दुनिया भर में धन-संपदा पैदा करने में प्रवासी मज़दूरों की भूमिका अहम
कुछ सप्ताह पहले ही, अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) ने अपनी विश्व प्रवासन रिपोर्ट 2024 जारी की है। इनमें से अधिकांश रिपोर्टें बहुत ही सरल हैं, जो नवउदारवाद के दौर में प्रवासन में लगातार वृद्धि की ओर इशारा करती हैं। जैसे-जैसे दुनिया के गरीब इलाकों में मौजूद देश वाशिंगटन की सहमति से (कटौती, निजीकरण, मितव्ययिता) के हमले करते गए, और जैसे-जैसे रोज़गार अधिक से अधिक अनिश्चित होता गया, बड़ी संख्या में लोग अपने परिवारों को पालने के लिए दूसरो देशों की ओर मुखातिब हुए और सड़कों पर निकल पड़े। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) ने 2000 में अपनी पहली विश्व प्रवासन रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जब उसने लिखा था कि 'अनुमान यह है कि दुनिया में पहले से कहीं अधिक प्रवासी मजदूर हो गए हैं', यह 1985 और 1990 के बीच की रिपोर्ट थी, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) ने गणना की थी कि विश्व प्रवासन की वृद्धि दर (2.59 फीसदी) विश्व जनसंख्या की वृद्धि दर (1.7 फीसदी) से आगे निकल गई है।
गरीब देशों में सरकारी खर्च पर नवउदारवादी हमला अंतरराष्ट्रीय प्रवास का एक प्रमुख कारण था। और, 1990 तक, यह स्पष्ट हो गया था था कि प्रवासी मज़दूर अपने परिवारों को विदेशी मुद्रा भेजने के ज़रिए बड़ी और जरूरी ताक़त बन गए थे। 2015 तक, विदेशी मुद्रा को भेजने के मामले में जिसे ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय श्रमिक वर्ग ने भेजा - आधिकारिक विकास सहायता (ODA) और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की मात्रा से तीन गुना अधिक हो गई थी। मेक्सिको और फिलीपींस जैसे कुछ देशों के लिए, श्रमिक वर्ग के प्रवासियों द्वारा भेजी गई विदेशी मुद्रा ने देशों को दिवालिया होने से बचा लिया था।
इस वर्ष की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में लगभग 28 करोड़ 10 लाख लोग ऐसे हैं जो विश्व भर में काम ले लिए इधर से उधर जा रहे हैं। यह विश्व की जनसंख्या का लगभग 3.6 फीसदी है। यह संख्या 1970 में काम की तलाश में जाने वाले 8 करोड़ 40 लाख लोगों से तीन गुना है, और 1990 के 15 करोड़ 30 लाख लोगों से बहुत अधिक है। आईओएम ने कहा है कि ‘वैश्विक रुझान इस बात का इशारा करते हैं कि भविष्य में यह संख्या और बढ़ेगी। विस्तृत अध्ययनों के आधार पर, आईओएम ने पाया कि प्रवास में वृद्धि तीन कारकों के कारण हो सकती है: युद्ध, आर्थिक अनिश्चितता और जलवायु परिवर्तन।
सबसे पहले, लोग युद्ध की मार से भागते हैं, और युद्ध की बढ़ती घटनाओं के कारण यह विस्थापन का एक प्रमुख कारण बन गया है। युद्ध केवल मानवीय असहमति का परिणाम नहीं हैं, क्योंकि यदि शांत दिमाग को हावी हो तो, इनमें से कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है; हथियारों के व्यापार के विशाल पैमाने और मौत के सौदागरों द्वारा शांति पहल को त्यागने और विवादों को हल करने के लिए तेजी से महंगे हथियारों का इस्तेमाल करने के दबाव के कारण हर टकराव युद्ध में बदल जाता है। युद्ध पर वैश्विक सैन्य खर्च अब लगभग 3 खरब डॉलर है, जिसमें से तीन-चौथाई ग्लोबल नॉर्थ के देशों द्वारा किया जाता है। इस बीच, हथियार कंपनियों ने 2022 में 600 अरब डॉलर का भारी मुनाफा कमाया है। मौत के सौदागरों द्वारा की गई इस मुनाफाखोरी के कारण करोड़ों लोग स्थायी रूप से विस्थापित हो गए हैं।
दूसरा, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि वैश्विक कार्यबल का लगभग 58 फीसदी - या दो अरब लोग - अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। वे न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल पर लगभग बिना किसी अधिकार के काम करते हैं। युवा बेरोज़गारी और युवा अनिश्चितता के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, जबकि भारत के आंकड़े और भी भयावह हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों से पता चलता है कि 15 से 24 वर्ष की आयु के बीच के भारत के युवा, कम और गिरती श्रम भागीदारी दरों और चौंकाने वाली उच्च बेरोज़गारी दरों की दोहरी मार झेल रहे हैं। 2022-23 में युवाओं में बेरोज़गारी दर 45.4 प्रतिशत थी। यह भारत की 7.5 प्रतिशत की बेरोज़गारी दर से छह गुना अधिक है।' पश्चिमी अफ्रीका के कई प्रवासी मज़दूर जो सहारा रेगिस्तान और भूमध्य सागर को खतरनाक तरीके से पार करने का प्रयास करते हैं, वे इस क्षेत्र में अनिश्चितता, अल्परोज़गार और भारी बेरोज़गारी की वजह से भागते हैं। अफ्रीकी विकास बैंक समूह की 2018 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक कृषि पर हमले के कारण, किसान ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर कम उत्पादकता वाली अनौपचारिक सेवाओं में चले गए हैं, जहां से वे उच्च आय के लालच में पश्चिम की ओर जाने का फैसला करते हैं।
तीसरा, अधिक से अधिक लोग जलवायु आपदा के प्रतिकूल प्रभावों का सामना कर रहे हैं। 2015 में, जलवायु पर पेरिस बैठक में, सरकार के नेताओं ने जलवायु प्रवास पर एक टास्क फोर्स स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी; तीन साल बाद, 2018 में, संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट ने सहमति व्यक्त की कि जलवायु के नुकसान के कारण पलायन करने वालों को बचाया जाना चाहिए। हालांकि, 'जलवायु शरणार्थियों' की अवधारणा अभी तक स्थापित नहीं हुई है। 2021 में, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट - ग्राउंड्सवेल - ने गणना की थी कि 2050 तक कम से कम 21 करोड़ 60 लाख लोग जलवायु शरणार्थी हो जाएंगे।
धन-संपदा
आईओएम की नई रिपोर्ट बताती है कि ये प्रवासी - जिनमें से कई बेहद अनिश्चित जीवन जीते हैं - अपने हताश परिवारों की मदद के लिए बड़ी मात्रा में धन घर भेजते हैं। आईओएम की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वे जो पैसा घर भेजते हैं, उसमें 2000 से 2022 के दौरान 650 प्रतिशत की चौंका देने वाली वृद्धि हुई है, जो 128 अरब डॉलर से बढ़कर 831 अरब डॉलर हो गई है।’ विश्लेषकों का कहना है कि हाल की अवधि में इनमें से अधिकांश विदेशी मुद्रा निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों में जाती है। उदाहरण के लिए, 831 अरब डॉलर में से 647 अरब डॉलर गरीब देशों को जाते हैं। इनमें से अधिकांश देशों के लिए, कामकाजी वर्ग के प्रवासियों द्वारा घर भेजे गए धन एफडीआई और ओडीए को मिलाकर भी काफी अधिक है।
विश्व बैंक द्वारा किए गए कई अध्ययनों से विदशी मुद्रा भुगतान के बारे में दो महत्वपूर्ण बातें पता चलती हैं। पहली बात, यह कि ये गरीब देशों में अधिक समान रूप से वितरित किए जाते हैं। विदेशी मुद्रा निवेश आम तौर पर ग्लोबल साउथ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के पक्ष में होते हैं, और वे उन क्षेत्रों की ओर जाते हैं जो हमेशा आबादी के सबसे गरीब वर्गों को रोजगार या आय प्रदान नहीं करने वाले होते हैं। दूसरा, घरेलू सर्वेक्षणों से पता चलता है कि विदेशी मुद्रा वाला यह धन मध्यम-आय और निम्न-आय वाले देशों में गरीबी को काफी हद तक कम करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, कामकाजी वर्ग के प्रवासियों द्वारा भेजी गई विदेशी मुद्रा ने घाना (5 प्रतिशत), बांग्लादेश (6 प्रतिशत) और युगांडा (11 प्रतिशत) में गरीबी की दर को कम किया है। मेक्सिको और फिलीपींस जैसे देशों में विदेशी धन के भुगतान में गिरावट आती है तो उनकी गरीबी दर में भारी वृद्धि होती है।
इन प्रवासियों के साथ किया जाने वाला व्यवहार, जो गरीबी को कम करने और समाज में धन के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं, अपमानजनक है। उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाता है, जिन्हें उनके अपने देशों ने त्याग दिया है, जो बहुराष्ट्रीय निगमों के माध्यम से बहुत कम प्रभावशाली निवेश को आकर्षित करने के लिए बहुत अधिक धन खर्च करना पसंद करते हैं। डेटा से पता चलता है कि निवेश के संबंध में वर्ग के दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है। प्रवासी विदेशी मुद्रा, मात्रा के हिसाब से काफी अधिक है और समाज के लिए अधिक प्रभावशाली है, जो देशों में आने-जाने वाली 'हॉट मनी' की तुलना में अधिक है जबकि 'हॉट मनी' समाज में 'नीचे की ओर' नहीं जाती है।
यदि दुनिया के प्रवासी - उनमें से सभी 28 करोड़ 10 लाख लोग - एक देश में रहते, तो वे भारत (1.4 अरब), चीन (1.4 अरब) और संयुक्त राज्य अमेरिका (33 करोड़ 90 लाख) के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश बन जाता। फिर भी, प्रवासियों को बहुत कम सामाजिक सुरक्षा और बहुत कम सम्मान मिलता है। कई मामलों में, उनके पास दस्तावेज़ों की कमी के कारण उनके वेतन को दबा दिया जाता है और उनके भुगतान पर अंतर्राष्ट्रीय वायर सेवाओं (पेपैल, वेस्टर्न यूनियन, मनीग्राम) द्वारा भारी कर लगाया जाता है, जो प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों से उच्च शुल्क वसूलते हैं। अभी तक, केवल छोटी राजनीतिक पहल हैं जो प्रवासियों के साथ खड़ी हैं, लेकिन ऐसा कोई मंच नहीं है जो उनकी संख्या को एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत में एकजुट कर सके।
विजय प्रसाद भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। उन्होंने द डार्कर नेशंस और द पुअरर नेशंस सहित 20 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उनकी नवीनतम पुस्तकें हैं स्ट्रगल मेक्स अस ह्यूमन: लर्निंग फ्रॉम मूवमेंट्स फॉर सोशलिज्म और (नोम चोम्स्की के साथ) द विदड्रॉल: इराक, लीबिया, अफगानिस्तान, एंड द फ्रैगिलिटी ऑफ यूएस पावर हैं।
मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
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