‘मैं कांशी राम बोल रहा हूं’; ‘आज दलितों को पुनर्संगठित होने की ज़रूरत’
“आज के संदर्भ में मान्यवर कांशीराम के विचार महत्वपूर्ण हैं। उनकी सोशल इंजीनियरिंग बहुत ज़रूरी है। यह उनकी सोशल इंजीनियरिंग का ही कमाल था कि उन्होंने दलितों को ही नहीं बल्कि महिलाओं को भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में ला दिया। स्थिति ऐसी हो गई थी कि मुख्यधारा का मीडिया भी उनसे डरने लगा था। आज ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम पुनर्संगठित हों और सामयिक सोशल इंजीनियरिंग करें। आज हमें सही नेतृत्व की बहुत ज़रूरत है।” ये कहना है सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन का। विल्सन ने "मैं कांशी राम बोल रहा हूं" पुस्तक के लोकार्पण और चर्चा कार्यक्रम के दौरान के बात कही।
बता दें कि "मैं कांशी राम बोल रहा हूं" (लेखक-पम्मी लालोमजारा, संपादक व अनुवादक-गुरिंदर आज़ाद) पुस्तक का विमोचन और चर्चा का कार्यक्रम 20 दिसंबर, 2023 को सफाई कर्मचारी आंदोलन, ईस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली के दफ्तर में आयोजित किया गया।
इस अवसर बोलते हुए प्रोफेसर राजकुमार ने कहा कि "बातचीत की शैली में लिखी गई यह विलक्षण किताब है। यह किताब वैचारिक आंदोलन में नींव का काम करेगी। मान्यवर कांशी राम जी बहुत बारीकी से अपनी बहुजन विचारधारा को समझाते हैं। राजनीति के बारे में हमारी समझ बहकी हुई-सी थी। मान्यवर कांशीराम जी ने बहुजनों को राजनीति में जगह बनाने की रणनीति दी।"
प्रिंसिपल और लेखक तथा सामाजिक कार्यकर्ता अनिता भारती ने कहा कि "यह पुस्तक संस्मरण है। मेरा मानना है कि संस्मरण आत्मकथा से भी अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस पुस्तक में कांशी राम की खूबियां उभर कर आती हैं। उनका बोल्ड व्यक्तित्व उभर कर आता है। इसमें बहुत मार्मिक प्रसंग हैं और बहुत प्रेरणादायक भी।"
"इस किताब को महत्वपूर्ण बनाता है लोगों को योगदान। यह भी कहा जा सकता है कि यह समाज के लोगों द्वारा लिखी गई किताब है। कांशी राम ने समता का दर्शन दिया। उन्होंने बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के कारवां को आगे बढ़ाया। उनमें समाज को बदलने का जुनून था। उन्होंने सोती कौम जगाई। समता के लिए उनकी सोशल इंजीनियरिंग काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने 'पे बैक टू सोसायटी' का महत्वपूर्ण कार्य किया। सही अर्थों में मान्यवर कांशी राम युग नायक हैं, युग पुरुष हैं। उनकी उत्तराधिकारी मायावती हमारी आईकॉन हैं।"
वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने कहा, "बाबा साहेब ने राजनीति की बात जहां छोड़ी कांशी राम ने उसे वहां से आगे बढ़ाया। उनका पॉलिटिकल फॉरमेशन बहुत महत्वपूर्ण है। उनका काम ग्रास रूट पर था। उनका कहना था कि बदलाव के लिए बारगेनिंग ज़रूरी है, नहीं तो वंचित वर्ग सत्ता में नहीं आ पाएगा। वे चाहते थे कि पूरे भारत में नीला झंडा फहराए। आज के समय में कांशी राम होते तो पॉलिटिकल स्नारियो कुछ अलग ही होता।"
पुस्तक की छोटी-छोटी कथाएं बड़ा वितान रच रही हैं। आज कांशी राम को याद करना इसलिए भी ज़रूरी है कि आज भारत के लोकतंत्र पर गंभीर संकट है। कांशीराम की कर्मभूमि उत्तर प्रदेश रही। वह बेबाक बोलते थे और पाखंड को खंड-खंड करते थे। आज की तारीख में कांशी राम जैसे नेता की की वैचारिकी बहुत ज़रूरी है।
पुस्तक के संपादक और अनुवादक गुरिंदर आज़ाद ने कहा कि "यह पुस्तक मूल रूप से पंजाबी में पम्मी लालोमजारा द्वारा लिखी गई। मैं कांशी राम को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म पर काम कर रहा था। इसी दौरान पम्मी जी से मुलाकात हुई और पुस्तक के हिंदी अनुवाद की योजना बनी। कांशी राम लार्जर दैन लाईफ कैरेक्टर हैं। हर राज्य में कांशीराम के संस्मरण आने चाहिए। हर राज्य की राजनीति के लिए उनके संस्मरण महत्वपूर्ण हैं। मेरे मन में सवाल आता है कि कांशी राम हमें अपने विचारों की इतनी बड़ी विरासत दे गए, हम खासकर युवा उन्हें क्या दे रहे हैं?”
कार्यक्रम के मॉडरेटर की भूमिका शिक्षाविद, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता धम्म दर्शन ने सफलता पूर्वक निभाई। कार्यक्रम में अनेक विद्वजन मौजूद थे।
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