विश्व शक्ति बनने की चाह रखने वाले भारत में कुपोषण आज भी सबसे बड़ी चिंता
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। दूध, दाल, चावल, मछली, सब्जी और गेहूं उत्पादन में हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं। इसके बावजूद देश की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 के कोरोनाकाल के बाद लोगों का भूख से संघर्ष तेजी से बढ़ा है। साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए, इनमें 22.4 करोड़ (29%) भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक चौथाई से भी अधिक है।
बता दें कि कई अन्य रिपोर्ट्स में पहले भी ये दावा किया जा चुका है कि कुपोषण भारत की गम्भीरतम समस्याओं में एक है फिर भी इस समस्या पर सबसे कम ध्यान दिया गया है। आज भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे मौजूद हैं। इसकी वजह से देश पर बीमारियों का बोझ बहुत ज्यादा है, हालांकि राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते है कि देश में कुपोषण की दर घटी है लेकिन न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51%) अविकसित और सामान्य से कम वजन (49%) के हैं।
कुपोषण पर खुद भारत सरकार के आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। भारत के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि दुनिया के सबसे जाने माने शहरों में गिनी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी एक लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं।
क्या है ख़ास इस रिपोर्ट में?
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की तरफ से बुधवार, 6 जुलाई को दि स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन दि वर्ल्ड 2022: रीपरपॉजिंग फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसीज टू मेक हेल्दी डाइट मोर अफोर्डेबल’ नाम की रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट मुताबिक भारत में 97 करोड़ से ज्यादा लोग यानी देश की आबादी का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा पौष्टिक खाने का खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं।
एफएओ रिपोर्ट के अनुसार एक हेल्दी डाइट की परिभाषा में कई तरीके के मिनिमम प्रोसेस्ड फूड शामिल होते हैं। जैसे संतुलित आहार के लिए थाली में साबुत अनाज, नट्स, फलियां, फलों और सब्जियों की प्रचुरता और मॉडरेट अमाउंट में पशु प्रोटीन होना चाहिए। एफएओ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में हेल्दी डाइट पर प्रति व्यक्ति रोजाना (2020 में) अनुमानित 2.97 डॉलर खर्च किया जाता है। क्रय शक्ति समता के संदर्भ में इसका मतलब है कि चार सदस्यीय परिवार के लिए हर महीने 7,600 रुपये खाने पर खर्च किए जाते हैं। क्रय शक्ति समता अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है जिसका अर्थ किन्हीं दो देशों के बीच वस्तु या सेवा की कीमत में मौजूद अंतर से लिया जाता है।
70.5 फ़ीसदी भारतीय स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ
यह रिपोर्ट बताती है कि 70.5 फीसदी भारतीय स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ थे, जबकि चीन (12 प्रतिशत), ब्राजील (19 प्रतिशत) और श्रीलंका (49 प्रतिशत) के लिए यह प्रतिशत कम था। नेपाल (84 प्रतिशत) और पाकिस्तान (83.5प्रतिशत) की स्थिति भारत की तुलना में कमतर थी।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूख से जंग के मोर्चे पर धीमी रफ्तार में ही सही, कुछ सफलता जरूर मिली है। लेकिन, दूसरी ओर मोटापे की समस्या बढ़ रही है। 15 से 49 साल की उम्र वाले 3.4 करोड़ लोग ‘ओवरवेट’ कैटेगरी में आ गए हैं। जबकि, 4 साल पहले यह संख्या 2.5 करोड़ थी।
खाद्य असुरक्षा में लैंगिक अंतर भी बढ़ा है। 27.6 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में दुनिया में 31.9 प्रतिशत महिलाएं मध्यम या गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षा के घेरे में हैं। इसी तरह महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) की समस्या बढ़ी है। 2021 में कुल 18.7 करोड़ भारतीय महिलाएं एनिमिक पाई गईं। 2019 में यह संख्या 17.2 करोड़ के करीब थी। यानी 2 साल में एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की संख्या डेढ़ करोड़ बढ़ गई है।
इस रिपोर्ट की मानें तो लगभग 80 करोड़ यानी लगभग 60 प्रतिशत भारतीय, सरकार की ओर से दी जाने वाले सब्सिडी वाले राशन पर निर्भर हैं। लाभार्थियों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त पांच किलोग्राम अनाज की विशेष महामारी सहायता के अलावा, प्रति व्यक्ति हर महीने सिर्फ 2-3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से पांच किलो अनाज दिया जाता है। खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम की अक्सर भारी अनाज के रूप में आलोचनाकी जाती रही है यानी इस योजना में पर्याप्त कैलोरी की आपूर्ति तो की जाती है लेकिन पर्याप्त पोषण का ध्यान नहीं रखा जाता।
सरकार की नीतियां और विकास के दावे ज़मीनी सच्चाई से कोसों दूर
गौरतलब है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भी भारत का स्थान और नीचे गिरा है। 116 देशों में जहां 2020 में भारत 94वें स्थान पर था, वहीं 2021 में वह गिर कर 101वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत अब अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हो गया है। यह बेहद चिंताजनक है। कोरोना के संकट के दौरान अमीर और अमीर हो गए, वहीं आम भारतीय की औसत संपत्ति 7% तक घट गई। कई लोगों के रोज़गार छिन गए तो कईकों के कमाने वाल हाथ चले गए। ऐसे में जाहिर है सरकार की नीतियां और विकास के दावे जमीनी सच्चाई से कोसों दूर नज़र आते हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से पता चलता है कि नरेंद्र मोदी की सरकार के कार्यकाल में पिछले चार-पांच साल में बच्चों के पोषण के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। लॉकडाउन में यह हालत और ख़राब ही हुई है। हंगर-वॉच के सर्वे भी बताते हैं कि लगभग 60 फीसदी से अधिक लोग अब कम खा रहे हैं। लॉकडाउन में उनकी हालत ख़राब हुई है। इसके बावजूद भारत की मौजूदा सरकार मिड-डे मील और आइसीडीएस जैसी योजनाओं की बजट में लगातार अनदेखी कर रही है। जबकि ये योजनाएं कुपोषण और भूख से लड़ाई में मददगार साबित हुई हैं।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।