दे को “आदिवासी बनाम मुस्लिम” रंग देने की विभाजनकारी कवायद शुरू की है। जिसके लिए आधार संकेत खुद देश के गृहमंत्री जी ने लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी हर चुनावी सभाओं में “बांग्लादेशी घुसपैठी” का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। बाद में जब से असम के मुख्यमंत्री को झारखंड में चुनावी तैयारी के मद्दे नज़र विशेषधिकार देकर प्रभारी बनाया गया, उक्त मुद्दे को ‘नागरिकता कानून” इत्यादि का हवाला देकर इस मुद्दे उछालने के लिए अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं।
इन्हीं के सुर में सुर मिलाते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से लेकर सभी नेता-प्रवक्ता चीख़ चीखकर उटपटांग किस्म के तर्कों कि झड़ी लगा रहे हैं। जिसमें दावा किया जा रहा है कि- कैसे संताल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या घटती जा रही है और मुसलमानों की बढ़ती जा रही है। जो आदिवासी महिलाओं को बहकाकर “लव जेहाद” और “लैंड जिहाद” करके आदिवासियों के अस्तित्व पर हमले कर रहे हैं।
चर्चित आदिवासी नेता बंधू तिर्की ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि- संसद में भाजपा सांसद निशिकांत दूबे द्वारा झारखंड –बिहार और पश्चिम बंगाल को अलग से केन्द्रशासित राज्य बनाने की मांग करना, ये एक साजिश के तहत इस प्रदेश की विशिष्टता को ही ख़त्म कर देने की मंशा से दिया गया बयान है। हम हमारे पूर्वजों और आदिवासी –मूलवासियों के संघर्षों को हम यूं ही नहीं जाया होने देंगे।
उधर राजधानी रांची से लेकर राज्य के कई हिस्सों में भाजपा सांसद के बयान के खिलाफ जगह जगह प्रतिवाद कार्यक्रमों का सिलसिला लगातार जारी है।
ताज़ा सूचना के अनुसार प्रदेश भाजपा प्रवक्ता की ओर से भी मीडिया संबोधन में ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया गया है कि - ये उनका अपना और निजी बयान है ।
कुल मिलाकर व्यापक चर्चा यही हो रही है कि ‘बांग्लादेशी घुसपैठ’ व ‘डेमोग्राफी का मामला भाजपा का चुनावी स्टंट है । जो आसन्न झारखंड विधान सभा चुनाव के लिए ही योजनाबद्ध रणनीति की अभिव्यक्ति है। जिसका कारगर जवाब कहां तक रंग लाएगा, आने वाला वक़्त बता ही देगा। क्योंकि ये किसी अचम्भा सा ही प्रतीत हो रहा है कि जिस संताल परगना के संतालों की हित के लिए भाजपा आज सबसे अधिक चिंतित दिख रही है, उसी संताल परगना में “अडानी पावर प्रोजेक्ट” को स्थापित कर देने के लिए पिछली भाजपा सरकार ने “लाठी-बंदूकों” के सहारे पूरे तंत्र को झोंककर आदिवासियों की ज़मीन लूटने कम किया। आज उसे सबसे अधिक आदिवासी हितों की सबसे अधिक चिंता सता रही है। जिसके लिए आदिवासियों की घटती “डेमोग्राफी’ को अपना बड़ा एजेंडा बनाया है।
वैसे, ये तथ्य और सत्य भी सर्वविदित है कि झारखंड अलग राज्य गठन को लेकर सात दशकों से भी अधिक समय की लड़ाई जो लड़ी गयी, इसके केंद्र में यहां के आदिवासी-मूलवासी समुदाय रहे हैं। जिन्होंने भीषण राज्य-दमन, विस्थापन और पलायन की मार झेलते हुए भी अपने संघर्ष कमज़ोर नहीं होने दिया।
उसी तरह यह भी एक कड़वा सच ही झारखंड राज्य गठन के 23 साल बीत जाने के दौरान यह तथ्य भी जगजाहिर रहा है कि राज्य के आदिवासियों का टकराव सबसे अधिक भाजपा से ही रहा है।
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