देश की आर्थिक राजधानी के इर्द-गिर्द पैर पसार रहा कुपोषण
एक ओर विकास कार्यों में वृद्धि के कारण शहरी क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, लेकिन सवाल है कि देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाले मुंबई से लगे ठाणे जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण की समस्या अभी भी गंभीर बनी ही हुई है, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह संकट क्यों पसर रहा है?
राज्य सरकार के आंकड़े इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि विकास की तीव्र गति में शामिल इसी क्षेत्र के कुछ भाग और समुदाय हैं जहां बच्चों में भूख का संकट बना हुआ है और कुपोषण की स्थिति काबू में आने का नाम नहीं ले रही है।
वर्ष 2021-22 में कुपोषण की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के ठाणे जिले में 1 हजार 531 बच्चे सामान्य रूप से कुपोषित हैं, जबकि 122 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। हालांकि, कहा यह जा रहा है कि पिछले दो वर्षों की तुलना में कुपोषित बच्चों की संख्या में कमी आई है, यानी कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद स्थिति थोड़ी ठीक हुई है, लेकिन अहम बात है कि इस साल ठाणे जिले के शहरी भाग में कुपोषण की व्यापकता अधिक पाई गई है।
दूसरी ओर, ठाणे जिले के ग्रामीण अंचल में एक बड़ी आबादी आदिवासियों की है, जहां बड़ी संख्या में मजदूर परिवार रहते हैं। इस अंचल में भोजन की सुरक्षा और कुपोषण का संकट पुराना है। इन आदिवासी परिवारों की गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार नहीं मिलता है, इसलिए बच्चों के वजन का कम होना यहां नया संकट नहीं माना जाता है।
बच्चे के जन्म के बाद भी मां को संतुलित आहार नहीं उपलब्ध हो पाता है। लिहाजा, बच्चों को भी मां से पर्याप्त दूध और पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है। संतुलित और पर्याप्त भोजन की इसी कमी के चलते हजारों की संख्या तक बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।
लेकिन, यह कुचक्र यहीं समाप्त नहीं होता है। स्थिति यह है कि आर्थिक तंगी के कारण कुपोषित बच्चों के माता-पिता ही कुपोषित बच्चे की स्थिति को अनदेखा करते हैं। लिहाजा, शासन, प्रशासन से लेकर बच्चों के परिजनों की यही अनदेखी कुपोषण की दर बढ़ा रही है।
कहने के लिए कुपोषण के मामले में संवेदनशील जिलों में कुपोषण से निपटने के नाम पर जिला स्तर पर अमृत आहार योजना और पूरक पोषण आहार योजना जैसी कई योजनाएं लागू की गई हैं। इसके माध्यम से गर्भवती, स्तनपान कराने वाली माताओं के साथ-साथ शिशुओं को भी पौष्टिक भोजन प्रदान किए जाने का प्रावधान रखा गया है। हालांकि, जिला परिषद दावा करता रहा है कि इन योजनाओं को लेकर लोगों की ओर सकारात्मक प्रतिक्रियाएं हासिल हो रही हैं।
वहीं, तस्वीर का दूसरा पहलू इस वर्ष के ताजा आंकड़े हैं। वर्ष 2021-22 के आंकड़े कुछ और ही कहानियों की ओर संकेत कर रहे हैं। सवाल है कि यदि अमृत आहार योजना और पूरक पोषण आहार योजना जैसी कई योजनाएं जिले में अच्छी तरह से लागू हैं तो फिर अकेले ठाणे जिले में 122 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित कैसे सामने आए। यही नहीं, यहां 1 हजार 531 बच्चे सामान्य रूप से कुपोषित हैं। यह आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद जिला परिषद का कहना है कि इन बच्चों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लाभ देकर उनमें कुपोषण के स्तर को कम किया जाएगा और उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास किया जाएगा।
बता दें कि राज्य में कुपोषण से निपटने के लिए कई सारी योजनाएं संचालित हो रही हैं। उदाहरण के लिए राज्य में अनुपूरक पोषाहार योजना लागू है, जो 6 माह से 3 वर्ष तक के आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं और किशोरियों को घर का बना भोजन उपलब्ध कराती है। जाहिर है कि इसके तहत खास तौर पर 3 से 6 वर्ष के आयु वर्ग के लाभार्थी बच्चों को गर्म ताजा भोजन दिया जाता है।
इसी तरह, डॉ ए.पी.जे. कलाम अमृत आहार योजना नाम से एक अन्य योजना है, जिसके तहत अनुसूचित क्षेत्रों में कुपोषण की घटनाओं को कम करने के लिए गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को सप्ताह में 6 दिन एक समय पर पर्याप्त भोजन दिया जाता है। सरकारी आंकड़ों में अकेले ठाणे जिले में अब तक 8 हजार 865 गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं ने इस योजना का लाभ उठाया है।
वहीं, कोरोना महामारी प्रकोप के चलते दो साल तक आंगनवाड़ी बंद रही थीं। लेकिन, महामारी का प्रकोप मंद पड़ते ही यह दोबारा सक्रिय हो गई हैं। लिहाजा, ठाणे जिले में पिछले 7 माह से 6 वर्ष तक की आयु के लाभार्थी बच्चों को सप्ताह में 4 दिन अंडे और केले दिए जा रहे हैं और प्रशासन की मानें तो अब तक 45 हजार 230 बच्चे इस योजना से लाभान्वित हो चुके हैं।
ठाणे जिला परिषद के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा जो जानकारी दी गई कि उसके मुताबिक इस योजना का लाभ जिले में शत प्रतिशत पंजीकृत हितग्राहियों को दिया जा रहा है।
वहीं, ठाणे जिले के बच्चों में सामान्य कुपोषण और गंभीर कुपोषण की स्थिति को लेकर ठाणे जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. भाऊसाहेब दांगडे ने प्रशासन की ओर से बयान दिया है। दांगडे कहते हैं कि कोरोना के प्रकोप और उसके बाद की स्थिति में गर्भवती, स्तनपान कराने वाली माताओं के साथ-साथ शिशुओं को भी भोजन पहुंचाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए इस दौरान कुपोषण के लिए ठीक से काम करना संभव नहीं हो पाया। अब जब आंगनबाड़ियां शुरू हो गई हैं तो इन योजनाओं को सही तरीके से लागू किया जाएगा।
दूसरी तरफ, मुंबई और ठाणे से लगे पालघर जैसे आदिवासी अंचल में भी कुपोषण एक गंभीर समस्या के तौर पर चिन्हित की जाती रही है। पालघर जिले में आंगनबाड़ी के माध्यम से लगभग एक लाख बच्चों और लगभग तीस हजार गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली माताओं को आहार दिया जाता है। लेकिन, एक माह से यह योजना बंद है। कारण यह है कि पिछले एक माह से जिले की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि खाने की चीजों के दाम महंगे हो गए हैं, जबकि शासन द्वारा उन्हें जो पैसा दिया जा रहा है वह बहुत कम है। इसलिए उन्होंने खाना बनाना बंद कर दिया है।
पालघर जिले में 2,709 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। इसमें से 1,805 आंगनबाड़ी केंद्र खाना बनाने से मना कर रहे हैं। यहां खाना बनना पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानना है कि महंगाई में हालिया वृद्धि को देखते हुए प्रति बच्चा 6 रुपये और प्रति मां 35 रुपए भोजन पर्याप्त नहीं है। घरेलू गैस और अनाज तथा पत्तेदार सब्जियों आदि के दाम बढ़ गए हैं। जाहिर है कि आंगनवाड़ियों में आहार आपूर्ति की व्यवस्था पर रोक लग जाने की स्थिति में पोषण की कमी होगी और कुपोषण बढ़ सकता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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